हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
चीन का हस्तक्षेप कमजोर होता नेपाल

चीन का हस्तक्षेप कमजोर होता नेपाल

by प्रमोद भार्गव
in दिसंबर २०२०, देश-विदेश, राजनीति
0

चीन और नेपाल के बीच तिब्बत के रास्ते रेलमार्ग बनाने पर भी संधि हुई है। चीन ने काठमांडू से करीब 200 किमी दूर पोखरा में क्षेत्रीय हवाई अड्डा निर्माण के लिए नेपाल को 21.6 डॉलर का सस्ती ब्याज दर पर ऋण दिया है। मुक्त व्यापार समझौते पर भी हस्ताक्षर हुए हैं। नेपाल में तेल और गैस की खोज करने पर भी चीन सहमत हुआ है। इसके लिए वह नेपाल को आर्थिक और तकनीकी मदद देने को राजी हो गया है।

नेपाल हिमालय की गोद में बसा एक छोटा और सुंदर देश है। पूरी दुनिया में नेपाल ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसे आज तक कोई दूसरा देश परतंत्र नहीं बना पाया। इसलिए यहां स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया जाता है। किंतु चीन के लगातार बढ़ रहे हस्तक्षेप के चलते लगता है कहीं यह हिंदू धर्मावलंबी देश अपनी मौलिक संस्कृति व स्वतंत्रता न खो दे!

नेपाल एक दक्षिण एशियाई देश है। नेपाल के उत्तर में चीन का स्वायत्तशासी प्रदेश तिब्बत है। जिसे चीन निगलता जा रहा है। दक्षिण पूर्व व पश्चिम में भारत की सीमा लगती है। नेपाल की 85 प्रतिशत आबादी हिंदू है, इसलिए वह प्रतिशत के आधार पर सबसे बड़ा हिंदू धर्मावलंबी देश है। नेपाल में लंबे समय तक राजशाही रही है। किंतु राजशाही के खूनी दुखद अंत के बाद यहां माओवादी नेता प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने से सामंतशाही सिमटती चली गई और 18 मई 2006 को राजा के अधिकारों में कटौती कर नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित कर माओवादी लोकतंत्र की शुरूआत हो गई। तभी से चीनी हस्तक्षेप के चलते यहां के मूल स्वरूप को बदलने के अलावा भारत के साथ संबंध खराब होने की शुरूआत भी हो गई है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने चीन के दबाव में न केवल भारत से शत्रुतापूर्ण संबंधों की बुनियाद रखी, बल्कि चीनी सेना को खुली छूट देकर अपनी जमीन भी खोना शुरू कर दी। जाहिर है, नेपाल में लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना तो हो गई, लेकिन लचर नेतृत्व के चलते यह देश अपना अस्तित्व खोने की कगार पर आ खड़ा हुआ है।

नेपाल की कैबिनेट ने 18 मई 2020 को एक नए राजनीतिक मानचित्र को मंजूरी देकर भारत से विवाद गहरा देने का नया रास्ता खोला। इस मानचित्र में चीन और नेपाल से सटी सीमा पर स्थित भारतीय क्षेत्र कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया है। नेपाली विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने इस परिवर्तन की जानकारी दी। इसी समय वहां के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा था कि नेपाल सिर्फ अपनी भूमि को नक्शे में दिखाने का दावा कर रहा है। किंतु संसद में भारत के राष्ट्रीय चिन्ह पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि उस पर ‘सत्यमेव जयते’ लिखा है अथवा ‘सिंहमेव जयते’? साफ है, ओली ने अप्रत्यक्ष रूप से भारत पर शक्ति के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। इस परिप्रेक्ष्य में हैरान करने वाली बात है कि नेपाल ने 2 नवंबर 2019 को जो नया नक्शा जारी किया था, उसमें इस तरह के बदलाव नहीं थे। दरअसल चीन की गोद में बैठा नेपाल यह हरकत चीन की शह पर कर रहा है। हालांकि ओली ने सफाई देते हुए कहा कि यह बदलाव चीन के दबाव में नहीं किया है, बल्कि यह एक कूटनीतिक चाल है, जिससे भारत के साथ दोस्ती प्रगाढ़ करने के लिए ऐतिहासिक गलतफहमियां दूर हों जाएं।

दरअसल मान सरोवर यात्रा को सुगम बनाने के लिए उत्तराखण्ड के पिथैरागढ़ जिले में 8 मई 2020 को भारत सरकार ने लिपुलेख मार्ग का उद्घाटन किया था। इसी का जवाब देने के लिए नेपाल ने अपने नए मानचित्र में कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख क्षेत्र को अपने देश के नए मानचित्र में दिखा दिया। इस सिलसिले में भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि बीते साल 2 नवंबर को नेपाल ने नया नक्शा जारी किया था, उसमें इस तरह का कोई परिवर्तन नहीं था। अब नेपाल दावा कर रहा है कि 1816 में नेपाल और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुई सुगौली संधि के अनुसार काला पानी क्षेत्र उसका है। 1860 में इस क्षेत्र की भूमि का पहली बार सर्वे किया गया था। इसके बाद 1929 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने ही काला पानी को भारत का हिस्सा घोषित किया था, नेपाल ने भी इसकी पुष्टि कर दी थी। भारत की आजादी के बाद भी यही स्थिति बनी रही। किंतु अब नेपाल का झुकाव चीन से किए जा रहे पूंजी निवेश के कारण उसकी ओर बढ़ गया है, इसलिए वह भारत को आंखें दिखा रहा है।

हमारे पड़ोसी देशों में नेपाल और भूटान ऐसे देश हैं, जिनके साथ हमारे संबंध विश्वास और स्थिरता के रहे हैं। यही वजह है कि भारत और नेपाल के बीच 1950 में हुई सुलह, शांति और दोस्ती की संधि आज भी कायम है। नेपाल और भूटान से जुड़ी 1850 किमी लंबी सीमा रेखा बिना किसी पुख्ता पहरेदारी के खुली है। बावजूद चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह कोई विवाद नहीं है। बिना पारपत्र के आवाजाही निरंतर है। करीब 60 लाख नेपाली भारत में काम करके रोजी-रोटी कमा रहे हैं। 3000 नेपाली छात्रों को भारत हर साल छात्रवृत्ति देता है। नेपाल के विदेशी निवेश में भी अब तक का सबसे बड़ा 47 प्रतिशत हिस्सा भारत का है। बावजूद यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नेपाल का झुकाव चीन की ओर बढ़ रहा है। हालांकि नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2014 में नेपाल की यात्रा करके बिगड़ते संबंधों को आत्मीय बनाने की सार्थक पहल की थी, किंतु भारतीय मूल के मधेशियों के आंदोलन ने इस पर पानी फेर दिया।

अब नेपाल और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों को जो नए आयाम मिले हैं, उनके तहत ऐतिहासिक पारगमन व्यापार समझौतें समेत 10 समझौतों की शुरूआत करके नेपाल ने चीन से रिश्ते मजबूत कर लिए हैं। इस समझौते में सबसे खास एवं विचित्र बात यह हुई कि नेपाल अब भारत के कोलकाता स्थित हल्दिया बंदरगाह के बजाय 3000 किमी दूर स्थित चीनी तियानजिन बंदरगाह से अपने जरूरी सामानों की आपूर्ति कर रहा है। जबकि भारत का बंदरगाह नेपाल की सीमा से करीब 1000 किमी की दूरी पर है। विडंबना है कि नेपाल चीन के इस बंदरगाह का तुरंत इस्तेमाल नहीं कर सकता है, क्योंकि चीनी बंदरगाह ऊंचाई पर है और नेपाल में आधारभूत ढांचा उन्नत नहीं है। बावजूद यह समझौता शायद इसलिए हुआ, क्योंकि इसी समझौते के ठीक पहले नेपाल में मधेशी आंदोलन के चलते भारत से आने वाले नेपाल के व्यापारिक मार्गों को करीब छह माह तक बंद कर दिया था, जिससे नेपाल का जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया था। इस नाकेबंदी की भविष्य में पुनरावृत्ति न हो इस आशंका से मुक्ति के लिए नेपाल ने इस समझौते को अंजाम दिया है। इस समझौते के बाद नेपाल का व्यवहार उस रस्सी की तरह हो गया है, जिसका बल जलने के बाद भी नष्ट नहीं होता है।

इस अहम् समझौते के अलावा चीन और नेपाल के बीच तिब्बत के रास्ते रेलमार्ग बनाने पर भी संधि हुई है। चीन ने काठमांडू से करीब 200 किमी दूर पोखरा में क्षेत्रीय हवाई अड्डा निर्माण के लिए नेपाल को 21.6 डॉलर का सस्ती ब्याज दर पर ऋण दिया है। मुक्त व्यापार समझौते पर भी हस्ताक्षर हुए हैं। नेपाल में तेल और गैस की खोज करने पर भी चीन सहमत हुआ है। इसके लिए वह नेपाल को आर्थिक और तकनीकि मदद देने को राजी हो गया है। चीन ने नेपाल में अपने व्यावसायिक बैंक की शाखाएं भी खोल दी हैं। नेपाली बैंक भी अपनी शाखाएं चीन में खोल रहे हैं। संस्कृति, शिक्षा और पर्यटन जैसे मुद्दों पर भी चीन का दखल नेपाल में बढ़ गया है। ओली ने तिब्बत के रास्ते चीन के रणनीतिक रेल लिंक को नेपाल तक बढ़ाने का भी प्रस्ताव रखा है। चीन के लिए यह प्रस्ताव अपनी रणनीति के अनुकूल है। क्योंकि चीन पहले से ही रेलवे को तिब्बती शहर शिगात्से से नेपाल सीमा पार गायरोंग तक बढ़ाने की योजना बना रहा है।

अर्से से इन्हीं कूटिल कूटनीतिक चालों के चलते कम्युनिस्ट विचारधारा के पोषक चीन ने माओवादी नेपालियों को अपनी गिरफ्त में लिया और नेपाल के हिंदू राष्ट्र होने के संवैधानिक प्रावधान को खत्म करके प्रचंड को प्रधानमंत्री बनवा दिया था। चीन नेपाल की पाठशालाओं में चीनी भाषा मंदारिन की मुफ्त शिक्षा नेपाली नागरिकों को दे रहा है। इन पाठशालाओं की संख्या 19 से बढ़कर अब 50 हो गई है। चीन के इस प्रयास के बहाने नेपाल की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनैतिक संबंधों का नया इतिहास गढ़ा जा रहा है। तराई के इलाकों में भारत के झुकाव को कम करने के लिए चीन की कुटिल रणनीति के चलते नेपाल सरकार मधेशियों के क्षेत्रों में नेपाली पहाड़ियों को बसाकर इस जनसांख्यकीय घनत्व को बदल रहा है। जैसा कि चीन तिब्बत में कर रहा है।

माओवादी प्रभाव ने ही भारत और नेपाल के प्राचीन रिश्ते में हिंदुत्व और हिंदी की जो भावनात्मक तासीर थी, उसका गाढ़ापन ढीला किया। गोया, चीन का हस्तक्षेप और प्रभुत्व नेपाल में लगातार बढ़ता रहा है। हैरानी की बात है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और वामपंथी लेखक इन मुद्दों पर पर्दा डाले रखकर देशहित से दूरी बनाए हुए हैं। चीन की क्रूर मंशा है कि नेपाल में जो 20-22 हजार तिब्बती शारणार्थी के रूप में रह रहे हैं, यदि वे कहीं चीन के विरुद्ध भूमिगत गतिविधियों में शामिल पाए जाते हैं तो उन्हें नेपाली माओवादियों के कंधों पर बंदूक रखकर नेस्तनाबूद कर दिया जाए।

भारत के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय राजनीतिक नेतृत्व ने कभी भी चीन के लोकतांत्रिक मुखौटे में छिपी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा को नहीं समझा। नतीजतन चीन की हड़प नीतियों के विरुद्ध न तो कभी दृढ़ता से खड़े हो पाए और न ही कड़ा रूख अपनाकर विश्व मंच पर अपना विरोध दर्ज करा पाए। अलबत्ता हमारे तीन प्रधानमंत्रियों जवाहरलाल नेहरू, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी ने तिब्बत को चीन का अविभाजित हिस्सा मानने की उदारता ही जताई। इसी खूली छूट के चलते ही बड़ी संख्या में तिब्बत में चीनी सैनिकों की घुसपैठ शुरू हुई। इन सैनिकों ने वहां की सांस्कृतिक पहचान, भाषाई तेवर और धार्मिक संस्कारों में पर्याप्त दखलंदाजी कर दुनिया की छत को कब्जा लिया। अब तो चीन तिब्बती मानव नस्ल को ही बदलने में लगा है। दुनिया के मानवाधिकारी वैश्विक मंचो से कह भी रहे हैं कि तिब्बत विश्व का ऐसा अंतिम उपनिवेश है, जिसे हड़पने के बाद वहां की सांस्कृतिक अस्मिता को एक दिन चीनी अजगर पूरी तरह निगल जाएगा। ताइवान का यही हश्र चीन पहले ही कर चुका है। चीन ने दखल देकर पहले इसकी सांस्कृतिक अस्मिता को नष्ट-भ्रष्ट किया और फिर ताइवान का बाकायदा अधिपति बन बैठा। हांगकांग और नेपाल में भी चीन इसी रणनीति को अपनाकर इन्हें अपने विस्तारवादी खूनी शिकंजे में कस रहा है। साफ है, नेपाल कमजोर राजनैतिक नेतृत्व के चलते अपनी बर्बादी के कगार की ओर खुद ही बढ़ रहा है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: abroadeducationabroadlifeaustraliaeuropehindi vivekhindi vivek magazineindiainternationalmbbsmiddle eaststudyabroadusa

प्रमोद भार्गव

Next Post
ISRO ने लांच किया कम्यूनिकेशन सैटेलाइट, मोबाइल व टीवी के सिग्नल में होगा सुधार

ISRO ने लांच किया कम्यूनिकेशन सैटेलाइट, मोबाइल व टीवी के सिग्नल में होगा सुधार

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0