हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
धोरों की धरती के लोक देवता

धोरों की धरती के लोक देवता

by गौरव अग्रवाल
in मई २०१३, सामाजिक
0

भारत भूमि के लिए विशिष्ट सम्बोधन है, देवभूमि। लोक से देवत्व तक की यात्रा इसी भूमि की थाती है। देवता यहां सर्वथा अलौकिक ही नहीं होते, जन की दैविक-दैहिक दुखहरण की शक्ति यहां लोक में से ही देवताओं की सृष्टि करती आयी है। लोक की उन देवताओं में अटूट आस्था होती है। उनके जीवन आदर्श बनते हैं और उनके जीवन की अद्भुत घटनाएं चमत्कार बन जन-मानस में स्मरणीय हो जाती हैं। ये सब सांस्कृतिक भारत के, उसकी संस्कृति के प्रहरी हैं, भारत जन की आस्था के केन्द्र बिन्दु हैं। ये लोक देवता हैं। राजस्थान की भूमि अपनी संस्कृति, परम्पराओं व अपने निरन्तर संघर्षशील इतिहास के कारणा लोक देवताओं की महान जननी रही है।

क्रान्तिकारी समाज-सुधारक बाबा रामदेव

पीरों के पीर बाबा रामदेव की कथाएं बहुत विस्तृत क्षेत्र में कही-सुनी जाती हैं। विक्रमी 1406 (ईस्वी 1352) में जन्मे बाबा रामदेव जी एक वीर योद्धा, एक महान योगी और भक्त कवि के साथ-साथ क्रान्तिकारी समाज सुधारक थे।

बाल्यकाल से ही बालक रामदेव के मन में देश-काल-परिस्थिति के प्रति चैतन्य भाव था। वे ध्यान करने बैठते तो घण्टों बैठे रहते। मुस्लिम आक्रमणकारियों के कारण भारतीय जन-जीवन में आ रहे बिखराव को उन्होंने समझा। तलवार और लालच के जोर पर हो रहे इस्लामीकरण को भी उन्होंने देखा व समाज में व्याप्त छुआछूत और ऊं च-नीच को भी। उन्होंने इन सबके विरुद्ध अभियान चलाया। जहां आततायी भैरव से सामाजिक संरक्षण उसका आखेट कर किया गया वहीं सामाजिक समरसता के भगीरथ प्रयास में ‘जम्मा-जागरण’ का अनूठा शंखनाद हुआ। गांवों में जाकर वे किसी अछूत माने जाने वाले के घर ही ठहरते व रात्रि में भजन-कीर्तन के माध्यम से एकत्रित हिन्दू समाज को एकता व जीवन में शुचिता का पाठ पढ़ाते। यही ‘जम्मा-जागरण’ कहलाया। इससे तथाकथित पिछड़ी जाति के बन्धुओं में बड़ा आत्म विश्वास जागा। हरिजन उनके लिए अछूत नहीं कण्ठहार थे। वे कहते- ‘हरिजन म्हारे हार हियेरा, मोत्यो मूंगा कहावै म्हारा लाल’ इसी प्रकार मातृ-वर्ग में जागरण की सूत्रधार उनकी धर्मबहिन डाली बाई बनी।

बाबा रामदेव के इस अभियान का चमत्कारी प्रभाव हुआ। पिछड़े भाइयों के लिए मजबूती से स्वर उठने लगे व मुस्लिम आतंक पर प्रभावी रोक लग गयी। बाबा रामदेव जी ने अपने शौर्य से न केवल समाज कंटकों का उच्छेदन किया, समाज के भटके वर्ग को राह दिखायी अपितु परावर्तन के इस अग्रदूत ने मुसलमान बने हिन्दुओं की शुद्धि का अभियान भी चला दिया। इस तरह बाबा रामदेव ने मुख्य धारा से अलग हो गये वर्ग को पुन: मूल धारा में मिल सकने का मार्ग खोल दिया।

जीवन लक्ष्य पूरा होता देख बाबा रामदेव ने रुणीचा की रामसागर पाल पर समाधि लगाकर इच्छा मृत्यु का वरण कर लिया। जीवन भर किये गए अपनी नि:स्वार्थ कार्यों व पीरों के दम्भ को भी विनय में परिवर्तित कर देने के अद्भुत चमत्कारों के कारण रामदेव जी ‘पीरों के भी पीर’ लोक देवता के रूप में समाज को आज भी दिशा दे रहे हैं। रादेवरा (रुणीचा-पोकरण) में रामदेव जी का भव्य मन्दिर बना हुआ है। इसके अतिरिक्त अजमेर के बर के पास, गुजरात प्रान्त में छोटा रामदेवरा आदि ‘रामा पीर जी’ के विविध श्रद्धा स्थल हैं।

सर्प दंश चिकित्सा के पर्याय वीर तेजाजी

भारत भूमि के जन-मानस में गो रक्षा व गो सेवा अन्दर तक पैठी हुई है, अतएव गो रक्षा से जुड़े महावीर अपनी उत्कट सेवा भावना व धर्मपालन के कारण जन-मानस में केन्द्रीय स्थान पा लोक देवता का स्थान पा जाते हैं। ऐसे ही लोक देवता हैं ‘तेजाजी’। वचन पालनार्थ इन्होंने अपने प्राण त्याग दिये। सर्प दंश की प्रभावी चिकित्सा तेजाजी से अनन्य रूप से जुड़ी हुई है। राजस्थान के अजमेर जिले में गांव-गांव में ‘थान’ बने हुए हैं, जहां ‘भोपा’ जिसे तेजाजी का घुड़ला भी कहा जाता है, गोमूत्र व गोबर की राख का उपयोग करते हुए नाग का जहर चूस कर उतार देता है। माना जाता है कि भोपा उस समय तेजाजी द्वारा अभिप्रेरित होता है।

नागवंशीय जाट तेजाजी का जन्म खरनाल्यां ग्राम में हुआ था। बचपन से ही उनमें महापुरुष तुल्य परहित भावना, दया, प्रेम, भक्ति के समन्वित गुण थे। ईश्वर के दृढ़ आराधी तेजाजी ने शस्त्र संचालन में भी अद्भुत कुशलता प्राप्त की थी। परपीड़न का निग्रह वे अपनी तलवार से करते तो औषधि विज्ञान में प्राप्त कुशलता का उपयोग वे लोगों की शारीरिक व्याधियों को दूर करने में करते। अभावग्रस्तों की सेवा ही उनके लिए सच्ची सेवा थी।

तेजाजी के सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है। इस कथा में प्रतीकों के माध्यम से तेजाजी का जीवन चरित्र कहा गया है। तेजाजी का विवाह बाल्यकाल में ही पनेर ग्रम की पैमल से संपन्न हुआ। युवावस्था में तेजाजी अपनी पत्नी को लिवा लाने के लिए ससुराल की ओर चल दिये। मार्ग में उन्होंने एक झाड़ी में जलते हुए सांप के प्राण बचाये, परन्तु कृतघ्न नाग ने अपना दुष्ट स्वभाव न त्यागते हुए तेजाजी को डसना चाहा। तेजाजी ने कहा जब ससुराल से लैटूं तब काट लेना। (नाग का सन्दर्भ यहां काला गोेत्र के नागवंशीय बालू जाट से लिया जा सकता है। गो रक्षा के लिए हुए एक संघर्ष में ही उनकी इस गौ लुटेरे से शत्रुता हो गयी थी।) परन्तु थक कर ससुराल पहुंचे तेजाजी का स्वागत हुआ व्यंग्य बाणों और उपेक्षा से। क्षुब्ध तेजाजी उल्टे पैर लौट पड़े और साथ में थीं उनकी पत्नी पैमल।

मार्ग में ही वे हीरा गुर्जरी के पाहुन बने। उसी रात्रि हीरा गुर्जरी का गोधन चोरी हो गया। वीरव्रती गोसेवक तेजाजी हीरा गुर्जरी की पुकार पर गोधन छुड़ाने चल दिये। दुर्घर्ष युद्ध के बाद लुटेरों को परास्त कर वे गोधन वापस ले आये। हीरा गुर्जरी के आशीषों के साथ घायल तेजाजी हीरा गुर्जरी से विदा ले आगे चल दिये। घायल होने के बाद भी तेजाजी वचन के पालनार्थ काले नाग के पास गये और काट लेने को कहा। नाग ने उन्हें घायल देखकर भी अपना हठ न छोड़ा व घायल शरीर को देख डसने के लिए किसी अछूते स्थान की मांग की। दृढ़वती तेजाजी ने अपनी जीभ प्रस्तुत कर दी, जहां नाग ने डस लिया। तभी से तेजाजी की मूर्ति घोड़े पर बैठे हुए व सांप से कटवाते हुए बनायी जाती है। क्षेत्र के जन-मानस में उनकी स्मृतियां दृढ़तर होती गयीं। सर्प दंश की उनकी चिकित्सा पद्धति लोकप्रिय होती गयी। तेजाजी भी लोक देवता के रूप में समाज की आस्था के केन्द्र बन गये।

सीमान्त के रक्षक जाहर वीर गोगा जी

‘सर्प दंश के विष से मुक्तिदाता’ के रूप में जाने-जाने वाले गोगा बापा का थान गांव की सीमा पर शमी वृक्ष (खेजड़ी) के नीचे बनाया जाता है। चूरू जिले के ददरेवा में गोगा जी का जन्म युगाब्द 4048 (ईस्वी 646) में हुआ था। ददरेवा उस समय शक्तिशाली दुर्ग था जो मरूस्थल की रक्षा चौकी की भूमिका का निर्वहन करता था। मुस्लिम हमलावरों से हुए युद्ध में पिता की मृत्यु के बाद गुरु गोरखनाथ के योग्य शिष्य गोगा राणा ददरेवा के राजा बने। उन्होंने ग्यारह बार अरब के लुटेरों को धूल चटायी। ग्यारह युद्धों के इस अथक योद्धा को जब महमूद गजनवी के सोमनाथ पर आक्रमण की योजना का पता चला तो वे महमूद को धूल चटाने के लिए पुन: तैयार हो गये। लौहकोट (लाहौर) और मूलस्थान (मुल्तान) का प्रतिरोध पार करने वाले महमूद को ददरेवा में भीषण प्रतिरोध सहना पड़ा। गोगागढ़ के नाम से प्रसिद्ध हो चुका ददरेवा शत्रु के लिए अभेद्य दुर्ग सिद्ध हुआ। अन्तत: महमूद ने घेरा उठाकर सोमनाथ की ओर कूच का निश्चय किया। हिंदू धर्म रक्षक गोगा जी इसे कैसे सहते। वे किले का द्वार खोल बगली देकर निकलने वाले महमूद पर झपट पड़े। अप्रतिम वीरता से युद्ध कर जाहरवीर गोगा जी व उनके साथी सद्गति को प्राप्त हुए।

गोगा जी के सम्बन्ध में कथा कही जाती है कि उनकी भावी धर्मपत्नी केलम दे को एक नाग ने डस लिया। क्रोधित गोगा बापा ने मन्त्र पढ़े तो सांप तेल की कढ़ाई में आ-आकर मरने लगे। अन्त में नागराज ने बापा से क्षमा मांगी व केलम दे का विष चूस लिया। तभी से नाग दंश के उपचार के लिए गोगा जी का आह्वान किया जाता है।

पाबू जी-गोरक्षा हित प्राण न्यौछावर

ऐसे ही भीष्मव्रती वचन पालक और गोमाता के संरक्षक थे लोक देवता पाबू जी। पाबू जी को लोकदेवता तीन गुणों ने बनाया-गोवंश की रक्षा हेतु तत्पर रहने, छुआछूत को मिटाकर समाज में समरसता स्थापित करने के उनके प्रयासों व उनके साहस और जीवटता ने। पाबूजी का जीवट और साहस बचपन से ही प्रकट होने लगा था। वे अकेले ही सांडनी (ऊंटनी) पर चढ़कर शिकार करने जाते व तीर-कमान से हिंसक पशुओं का शिकार करते। वे छुआछूत के प्रति विरोध प्रदर्शित करते व अछूत समझे जाने वाले बालकों को मित्र बनाते। एक शक्तिशाली सामन्त आना बघेला के भय से भागे सात भील भाइयों को जब कहीं शरण नहीं मिली तो पाबू जी ने निर्भय हो उन्हें अपने साथ कर लिया। उनके इन गुणों से प्रभावित होकर स्वयंमेव लोग पाबू जी की तरफ खिंचने लगे।

मारवाड़ की चारणी देवलदे की अद्भुत घोड़ी ‘केसर’ उस समय चर्चा का विषय थी। पाबू जी के मांगने पर चारणी ने उन्हें यह घोड़ी इस शर्त पर दे दी, कि जब भी मेरी गायों पर संकट आएगा, आप उनकी रक्षा करेंगे। ‘केसर’ घोड़ी मिलने के बाद पाबू जी के गोरक्षा अभियान में और तेजी आ गयी। हमलावर और लुटेरे पठान, तुर्क और अफगानों के विरुद्ध पाबू जी संघर्ष करते रहे। मिर्जा खान को उन्होंने मठ-मन्दिर तोड़ने का दण्ड दिया। जन अत्याचारी व हिंदू पीड़क दूदा सूमरा को भी पाबू जी ने अच्छा पाठ पढ़ाया।

कुछ समय पश्चात पाबू जी का विवाह तय हो गया। फेरों के समय उन्हें देवलदे की गायों पर संकट की सूचना मिली। जींदराव ने देवलदे की गायों को घेर लिया था। पाबू जी के विवाह का चौथा फेरा भी पूरा नहीं हुआ था, पर वे तुरन्त विवाह वेदी से उठे और केसर पर बैठ गोरक्षा और देवलदे को दिया गया वचन निवाहने को चल दिये। शीघ्र ही वे राव जीन्द तक पहुंच गये व उससे घोर युद्ध किया। गायें छुड़ा ली गयीं, परन्तु पीछे से किये गए वार के कारण पाबू जी वीर गति को प्राप्त हुए। उसी दिन से पाबू जी लोक देवता बन गये।

राज्य-क्रान्ति के जनक श्री देवनारायण

इस पुण्य धरा ने कुछ ऐसे विभूति पुरुषों को भी जन्म दिया है जो एक तरफ तलवार के धनी थे तो दूसरी ओर पहुंचे हुए सिद्ध भी। अर्थात शस्त्र और शास्त्र का सुन्दर समन्वय। ऐसी ही विभूति थे श्री देवनारायण जी। उन्होंने अत्याचारी शासन के विरुद्ध शंखनाद कर उसे धूलिसात किया था। गुर्जर समाज इन्हें विष्णु का अवतार मानता है। माना जाता है कि वे लौकिक जन्मना न होकर कमल फूल में अवतरित हुए थे।
देवनारायण जी का जन्म भीलवाड़ा जिले की आसीन्द तहसील के मालासेरी डूंगरी गांव में हुआ था। उनके पिता सवाई भोज अपने तेईस भाइयों सहित राजा दुर्जनसाल द्वारा किये गए आक्रमण में वीर गति को प्राप्त हुए थे। उनका कुल नाम बगड़ावत था। सभी बगड़ावतों के वीरगति को प्राप्त हो जाने पर सवाई भोज की पत्नी साडू ने भगवान को प्रसन्न किया। उसी के फलस्वरूप देवनारायण जी का जन्म हुआ। कालान्तर में उन्होंने अपने चार भाइयों के साथ मिलकर राजा दुर्जनसाल को परास्त किया व अत्याचारी शासन को समाप्त कर राज्य क्रान्ति के अग्रदूत बने। उन्होंने युद्ध जीत कर विशाल राज्य अपने अग्रज मेहन्दू को सौंप दिया।

इन सब के मध्य वे अपनी सिद्धियों व आयुर्वेद के अभ्यास से प्राप्त ज्ञान से जन‡पीड़ा हरते रहे। उनकी कीर्ति विस्तार पाती गयी। उनके चमत्कारों की कथाओं में प्रमुख हैं- अपने सहयोगी छोटू भाट को पुनर्जीवन देना, अपनी पत्नी बनाने से पूर्व पीपल दे की कुरूपता दूर करना, सूखी नदी को जल से तृप्त करना, सारंग सेठ को पुनर्जीवन व सारंग सेठ व उसकी पत्नी को पुनर्यौवन देना, स्वयं देवनारायण जी का पुनर्प्रकटीकरण आदि।

इस प्रकार देवनारायण जी ने अन्यायी शासन का अन्त कर, राज्य को उपयुक्त हाथों में सौंप दिया। ‘परित्राणाय साधूनाम, विनाशाय च दुष्कृताम्’ का आजीवन पालन करते हुए स्वर्गारोहण करने के पश्चात भी वे अपनी पत्नी व अपने कुछ भक्तों को दर्शन देते रहे।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: culturedhoraheritagehindi vivekhindi vivek magazinelok devtarajasthantraditions

गौरव अग्रवाल

Next Post
कर्मयोगी बच्छराज दुगड़

कर्मयोगी बच्छराज दुगड़

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0