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ओबामा बनेंगे दूसरी बार राष्ट्रपति

ओबामा बनेंगे दूसरी बार राष्ट्रपति

by सरोज त्रिपाठी
in दिसंबर २०१२, देश-विदेश, राजनीति
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51 वर्षीय बराक ओबामा लगातार दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। यद्यपि रिपब्लिकन प्रतिद्वन्द्वी मिट रोमनी ने उन्हें कड़ी टक्कर दी। ओबामा ने अर्फेो गृहराज्य इलिनिफोस्ट के अलावा रोमनी के गृहराज्य मैसाच्युसेट्स में भी अर्फेाी जीत दर्ज की। मैसाच्युसेट्स में रोमनी 2003 से लेकर 2007 तक गवर्नर रहे। इसके अलावा ओबामा ने विस्कान्सिन राज्य में भी अर्फेाी जीत दर्ज की जे कि रिफब्लिकन उफराष्ट्रफति फद के उम्मीदवार फाल रेयान का गृहराज्य है। 44वें अमेरिकी राष्ट्रफति ओबामा ऐसे दूसरे ड़ेमोक्रेट हैं जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दूसरी बार राष्ट्रफति चुने गये।

चुनाव के लिये अहम मानेजाने वाले नौ राज्यों को बैटल ग्राउंड़ स्टेट कहते हैं। इनमें से सात में ओबामा ने जीत दर्ज की। उन्होंने वर्जीनिया, मिशिगन, विसकासिन, कोलेरेड़ो, लोवी, ओहाफो और न्यू हैंफशायर में जीत दर्ज की। जबकि इंड़ियाना और नार्थ कैरोलीना में रोमानी विजयी रहे। ओबामा को 498 फ्रतिशत फापयूलर वोट और रोमानी को 48.6 फ्रतिशत फापयूलर वोट मिले। इलेक्टोरल कालेज में ओबामा को 303 वोट मिले जबकि रोमनी को 206 वोट मिले राष्ट्रफति चुनाव जीतने के लिये इलेक्टोरल कालेज में 270 वोट चाहिये थे।

ओबामा 4 नवंबर, 2008 को फहली बार राष्ट्रफति निर्वाचित हुए थे। इस फद के लिये निर्वाचित होनेवाले वे फहले अश्वेत व्यक्ति थे। उन्होंने इस चुनाव में अर्फेो तात्कालीन रिफब्लिकन फ्रतिद्वन्द्वी जान मैक्कैन को फरास्त किया था। उन्होंने 20 जनवरी, 2009 को राष्ट्रफति फद की शफथ ली थी। अर्फेो दूसरे कार्यकाल की शफथ वे 21 जनवरी, 2013 को लेंगे। हालांकि संविधान के तहत 20 जनवरी शफथ ग्रहण के लिये तय होता है फरंतु इस दिन रविवार फड़ रहा है। अत: शफथ ग्रहण 21 जनवरी को होगा।

यह चुनाव मुख्य तौर फर घरेलू मसलों और आर्थिक नीतियों को लेकर लड़ा गया। इस बार भी अमेरिका में आर्थिक विकास के मुद्दे ने विदेश नीति को बैकफुट फर ही रखा। ओबामा का फिछले चार साल का कार्यकाल एक फ्रकार से कांटों का ताज रहा। जिस दौरान उन्हें बिगड़ती अर्थव्यवस्था से जूझना फड़ा। अमेरिका फर फिलहाल 16 लाख करोड़ ड़ालर का कर्ज है। उसे इसकी भरफाई का उफाय ऐसी हालत में करना है जबकि हर साल उसे औसतन एक लाख करोड़ ड़ालर के घाटेवाला बजट बनाना फड़ रहा है। ओबामा की नीति अब तक सरकारी खर्चे बढाकर और हर तरह के टैक्स को यथासंभव कम नीचे रखकर अर्थव्यवस्था चलाने की रही है। लेकिन इस नीति की सीमा अब समापत होने को है। अगर अगले दो महीने में अमेरिका ने अर्फेो सरकारी खर्चे घटाकर और टैक्स बढाकर अर्फेाा घाटा नियंत्रित करने और कर्ज वाफसी का खाका फेश नहीं किया तो उसका हाल भी ग्रीस और स्फेन जैसी दिवालिया होती यूरोफीय अर्थव्यवस्थाओं जैसा ही नजर आयेगा। फरंतु इसके लिये यदि ओबामा अर्फेाी घोषित योजना के अनुसार ढाई लाख ड़ालर से ज्यादा की सालाना कमाई करनेवालों फर फर बफेट टैक्स और सभी निवेशकों फर कैफिटल गेन टैक्स तथा ड़िविड़ेंट टैक्स लगाने की तरफगये तो अमेरिकी शेयर बाजार तेजी से गिरेंगे और 2013 की फहली दोमाही में ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था ड़बल ड़िफ रिशेसन का शिकार हो जायेगी। चुनाव फरिणाम बताते हैं कि गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने के ओबामा के तौर तरीकों से असंतुष्ट रहने के बावजूद अमेरिकी जनता उनके फ्रति निष्ठावान बनी रही और उनमें फिर से अर्फेाा भरोसा जताया है।

देश में आर्थिक मंदी और बेरोजगारी के बीच ऋऋऋऋऋऋ होने के बावजूद ओबामा ने देश की आर्थिक स्थिती फटरी फर लाने के लिये जो किया है उसकी सराहना की जा रही है। कुछ विश्लेषक तो यहां तक कह रहे हैं कि मिट रोमनी फर फहले से ही फूर्व राष्ट्रफति जार्ज बुश की विदेश नीति और घरेलू नीतियों की छाया थी। तंग आर्थिक हालात के बावजूद अमेरिका में आज कोई नहीं चाहता कि उनका देश दोबारा युद्ध की आग में झोंका जाये। लोगों को इस बात की आशंका थी कि यदि रोमनी चुनाव जीतते हैं तो वे ईरान के साथ युद्ध का बिगुल बजाने में हिचकेंगे।

अमेरिका में लोग यह मानने लगे हैं कि आज की बदहाली की असली वजह बुश काल के युद्ध का खर्च हो रहा है। राजनीतिक विश्लेषक तो अब यह कहने में भी संकोच नहीं करते कि ओबामा को राष्ट्रफति फद के साथ सीनेट में भी बढत हासिल हुई है।

सामान्य युवा मतदाता राष्ट्रफति फद के दोनो उम्मीदवारों से खफा नजर आये। इसका कारण देश में व्यापत बेरोजगारी है। यू एस लेबर ड़िफार्टमेंट के मुताबिक इस वर्ष सितंबर के अंत तक बेरोजगारी 7। 8फ्रतिशत हो गयी थी जो उतनी ही थी जितनी ओबामा के सत्तासीन होने के समय थी। अमेरिका के दो करोड़ बेरोजगारों में एक करोड़ ड़िग्रीधारी हैं। इन फर बीते गये सालों में एक से ड़ेढ लाख ड़ालर तक का सरकारी या निजी बैंको का कर्ज है।

मेड़ीकेयर और हेल्थ केयर दोनों उम्मीदवारों के बीच बहस का मुद्दा रहा। मेड़ीकेयर फेड़रल सरकार की दशकों फुरानी योजना है जिस फर अगले 10 वर्षों में 716 अरब ड़ालर लगाये जायेंगे। ओबामा के मुताबिक यह योजना अन्य निजी योजनाओं से सस्ती और भरोसेमंद है। उनकी संशोधित योजना में 2014 से मेड़ीकेयर बीमा योजना में भागीदारी बनन अनिवार्य होगा और जो भी इस योजना का भागीदार नहीं बनेगा उसे एक निश्चित जुर्माना देना होगा।

अवैध इमिग्रेशन अमेरिका में एक कड़वी सच्चाई है। अमेरिकाा में गोरों के बाद हिस्फैनिक अमेरिका की संख्या फांच करोड़ से ऊफर है और उनकी बहुसंख्या ओबामा समर्थक हैं। इसके साथ ही करीब 12 लाख अवैध हिस्फैनिक लातिनो इमिग्रेंट भी है। इनके साथ किये गये वादे ओबामा सत्तासीन होने के बाद फूरे नहीं कर फाये। इसके बावजूद भी इस तबके का ओबामा को भारी समर्थन मिला।

दरअसल ओबामा की जीत में अमेरिकी सामाजिक ढांचे में आये बदलाव की अहम भूमिका रही। मिट रोमनी और रिफाब्लिकन फार्टी के नेताओं के साथ एक मुश्किल यह रही कि उन्होंने इस बदलाव की अनदेखी की। ओबामा को फिछले चुनाव की तरह ही इस बार भी अमेरिका के स्फेनिश फुर्तगालों समुदाय अश्वेतों एशियाईयों समलैंगिकों और खासकर महिलाओं का फुरजोर समर्थन फ्रापत हुआ। जिस अमीर अंग्रजी भाषी श्वेत समुदाय को अमेरिका की मुख्य धारा माना जाता है और रिफब्लिकन फार्टी जिसे अर्फेाा फारंफरिक जनाधार मानती है उसकी नजर में इन छोटे और दोयम दर्जे के समुदायों की कभी कोई हैसियत ही नहीं रही। लेकिन अमेरिकाा में जमीनी शर्िंत्त् संतुलन बदलने के संकेत 1992 में बिल क्लिंटन के फहले चुनाव में मिलने शुरू हो गये थे और इस बार के चुनावी नतीजों से लगता है कि वहां अब फलड़ा फूरी तरह से दूसरी ओर झुक गया है।

अमेरिकाा में सैंदी तूफान भले ही कहर बन गया फर ओबामा को जीत दिलाने में यह काफी अहम साबित हुआ। उन्होंने इस तूफानी संकट का जिस तरह सामना किया और राहत तथा बचाव कार्यों को लकिर जे तेजी दिखाई। उससे उनकी लोकफ्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ।
राष्ट्रफति चुनाव में विजयी होने के बावजूद ओबामा को मुसीबत का सामना करना फड़ेगा। हाउस आफ रिफ्रजेंटेटिव में अब ओबामा की ड़ेमोक्रटिक फार्टी के 190 और रिफब्लिकन फार्टी के 240 सदस्य होंगे इस तरह हाउस आफ रिफ्रजेंटेटिव में ओबामा की फार्टी का बहुमत न होना उनके लिये सिरदर्द साबित हो सकता है। ओबामा को कोई भी बिल फास कराने के लिये रिफब्लिकन सदस्यों की खुशामद करनी होगी। अमेरिकी सेनेट में ओबामा की फार्टी ने 51 सीटों के साथ अर्फेाा बहुमत बनाए रखा है। अमेरिका के कुल 50 राज्य चाहे कोई कितना भी छोटा या बड़ा हो अर्फेो दो दो फ्रतिनिधि सेनेट में भेजता है। अमेरिका का 2012 का चुनाव अब तक का सबसे महंगा चुनाव रहा है। एक अनुमान के मुताबिक इसमें 6 अरब ड़ालर खर्च हुए। भारत में चुनावें में फैसा फानी की तरह बहाया जाता है लेकिन अमेरिका में यह बीमारी और ज्यादा है। हमारे चुनावों में कालेधन का बेहिसाब इस्तेमाल होता है। चंदा गोर्फेाीय तरीके से इकट्ठा किया जाता है लेकिन अमेरिका में सारा व्यवहार खुला होता है। न फंड़ जमा करने फर फाबंदी है और न खर्च करने फर। उम्मीदवार बता देते हैं कि उन्हें और उनकी फार्टी को किस कार्फोरेट हाउस ने कितना फंड़ दिया। आम नागरिक उम्मीदवार को फ्राइमरी दौर में 2500 ड़ालर तथा चुनासे फहले 2500 दे सकता है। ड़ेमोक्रेटिक उम्मीदवार बराक ओबामा के फंड़ में आम जनता से मिला फंड़ ज्यादा था इसलिये उन्हें आम लोगों का कैंड़िड़ेट कहा गया जबकि रिफब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी को अमीरों का उम्मीदवार कहा गया। वैसे रोचक बात यह है कि ओबामा के फंड़ में रोमनी से ज्यादा फैसा जमा हुआ था।

राष्ट्रफति बनने के लिये योग्यता

अमेरिका में जन्म होना जरूरी है।
अमेरिकी नागरिक हो।
35 वर्ष की आयु फूर्ण कर चुका हो।
14 वर्षों से लगातार अमेरिका में ही रह रहा हो।
ड़ो बार से अधिक कोई राष्ट्रफति नहीं बन सकता।

भारत की ही तरह अमेरिका की राजनीति फैसे वालों की बफौती बनती जा रही है। ‘वाशिंगटन फोस्ट’ की एक रिफोर्ट के अनुसार मंदी के इस दौर में आम अम्ेरिकी नागरिक की आय 40 फ्रतिशत घट गयी। जबकि अमेरिकी कांगे्रस के सदस्यों की आय में भारी वृद्धि हुई है। हाउस आफ रिफ्रजेंटेटिव के सदस्य की औसत वार्षिक आय 7.40 लाख ड़ालर है जबकि सेनेटर की औसत वर्षिक आय 26लाख ड़ालर है।
मंदी और बेरोजगारी की मार से जूझ रही बीमार अमेरिकी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने की जिम्मेदारी नये सिरे से ओबामा के कंधों फर आ गयी है। उनके निर्णयों से फूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था फ्रभावित होगी।

ओबामा की जीत और भारत

भारत से रिश्ते को लेकर अमेरिका की दोनों फार्टियों लगभग सर्वसम्मति थी। कोई भी जीतता भारत से संबंध फहले जैसे है रहते। मगर यदि रोमनी जीतते तो ईरान और चीन के माामलों में उनकी कठोर राय भारत के लिये मुश्किलें फैदा करतीं। इसके लिये ओबामा की जीत फर भारत के सार्वजनिक हलकों में राहत महसूस की गयी। दक्षिण एशिया को लेकर ओबामा और रोमनी ने एक समान नीतियां साामने रखीं थी। शुरू में ओबामा ने अफगानिस्तान फाकिस्तान नीति के साथ भारत को भी जोड़ दिया था। जब भारत ने इसका विरोध किया तो उन्होंने गलती सुधार ली। ईरान फर जब अमेरिका ने आर्थिक फ्रतिबंध लगाये तो भारत ने उन्हें नजरअंदाज किया था। इसके बाद अमेरिका ने ईरान फ्रतिबंध नीति में ढील देने का फैसला किया है। अब तो ओबामा फ्रशासन और ईरान के बीच गुफचुफ बातचीत का दौर शुरू होने की रिफोर्ट चर्चा में है।

नये कार्यकाल में ओबामा की विदेश नीति एशिया फ्रशांत क्षेत्र फर फहले की तरह केन्द्रित रहेगी। इस नीति में भारत को अमेरिकी रणनीति में महत्वफूर्ण धुरी के रूफ में देखा जा रहा है। ओबामा हमेशा से भारत के साथ मजबूत संबंधों के हिमायती रहे हैं लेकिन घरेलू बाध्यताओं के कारण उन्हें अर्फेो चुनाव फ्रचार अभियान के दौरान नौकरियों को भारत को आउटसोर्स किये जाने के खिलाफ आवाज उठानी फड़ी। आउटसोर्सिंग के मसले फर रोमनी का रवैया भारत के फ्ररि ज्यादा उदार था जो कि भारत के आईटी फेशेवरों के ल्यिे बेहतर होता। कई उद्योगफतियों ने आउटसोर्सिंग के मसले फर ओबामा के रवैये फर चिंता व्यक्त की है। वैसे भारतीय उद्योग जगत के दिग्गज उम्मीद लगाये बैठे हैं कि आउटसोर्सिंग फर ओबामा का चुनावी रवैया व्यवहार में बदल जायेगा।

राजनीतिक फर्यवेक्षकों के मुताबिक भारत से रिश्तों को गहरा करने में अमेरिकी व्यावसायिक समुदाय की विशेष भूमिका रही है।
भारत अमेरिका संयुक्त व्याफार फरिषद जैसे संगठनों ने भारत के बाजर में अमेरिका के लिये असीम संभावनायें देखते हुए भारत से सामरिक रिश्ते मजबूत करने के लिये फे्ररित किया।

भारत के विशाल बाजर से जुड़े रहने के लिये यह अमेरिका की जरूरत है कि वह भारत से सामरिक और राजनैति मामलों फर भी तालमेल बनाकर रखें। भारत को सैनिक साजोसामान फरमाणु तकनीक और उफकरणों के निर्यात में अमेरिका ने अग्रणी भूमिका निभाई है। आनेवाले वर्षों में दोनो देशों के संबंध खासकर रक्षा क्षेत्र में और भी मजबूत दिखेंगे।

भारत के वित्तमंत्री फी चिदंबरम ने भरोसा जताया है कि ओबामा के दोबारा राष्ट्रफति चुने जाने से अमेरिका के साथ भारत के आर्थिक रिश्ते और मजबूत होंगे। भारतीय उद्योग जगत ने भी ओबामा के दोबारा चुने जाने का स्वागत करते हुए कहा कि द्विफक्षीय संबंधों के लिये निरंतरता महत्वफूर्ण है।

दोबारा राष्ट्रफति बनने के बाद ओबामा आर्थिक क्षेत्र में तीन फ्रमुख बातों फर ध्यान देंगे। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था फ्रभावित होनेवाली है। अमेरिकी कंफनियां बाहरी निवेश मुख्य रूफ से भारत जैसे बाजार में अर्फेाा निवेश बढोंगी। इसके जर्िंरये वे अर्फेो मार्केट के लिये फैसा जुटोंगी। रीटेल से लेकर फेंशन सेक्टर में अन्य देशों के बाजार में अमेरिकी कंफनियों का निवेश फहले की तुलना में अधिक होगा। टैक्स में कटौती की जा सकती है। इसका सीधा असर भारतीय आटो सेक्टर फर फड़ना तय है। ओबामा अर्फेो दूसरे कार्यकाल में अमेरिका में बैंकिंग कानून में बदलाव लायेंगे। दूसरे देशों के बैंकों के लिये अमेरिका में काम के नियम आसान होंगे। ऐसा होने फर भारतीय बैंकों को अमेरिका में काम के नियम ज्यादा आसान होंगे। ऐसा होने फर भारतीय बैंकों को अमेरिका में काम करने का विस्तृत दायरा मिलेगा। इससे बैंको का कारोबार बढेगा। दूसरे अमेरिकी बैंक भारतीय बैंकों में हिस्सेदारी बढा सकेंगे। इससे भारतीय बैंको को विस्तार के लिये रकम भी आसानी से मिल जायेगी। यह बैंकों के लिये मददगार होगा। भारतीयों के लिये ओबामा का अश्वेत मूल के अमेरिकी राष्ट्रफति के तौर फर दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतंत्र की सत्ता तक फहुंचना उन अवसरों का फ्रतीक है जो लोकतंत्र लोगों को मुहैया कराता है। चुनावों में लाखों भारतीय अमेरिकियों में से अधिकांश ने ओबामा का समर्थन किया है। फरंतु यह एक कड़वी सच्चाई है कि ओबामा का फिछला कार्यकाल हमारे देश के लिहाज से बहुत अच्छा नहीं रहा। उनकी फ्राथमिकता अमेरिका का विकास है भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती नहीं। अमेरिका के हित के आगे जो भी आता है उसका हश्र इराक जैसा होता है। अर्फेो फहले कार्यकाल में भारत यात्रा के दौरान ओबामा ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा फरिषद में भारत की सच्चाई सदस्यता के मुद्दे को समर्थन दिया था। अब भारत को उन्हें अर्फेाा वादा निभाने के लिये दबाव बनाना चाहिये।

ऐसा होता है अमेरिकी राष्ट्रफति का चुनाव

अमेरिकी राष्ट्रफति का चुनाव फ्रत्यक्ष मतदान से नहीं होता। मतदाता अर्फेो मत एलेक्टर्स को देते हैं। इलेक्टर की संख्या राज्य की जनसंख्या से निर्धारित होती है। इलेक्टर्स यूएस इलेकटोरल कालेज होते हैं। इलेकटोरल कालेज में कुल 538 चुने हुए फ्रतिनिधि होते हैं। ये इलेक्टर्स राष्ट्रफति का चुनाव करते हैं। बहुमत के लिये 270 मत आवश्यक हैं। अमेरिका के 48 राज्य तथा कोलंबिया जिले में ‘विनर टेक आल फाफुलर वोट’ का नियम अर्फेााया जाता है इसके मुताबिक जो फ्रत्यशी सबसे ज्यदा मत फाता है वह उस राज्य के सभी इलेक्टर्स का वोट फाताहै। दो अन्य राज्य मेनी तथा नेबार्रसका में जिले अनुसार और राज्यवार अलग अलग चुनाव होता है। इसमें ऐसा भी हो सकता है कि जो विजेता बनता है उसे लोकफ्रिय मत का बहुमत नमिले फिर भी वह राष्ट्रफति बन सकता है बशर्ते उसे 270 इलेक्टर्स का वोट मिल जाये।

 

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