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हनुमान के किरदार के रूप सदैव पहचाने जाएंगे दारासिंह

हनुमान के किरदार के रूप सदैव पहचाने जाएंगे दारासिंह

by दिलीप ठाकुर
in फिल्म, व्यक्तित्व, सितंबर- २०१२
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हनुमान के किरदार के रूप सदैव पहचाने जाएंगे दारासिंह
बहुआयामी व्यक्तित्व के महान कलाकार थे रुस्तम-ए-हिंद

अभिनेता तथा रुस्तम ए हिंद दारा सिंह का विगत 12 जुलाई को निधन हुआ। उनका पूरा जीवन किसी फिल्म के समान ही आंखों के सामने से गुजरा, जिससे उनके बहुआयामी व्यक्तित्व की पहचान होती है।

दारासिंह का मतलब है ताकत, दारा सिंह का मतलब है शक्ति, दारासिंह मतलब है फौलादी पर्वक जैसी विशाल व्यक्तित्व। दारासिंह का मतलब है पहलवान और ऐसे कितने ही विश्लेषणों से उनकी व्याख्या की जा सकती है। दारासिंह की जीवन-यात्रा पर फोकस किया जाये तो चार-पांच महत्वपूर्ण बातों की ओर बरबस ध्यान आकर्षित होता है। किसी व्यक्ति का विचार करते समय उसका सर्वांगीण विश्लेषण होना आवश्यक है, इसका महत्व और भी तब बढ़ जाता है जब किसी ख्यातनाम व्यक्ति का उसकी मृत्यु के बाद विचार किया जा रहा हो, ऐसे समय में उसके ‘अच्छे दिनों’ को ही याद करना उस व्यक्ति पर अन्याय होगा।
दारासिंह अर्थात कुश्ती खेलने वाला पहलवान, साठ के दशक के स्टंट फिल्मों के हीरो, चरित्र अभिनेता देशभक्ति को आधार लेकर बनी फिल्मों के निर्माता, निर्देशक अभिनेता, भारतीय जनता पार्टी के सांसद, समाज सेवक आदि उनकी पहचान है।
पंजाब के एक संभ्रांत परिवार में दारासिंह का जन्म हुआ और उन्होंने किशोरावस्था में ही अपनी पुश्तैनी कृषि संभालने का कार्य शुरु किया। हसिये से गेंहू की कटाई करते वक्त दारासिैह को कभी छोटापन महसूस नहीं हुआ। उस समय पंजाब के कई लोग काम ढूँढने के लिये सिंगापुर जाया करते थे, वे रात के समय पहरेदारी किया करते थे। दिन के समय का सदुपयोग करने की दृष्टि से उन्होंने स्थानीय कुश्ती प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया। शुरु में उन्होंने चीन के एक पहलवान को हटाया। उसके कुश्ताी में अपने पराक्रम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने किंगकांग, जार्ज गार्डिको, जॉन डिसिल्व जैसे कई विदेशी पहलवानों को परास्त किया। उनके नाम कुश्ती के कई खिताब जैसे ‘चैम्पियन ऑफ मलेशिया’, ‘कामनेवेल्थ चॅम्पियन’, ‘रुस्तम-ए-पंजाब’, ‘रुस्तम-ए-हिंद आदि दर्ज हैं।

दारासिंह की शक्ति का पचास-साठ के दशक में फिल्मों में भी उपयोग हुआ। इन फिल्मों में होने वाली मारधाड के कारण इन्हें स्टंट फिल्में कहा जाने लगा। इन फिल्मों की कोई प्रतिष्ठा नहीं थी और मुख्य धारा में स्थान भी नहीं था। दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कपूर इन तीनों की इमेज और कीर्ति ने संपूर्ण फिल्म इंडस्ट्री और देश को अपना बना लिया था। ऐसे में दारासिंह के लिये अपनी जगह बनाना कठिन काम था। परंतु दारासिंह अपनी अलग पहचान बनाने में सफल हुए। ‘फौलाद’, ‘तूफान’, बॉक्सर’, ‘आंधी-तूफान’, ‘शाही लुटेरा’, ‘वीरु उस्ताद’, ‘जालसाज’, ‘चोरों का चोर’, ‘संगदिल’, ‘लुटेरा’, ‘किंगकांग’, ‘आवारा’, ‘अब्दुला’, ‘बादशाह’, ‘हम सब उस्ताद हैं’, ‘राका’, ‘दादा’, ‘डंका’, ‘सहदारी लुटेरा’, ‘चालबाज जैसी फायटिंग फिल्मों में दारासिंह खूब चमके। आजकल फिल्मों में फायटिंग आम बात है। परंतु पहले यही दारासिंह की फिल्मों की खासियत होती थी। दारासिंह का भारी-भरकम फौलादी व्यक्तित्व और कोमलांगी देह से परिपूर्ण मुमताज की जोड़ी ने उस समय एक दर्जन से अधिक फिल्में कीं। इस प्रकार के ‘डेडली कॉम्बिनेशन’ की आज कल्पना भी नहीं की जा सकती। परंतु उस समय ‘फायटिंग’ को ही ‘एकटींग’ मानने वाले दारासिंह और अत्यंत नाजुक मुमताज की जोड़ी ने खून धमू मचाई थी। हिंदी फिल्मों की सौ साल की यात्रा पर यदि प्रकाश डाला जाये तो ऐसी कई परेशान करने वाली बातें सामने आयेंगी। यह इतिहास अत्यंत मनोरंजक है और इसमें दारासिंह की अलग पहचान है। दारासिंह की मृत्यु के बाद मुमताज ने इंग्लैंड से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनके करियर के शुरुवाती दिनों में जब कोई भी नामचीन कलाकार उनके साथ अभिनय करने के लिये तैयार नहीं थे तो दारासिंह ने उस समय उनका साथ निभाया। मुमताज ने यह भी बताया कि उनकी बहन ने दारा सिंह के भाई रंधावा से शादी की है इसलिये उनके पारिवारिक संबंध भी हैं। दारासिंह की मृत्यु के पश्चात मुमताज ने सच्चे मन से उन्हें श्रद्धांजलि दी परंतु विदेश में होने के कारण वे जुहू स्थित ‘दारा विला’ नहीं पहुंच सकीं। फिल्मी कलाकारों में भी हाड-मांस-मन होता ही है, वे भी सभी आम इंसानों की तरह ही होते हैं। दारासिंह के अंतिम दर्शन करने के लिये धर्मेन्द्र, बॉबी देओल, अभिषेक बच्चन, अनिल शर्मा, तब्बू, दीप्ती भटनागर, संजय खान जैसे कई फिल्मी हस्तियां पहुंचां ।

पौराणिक फिल्में और धारावाहिक भी दारासिंह की विशेषता थी। ‘तुलसी विवाह’, ‘हर-हर महादेव’, ‘भक्ति में शक्ति’, ‘शिवशक्ति’, ‘जय बजरंग बली जैसी कई फिल्मों में दारासिंह की शक्ति का उपयोग किया गया। कई बार उन्हें जय हनुमान साकार करने का मौका मिला और उन्होंने यह भूमिका बहुत अच्छे से निभाई। फिल्म ‘तुलसी-विवाह की एक घटना का उल्लेख यहां आवश्यक है। गिरगांव के मेजेस्टिक सिनेमा में फिल्म के प्रदर्शन की तैयारियां चल रही थीं, इसके लिये भगवान शंकर की एक बहुत बड़ी मूर्ति मेजेस्टिक मेंं लाई गई परंतु शिवसेना ने आंदोलन कर दिया। उनका कहना था कि मेजेस्टिक में केवल मराठी फिल्में ही प्रदर्शित की जायें। ‘तुलसी-विवाह’ में दारासिंह ने भगवान शंकर की मुख्य भूमिका निभाई थी। आंदोलन के कारण इस फिल्म का प्रदर्शन बाजू में ही सेंट्रल टॉकीज में किया गया और भगवान शंकर की उस भव्य प्रतिमा को भी सेंट्रल टाकीज में ही स्थापित किया गया।

रामानंद सागर निदेर्शित रामायण धारावाहिक में दारासिंह ने हनुमान की भूमिका अदा की और घर-घर में अपनी जगह बना ली। कुछ कलाकार अपनी ऐसी ही भूमिकाओं के कारण प्रसिद्ध हो जाते हैं और ये भूमिकाएं ही उनकी पहचान बन जाते हैं।
दारासिंह को इस भूमिका से बाहर किालने का श्रेय तीन बड़े निर्देशको को जाता है। इसे दारासिंह के करियर का नया मोड़ भी कहा जा सकता है। राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर’, हृषिकेश मुखर्जी की ‘आनंद’ और मनमोहन देसाई की ‘मर्द’ इसमें शुभार हैं। मनमोहन देसाई गिरगांव के खेतवाड़ी के रहने वाले थे। उन्होंने ‘मर्द’ की भूमिका के लिये अमिताभ बच्चन को चुना और उनके पिता की भूमिका के लिये दारासिंह को चुना। दारासिंह ही क्यों? पूछने पर उन्होंने जवाब दिया कि ‘‘मर्द’ का पिता ‘सुपर मर्द’ होना चाहिये ना।’ मनमोहन देसाई ने तो एक सीन में कमाल ही कर दिया। हवाई अड्डे से एक हवाई जहाज जब आकाश की ओर उड़ा तो दारासिंह ने उसके पंख को रस्सी फेंक कर रोक लिया। इस अजीबो गरीब सीन को दर्शकों की खूब तालियां मिलीं। दारासिंह ने धर्माला, धरम-करम, वारंट जैसी फिल्मों में भी भूमिकाएं कीं। इन सब फिल्मों से एक फायदा हुआ कि दारासिंह फिल्म की मुख्य धारा में आ गये और सिनेमाघरों में उनकी फिल्में दिखाई जाने लगी। अन्यथा उनकी फिल्मों को प्ले-हाउस में ही स्थान मिलता था। मुंबई के गुलशन, न्यू रौशन, ताज, निशान, दौलत, सिल्वर आदि जैसे सिनेमादारों में इस तरह की फिल्में दिखाई जाती थी और मनोरंजन से भरपूर इन फिल्मों को खूब दर्शक मिलते थे।

दारासिंह ने अभिनय के साथ-साथ निर्माण और निर्देशन में भी कदम रखा। उन्होंने देशभक्ति पर आधारित फिल्म ‘मेरा देश मेरा धर्म’ फिल्म बनाई। सत्तर के दशक में दारासिंह ने एक और जौहर दिखाया। उन दिनों वरली के पटेल स्टेडियम में कुश्ती की प्रतियोगिता के पोस्टर लगते थे। जिसमें दारासिंह अपने प्रहिद्वंदी को जोरदार संवादों के साथ ललकारते हुए दिखते थे। यह संपूर्ण गतविधि मसालेदार और लोकप्रिय थी। ‘चार-पाच सालों तक यह प्रतियोगिता ऐसे ही चली और दारासिंह के करियर को एक नया आयाम मिला।

इम्तियाज अली निर्मित ‘जब वी मेट’ दारासिंह की अंतिम फिल्म थी। इसमें उन्होंने करीना कपूर के दादा की भूमिका निभाई थी। इससे वे आज के पीढ़ी के लोगों में भी जाने पहचाने गये।

अच्छे और गुणवान कलाकार ही फिल्मों की पीढ़ियां बीतने के बाद भी कार्यरत रहते हैंं और यह कीर्तिमान दारासिंह के नाम है। दारासिंह की फिल्मी यात्रा, सामाजिक कार्य और विविध विषयों पर उनकी पकड़ आदि गुणों के कारण उन्हें राज्यसभा का सांसद नियुक्त किया गया। भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अपनी पार्टी का सांसद नियुक्त किया। दारासिंह ने राज्यसभा में कई विषयों पर भाषण दिया। चर्चा में भाग लेकर और विविध विषयों पर प्रश्न पूछा कर उन्होंने अपना प्रभाव जमाया। दारासिंह को देखकर यह सिद्ध होता है कि फिल्मी हस्तियों का राजनीति में आना सही कदम है। प्रत्येक छोटे-बड़े कलाकार में एक व्यक्ति होता है और उसके अपने कुछ विचार होते हैं। दारासिंह के दृष्टिकोण ने उनके सांसद पद की गरिमा को भी बढ़ाया है।

चौतरफा प्रवास करनेवाले दारा सिंह का व्यवहार बहुत ही समझदारी पूर्ण और इंसानियत से परिपूर्ण था, उनके इसी स्वभाव का उनके काम पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। हिंदी फिल्मों की सौ वर्षो की यात्रा में दारासिंह और उनकी फिल्मों का विशेष स्थान है। एक बहुआयामी व्यक्तित्व के रुप में दारासिंह हमेशा याद किये जायेंगे।

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