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क्या कार्टूनों की आड़ में अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार किया जा रहा है?

क्या कार्टूनों की आड़ में अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार किया जा रहा है?

by मनमोहन सरल
in नवम्बर- २०१२, सामाजिक
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जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ताजपोशी हुई थी, उन्होंने कहा था कि वे इतने लम्बे समय से पश्चिम बंगाल में जो स्थिति चलती आ रही है, उसमें ‘पोरिबर्तन’ (परिवर्तन) लायेंगी। ‘पोरिबर्तन’ की प्रवर्तक दीदी (ममता जी को इसी सम्बोधन से ज्यादा जाना जाता है) वहां कितना मूलभूत परिवर्तन लाने में सफल होती हैं, यह तो वक्त ही बतायेगा, फिलहाल तो पिछले दिनों उनको केन्द्र में रखकर जो व्यंयचित्र इंटरनेट पर प्रसारित हुए उनको लेकर उनकी जो प्रतिक्रिया हुई, उसकी देश भर में चर्चा है।

पहले उस कार्टून के बारे में थोड़ा जान लिया जाय। जादबपुर विश्वविद्यालय के प्रो. अंबिकेश महापात्र ने ममता बनर्जी पर बनाये गये अपने कुछ कार्टूनों को इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट ‘फेसबुक’ पर लगाया और उन्हें अपने कुछ मित्रों को भी पोस्ट किया। यह जान कर दीदी तुरंत तैश में आ गईं और उन्हें फौरन अपने मुख्यमंत्रित्व की ‘गरिमा’ का इलहाम हुआ और उनके इस तेवर को देखकर पश्चिम बंगाल की पुलिस तुरंत हरकत में आ गई। नतीजतन प्रो. महापात्र को हिरासत में ले लिया गया। एक अदना प्रोफेसर की इतनी हिम्मत कि प्रदेश के मान्य मुख्यमंत्री का मखौल उढ़ाये।

दीदी की कैबिनेट के एक मंत्री अमित मित्रा ने तो प्रो. महापात्र की इस हरकत को देशव्यापी अपराध मान कर और भी आगे बढ़ कर मुख्यमंत्रियों की एक सभा मं इस सवाल को उठाकर कमाल ही कर दिया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार प्रोफेसर की इस सरकार विरोधी हरकत पर अपनी ओर से कटोर व्यवस्था तो कर ही रही हे, किन्तु देश की सरकार को इस तरह के साइबर क्राइम से निबटने के लिए प. बंगाल सरकार की मदद करनी चाहिए। इनका आह्वाहन था कि इस तरह के निन्दनीय काम पर पूरे देश को मिलकर कार्रवाई करनी चाहिए। नेट को हमारे देश में जिस तरह की आजादी दे रखी है, उसकी वजह से देश में साइबर क्राइम भी बढ़ता जा रहा है। फलत: इस पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस महानिदेशक और सीआईडी के नियंत्रण में एक सेल गठित किया जाना चाहिए और सूचना तकनीकी मंत्रालय तथा गृह मंत्रालय को इस तरह के कारनामों की रोकथाम के लिए तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।

प्रो. महापात्र के इन कार्टूनों से तो अनेक नये-पुराने कार्टनों को लेकर तरह-तरह के विवाद सामने आने लगे, यानी कि गड़े मुर्दे भी उखड़ने लगे। दिल्ली के ‘द हिन्दुस्तान टाइम्स’ के पुराने कार्टूनिस्ट अहमद और जगत्प्रसिद्ध शंकर के पुराने कार्टूनों पर सवाल उठने लगे, जिनको दिवंगत हुए वर्षों हो चुके हैं। इतना ही नहीं, ये कार्टून जिन महान विभूतियों पर बनाये गये थे, उनका निधन भी अनेक वर्षों पहले हो चुका है। इसी प्रकार पद्मविभूषण से सम्मानित वयोवृद्ध व्यंयचित्रकार आर.के. लक्ष्मण के बनाये एक पुराने पॉलिटिकल कार्टून पर भी आपत्ति जताई गई।

इन प्रतिष्ठित कार्टूनिस्टों के कुछ राजनीतिक कार्टून एनसीआईआरटी द्वारा प्रकाशित पाठ्य पुस्तकों में छपे हैं, जिनके प्रयोग पर विरोध उठाया गया। अंतत: एस.के. थोरट की अध्यक्षता में एक समिति गठित हुई, जो इन कार्टूनों की पाठ्य पुस्तक में आवश्यकता और उपयोगिता का निर्णय करे। अभी हाल इस समिति का निर्णय आया है, जिसके परिणामस्वरूप 1949 में प्रसिद्ध व्यंयचित्रकार शंकर द्वारा बनाये दो कार्टूनों को पुस्तकों से निकाल देने की सिफारिश की गई है। इनमें से एक प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू और संविधान-निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर का है और दूसरा 1960 में हुए हिन्दी-विरोधी आन्दोलन का है, जिसके कारण लोकसभा के बजट सेशन को दो बार निलम्बित करना पड़ा था।

श्री थोरट की इस समिति ने 21 राजनीतिक कार्टूनों पर विचार किया है। इनमें से कुछ के शीर्षक बदलने की सिफारिश भी की है। किन्तु एनसीआईआरटी के विशेषज्ञ पैनल ने थोरट समिति की सभी 21 कार्टूनों को निकाल देने की सिफारिश को नामंजूर कर दिया है और मांग की है कि इस मामले पर सार्वजनिक डिबेट होनी चाहिए और एकेडेमिक संस्थाओं की स्वायत्तता बरकरार रहनी चाहिए। एनसीआईआरटी के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा है कि इन कार्टूनों को हटाने की सिफारिश करते समय समिति ने हटाये जाने का कोई समुचित और सर्वमान्य कारण नहीं दिया है, जिससे इस सिफारिश को स्वीकार किया जा सके।

तमिलनाडु के कुछ दल तथा दलित कार्यकर्ताओं ने इन कार्टूनों का कड़ा विरोध किया था, जिसके कारण कुछ संसद सदस्यों ने संसद की कार्रवाई में गतिरोध उत्पन्न किया था लेकिन एक बड़ा वर्ग इन कार्टूनों को पॉलिटिकल साईंस के विद्यार्थियों के व्यापक हित के मद्देनजर जरूरी और उपयोगी मानता है।

दरअसल कार्टून तत्कालीन राजनीतिक घटना या प्रवृति को केन्द्र में रखकर बनाये जाते हैं, जो उस स्थिति पर कटाक्ष तो करते हैं, किन्तु उनके द्वारा उस स्थिति का दूसरा पहलू भी सामने आता है. जो विचार को उद्वेलित करता है। कार्टून कुछ सीमा तक दर्शक को गुदगुदाते भी हैं और उसके लिए स्थिति को विश्लेषित करने का जरिया बनते हैं।

कुछ भी हो, कार्टूनों को लेकर जो हो रहा है वह संविधान द्वारा दी गई अभिव्यक्ति की आजादी पर एक प्रहार तो है ही, जिस पर समुचित विचार किया जाना चाहिए।

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Tags: cartoonfreedom of expressionhindi vivekhindi vivek magazinehuman rights

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