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उद्धव-आदित्य, राऊत से नहीं; शिवसैनिकों से घनिष्ठता बढ़ाएं

उद्धव-आदित्य, राऊत से नहीं; शिवसैनिकों से घनिष्ठता बढ़ाएं

by रमेश पतंगे
in अक्टूबर २०२०, राजनीति
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उद्धव, आदित्य एवं संजय राऊत की सेना शिवसेना नहीं है। उनकी सरकार कितने दिनों टिकेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। महाराष्ट्र की परिस्थिति दिनोंदिन खराब से भयावह होती जा रही है, जनता इसे एक सीमा तक ही सहन करेगी।

महाराष्ट्र में 25 वर्षों तक शिवसेना और भाजपा का गठबंधन था, जो अब नहीं रहा। इस बात को लेकर शिवसेना के तो नहीं किंतु भाजपा के कुछ नेता दुखी हैं। बीच-बीच में इस तरह के वक्तव्य दिए जाते हैं कि शिवसेना के नेता आपको कोई भाव नहीं देते किंतु हमारे द्वार शिवसेना के लिए सदैव खुले हैं। ऐसे वक्तव्य भाजपा के प्रति निष्ठा रखने वालों के लिए असहनीय और कष्टदायी होते हैं। यह सत्य है कि शिवसेना के नेताओं के चले जाने के कारण सत्ता हाथ से निकल गई। साथ ही सत्ता गंवाने का दुख भी है किंतु सत्ता अंतिम लक्ष्य नहीं होती; वह तो लक्ष्मी की तरह चंचला होती है। वह कब साथ छोड़ दे, इसका अनुमान कोई नहीं लगा सकता।

आज शिवसेना उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे और संजय राऊत तक ही सीमित हो गई है। जिस शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था, वह उद्धव/आदित्य ठाकरे अथवा संजय राऊत की सेना नहीं थी। वह बालासाहब ठाकरे की सेना थी जो जलते हुए शोले की तरह थी; मराठी आन-बान की रक्षा करने वाली, अपने कंधों पर हिंदुत्व की पताका धारण करने वाली तथा देशहित के लिए स्पष्ट भूमिका निभाने वाली थी। वह कांग्रेस को ’कांग्रेस’ और राष्ट्रवादी को ’राष्ट्र-वादी’ कहती थी। जहां यह नई अवतरित कांग्रेस परिवारवाद एवं भ्रष्टाचार की खान है वहीं नई अवतरित राष्ट्रवादी जातिवाद, प्रादेशिकवाद, मुस्लिम तुष्टिकरण का पोखर है। उद्धव, आदित्य एवं संजय की सेना इनमें आश्रय ले रही है। इनसे हमारा कोई लेना देना नहीं है। वैसे भी किसकी संगत में रहना है, यह हरेक का व्यक्तिगत मामला है।

सवाल उन शिवसैनिकों का है, जिन्हें बालासाहब ने गढ़ा है। प्रत्येक शिवसैनिक भगवा शिवाजी एवं हिंदुत्व को समर्पित है। ये तीनों विषय, शिवसैनिकों की भावना से संबंधित हैं। भले ही ये शब्द अलग-अलग हो किंतु फिर भी भगवा अर्थात शिवाजी और शिवाजी अर्थात हिंदुत्व। ये तीनों ही शब्द, परस्पर पर्यायी शब्द हैं। प्रत्येक शब्द का गहन अर्थ है। भगवा रंग भारत की संस्कृति है जो त्याग और शौर्य प्रतीक है। जीवन से विरक्त होकर अपना संपूर्ण जीवन समाज को समर्पित करने वालों को भगवा वस्त्र धारण करना पड़ता है। अपने चित्त की वृत्तियों एवं सभी इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त करना होता है। इसी कारण भगवा वस्त्र धारण किए संन्यासी के प्रवेश करने पर राजा भी अपने सिंहासन से उठकर उनके चरण स्पर्श करते हैं। अतः ’भगवा आतंकवाद ’ जैसे शब्दों का उच्चारण करने वाला कोई दुष्ट राजनीतिज्ञ ही हो सकता है। भारत को ’राष्ट्रवाद’ प्रदान करने वाले स्वामी विवेकानंद, भगवा वस्त्रधारी संन्यासी ही थे। कानूनी पंडितों के अनुसार, भारतीय लोकतंत्र की रक्षा करने वाले, जिन्हें बाद में ’संविधान रक्षक’ की उपाधि से नवाज़ा गया, भी भगवा वस्त्र धारण करते थे।

इसी भगवा ध्वज के आधार पर शिवाजी महाराज ने ’हिंदू स्वराज्य’ की स्थापना की और अपना पराक्रम फैलाया। उन्होंने दुष्टों, अन्यायियों और विदेशी आक्रमणकारियों की नाक में दम कर दिया। शिवाजी महाराज का स्वराज्य – स्वदेशी राज्य था, सामाजिक न्याय का राज्य था. वह सभी तरह के भक्ति पंथों का, स्त्रियों का सम्मान करने वाला राज्य था। मंदिरों,साधु-संतों की रक्षा करने वाला राज्य था। शिवाजी महाराज को मराठी में ’जाणता राजा’ (जानकार/ ज्ञानी राजा) की उपाधि प्रदान की गई है। उन्होंने अपने हाथ में भगवा धारण कर दुष्टों एवं दुर्जनों का विनाश किया। किसी की हिम्मत नहीं, जो उन्हें भगवा आतंकवादी कह सकें। इस भगवे और शिवाजी के मेल से ही हिंदुत्व का विचार उत्पन्न होता है। यह देश हिंदुओं का देश है क्योंकि वैदिक काल से ही इस देश में जो मानव समूह रहता आया है, उसे हिंदू कहा जाता है। भले ही उनके भक्ति-पंथ अलग-अलग हों; यानी भले ही वे वैदिक/अवैदिक हों, एकेश्वरवादी/निरीश्वरवादी हों अथवा भौतिकवादी ही क्यों न हों पर अंततः हैं तो सब हिंदू ही। ’हिंदू’ की व्यापक परिभाषा में, मस्जिद में जाने वाला हिंदू-मुस्लिम भी समाहित है तथा चर्च में जाने वाला हिंदू- ईसाई भी। बहुत से मुसलमानों एवं ईसाइयों को यह समझ नहीं है कि पहले वे हिंदू ही हैं। इसका कारण यह है कि हिंदू की परिभाषा समझाने वाले स्वयं कमजोर हैं, असंगठित हैं, जाति-पांति में बंटे हुए हैं।

बालासाहब ठाकरे ने ऐसे हिंदुओं को एक लक्ष्य, एक राजनैतिक स्वर और एक शक्ति प्रदान की। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि जाति-पांति की राजनीति न करते हुए, भगवा के आधार पर भी सफल राजनीतिज्ञ बना जा सकता है। एक शिवसैनिक, केवल शिवसैनिक होता है; कोई उसकी जाति नहीं पूछता। प्रगतिशील कहे जाने वाले अन्य राजनीतिक दलों में इस बात को महत्व दिया जाता है कि सदस्य मराठा है, दलित है अथवा ओबीसी है। बालासाहब ने केवल इस बात को महत्व दिया कि वह हिंदू है। यही कारण है कि जहां शाबिर शेख भी शिवसेना के नेता बने, वहीं किसी समय छगन भुजबल, गणेश नाईक, नारायण राणे जैसे विभिन्न जातियों के लोग भी हिंदुत्व की भावना से एकजुट हुए।

इस भावना को अपने मन में संजोकर चलने वाला व्यक्ति ही सच्चा शिवसैनिक है। उससे घनिष्ठता बढ़ानी चाहिए। हिंदुत्व के लिए जिस संगठन का जन्म हुआ, उसकी यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दृष्टि से समग्र हिंदू समाज अपना ही है, वह राजनैतिक प्रतिष्ठा के आधार पर भेदभाव नहीं करता। किंतु राजनीति में दलीय राजनीति के कारण दल-भेद होते ही हैं। पर इसका अर्थ मनभेद अथवा मतभेद नहीं है और शिवसैनिकों के लिए तो यह बात लागू ही नहीं होती।

विचारधारा की दृष्टि से देखा जाए तो ये सभी अपने हैं, केवल राजनीतिक दृष्टि से उन्हें शामिल करने का प्रयास किया जाना चाहिए। हमें ज्ञात है कि यह लिखना सरल है। राजनैतिक दृष्टि से यदि अपने दल में कई लोगों को शामिल करने की बात हो तो सत्ता में विभिन्न स्तरों पर उनका सहयोग करना पड़ता है। दल के संगठन में उन्हें शामिल करना पड़ता है। नगर परिषद से लेकर विधान सभा तक उन्हें सत्ता में सम्मिलित करना पड़ता है। राजनैतिक कार्यकर्ता कोई धार्मिक कार्यकर्ता नहीं होते, जो इस भावना से कार्य करें कि धर्म का काम कर लिया यानी सब कुछ हासिल कर लिया। उन्हें सत्ता में किसी न किसी पद की अपेक्षा होती ही है। भाजपा को इस दृष्टिकोण से कार्य करना चाहिए।

जैसा कि इस लेख के आरंभ में लिखा गया है, यह बात दिमाग में अच्छी तरह बिठा लेनी चाहिए कि उद्धव, आदित्य एवं संजय राऊत की सेना शिवसेना नहीं है। शिवसैनिक एवं भाजपा सैनिक एक ही नाव पर सवार हैं।

वास्तविक लड़ाई यानी राजनीतिक युद्ध उद्धव आदित्य एवं संजय की सेना से है। सामान्य शिवसैनिकों के वैचारिक मतभेद, राजनीतिक ध्येयवाद में निहित भिन्नता एवं आदर्शों की भिन्नता आधारहीन है। सभी एक ही राह के मुसाफिर हैं।

जनता की मर्जी जानने के लिए वर्ष 2024 अथवा उससे कुछ पहले के समय में जाने की आवश्यकता है। दोनों पक्षों की संभावना के आधार पर ही अगली रणनीति का नियोजन करना चाहिए। उद्धव, आदित्य एवं संजय राऊत की सरकार कितने दिनों टिकेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। महाराष्ट्र की परिस्थिति दिनोंदिन खराब से भयावह होती जा रही है, जनता इसे एक सीमा तक ही सहन करेगी। भविष्य में वह किस प्रकार अपना विद्रोह व्यक्त करेगी, इसकी अचूक भविष्यवाणी करना कठिन है किंतु इतना तो समझ आ रहा है कि विभिन्न स्थानों पर लोग अपना रोष प्रकट करने के लिए सड़कों पर उतर आएंगे। महाराष्ट्र का कल्याण इसी में है कि वहां अगली सत्ता किसी एक ही दल की और वह भी पूर्ण बहुमत से आए। हालांकि केवल आशावाद का दामन पकड़कर और सपने देखकर इसे प्रत्यक्ष साकार नहीं किया जा सकता, इसके लिए दूसरा मार्ग अपनाना होगा।

विवेकानंद ने कहा है कि कोई भी एक विचार अपनाएं और उसमें स्वयं को पूरी तरह झोंक दें। दिन-रात उसी के बारे में सोचें, आप सफलता हासिल किए बिना नहीं रहेंगे। महाराष्ट्र में भगवे का राज्य स्थापित करना है, छत्रपति शिवाजी महाराज जी का राज्य स्थापित करना है- इस विचार को साकार करने के लिए स्वयं को पूरी तरह झोंक दें। नेताओं को इस तरह के आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए कि यह विचार हजारों लोगों के जीवन का लक्ष्य बन जाए। परिवर्तन सभी चाहते हैं, हवा भी इसके अनुकूल ही बह रही है केवल नौका की पाल को हवा की दिशा में मोड़ना होगा। अनिच्छित लोगों को मनाने में अपनी शक्ति व्यर्थ गंवाने के बजाए इस विषय पर ध्यान दिया जाए तो ज्यादा बेहतर होगा।

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