चुनाव के ‘घोषणा पत्र’ की सच्चाई!

 

चुनाव के घोषणा पत्र से तो देश का हर नागरिक वाक़िफ़ होगा क्योंकि यह हर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में हमें देखने को मिलता है। चुनाव के घोषणा पत्र को लेकर सबसे पहले यह समझना होगा कि यह क्या होता है और इसको क्यों जारी किया जाता है। दरअसल इस घोषणा पत्र के द्वारा राजनीतिक पार्टियां अपने काम काज को जनता के सामने रखती है और यह बताती है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो वह घोषणा पत्र के मुताबिक विकास करेंगे हालांकि वर्तमान की यह एक सच्चाई है कि अब घोषणा पत्र के मुताबिक नहीं बल्कि राजनीतिक फायदे और गठबंधन के मुताबिक विकास किया जाता है।

लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले घोषणा पत्र जारी किया जाता है लेकिन कोई भी पार्टी उसके हिसाब से काम नहीं करती बल्कि चुनाव के बाद वह खुद भूल जाते है कि उनके घोषणा पत्र में क्या था। देश में आज कल चुनाव के दौरान एक मुफ्त में सब कुछ देने की प्रथा शुरु हुई है। राजनीतिक पार्टियां अब मुफ्त का खिलाकर वोट मांगती है। चुनाव के दौरान युवाओं को मुफ्त बेरोज़गारी भत्ता, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त में लैपटॉप, स्कूटी और तमाम चीजें देने की बात कही जाती है। अगर कानूनी हिसाब से देखा जाए तो यह गलत है क्योंकि यह सीधे सीधे वोट को खरीदने की बात कर रहे है। नेता यह बताते है कि अगर आप हमें वोट दोगे तो आप को मुफ्त पानी, बिजली और लैपटॉप मिलेगा और चुनाव आयोग भी इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। संविधान के निर्माताओं ने तो यह सोचकर लोकतंत्र की व्यवस्था की थी कि नेता और सरकार कभी भी अपनी मनमानी नहीं कर सकेगी लेकिन यहां तो उल्टा हो रहा है। सभी राजनीतिक दल सिर्फ मुफ्त का लालच देकर वोट खरीदना चाहती है बाकी जो बचे वोट है उन्हे भी धर्म और जाति के नाम पर ले लिया जाता है लेकिन जो सबसे जरुरी है विकास उस पर कोई भी पार्टी नहीं बात करती है।

अगर पूरी राजनीतिक दल पूरी ईमानदारी से विकास कार्य करें तो उन्हे चुनाव के दौरान वोट मांगने की भी जरुरत ना पड़े और चुनाव में करोड़ों के खर्चे को भी बचाया जा सकता है। सभी दल सिर्फ देश और लोगों के विकास के बारे में निस्वार्थभाव से काम करें तो वोट मांगने के लिए घर घर जाने की भी जरुरत नहीं होगी और लोग सिर्फ काम करने वालों को वोट देंगे। हालांकि इस पूरे सिस्टम के लिए सिर्फ नेता ही नहीं जिम्मेदार है इसमें जनता की भी जिम्मेदारी बराबर की है। देश के प्रति जनता की भी जिम्मेदारी होती है कि वह सिर्फ विकास के नाम पर वोट करें लेकिन यहां जनता भी भटकी हुई है और वह भी जाति, धर्म, समाज और मुफ्त बेरोज़गारी भत्ता के नाम वोट कर अपना निजी स्वार्थ साधने में लगी हुई है।

बिहार में भी विधानसभा चुनाव इस महीने से शुरु होने जा रहे है जिसको लेकर कई पार्टियों ने भी अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया। अगर सभी के घोषणा पत्र पर एक नजर डालें तो एक बात सभी में कॉमन है कि सभी ने जनता को फिर से वहीं वादे किये है जो पहले भी कर चुके है। राजनीतिक दलों द्वारा फिर से बेरोज़गारी, किसान कर्ज माफी और मुफ्त बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं को देने का वादा किया गया है। हालांकि यह पहली बार नहीं है इससे पहले भी बिहार विधानसभा चुनाव में इस तरह के घोषणा पत्र जारी किये जा चुके है लेकिन चुनाव के बाद इस पर ना तो सरकार ने ही ध्यान दिया और ना ही जनता ने कभी अपने प्रतिनिधि से इस पर बात की। सभी ने अपने घोषणा पत्र में वर्तमान सरकार पर हमला बोला और उसे पूरी तरह से नकारा करार दिया और जनता से वादा किया कि अगर उनकी सरकार बनती है तो वह पूरे राज्य को खुशहाल और सुखी कर देंगे।

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