विशेष सामार्थ्यवान व्यक्ति है विकलांग

विकलांगता कोई मांगता नहीं, किस को किस प्रकार की विकलांगता आएगी यह बात जन्म से पहले नहीं कही जा सकती। अगर कोई बच्चा विकलांगता लेकर जन्म लेता है, तो उसके माता-पिता, परिजनों, रिश्तेदारों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। नेत्रहीनता, बहरापन, मंदबुद्धि, बहुविकलांगता, हड्डी से संबंधित विकलांगता लेकर जन्मा बच्चा उनके परिजनों के लिए स्थायी समस्या ही बन जाता है।

विकलांग बच्चों को अपना समझने वाले, उनकी मदद करने, उनकी ओर मानवीय दृष्टि से देखने वाले बहुत से लोग हैं, जबकि ऐसे भी लोगों की कमी नहीं है, जो विकलांग लोगों का तिरस्कार करते हैं, उनकी नजर में विकलांगता पूर्व जन्म में किए गए पाप का फल है। इस तरह अलग-अलग का दृष्टिकोण न अपनाकर सभी विकलांगों के साथ एक तरह का दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है। अगर सभी विकलांगों के दर्द को समाज के लोगों ने अपना समझने का बीड़ा उठा लिया, तो उनके आर्तनाद को काफी हद तक कम किया जा सकेगा।

विकलांगता के कई चिकित्सकीय कारण है। इस पर विश्वास रखने वाले लोगों की अच्छी खासी संख्या है, तो कुछ लोग भगवान पर विश्वास रखने वाले भी हैं। विकलांगता भोग रहे लोगों को हर पल परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस सच को जानते हुए भी अपने घर में विकलांगता लेकर पैदा हुए बच्चे के कारण समस्या से लगातार बढ़ती जा रही हैं, फिर भी वह अपने बच्चे की परवरिश करते हैं। विकलांगता से परेशान बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश हर पल होनी चाहिए।

जितनी जल्दी किसी की विकलांगता का इलाज किया जाएगा, उतनी ही जल्दी उसकी विकलांगता खत्म होगी। उनके पुनर्वास का शुभारंभ होगा। उचित चिकित्सा तथा उचित शिक्षा से विकलांगता को कम किया जा सकता है।

आधुनिक युग में विकलांगता एक अभिशाप भले ही बन गई हो, पर कुछ ऐसे विकलांग व्यक्ति ऐसे भी हैं, जो अपनी कुशलता के बल पर ऊँची उड़ान भरने में कामयााब हो रहे हैं। अगर विकलांगों को अवसर दिया जाए, तो वे अपनी योग्यता सिद्ध करने में पीछे नहीं रहते। अपनी योग्यता प्रदर्शित करने वाले विकलांग को विशेष सामर्थ्यवान व्यक्ति की उपाधि प्रदान की जा रही है। भगवान ने अगर विकलांगों को कुछ कम दिया होगा, तो उन्हें निश्चित तौर पर कुछ ऐसे भी दिया होगा, जो जनसामान्य में भी नहीं होगा, इसलिए उन्हें विकलांग न मानते हुए विशेष सामान्य व्यक्ति की संज्ञा दी गई है।

ऐसे सामार्थ्यवान व्यक्ति के पुनर्वास की जिम्मेदारी नैतिक रूप से समाज को ही लेनी चाहिए और अगर समाज ने यह जिम्मेदारी सच्चे तौर पर स्वीकार कर ली, तो विकलांगों का जीवन सुखमय हो जाएगा। अगर समाज, परिवार, मित्र परिवार यह जिम्मेदारी खुद पर न लेकर सरकार पर डाल दी, तो यह बात बहुत खेदजनक तथा गलत ही कही जाएगी।

विकलांगों का पुनर्वास करने में सरकार को भी अपनी तरफ से कोशिश करनी चाहिए। अगर इसमें उदासीनता, भ्रष्टाचार, विकलांगता का बोगस प्रमाणपत्र दिखाकर नौकरी प्राप्त करने के साथ-साथ अन्य सुविधाएं प्राप्त करने जैसी अनेक समस्याओं के कारण सरकार को भी विकलांगों की सहायता करने में कोई खास सफलता मिलती हुई दिखाई नहीं देती है।

विकलांगों के पुनर्वास में अहम भूमिका अदा करने वाले व्यक्ति का राज्य के विकलांग कल्याण आयुक्त पद पर कार्य करने का अर्थ किसी सजा से कम नहीं है। क्योंकि इस पद काम करते समय उनका काम विकलांगों की योजनाओं को अमल में लाने के स्थान पर कोर्ट, कचहरी, कर्मचारियों के बीच के आपनी विवादों की सुनवाई, संचालकों के लिए समय देना पड़ता है। सरकार के इस कार्य के लिए एक पृथक पद का सृजन करके सिर्फ विकलांगों के पुनर्वास का कार्य आयुक्त की ओर से ही किया जाएगा तभी सच्चे अर्थो में विकलांगों के प्रति न्याय देने के कार्य को गति मिलेगी।

विकलांगों की प्रगति में बाधक तत्त्वों का नाश करके विकलांग के विकास के लिए जो भी कदम उठाने आवश्यक हैं, उन्हें अवश्य उठाया जाए। सिर्फ रेम्प बनाने, अलग बैठक की व्यवस्था करने तक ही बात सीमित न रखकर उसके लिए वातावरण व्यवस्था का निर्माण करना, मार्ग, रास्ते के साथ-साथ साईन बोर्ड, राहदरी आदि मसले पर बारीकी से विचार करना आवश्यक है। विकलांग व्यक्ति अधिनियम 1995 के अनुसार कानून के नए नियम को लागू करके नौकरी में 3 प्रतिशत आरक्षण, नगरपालिका, महानगरपालिका के बजट की 3 प्रतिशत धनराशि पुनर्वास के लिए उपयोग में लाने के साथ-साथ अन्य शर्तों को भी अमल में लाया गया है। अगर विकलांगों के बारे में जनजागृति की गई तभी विकलांगों का पुनर्वास के कार्य नें गति आएगी।

समाज के दृष्टिहीन, बहरे, विकृत हड्डीवाले, मानसिक रोगी तथा कुष्ट रोग युक्त विकलांग व्यक्ति के पास, उसकी विकलांगता की ओर न देखकर उसमे निहित सामर्थ्य को देखकर उसके सुसुप्त सामर्थ्य को विकसित करके विकलांगो को सामाजिक जीवन के सभी विकलांगों को समान अवसर देकर उनके अधिकारों की रक्षा की जाए, इस दृष्टि से विकलांग व्यक्ति समान अवसर अधिकार की रक्षा तथा सम्पूर्ण सहयोग अधिनियम 1995 नामक केंद्रीय कानून का निर्माण किया गया है। उसको अगर पूरी तरह से अमल में लाया गया तो भारी पैमाने पर पुनर्वास किया जा सकेगा, पर यह कानून कई लोगों को अभी तक मालूम नही है।

महाराष्ट्र सरकार ने नागपुर अधिवेशन में विकलांग कृति रूपरेखा-2000 की घोषणा की थी, लेकिन इस कानून के आधार पर कुछ भी अमल में नहीं लाया गया। यह रूपरेखा भी केवल आँखों में धूल फेंकने वाली ही साबित हुई। विकलांगों को कृति रूपरेखा-2000 की प्रति बांटने का ही काम उस समय किया गया।

हर साल तीन दिसम्बर विश्व विकलांग दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन अलग-अलग कार्यक्रमों के माध्यम से विकलांगता खत्म करने के बारे में जागरूक किया जाता है। लेकिन विकलांग के बारे में सिर्फ एक दिन का कार्यक्रम करने से उनकी समस्यााओं का समाधान नहीं होगा। विकलांगों की सामान्यओं की ओर से अधिकारियों व सरकार की उदासीनता, भ्रष्टाचार विकलांग के नाम पर बोगस लोगों को मिलने वाली सुविधाएं, जैसे मुद्दों पर जब तक ध्यान नही दिया जाता, तब तक विकलांगों को मुख्य प्रवाह में लाना मुश्किल होगा। इसके लिए स्कूल, सामाजिक संस्था, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक दल, सामाजिक संगठनो के अलावा समाज के सभी घटकों का सहयोग तथा प्रयत्न अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदाकर सकते हैं।

महाराष्ट्र के पड़ोसी राज्यों गोवा, कर्नाटक, गुजरात में विकलांगो के पुनर्वास के लिए कार्य तुरंत नजरों में भरने जैसे हैं। गोवा जैसे छोटे राज्य में विकलांगों को प्रति माह 2000 से 3000 रुपये सानुग्रह राशि दी जाती है। नौकरी, व्यापार तथा अन्य कुछ बातों में इस राज्य में जितनी भी मदद दी जा सकती है, दी जाती है। गोवा की तुलना में महाराष्ट्र सरकार का काम बहुत ही छोटा नजर आता है। गोवा, कर्नाटक, गुजरात राज्यों ने विकलांगो के पुनर्वास के लिए अपनी नीति तय की है, पर महाराष्ट्र राज्य ने आज तक विकलांगों के बारे में कोई नीति तय नहीं की है।

विकलांगों के पुनर्वास का काम करने वाली कई संस्थाएं कार्यरत हैं। विकलांगों का पुनर्वास करते समय सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि विकलांग बच्चों में आत्मविश्वास पैदा किया जाए, उस आत्मविश्वास को बढ़ाया जाये, इकसे लिए उन्हें स्कूली शिक्षा को साथ-साथ व्यवसायाभिमुख शिक्षा देकर उन्हें स्वावलंबी बनाना बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य है। स्वावलंबी तथा आत्मविश्वास इन दोनों पंखों पर ही विकलांग बच्चे इस स्पर्धात्मक विश्व में भी स्वयं का स्थान निर्भिकता से बनाने में सफल होंगे।

विकलांगों के जीवन में आने वाली समस्याएं अनेक हैं। कुछ समस्याएं उनकी निजी जीवन में शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय करते समय सामने आती हैं। विकलांग व्यक्ति कानून- 1995 के अनुसार विकलांगों की इन सभी परेशानियों को दूर करने के लिए हर राज्य में एक आयुक्त, विकलांग कल्याण की नियुक्ति की गई है, परन्तु सरकार ने विकलांगों के पुनर्वास कार्य में बरती गई लापरवाही के कारण विकलांगों की हालत में कोई खास सुधार नहीं हुआ। विकलांगों को न्याय न मिल पाने के कारण वे विषादपूर्ण जीवन जीने का मजबूर हैं। पुणे में अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद ने विकलांग व्यक्तियों के लिए न्याय केंद्र की 5 नवम्बर, 2006 को शुरुवात की। इस न्याय केंद्र की ओर से अधिवक्ताओं, तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कई विकलांग व्यक्तियों को न्याय दिलाया है। उदाहरणार्थ- नौकरी की जगह पर उचित कार्य, व्यवसाय के लिए महाविद्यालय की ओर से स्टाल दिलाना प्रमुख है। नौकरी में पदोन्नति भी वकीलों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रयत्नों से ही मिली है। विकलांगों के पुनर्वास में एक और महत्त्वपूर्ण प्रयोग एकात्मिक शिक्षा भी माना जाता है। सरकार के अनुसार सिर्फ सामान्य स्कूलों में ही विकलांगों को शिक्षा देकर इस समस्या का समाधान हो सकता है, लेकिन जो ज्यादा विकलांग हैं, ऐसे बच्चों को विशेष विद्यालय में शिक्षा देना नितांत जरूरी है। विकलांग बच्चों के चलने, घूमने, उठने-बैठने की भी मर्यादा तय की गई है, इस कारण ज्यादा विकलांग बच्चों के लिए अलग विद्यालय होना जरूरी है। इनके लिए एकात्मक शिक्षा योजना का लाभ उठाना संभव नहीं है, इसीलिए एक अभिनव कल्पना दिल्ली के स्कूलों में शुरू की गई। विकलांगों के इन स्कूलों में सामान्य विद्यार्थियों को प्रदेश देकर एकात्मिक शिक्षा का लाभ उन्हें दिलाया गया। इसे रिवाइज इनिटगेशन नाम दिया गया। सरकार ने अगर ऐसे स्कूलों को मान्यता दी तो पुनर्वास का एक बड़ी हिस्सा पूरा हो जाएगा। वस्तुत: विकलांगता ही न आए, इसलिए प्रतीकारात्मक टीका देने, स्वास्थ्य जांच करने, जनजागृति वैद्यकीय उपचार, स्वच्छता, व्यसन टालने, सुचित आहार-विहार, तत्काल निदान करना जरूरी है। ऐसे में विकलांगता को दूर करने के लिए जनजागरण किया जाना जरूरी है।

 

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