समाज के आधार, स्नेह एवं समर्थन के बल पर संघ कार्य चालत है -मा. मनमोहन वैद्य


* संघ कार्य का मुलाधार कौन सा है?

हिंदु राष्ट्र के प्रति निष्ठा, गौरव का भाव और भारत माता के प्रति असीम भक्ति ही संघ कार्य का मुलाधार है।

* संघ की सांस्कृतिक, राष्ट्रीय एवं सामाजिक जागरण की रूपरेखा किस प्रकार है?

ये तीनों बातें एक-दुसरे से जुडी हुई हैं। हमारे राष्ट्रीय पहचान अपनी संस्कृति के कारण ही है। लेकिन संस्कृति कालपरत्वे कही न कही क्षीण होती रहती हैं, उन्हें सही दिशा में लाना। कुछ कुरीतियाँ समय के प्रवाह से समाज में आती हैं, उन कुरीतीयों को पहचान कर उन्हें समय-समय पर दूर करना है। समय के साथ संस्कृति मे नई बातें जुडती रहती हैं। उचित तरह से विचार कर मूल आशय को कायम रखते हुए उन्हें जोडने कि प्रक्रिया को अवरुद्ध रखना, समाज में संस्कृति संवर्धन के संदर्भ में जागरण कायम रखना, संघ के कार्य की रूपरेखा है।

* राष्ट्रहित एवं हिंदू संगठन से जुडा संघ कार्य मुस्लिम विरोधी क्यों समझा जाता है?

‘हिंदू’ शब्द सुनते ही मुस्लिम एवं ईसाइयों के प्रति मन में प्रश्न उठना उचित नही, वास्तविक ‘हिंदू’ इस राष्ट्र की प्रमुख पहचान है। भारत के मुसलमान हज करने जाते हैं, तब वहाँ पर हिंदू के नाते ही उनकी पहचान होती है। यह बात वे लोग भी जानते हैं। हिंदू-मुसलमानों में राजरीति करने का प्रयास पहले अंग्रजों ने किया और दुर्दैव्य से ब्रिटिशों के पश्चात वही भेद कि नीति चल रही है। इसी कारण भारत में इस प्रकार के भ्रम निर्माण हुए है। ‘हिंदुत्व’ भारत की विचारधारा हैं, हिंदुत्व भारत की जीवन पद्धति है। हमारे जो मुलभूत सिद्धांत है हिंदू कहने पर भी वही आते है, भारतीय कहने पर भी वही आते हैं, इंडियन कहने पर भी इसमे कोई बदलाव नहीं आता है। जब मुलभूत सिद्धांत एक ही है, तब आप उसे हिंदू कहें, भारतीय कहें, इंडियन कहें उस पर आपत्ति नहीं है।

‘एक ही चैतन्य अनेकों मे अभिव्यक्त होता है’ यह भारतीय विचार है। वह अन्यत्र कहीं नहीं है। इसलिए विविधताओं में एकता देखना यहीं की उत्पत्ति है। परमात्मतत्व को याद करने के नाम अनेक हो सकते हैं, मार्ग अनेक हो सकते हैं। सभी मार्ग अपने-अपने जगह पर सही हैं। यह सोच भारत की संस्कृति है। यह ‘हिंदुत्व’ है।

विवेकानंदजी ने जब अपने भाषण में अमेरिका में कहा था कि ‘‘सभी उपासना पंथों की जननी भारत भूमि की ओर से मैं आप सभी का स्वागत करता हूँ।’’ यह बात कहते हुए उन्होंने उदाहरण भी दिया की यहूदी और पारसी इस भूमि पर आए, तब वे भिन्न मतों के, विचारों के थे। वे भारत की विचारधाराओं से सहमत थे, ऐसा नहीं था। उन्हें भारत मे रहने मे कोई दिक्कत नहीं हुई। कारण भारत का यह स्वभाव है।

मनुष्य ईश्वर का अंश है, उसमें भी देवत्व है। मनुष्य के अंदर के देवत्व को प्रगट करना हमारा अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। मनुष्य देह को सार्थक करने की बातें सभी भारतीय भाषाओं के साहित्य में है। व्यक्ति सृष्टि, परमात्म, समाज के तत्वों के साथ किस तरह से जुड़ा है, इस संदर्भ मे भारत की जो सोच है वह उसी का अंग है। यह परस्पर समन्वय से है, यह भारत की सोच है।
इस सोच के आधार पर जो जीवन पद्धति भारत मे विकसित हुई है वह जीवन पद्धति ही भारतीय संस्कृति या हिंदुत्व के नाम से जानी और मानी जाती है।

इस विचार-आचार पद्धति को जो स्वीकार नहीं करता है वह राष्ट्रीय नहीं है। अराष्ट्रीय है। अराष्ट्रीय होना बुरी बात नहीं है। भारत के बाहर के लोग अन्य विचार रखते हैं। लेकिन भारत में रहकर इन विचारों का विरोध करना, विचारों को नष्ट करने का प्रयास करना राष्ट्र विरोधी वृत्ति है। जो भारत के मुल सिंद्धातों को हानि पहुचा रहे हैं, भ्रष्ट कर रहे है। यह बहुत गलत है।
संघ के इन विचारों को मुसलमानों का विरोध होने का कोई कारण नहीं है। केवल उनकी धारणा के कारण ही विरोध होता है। किसी राष्ट्र विरोधी बात का विरोध हम इस लिए नहीं करते हैं वह राष्ट्रविरोधी बातें करने वाले मुसलमान हैं। ऐसा करने पर हमें कम्युनल कहा जाएगा, हम सेक्युलर नही रहेंगे, यह बात विकृत है। मुंबई मे रजा अकादमी ने जो राष्ट्र विरोधी दंगे किए है, उसका विरोध सबको करना चाहिए। बांग्लादेशी घुसपैठी भारत में आ रहे हैं इस बात को हम हिंदू-मुस्लिम की नजर से न देखते हुए, घुसपैठी और भारत के राष्ट्रीय संकट की दृष्टि से देखना चाहिए। संघ के विचारों में मुसलमान विरोध की बातें कभी नहीं होती हैं, राष्ट्र-विरोधी जो कोई भी होंगे उन्हें हमारा स्पष्टरूप मे विरोध होता है।

डॉक्टर हेडगेवार जी के समय में 1934 साल की बात है। संघ के स्वयंसेवकों को सरकारी नौकरी में सहभागी करने के विषय पर मध्य प्रांत की असेंम्बली मे बहस चली थी। तब संघ के पक्ष मे जिन लोगों ने विचार रखे उनमे रहमान नाम के मुस्लिम समाज के बडे नेता भी थे। उन्होंने कहा कि ‘कौन कहता है संघ मुस्लिम विरोधी हैं। सरकार के पास इस विषय पर कोई शिकायत आई है? मैं डॉक्टर हेडगेवार को जानता हूँ, वे और उनका संघ मुस्लिम विरोधी नहीं है। ‘‘जो भी संघ के नजदीक आते है। संघ के राष्ट्रीय विचारों को समझते है। उनका संघ का विरोधी होने का प्रश्न ही नही आता है। यह बात डॉक्टरजी के समय भी थी अब भी है।

* संघ के शक्तिकेन्द्र एवं राष्ट्रजीवन में संघ का योगदान विषय पर अपने विचार बताइगा?

संघ का पहिला शक्तिकेन्द्र यह है कि संघ सभी अंगो से अपने स्वयंसेवकों पर निर्भर है। समाज से ही लोगों की सहायता लेकर सामाजिक काम करने की परंपरा संघ में चल रही है। इस पद्धत्ति के अच्छे जानकार रा. स्व. संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार थे। संघ के लिए जो आवश्यक है वे बातें स्वयंसेवको को अपना स्वयं का कार्य समझकर संघ को देना चाहिए। धन हो, परिश्रम हो, त्याग हो, बलिदान हो ये सभी बातें डॉक्टरजी ने संघ के आरंभ मे रखा था। आज संघ जो बढ़ा है, संघ जो खडा है, वह संघ स्वयंसेवकों के आधार पर है। यह रा. स्व. संघ का पहला शक्तिकेन्द्र है।

संघ किसी व्यक्ति को अपना आदर्श नहीं मानता। डॉक्टरजी ने बड़ी सोच-समझकर इस प्राचीन भारत देश के सांस्कृतिक प्रतीक भगवे ध्वज को आदर्श मानकर गुरु स्थान पर रखा है, यह संघ का दूसरा शक्तिकेन्द्र है। तीसरा संघ का शक्तिकेन्द्र है’ जो भारत की परंपरा रही है वह यह है कि अधिकतर समाज का कार्य समाज के ही आधार पर चले नकि सरकार के आधार पर चले। संघ का संपूर्ण कार्य किसी भी राजकीय आधार पर अवलंबित नहीं है। संपूर्ण समाज की स्वावलंबता, समर्थन और प्रेम के आधार पर संघ का कार्य चलता है। इन तीन बातों में संघ का शक्तिकेन्द्र है।

‘राष्ट्र जीवन मे संघ का योगदान’ विषय पर सोचें तो, हम सबको एक सूत्र में जोडनेवाली कड़ी ‘हिंदुत्व’ है, 80 साल पहले इस विचार पर लोग खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं थे, ऐसे माहौल में संघ के संस्थापक पू. डॉक्टर हेडगेवार जी ने कहा ‘भारत हिंदूराष्ट्र, है ऐसा मै कहता हूं’। संघ यह विचार लेकर, इन विचारों से कोई भी समझौता न करते हुए आगे बढ़ता गया और आज भारत के सभी प्रकार की विचार धारा हो, उपासना पद्धती हो विभिन्न भाषा-प्रांत के लोग हों इन सभी को जोडनेवाला कोई तत्व है, तो वह ‘हिंदुत्व तत्व’ है। इन सभी को एक साथ कोई ला सकता है, तो वह संघ है। ऐसा समाज का अनुभव है। यह संघ द्वारा समाज के मन में लाया परिवर्तन है। समाज जीवन के विविध अंगों में भारतीय विचारधारा को लेकर कार्य करना, उन कार्यों का प्रभाव भारत के विकास में लाना। उसको व्यापक बनाना। चाहे वह विद्यार्थी क्षेत्र हो, मजदूर क्षेत्र हो, किसान क्षेत्र हो, समाज के सभी क्षेत्रों में राष्ट्रीय मुलाधार के विचारों को लेकर संघ का कार्य चलना, संघ कार्य का उचित प्रभाव महसूस होना आदि संघ का राष्ट्रीय जीवन मेें योगदान है, ऐसा मेरा मानना है।

* आज के वैश्वीकरण के युग मे ‘हिंदुत्व’ का महत्व कम होता नजर आ रहा है। इस प्रकार का विचारप्रवाह समाज में आ रहा है। क्या आप इस विचार से सहमत है?

ऐसा है, वैश्वीकरण के संदर्भ मे लोगों की सोच कुछ अलग है। कुछ लोग वैश्वीकरण का सीधा संबंध अमेरिका-यूरोप से ही जोडते हैं। वहाँ की सभी आधुनिक व्यवस्था भारत में लागू करना यानी वैश्वीकरण, यहीं तक उनकी सोच है। उनकी यह सोच बहुत संकुचित है।

‘विश्वभाव’ तो भारत की पुरातन सोच है, विचार है। जो समय-समय पर हमारे भारतीय संत-मंहथोंने बताई है। वही सोच का तत्व है, वही ‘हिंदुत्व’ है। जिसमें संपूर्ण विश्व की मानव जाति के कल्याण की भावना है। यदि आज संपूर्ण विश्व में सामंजस्य की भावना निर्माण करनी है तो, विविधताओं में एकता, अनेकताओं मे एकात्मभाव प्रस्थापित करना है। तो इस कार्य में भारत की भूमिका अत्यंत महत्व की होगी। रबींद्रनाथ टैगौर जी ने ‘स्वदेशी समाज’ विषय पर मौलिक निबंध लिखा है। उस निबंध मे वे अत्यंत सुंदर बात लिखते हैं कि, ‘विविधताओं में एकता की दृष्टि रखना और अनेकताओं मे एकता प्रस्थापित करना ही भारत का अतंस्त धर्म है। टैगौर जी आगे कहते हैं, ‘भारत में हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई आपस में लढ़ते हुए दिखाई देते हैं, फिर भी वे आपस में लडकर समाप्त नही होंगे। कभी ना कभी आपस में सांमजस्य स्थापित करेंगे ही। और वह सामंजस्य अहिंदू नहीं होगा, तो हिंदू विचारधाराओं पर आधारित होगा।

स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है ‘अध्यात्म पर आधारित विश्वभाव और अनेकताओं में सम्यकदृष्टि का जो भारत का भाव है वह विश्व ने स्वीकार कर लिया तो, सभी धर्म-पंथ अपनी-अपनी विशेष सांस्कृतिक पहचान उपासना पद्धति का पालन करके संपूर्ण विश्वभर में सामंजस्य, शांति एवं समाधान निर्माण कर सकते हैं।

विश्वात्मक भाव निर्माण करने की क्षमता भारत के विचारों में है। भारत की यह सोच ही हिंदू तत्व है। और यही हिंदुत्व है। और इसी तत्व के आधार पर भारत एक सक्षम राष्ट्र के रूप मे तैयार हुआ, तो वह अपनी भूमिका सक्षम रूप से दुनिया के सामने ला सकता है। इसी कारण ‘हिंदुत्व’ कल भी आवश्यक रहा है, आज भी है और आने वाले वैश्वीकरण और कई परिस्थितियों में तो हिंदुत्व की महत्ता और भी आवश्यक है। ऐसी मेरी विचारधारा है।

* पं. दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, नानाजी देशमुख जैसे आदर्श एवं प्रभाव निर्माण करने वाले कार्यकर्ता संघ की देन है। पर आज इस प्रकार के कार्यकर्ताओं की कमी महसूस हो रही है?

आपने अभी जो नाम लिए हैं वे राजनीतिक दल से जुडे नाम हैं। इनमें कामगार क्षेत्र में प्रभावी कार्य करनेवाले दत्तोपंत ठेंगडी जी का नाम आ सकता है। ऐसे कार्यकर्तांओं की संख्या बहुत है। और ये सारे जनसंघ के समय के नाम है। मेरे खयाल से आज भी समाज में अच्छे आदर्श विचारों के व्यक्ति की कमी नहीं है। आज बीजेपी की जो वर्तमान कार्य पद्धति है, उसमें से ऐसे नाम शायद आगे नहीं आ रहे होंगे, तो बीजेपी को अपनी कार्य पद्धती के संदर्भ में विचार करना चाहिए।

समाज मे आदर्श विचारों वाले लोग अब भी हैं। हर पीढी में अच्छे बुद्धिमान लोग जन्मते होते है। जब वे संघ के पास हैं, जिनके आधार पर संघ का कार्य चल रहा है, तब ऐसे लोग समाज में भी हैं। ऐसे लोगों को अब आगे आना चाहिए।

* देश की राजनीति सत्ताबल, बाहुबल, धनबल, वंशवाद जैसे आलोकतांत्रिक प्रवृत्तियों से घिरा है। इस स्थिति में बदलाव लाने के लिए कोई विकल्प नजर आ रहा है?

समाज परावलंबी बन रहा है। अपना हर काम सरकार एवं राजसत्ता की व्यवस्था से होना चाहिए, ऐसी आदत समाज में पनप रही है। और राजनीतिज्ञों ने भी समाज को इस प्रकार की आदत लगानें का प्रयास जान-बूझकर किया है। कल्याणकारी राज्य आना चाहिए, पर वह सरकार को करना चाहिए, यह हमारे भारत की परंपरा बनती जा रही है। इसलिए इस रचना को बदलने की आवश्यकता है। ऐसी परावलंबी और हर बात, हर काम के लिए सरकार के मुखदर्शन करनेवाली समाज व्यवस्था से समाज ‘अकर्मण्यवादी’ बनता जा रहा है। विनोबाजी ने कहा था ‘समाज जितना राजसत्ता पर अवलंबित होता है, उतना समाज अपने आप को ‘अकर्मण्य’ बनाता है, दुर्बल बनाता है।’

समाज की ताकत बहुत ज्यादा है, वह अपनी ताकत को पहचाने और कार्य करे। समाज मे सत्तास्थान बनते हैं, तो साथ में उनके दोष भी आते हैं। वह दोष समाज पर हावी होने का, सभी कार्यो का मुख्य आधार खुद बनने का प्रयास करते है। इससे अव्यवस्था उत्पन्न होती है। इसलिए राजकीय शक्ति पर आधारित व्यवस्था व रचना न बनाते हुए वह समाज आधारित व्यवस्था निर्माण करेंगे तो समाज स्वावलंबी बनेगा।

* अलगावादी शक्तियों ने देश के सामने अनेक तरह की चुनौतियां खडी की हैं। संघ देश भर में बढ़ रही इस प्रवृत्ति को किस नजरिये से देख रहा है?

अलगावादी प्रवृति बढ़ती नहीं है, तो राजनैतिक स्वार्थ के लिए उन्हें बढ़ाया जाता है। अगर राजनैतिक स्वार्थ के कारण लोग इस प्रवृत्ति को बढ़ाते रहे, तो अपना समाज अपनी सुरक्षा व्यवस्था लेने के लिए सक्षम है। समाज में अलगाववाद निर्माण करके राजनीति करना अपने यहाँ की राजनीति का स्वभाव बन गया है। पर यह प्रवृत्ति समाज को विघटित करने में सफल नहीं हो रही है, कारण अपने समाज के अंदर सदियों से सामाजिक समरसता का भाव प्रवाहीत है। वह भाव एक-दूसरे को जोड कर रखता है। इसी के कारण विघटन-अलगाववाद जैसी शक्तियां भारत में कभी भी पूरी तरह से कामयाब नहीं रही हैं।

* गुंडागर्दी, महिलाओं को अपमानित करने की प्रवृत्ति, युवाओं की व्यसनाधीनता समाज में दिन ब दिन बढ़ रही है। इस संदर्भ सें जुड़ी कई घटनाओं ने राष्ट्रीय स्तर पर चिंता का वलय निर्माण किया है। जैसे कि गुवाहटी की छेडछाड वाली घटना है। क्या ये बढ़ते घटनाक्रम दुर्दैवी है?

गुंडागर्दी बढ़ रही है, युवाओं में व्यसनाधिनता के साथ स्वेच्छाचार का भाव बढ़ रहा है, यह सही बात है। प्रशासन की ठोस कार्यवाही न होने के कारण ये बातें बढ़ रही हैं। प्रशासन ऐसी वारदातों पर कड़ी से कड़ी कारवाई करे, तो इन बातों पर अंकुश आ सकता है। मैं फिर कहूंगा इस जैसी प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए हमारी कुटुंब व्यवस्था में आ रहे बदलाव ज्यादा जिम्मेदार हैं। घर मे दादी माँ की कहानीयों की जगह टी.वी. ने ली हैं। अब दादी माँ, माता-पिता के साथ बच्चे भी बैठते है किन्तु टी.वी. के सामने। वैश्विकरण के साथ कुटुंब और समाज व्यवस्था बदल रही है। हमें बदलती व्यवस्था के प्रवाह में नही बहते जाना है। यह बात हमें हरदम ध्यान में रखनी है।

समाज का आम व्यक्ति और युवा बहुत खराब है, ऐसा मैं कदापि नहीं समझता, उनमें बहुत अच्छी बातें हैं। अच्छी समझ है। कुछ नया-जोशपूर्ण करने का जजबा है। हर समाज मे थोडी मात्रा में इस प्रकार की गलत प्रवृत्ति के लोग होते हैं। इन्ही अच्छे-बुरे लोगों से ही समाज बनता है। समाज में राज्य की दंडशक्ति होती है, वह दंडशक्ति जितनी प्रभावित होती है, उतना सुशासन होता है। दंडशक्ति जितनी प्रभावहीन होती है, उतना ही समाज गैरजिम्मेदार होता है।

समाज मे अच्छा सोचनेवाले, अच्छा कार्य करने वाले लोग बडी संख्या मे है। समाज का चिंतन पूर्णत: गलत राह पर है, ऐसी बात बिलकुल नही है। मीडिया समाज मे हो रही अच्छी बातों के बजाय गलत बातें समाज के सामने लाने में कुछ ज्यादा ही आगे है। देश को दिशा देनेवाली प्रचार-प्रसार व्यवस्था अपने जिम्मेदारी से भटक रही है। कही छिट-पुट होने वाली घटना को बडे जोर-शोर से समाज के माथे मार रहे हैं। उन्ही घटनाओं के दायरे में समाज का, देश का भविष्य तय कर रहे है। ये गलत, नासमझीवाली बातें हैं।

* आज प्रचार माध्यम ही संघ पर आरोप लगाता है, प्रचार माध्यम ही आरोप तय करता है, संघ के खिलाफ साक्ष्य भी वही देता है और संघ को आरोपी करार भी वही प्रसार माध्यम कर रहा है। न्याय भी वही दे रहा है। प्रचार-प्रसार माध्यमों की इन हरकतों पर आप का जबाब कैसा होगा?

ऐसी हरकतों पर हमें हंसी आती है, प्रसार माध्यमों ने संघ के बारे में हमेशा से ही लगातार गलत धारणा निर्माण करने का प्रयास किया है। ये बातें वे पहले से ही करतें आ रहे है। लेकिन मीडिया के प्रचार की, प्रभाव की भी मर्यादा है। क्योंकि ऐसा लगातार संघ के संदर्भ में नकारात्मक-गलत प्रचार होने के बाद भी संघ का समाज में विरोध नहीं है। संघ का स्वयंसेवक समाज में जाता है, तो वहाँ उसे समाज से सर्वाधिक सहयोग ही मिलता है।

मीडिया में संघ के संदर्भ में गलत बातें प्रसारित करने पर लोग संघ के बारे में अपनी सोच बदलते हैं, ऐसा कभी नहीं हुआ है, और जो भी कुछ छपवाते हैं वह सही छानबीन करके होता है, ऐसी बात कभी नहीं होती है। इसलिए आखीर में सत्य लोगों के सामने आता है।

जब भारत की मीडिया और कांग्रेस के नेताओं ने अत्यंत योजनापूर्वक रा.स्व.संघ को ‘भगवा आतंकवादी’ ठहराते हुये इस वाक्य का जोरदार प्रचार किया। इनकी इन हरकतों के बाद समाज ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को हिंदू आतंकवादी संगठन मान लिया, ऐसा कहीं भी नहीं हुआ है। उलटा ऐसे गलत प्रचार को जबाब देने की भावना समाज के मन में निर्माण हो रही है। प्रचार माध्यमों के ऐसे गलत प्रचारों की भी मर्यादा है। इसके साथ-साथ प्रचार माध्यम समाज में हो रही अच्छी बातों को समाज तक पहुचाने का सशक्त माध्यम है, इस बात को समझ करके संघ ने इन माध्यमों से हमेशा नजदीकी रखने का प्रयास किया है।
संचार माध्यमों द्वारा हो रहे गलत प्रचार को उत्तर देने के लिए संघ का प्रचार-प्रसार विभाग कार्य कर रहा है। कार्यकर्ताओं में लिखने की क्षमता को बढ़ाने का प्रयास हो रहा है। प्रिंट मीडिया में अधिक से अधिक स्वयंसेवक कार्य करें, इस दृष्टि से प्रयत्न चल रहे हैं। जर्नलिजम और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जो चर्चाएं होती हैं उन बातों के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जाता है। देश के सभी राज्यों की स्थानीय भाषांओं में राष्ट्रीय विचारों के, हिंदुत्व की बात रखने वाले कार्यकर्ता निर्माण हुए हैं। संघ विचारों के साथ राष्ट्रीय विचार स्पष्ट करनेवाली किताबों का प्रकाशन देशभर में उत्साह से हो रहा है। राष्ट्रीय विचारों को समाज में पहुँचाने के लिए उपलब्ध सभी पर्यायों का प्रयोग हो रहा है। भविष्य मे यह उपयोग और प्रभावी होगा।

संघ की युवा पीढ़ी बेवसाईट और सभी आधुनिक माध्यमों से समाज के संपर्क में रहती है। उनका इस कार्य में उत्साह बढ़ाने का कार्य हो रहा है। इन आधुनिक माध्यमों का उपयोग समाज पर प्रभाव कर रहा है।

* दो साल पहले शुरू हुए अण्णा हजारे एवं रामदेव बाबा के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने देश के मन में एक विश्वास की भावना निर्माण की थी। पर आज दो साल बाद यह आंदोलन भटक रहा है। आप इन आंदोलनों का मूल्यांकन किस प्रकार से कर रहे हैं?

देश मे हो रहे भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ देश की जनता के मन में आक्रोश की भावना है। जिस प्रकार से लाखों-करोडो में अनगिनत रुपये का भ्रष्टाचार सरकार में बैठे लोग कर रहे हैं, और लगातार एक के बाद एक घोटाला कर रहे हैं। यह बडी गंभीर बात है। देश के सामान्य से सामान्य आदमी को इसकी आँच महसूस हो रही है।

ऐसे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ समाज का कोई भी संवेदनशील व्यक्ति या संघटन आंदोलन करता है, तो समाज से उन्हें समर्थन मिलना ही है। लेकिन यह भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन सीमित मुद्दों तक ही रहा है। लोकपाल बिल आना नहीं चाहिए, ऐसा नही है, या काला धन स्विस बैंक से भारत में आना चाहिए, उसमें कोई दो राय नहीं है। सिर्फ इतनी बातों से देश का भ्रष्टाचार समाप्त होगा क्या? हमें मूलभूत विचार करने की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार में पाए गये लोग न गरीब हैं, न अनपढ हैं, न पिछड़ी जाति के हैं। यह बात तो स्पष्ट है। हमारी शिक्षा व्यवस्था मे जो कुछ मुलभूत कमी है उसी के कारण अच्छा, पढ़ा लिखा, समर्थ, संपन्न वर्ग ही भ्रष्टाचार कर रहा है। मुलत: मनुष्य निर्माण की प्रक्रिया में ही कमीं है।

दूसरी बात हमारी व्यवस्था में है, हम हर बात शॉर्टकट से चाहते है। भ्रष्टाचार व्यवस्था में कमीं के अभाव के कारण हो रहा है। हम लंबा-समय लेनेवाली व्यवस्था के बजाय शॉर्टकट व्यवस्था, जो भ्रष्टाचार से लिफ्त है, वह पसंद करने लगे है। थोडा सा ले-देकर काम करवाने की वृत्ति बढ़ रही है। इसलिए हमारी व्यवस्था में परिवर्तन लाना आवश्यक है।

जो भ्रष्टाचार में दोषी पाया गया हो, उसकी जाँच राजनीति विरहित हो, सही हो, निपक्ष हो, जल्दी हो, भ्रष्टाचारी व्यक्ति को कडी सजा होना महत्व की बात है। इन सारे विषयों पर इकट्ठा विचार होगा तब भ्रष्टाचार दूर होगा। व्यवस्था बदलनेवाला और व्यवस्था का पालन करने वाला मनुष्य ही है। वह जब ठीक नहीं है, तो नई व्यवस्था कोई काम नहीं कर सकती। भ्रष्टाचार के संदर्भ में लोगों में आक्रोश है, पर इसके साथ जागृति आनी भी आवश्यक है। इन विषयों पर गंभीरता पूर्वक विचार करके नई जागृत व्यवस्था खड़ी करने के लिए क्या करना चाहिए, इस पर सोचना आवश्यक है।

* सन् 2000 से 2012 तक की अवधि राष्ट्र की दृष्टि से असमंजस, अराजकता का सयम रहा है। इन स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए संघ ने कौन से प्रयास किए है?

ऐसी स्थिति में आंदोलन करना संघ का स्वभाव नहीं है। इस कालखंड में संघ का एक महत्वपूर्ण काम हुआ है। श्री गुरुजी जन्मशताब्दी वर्ष के निमित्त राष्ट्र के महत्व के विषयों पर समाज मे संपर्क करने का कार्य संघ ने किया था। इस जागरण अभियान में तीन बातों पर समाज का ध्यानाकर्षण किया था। उसमे असामाजिक विषयों पर चिंतन एक भाग था। जो राजनीति के चलते समाज में, विविध उपासना पंथो में, जनजातीयों में जो भेद निर्माण करने का प्रयास चल रहा है, परस्पर अविश्वास निर्माण करने का प्रयास हो रहा है। यह ठीक बात नही। संघ ने संपूर्ण राष्ट्र में ग्रामिण स्तर तक घर-घर मे संपर्क करके हमारे एकता का आधार समाज को समझाने का प्रयास किया था। समाज के प्रति हम्मारी जिम्मेदारी कौन सी है, इस बात पर संवाद करने का प्रयास संघ की ओर से हुआ। अच्छा प्रतिसाद संपूर्ण देश से मिला था। राष्ट्रहित, समाजहित और व्यक्ति हित से समाज सशक्त बनता है, आपसी समरसतापूर्ण वातावरण हमें मजबूत बनाता है, ये बातें समाज तक पहुंचाने का हमारा प्रयास था। लोगों की प्रतिक्रिया थी कि इस प्रकार गैर राजनीतिक बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही कर सकता है और इस प्रकार का समाज मंथन संघ को बार बार करना चाहिए। संघ भविष्य में इस प्रकार के संपर्क की योजना बना रहा है।
आज के युवाओं में समाज और राष्ट्र के प्रति संवेदना है। आज के भाग-दौड के युग में उनके जीवन में परिवर्तन आ रहा है। इसी कारण संघ कार्य से सीधा जोडने में उनको कठिनाई आ रही है। आज के युवाओं को संघ से जोडने के लिए नई-नई योजना बन रही है। समाज में जो बुद्धिमान लोग हैं, उनसे संगोष्टी आरंभ हुई है। उसका अच्छा परिणाम सामने आ रहा है।

समाज मे ऐसा एक वर्ग है जो संघ कार्य से सीधा जुडना पसंद नहीं करेगा। लेकिन उनके मन में राष्ट्र के प्रति चिंता है और संघ ही कुछ कर सकता है, ऐसा उनके मन में विश्वास है। ऐसे लोगों का और संघ का संबंध बढ़े, उनके मन में क्या कल्पना है, वह संघ समझे। संघ की विचारधारा से उनका मतभेद हो सकता है, पर किसी सामाजिक-राष्ट्रीय चिंता के मुद्दों पर हम साथ आ सकते हैं क्या? इस बात का भी विचार होता है। संघ की संपर्क योजनां से इस प्रकार के कार्यो का अनुभव अच्छा है। इस काम के चलते समाज में संघ के लोगों का अभिसरण बढ़ा है।

* उत्तर-पूर्वांचल की समस्या दिन-ब-दिन गरमाती जा रही है। कश्मीर के समान ही उत्तर-पूर्वांचल की समस्या उलझ रही है। सरकार के कौन से निर्णय इस स्थिति लिए जिम्मेदार है?

सरकार उत्तर-पूर्वाचल के प्रश्न को ठीक से समझ नहीं पा रही है। अंग्रजी में कहते हैं ‘डिफाईन टू अ‍ॅडन्टीफाइड ए प्राब्लेम ऐज ए प्रॉब्लेम’, यही मूल बीमारी है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण वहाँ पर यह समस्या खड़ी हुई है। इस बारे में गुवाहाटी हाइकोर्ट ने अत्यंत कड़े शब्दों में पहले भी कहा था, अभी भी कहा है कि ‘अगर सरकार कारवाई नही करेंगी, तो बांग्लादेशी घुसपैठिये भविष्य मे यहाँ के किंग मेकर बनेंगे’। तो अपनी वोट बैंक राजनीति से ऊपर उठकर देश की एकता-अखंडता, देश की सुरक्षा ध्यान में रख कर कार्रवाई होने की आवश्यकता है। यह सरकार के माध्यम से नहीं हो रहा है।

लगातर अनेक वर्षो से वहाँ के बोडो समाज के लोग बांग्लादेशी घुसपैठियों से आनेवाले समस्या को सहन कर रहे थे। गत 7-8 वर्षो मे करीब 200 बोडो युवकों की हत्या हुई है। शालगुडी मे 40 बोडो गावों के जलाया गया। जो घुसपैठी हैं, गैरकानुनी तरीके से देश मे घुसे हैं, वही लोग स्थानीय बोडो लोगो पर अन्याय कर रहे है। ऐसे समय में सरकार को राजधर्म के नाते ही काम करना चाहिए, न की वोट बैंक को ध्यान मे रखकर काम करना चाहिए।

संघ के माध्यम से पूर्वाचल में शाखा चल रही है। विद्यालय-एकल विद्यालय चल रहे हैं। सेवाकार्य चल रहा है। वहाँ के छात्रों को देश के भिन्न-भिन्न भागों में शिक्षा की सुविधा उपलब्ध करवाने का काम चल रहा है। अभी उत्तर-पूर्वाचल में जो घटना हुई, उसके बाद देश भर में रह रहे पूर्वांचल वासियों को, युवाओं को वहाँ के स्थानिय मुस्लिमों ने डराया-धमकाया और उनके मन में भय का निर्माण किया कि ईद के बाद पूर्वाचलवासियों के खिलाफ ‘कुछ’ होगा। तब बडी संख्या मे देश भर के प्रमुख शहरों से अपनी पढ़ाई, नौकरी छोड़कर उन्हें पूर्वाचल जाना पडा। ऐसे समय मे संपूर्ण देश भर में संघ के स्वयंसेवकों ने उन्हें सहानुभूति दी। उनकी सहायता की है। उससे सारे उत्तर पूर्वांचल में संघ परिवार के लोग हमारे अपने है, ऐसा वातावरण निर्माण हुआ है। जिससे संघ के साथ जुडने में वे उत्सुक हैं।

सिर्फ पूर्वाचल वासियों ने ही नहीं तो देश के ज्यादातर लोगों ने भी यह बात महसूस की है। संघ ने कोई अलग काम नही किया था, इस प्रकार की सहायता करना संघ का स्वभाव ही है।

* ‘लव जिहाद’ और ‘लिव इन रिलेशनशिप’ जैसी बातें समाज में फैल रही है। इन दोनों को कैसे उखाड फेंका जा सकता है?

‘लव इन रिलेशन’ की बात अपने भारत देश में बहुत प्रचलित है, ऐसी बात नहीं है। केवल नया विचार प्रवेश कर रहा है, पर अपने यहाँ का सामाजिक-पारिवारिक जो तानाबाना है, पारिवारिक मजबूत विचार हैं, उसके कारण ‘लव इन रिलेशनशिप’ जैसी बातों को ज्यादा पनाह नही मिलेगी। भारत में पारिवारिक भावना से लोग एक-दूसरे से जुडे हैं। उसकी जडें बहुत गहरी हैं।
‘लव जिहाद’ वाली बात जो है, उसके संदर्भ में भारतीय समाज में जागृति आना बहुत आवश्यक है। मुस्लिम समाज अपनी संख्या बढ़ाने के लिए संगठित और धार्मिक दृष्टि से ‘लव जिहाद’ के माध्यम से प्रयास कर रहा है। यह ‘लव जिहाद’ सिर्फ भारत में है, ऐसा नही है। भारत के बाहर भी गैर इस्लामिक देशोें में यह गतीविधि चल रही है। इस विषय में समाज को ही अपने आप में सतर्क रहना पडेगा। बड़ी सोची-समझी इस्लामिक रणनीति का शिकार हिंदू लडकियां हो रही हैं। उन लडकियों को ‘लव जिहाद’ के छिपे इस्लामिक एजेंडे के संदर्भ में जागृत करना आवश्यक है। इस विषय को लेकर सारे समाज को सतर्क रहना जरूरी है। संघ ने ‘कुटुंब प्रबोधन’ नाम से कार्य आरंभ किया है। नवयुवक, संपूर्ण परिवार, पालक आदि से संपर्क के माध्यम से लव जिहाद का खतरा समझाया जा रहा है। संघ विचारों के प्रचार- प्रसार पत्रों से पाठकों को सतर्क किया जा रहा है। देश के प्रमुख अखबारों का भी उपयोग हो रहा है।

* गोवंश रक्षा के मुद्दे को हमेशा दरकिनार करने की सरकार की नीति रही है। संघ ने गोवंश रक्षा विषय को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने के लिए कौन से प्रयास किए है?

संघ ने कुछ वर्ष पूर्व ‘गो-ग्राम यात्रा’ निकाली थी, उस यात्रा के कारण समाज मे गौ के बारे मे जागृति बहुत बढ़ी है। सेंद्रिय खाद के आधार पर खेती करने का चलन बढ़ रहा है। कुछ दिन पहले मैं दाहोद गया था। दाहोद में हमारे जिला कार्यवाह हैं, उन्होंने एक गौशाला आरंभ की है। 50 देशी गाय उनके पास है। वहा जो गौशाला है, उन गौ शालाओं मे दूध देनेवाली गायों से दूध न देने वाली गाय अधिक मुनाफा देती है, ऐसा उनका कहना है। वे किसानों को कहते है उनके पास जो कुल खेती-बा़ड़ी की जमीन है, उसके तीसरे हिस्से मे सेंद्रिय खाद का उपयोग करते है और अन्य जमीन पर रासायनिक खाद का उपयोग करते है। जहाँ पर सेंद्रिय खाद का उपयोग होता है, वहाँ के उत्पाद को लोग देखते है। सेंद्रिय खाद की फसल लाभदायी होती है, तो उस कारण से सेंद्रिय खाद के साथ में गौ पालन का प्रचार अपने आप होता है।

इस गौ-ग्राम यात्रा के बाद सारे देशभर में हजारो गौशाला-प्रारंभ हुई है। पर हमारा मानना है गौशाला गाय के सुरक्षा का अच्छा मार्ग नहीं है। गाय तो किसानों के घर पर ही होनी चाहिए, गौशाला मे नहीं होनी चाहिए। गाय का स्थान किसानों के घर मे हैं, इस भाव को जगाने का प्रयास हम संघ के विविध उपक्रमों से कर रहे हैं। हमारे कार्यो से जागृति आ रही है। समाज में गौ के प्रति सजगता बढ़ रही है।

* चीन हमेशा से भारत की चिंता विषय बना है। चीन के संदर्भ मे किस प्रभावी रीती-निति की आवश्यकता है?

चीन का एक स्वभाव है, उस स्वभाव को हमें पहचानना चाहिए। उन्होंने भारत से अकारण दु:श्मनी की है। उनके स्वभाव को पहचाने बिना हम अगर योजना बनाएंगे, तो हम उसमे मात खायेंगे। चीन सामरिक तैयारियां कर रहा है, उसमे कोई नई बात नहीं है वह उसका स्वभाव है। हम हमारी तैयारियां किस प्रकार कर रहे हैं, यह महत्व की बात है। चीन ने भारत की सीमा तक पक्के रास्ते बना लिए है, यह वृत्त अखबारों मे बड़े-बड़े अक्षरो में प्रकाशित होते हैं। मुझे लगता है चीन ने भारत की सीमा तक पक्के रास्ते बना लिए है या चीन ने अपने सीमा तक पक्के रास्ते बना लिए है? हम यही कहना चाहते है न। तो भारत ने चीन की सीमा तक पक्के रास्ते क्यों नही बनाए। भारत की परंपरा किसी पर आक्रमण करने की नही हैं, एकदम सही बात है। लेकिन अपनी शक्ति की उपेक्षा नही होनी चाहिए। कोई भी भारत पर आक्रमण करने की इच्छा रखेगा तो उसे मुंह ही खानी पडेगी, ऐसी सामरिक तैयारी भारत की होनी चाहिए।

हमारे राष्ट्र की सुरक्षा नीति में यह बात स्पष्ट होनी चाहिए कि हमें कौन सी भूमिका में रहना है। दक्षिण एशियाई क्षेत्र में हमारी कौन सी भूमिका रहनेवाली है। यह विचार स्पष्ट होना चाहिए। चीन जो करेगा, पाकिस्तान जो करेगा अपने स्वभाव के अनुसार ही करेगा। हमको हमारे स्थान को ध्यान में रखकर हमारी सुरक्षा नीति निश्चित करने चाहिए। और किसी भी हालत मे भारत कमजोर नहीं रहना चाहिए, यह सोच भारत को रखनी पडेगी।

* रा. स्व. संघ की सोच है कि, ‘भारतीयों द्वारा चीन का आर्थिक सशक्तीकरण बन्द करना चाहिए।’ इस सोच का कारण क्या है?

चीन की आर्थिक व सामरिक बढ़त में आज एक बड़ा योगदान भारत सरकार व हम भारतीयों का भी है। हम भारत में चीनी वस्तुओं का बड़ी मात्रा में उपयोग करते है। आज चीन को भारतीयों से प्राप्त होने वाली व्यापार राशि लगभग 80 अरब डालर वार्षिक है। इससे हम बड़ी ताकत चीनी माल खरीद कर चीन को प्रदान कर रहे है। जो देश हमारे लिए रक्षा संकट है, हम उस देश की अर्थ व्यवस्था को बल और ताकत प्रदान कर रहे है। उस राशि को चीन हमारे ऊपर सामरिक दबाव बनाने के लिए खर्च करता है। अपनी नासमझी से हम भारतीय ही यह सुरक्षा संकट अपने लिए खडा कर रहे है। चीन का माल पूरे भारत मे कौने-कौने भाग में छा रहा है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम चीन से आने वाले सभी उत्पादों का पूर्ण बहिष्कार करे।

इन चीनी उत्पादों के चलते एक तो देश में बडी संख्या में कारखाने बंद हो रहे हैं। छोटे-छोटे घरेलू उपयोग की वस्तुओं से लेकर रसायन व इंजिनियरिंग के क्षेत्र तक के उद्योग एक के बाद एक चौपट हो रहे है। दूसरी ओर चीन ने अपना आर्थिक व्यापार इतना बढ़ा लिया है कि आनेवाले समय मे चीन दुनिया की क्रमांक एक की अर्थव्यवस्था बन सकता है। किसी जमाने में चीन दुनिया की सातवें क्रमांक की अर्थ व्यवस्था था। वह बढ़ते-बढ़ते तीसरे क्रमांक पर पहुंच गया और पिछले वर्ष जापान, जो दूसरे क्रमांक पर था, उसकों पीछे छोडकर चीन दूसरे क्रमांक पर आ गया है। चीन आनेवाले समय में अमेरिका को पीछे छोडकर दुनिया में क्रमांक एक का निर्यातक देश बन सकता है।

यदि ऐसा होता है, तो अमेरिका चीन से बहुत दूर है, अमेरिका के लिए सीमा पर कोई तनाव की बात नहीं है। जबकि हमारे भारत का चीन के साथ सीमा विवाद है, सीमा पर तनाव है और ऐसे में अगर चीन विश्व की क्रमांक एक की अर्थव्यवस्था बनकर उभरता है, तब हम पर सैन्य दबाव भी अप्रत्याशित रूप मे बढ़ेगा।

* कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था… नौकरशाही और साथ-साथ देश में जातिभेद का वातावरण निर्माण कर रहा है?

ऐसा है कि आरक्षण भारत में सामाजिक भेदभाव के चलते आया हुआ है। और सामाजिक भेदभाव हमारे देश मे बडे लम्बे अर्से से चल रहा है। हमारे समाज का एक प्रमुख वर्ग अनेक सुविधओं से युगों से वंचित रहा है। उस वर्ग का सामाजिक स्तर बढ़ाने, उन्हें साथ लाने के लिए यह आरक्षण की व्यवस्था है। लेकिन यह हमेशा चलता रहे यह आरक्षण को लाने वाले भी नही चाहते थे। कुछ समय बाद वंचितो के विकास के पश्चात यह आरक्षण अपने आप समाप्त होगा, यही उनकी मनीषा थी। लेकिन अच्छे भाव से लाये गये इस आरक्षण का आगे जाकर उसका जो राजनीतीकरण हुआ, उसकी वजह से आरक्षण अधिकाधिक लंबा चलता रहा। आरक्षण मे ज्यादा से ज्यादा जातियों का समावेश होने की स्पर्धा भी निर्माण हो रही है। उस कारण से समाज मे भेद निर्माण हो रहा हैं। यह राजनीतिक उपद्रव है। आरक्षण जैसे अच्छे सामाजिक विषयक का राजनीतिकरण होने से यह स्थिति निर्माण हुई है। इसलिए राजनीतिक लोगों के हाथ से इस विषय को निकाल कर सामाजिक दृष्टि रखनेवाले लोगो के हाथों में आना जरूरी है। तभी इस बात का हल सरलता से निकल सकता है।

प्रवेश के समय आरक्षण होना ठीक है, एक बार प्रवेश मिलने के बाद पदोन्नती के लिए आरक्षण की जो बात आ रही है, वह ठीक नहीं है। लेकिन जब तक सामाजिक भेदभाव है, तब तक आरक्षण आवश्यक है, यह संघ की सोच है।

* राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पंचम सरसंघचालक सुदर्शनजी का हाल ही में स्वर्गवास हुआ है। उनके जीवन की अनुकरणीय यादें जो आपके मन में बैठी हैं, उसे बताइगा?

सुदर्शनजी गहरे चिंतक थे, दूसरी बात यह थी कि, विषय का बहुत मुलभूत अध्ययन करने का उनका स्वभाव था। जो बातें उनके मन को पटती थी उन बातों को वह बड़े प्रभावी ढंग से सामने रखते थे। बडे पद पर होने के पश्चात भी उनमे जो सहजता-सरलता थी, वह लाजबाब थी। किसी को खुद फोन करने मे, खुद जाकर मिलने मे, खुद किसी के घर जाने में उनको कभी भी संकोच नही होता था। किसी से बात करना, बात को समझाना उन्हें अच्छी तरह से आता था। स्वदेशी के वह आग्रही थे, अपने व्यक्तिगत जीवन मे स्वदेशी भाषा, स्वदेशी वेशभूषा, स्वदेशी गृहरचना और स्वावलंबन उनके बहुत प्रिय विषय थे। इस विषय पर उनका गहरा अध्ययन था।

वह परफेक्शनिस्ट थे, प्रार्थना कहते समय किसी स्वयंसेवक से कोई गलती हुई, तो उसे ठीक करवाते थे। मुझे पता है गुजरात के शिक्षा वर्ग में सुदर्शनजी आये थे, तब वे सरसंघचालक थे। एक मोटे से स्वयंसेवक को स्थलांतर कम गति से आ रहा था। सुदर्शन जी ने उसको बुलाया और जब तक उनको वह क्रिया स्पष्ट रूप से नहीं आयी तब तक सिखाते रहे। यह उनके स्वभाव की विशिष्टता थी। और मुख्यत: ईस्लामी एवंम ख्रिश्चन बुद्धीजीजियों से उन्होंने अच्छे संपर्क बनाया था।

* संघ पर्यावरण के मुद्दे को किस दृष्टि से देखता है?

हिंदु जीवन दृष्टि से हम पर्यावरण की ओर देखते है। हिंदु जीवन दृष्टि से हम सब व्यवस्थाओं की रचना करते है, विकास की प्रतिमा (मॉडेल) तैयार करते है, तभी पर्यावरण की सुरक्षा संभव है। 1,500 वर्ष पूर्व भी भारत अत्यंत विकसित राष्ट्र था। आज पर्यावरण की समस्या जो निर्माण हुई है, वह तथाकथित विकसित पश्चिमी देश के कारण निर्माण हुई है। विकास के संदर्भ मे उनका दृष्टिकोण अत्यंत दुषित है। उनके दुषीत दृष्टिकोण के कारण ही पर्यावरण की समस्या निर्माण हुई है। विकास को हमारा विरोध नहीं है, पर जिस प्रकार का दूषित विकास वह लाने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे तत्काल लाभ हैं, पर भविष्य उध्वस्त हो रहा है। हजारों वर्षो से जो पूंजी हमने संभाल रखी है, अत्यंत शीघ्र गति से उसका ह्रास हो रहा है। उस विकास मॉडेल को ही बदलना आवश्यक है।

* 2014 मे चुनाव हो रहे है, स्वराज्य और सुराज्य देनेवाली सरकार भारत देश में आएगी, ऐसा आपको लगता है?

आनी चाहिए ऐसा लगता है। पहली बात तो यह है कि सभी लोगों को यह देखना अत्यंत आवश्यक है कि, मतदान कुल मिलाकर 90 प्रतिशत तक होना आवश्यक है। वह वोटिंग 50 या 55 प्रतिशत होति है, तो हमार समाज जागृत नहीं है। किसी भी पक्ष को मतदान करो पर कुल मिलाकर वोटिंग 90% तक होना चाहिए, यह अत्यंत जरूरी बात है। केवल जाति के आधार पर वोटिंग न हो। इस बार राष्ट्रीय दृष्टिकोण से मतदान करें। यह बात करने से स्वराज्य और सुराज्य देनेवाली सरकार आ सकती है।

* स्वराज्य और सुराज्य की आपकी कल्पना किस प्रकार है?

‘स्वराज्य’ मे तो पहिले ‘स्व’ शब्द का विचार होना आवश्यक है। भारत की जो एक परंपरागत सोच है, उसके आधार पर सारी समाज व्यवस्था खडी होनी चाहिए। और यह ‘स्व’ इस समाज के हर प्रकार की व्यवस्थां में अभिव्यक्त हो, प्रतिष्ठित हो, इस प्रकार का भाव आना चाहिए।

राजनैतिक व्यवस्था समाज के विविध व्यवस्था को अपने कब्जे में लेने का प्रयत्न कर रही है। वहाँ समाज की व्यवस्था से कार्य होना जरूरी है। राजसत्ता आधारित समाजव्यवस्था न होते हुए समाज केंद्रित रचना समाज में, निर्माण होनी चाहिए, इस प्रकार का सुराज्य हमे अपेक्षित है।

* अण्णा हजारे-रामदेव बाबा आदि के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलकर्ता दिशाहिन हो रहे हैं, देश में हर रोज एक बडा घोटाला सामने आ रहा है। विरोधी पक्ष प्रभावहीन दिखाई दे रहा है। ऐसी स्थिति में देश-समाज और स्वयंसेवकों को आप कौन सा संदेश देना चाहते हो?

संघ समाज में तीन बाते निर्माण करने का प्रयास करता है, अपने राष्ट्र की जो पहचान है ‘हिंदू’, इस पहचान के प्रति मन ये जागृति और गौरव निर्माण करना। दूसरा ‘संपूर्ण समाज मेरा अपना है, कोई ऊँचा नही, कोई नीचा नहीं। समाज से मुझे बहुत मिलता है, मै समाज को उससे अधिक दे दू।’ स्वामी विवेकानंदजी ने कहा है ‘जीवन में जितना मुझे समाज से मिला है, उससे अधिक मै समाज को दे दू।’’ यह भाव हमे हर समय मन में रखना है। ऐसे प्रयत्नों से ही संपूर्ण समाज समृद्ध बनेगा अगर समाज समृद्ध बनता है, तो समाज का हर एक व्यक्ति समृद्ध बनेगा। ऐसा समृद्ध-संपन्न समाज आनेवाले सभी संकटों का सामना करने के लिए सक्षम रहेगा। एक-एक बिमारियों को अलग-अलग उपचार करना एक अलग बात है, पर संपूर्ण शरीर को सदृढ बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण बात है। हमें सदृढ समाज खडा करना चाहिए।

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