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ट्रंप की पराजय से कितने बदलेंगे  भारत-अमेरिका रिश्ते

ट्रंप की पराजय से कितने बदलेंगे भारत-अमेरिका रिश्ते

by प्रमोद जोशी
in दिसंबर २०२०, देश-विदेश, सामाजिक
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तत्कालिन राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में जो बाइडेन उप राष्ट्रपति थे और भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने के जबर्दस्त समर्थक थे। उन्होंने पहले सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष के रूप में और बाद में उप राष्ट्रपति के रूप में अमेरिका की भारत-समर्थक नीतियों को आगे बढ़ाया। वस्तुतः उपराष्ट्रपति बनने के काफी पहले सन 2006 में उन्होंने कहा था, ‘मेरा सपना है कि सन 2020 में अमेरिका और भारत दुनिया में दो निकटतम मित्र देश बनें।’

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अमेरिका के चुनावों को लेकर कई प्रकार के संदेह बने हुए थे। इतना स्पष्ट है कि डोनाल्ड ट्रंप यह चुनाव हार चुके हैं। इसका मतलब है कि इलेक्टोरल कॉलेज में जो बाइडेन को बहुमत प्राप्त हो गया है। दूसरी तरफ ट्रंप ने कुछ अदालतों में याचिकाएं भी दाखिल की हैं। सामान्यतः अमेरिका में इस स्थिति तक आने के बाद प्रत्याशी अपनी हार को स्वीकार कर लेते हैं, पर जैसे कि उम्मीद थी ट्रंप इस हार को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। संभव है कि इस बीच अदालती फैसलों से कोई चमत्कार हो जाए अन्यथा वे हार चुके हैं।
नए राष्ट्रपति को 20 जनवरी को कार्यभार संभालना होता है, इसलिए अभी समय है। अलबत्ता इस दौरान पिछले प्रशासन की भूमिका क्रमशः कम होती जाती है और नए प्रशासन के पदाधिकारियों के नाम सामने आने लगते हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बाद अमेरिका के विदेश और रक्षा मंत्रियों के पद महत्वपूर्ण होते हैं। उन्हें लेकर अब अटकलें लगाई जा रही हैं। बीरबल की खिचड़ी की तरह अमेरिका में परिणाम काफी धीमे आए। वहां की व्यवस्था में सामान्यतः कागज के मतपत्रों को गिना जाता है, जिसमें काफी देर लगती है।

इस बात को पहले से कहा जा रहा था कि इस बार परिणाम आने में देर लगेगी, क्योंकि डाक से आए मतपत्रों की गिनती करने में देर होगी। अमेरिका में डाक से मतपत्र भेजने की व्यवस्था अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। ट्रंप का आरोप है कि मतदान पूरा हो जाने के बाद डाक से आए मतपत्रों को लेना बंद कर देना चाहिए। उन्होंने पेंसिल्वेनिया, मिशीगन और जॉर्जिया तीन राज्यों की अदालतों में देर से आए मतपत्रों को गणना में शामिल किए जाने की शिकायत की है।

बाइडेन की जीत उतनी जबर्दस्त नहीं है, जितनी पहले समझी जा रही थी। इससे साबित यह भी होता है कि अमेरिकी मीडिया के दावे पूरी तरह सही नहीं थे। ट्रंप के पक्ष में भी काफी बड़ा जनमत था। कई राज्यों में ट्रंप काफी समय तक आगे थे, पर जब अंतिम क्षणों में आए डाक-मतों को गिना गया, तो वे पराजित हो गए। बहरहाल जीत और हार राजनीति का हिस्सा है। चुनाव केवल राष्ट्रपति पद का ही नहीं हुआ है। प्रतिनिधि सदन और सीनेट का भी हुआ है। सीनेट की 100 सीटों में अंतिम समाचार मिलने तक की स्थिति 48-48 की थी। इसी तरह प्रतिनिधि सदन की 435 सीटों में से डेमोक्रेटिक पार्टी को 217 और रिपब्लिकन पार्टी को 210 सीटें मिल चुकी थीं। लगता है कि सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी की बढ़त बनी रहेगी और प्रतिनिधि सदन में डेमोक्रेट्स की। राज्यों में गवर्नरों के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की स्थिति बेहतर नजर आ रही है।

इस चुनाव ने अमेरिका के ध्रुवीकरण को बढ़ाया है। डेमोक्रेट्स को केवल राजनीतिक सफलता मिली है। इसे नैतिक सफलता नहीं कह सकते। देखना होगा कि वे अमेरिका के उन तमाम नागरिकों को क्या संदेश देते हैं, जो ट्रंप का समर्थन कर रहे थे। देश के चुनाव में इस बार जैसा भारी मतदान हुआ है, वह ध्रुवीकरण की ओर भी इशारा कर रहा है। इस चुनाव ने यह दिखाया है कि अमेरिका आंतरिक रूप से कितना विभाजित है और वहां पहचान की राजनीति किस कदर मजबूत है।

एक हद तक इसके लिए बढ़ती असमानता भी उत्तरदायी है। अमेरिका के सबसे अमीर और अत्यंत गरीब दोनों वर्गों में गोरों की संख्या ज्यादा है, जो प्रायः रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक हैं। उनकी तुलना में बाहर से आए लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी है। दूसरी नस्लों के लोगों की संख्या बढ़ रही हैं। केवल पिछले चार साल में गोरे मतदाताओं की हिस्सेदारी 71 फीसदी से घटकर 65 फीसदी रह गई है।

भारतीय संदर्भ

अब ज्यादातर सवाल जो बाइडेन की नीतियों को लेकर हैं। भारत की दृष्टि से पहला सवाल यह बनता है कि वे हमारे लिए कैसे राष्ट्रपति साबित होंगे? क्या वे हमारे मित्र साबित होंगे? वे साबित होंगे या नहीं, यह दीगर बात है, वे पहले से भारत के मित्र माने जाते हैं। जो बाइडेन तत्कालिन राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में उप राष्ट्रपति थे और भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने के जबर्दस्त समर्थक थे। उन्होंने पहले सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष के रूप में और बाद में उप राष्ट्रपति के रूप में अमेरिका की भारत-समर्थक नीतियों को आगे बढ़ाया। वस्तुतः उपराष्ट्रपति बनने के काफी पहले सन 2006 में उन्होंने कहा था, ‘मेरा सपना है कि सन 2020 में अमेरिका और भारत दुनिया में दो निकटतम मित्र देश बनें।’

यह वह समय था, जब भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील पर बातचीत चल रही थी और बराक ओबामा तब राष्ट्रपति नहीं बने थे, बल्कि सीनेटर थे। तब ओबामा के मन में डील को लेकर हिचक थी। ऐसे में बाइडेन ने सीनेट में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन पार्टियों के सदस्यों को साथ लेकर 2008 में अमेरिकी संसद से न्यूक्लियर डील के प्रस्ताव को पास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

उपराष्ट्रपति बनने के बाद बाइडेन ने भारत और अमेरिका की भागीदारी का जबर्दस्त समर्थन किया। खासतौर से सामरिक क्षेत्र में वे दोनों देशों के रिश्तों को बेहतर बनाने के पक्षधर थे। उसी दौरान अमेरिका ने आधिकारिक रूप से माना कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए। ओबामा-बाइडेन सरकार ने ही भारत को अपनी संसद से ‘मेजर डिफेंस पार्टनर’ दर्जा दिलवाया। यह दर्जा मिलने के बाद ही भारत को अमेरिका से महत्वपूर्ण रक्षा तकनीक मिलने का रास्ता खुला। यह पहला मौका था, जब अमेरिका ने अपने परंपरागत मित्र देशों के दायरे से बाहर निकल कर किसी देश को यह दर्जा दिया था।

सामरिक रिश्ते

सन 2016 में जब ओबामा प्रशासन का कार्यकाल खत्म होने वाला था, दोनों देशों ने ‘लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (लेमोआ)’ पर दस्तखत किए थे। दोनों देशों के अत्यंत घनिष्ठ रक्षा संबंधों के लिहाज से यह बुनियादी समझौता था। लेमोआ के कारण अमेरिका और भारत एक-दूसरे देश के सैनिक अड्डों पर हवाई अड्डों, बंदरगाहों तथा ईंधन वगैरह की सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत और अमेरिका की नौसेनाओं के संचालन की राह में लेमोआ ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। यह वैसा ही है जैसे कभी आपकी कार घर से कहीं दूर खराब हो जाए और आपका दोस्त आपकी कार को ठीक कर दे। लेमोआ के बाद दोनों देशों के बीच कोमकासा और बेका समझौते हुए हैं, जिनकी पृष्ठभूमि ओबामा-बाइडेन सरकार ने डाली थी।

इन समझौतों के अलावा ओबामा और बाइडेन ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत का साथ दिया था। बाइडेन की प्रचार सामग्री में साफ-साफ कहा गया है कि बाइडेन मानते हैं कि दक्षिण एशिया में आतंकवाद और सीमा-पार आतंकवाद को कतई माफ नहीं किया जाएगा। हालांकि इसमें पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद शब्द नहीं है, पर पूरी आशा है कि जब भारत-पाकिस्तान रिश्तों के संदर्भ में बात होगी, तब उनके प्रशासन का वही रुख होगा, जो अतीत में अमेरिकी प्रशासन का रहा है।

विदेश मंत्री के रूप में हिलेरी क्लिटंन की मान्यता थी कि पाकिस्तान को अपने देश में मौजूद आतंकी अड्डों को बंद करना चाहिए। पाकिस्तानी आतंकवाद को लेकर सन 2016 के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप और हिलेरी क्लिटंन दोनों ने एक जैसी बातें कही थीं।

चीन के साथ रिश्ते

डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ कारोबारी रिश्तों को लेकर टकराव मोल ले रखा था। क्या बाइडेन भी उसी रास्ते पर जाएंगे? पिछले कुछ वर्षों से चीन को लेकर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों की धारणाएं लगभग एक जैसी हैं। दोनों चीन को आने वाले समय का खतरा मानते हैं। पिछले कुछ महीनों में लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर पैदा हुए टकराव को लेकर अमेरिका सरकार मुखर होकर बोल रही है। उम्मीद है कि बाइडेन सरकार भी इसी नीति पर चलेगी।

बहरहाल हमें इंतजार करना होगा कि बाइडेन सरकार की शब्दावली क्या होती है। अलबत्ता उनके प्रचार साहित्य में कहा गया है कि बिडेन प्रशासन हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता को बनाए रखने के लिए भारत के साथ मिलकर ऐसी व्यवस्था का समर्थन करेगा, जो नियमों पर आधारित हो और जिसमें चीन समेत कोई भी देश अपने पड़ोसियों पर धौंस न जमाए।

भारत की दृष्टि से अमेरिका की वीजा तथा आव्रजन से जुड़ी नीतियां महत्वपूर्ण होती हैं। ट्रंप सरकार ने जो नीतियां अपनाई थीं, उनसे भारत में चिंता व्यक्त की गई थी। आशा है कि बाइडेन इस मामले में भारत के प्रति ज्यादा उदार साबित होंगे। उन्होंने ग्रीन कार्ड होल्डरों की नेचुरलाइजेशन प्रक्रिया को फिर से लागू करने का आश्वासन दिया है। चूंकि ट्रंप प्रशासन ने नियम सख्त कर दिए हैं, इसलिए बाइडेन के लिए उन्हें आसान करना दिक्कत तलब होगा।

भारत को ज्यादा चिंता मानवाधिकारों को लेकर होगी। कमला हैरिस मानवाधिकारों की जबर्दस्त समर्थक हैं। पिछले साल जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों ने भारत-विरोधी बातें कही थीं और प्रमिला जयपाल ने कांग्रेस में एक प्रस्ताव भी पेश किया था। इसके बाद पिछले साल विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ बैठक में उनके हिस्सा लेने पर रोक लगा दी गई थी। बाइडेन के प्रचार दस्तावेजों में भारत के नागरिकता कानून में संशोधन और एनआरसी को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की गई है। अलबत्ता यह भी कहा गया है कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका और सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के बीच रिश्ते स्वाभाविक रूप से बनते हैं।

द्विपक्षीय कारोबार

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के लिए शुल्क मुक्त निर्यात की योजना को बहाल करना मुश्किल होगा, लेकिन एच1बी वीजा नियमों पर नरम रुख और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में सुधार एवं बहाली की संभावना है। डेमोक्रेटिक पार्टी की सत्ता में वापसी से भारतीय कुशल कर्मचारियों को वीजा नियमों के स्तर पर राहत मिल सकती है। डेमोक्रेट्स के घोषणापत्र में एच1बी नीति को जारी रखने की बात कही है। बाइडेन ईरान को लेकर रुख नरम कर सकते हैं, उसका प्रभाव भी भारत पर पड़ेगा। शायद भारत फिर से ईरान से तेल खरीदारी शुरू कर पाएगा। दूसरी तरफ अमेरिका के चीन से रिश्ते बिगड़ने पर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के लिहाज से भारत लाभ की स्थिति में आ सकता है।

अमेरिका के साथ भारत अब शुल्क मुक्त निर्यात योजना को बहाल करने के लिए बातचीत कर सकता है। इस योजना का नाम जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस (जीएसपी) है। ट्रंप प्रशासन ने 2019 में जीएसपी सूची से भारत को बाहर कर दिया था। इसके तहत भारत 2,000 से अधिक उत्पादों का अमेरिका को शुल्क मुक्त निर्यात करता था। इन उत्पादों में कपड़ा, वाहन आदि शामिल हैं। इस योजना के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक भारत था। भारत हर साल अमेरिका को छह अरब डॉलर के उत्पाद का शुल्क मुक्त निर्यात कर रहा था।

डब्ल्यूटीओ में भारत के पूर्व राजदूत जयंत दासगुप्त का कहना है कि ‘ट्रंप के सत्ता से बाहर होने का यह भी मतलब है कि डब्ल्यूटीओ जैसे बहुराष्ट्रीय संस्थानों को नया जीवन मिलेगा, जिससे भारत को लंबित व्यापार विवादों को निपटाने में मदद मिलेगी।’ इस बात की संभावना है कि अमेरिका डब्ल्यूटीओ की मेज पर लौटेगा ताकि इस बहुराष्ट्रीय संस्थान में सुधार लाया जा सके। इस समय अपीलीय निकाय लगभग गायब है। खुद अमेरिका के खिलाफ बहुत से मामले लंबित हैं। इसमें बदलाव आ सकता है।’

अमेरिका ने बीते कुछ वर्षों में भारतीय इस्पात एवं एल्युमिनियम पर शुल्क बढ़ाए हैं। चीन, ब्राजील और अन्य बहुत से देशों से आयातित एलॉय एवं धातुओं पर भी शुल्क बढ़ाए हैं। ये मामले डब्ल्यूटीओ में लंबित हैं, जो समाप्त हो सकते हैं। इससे भारत को फायदा मिल सकता है। अमेरिका के साथ भारत का व्यापार अधिशेष (सरप्लस) ट्रंप के शासनकाल में लगातार घट रहा था। अमेरिका भारत पर अपने यहां से आयातित मोटर साइकिलों, दवा और चिकित्सा उपकरणों पर शुल्क घटाने का दबाव बना रहा है। यह व्यापार अधिशेष 21.1 अरब डॉलर से घटकर 18.6 अरब डॉलर पर आ गया है। भारत को हार्ले डेविडसन मोटर साइकिल पर सीमा शुल्क करीब आधा घटाना पड़ा क्योंकि ट्रंप ने इसे ’अनुचित’ करार दिया था।

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