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समाज मन्दिर में रमने वाले जे.सी.जैन

समाज मन्दिर में रमने वाले जे.सी.जैन

by विशेष प्रतिनिधि
in अध्यात्म, मई २०१३, व्यक्तित्व
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जे.सी. जैन एक हरफनमौला व्यक्तित्व हैं। जैन समाज के तत्वों से कुछ ग्रहण करके समाज को सदैव कुछ न कुछ अर्पित करने वाले व्यक्ति हैं जे.सी. जैन । इनका समाज के सभी स्तर के लोगों जैसे मुंबई की राजनीति से लेकर समाज सेवा, सेवा कार्य करने वाले असंख्य व्यक्तियों से सीधा परिचय है । प्रबंधन इनका प्रिय विषय होने के कारण अनेक संस्थाओं का प्रबंधन अच्छी तरह से हो, इसके लिए इन्होंने अपनी सेवाएं दी हैं। जैन से वार्तालाप करते समय उनकी प्रखर आवाज तथा किसी भी मुद्दे पर अपना मत स्पष्ट रूप से व्यक्त करने के कारण वह मन को प्रभावित करते हैं। दान तथा सेवा यह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । दान उचित स्थान पर किया जाना चाहिए तथा सेवा उचित लेकिन जरूरतमंद लोगों तक पहुंचनी चाहिए, ऐसा जैन का स्पष्ट मत है। इस कारण वह जैन धर्मीय होने के बावजूद जे.सी. जैन समाज में, जैन मन्दिरों में लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करने को योग्य नहीं मानते। उनका कहना है कि समाज में चिकित्सा, शिक्षा के लिए आर्थिक सहयोग देने की नितान्त आवश्यकता है। इन क्षेत्रों में किये गए आर्थिक योगदान से समाज का उत्थान होता है।

जे.सी.जैन द्वारा सामाजिक उत्थान के लिए की गयी मदद की अनेक बातें ज्ञात हैैं, पर इनमें से एक बात जो अनेक लोगों को ज्ञात नहीं है, क्योंकि उसका प्रचार उन्होंने कभी किया ही नहीं। एक बार सुबह-सुबह ऑफिस जाने की हड़बड़ी के बीच एक बिहारी परिवार उनके घर के दरवाजे पर आया और रोने लगा। एक अपरिचित परिवार मेरे घर के दरवाजे के सामने क्यों रो रहा है, ऐसा सवाल मन में लेकर जैन ने उस परिवार की परेशानियों के बारे में प्ाूछताछ की, तो उस बिहारी दंपति में से प्ाुरुष ने बताया कि मेरा सात वर्ष का प्ाुत्र कैंसर रोग से ग्रस्त है। गांव की अपनी मालिकाना हक वाली लगभग प्ाूरी जमीन बेचकर उसका इलाज कराने का प्रयत्न किया, लेकिन इलाज के लिए आवश्यक धनराशि एकत्र नहीं कर सका। आज प्ाूरी धनराशि खत्म होने के कारण मैं अपने प्ाुत्र का इलाज नहीं करवा पा रहा हूं, मैं असहाय हूं। मुझे सिर्फ एक ही संतान है, उसकी जान बचनी चाहिए, यह बात उसने करुण भाव से जैन को बतायी तथा उनसे बिनंती की कि मेरी कुछ मदद कीजिए। जे.सी. जैन उस बीमार लड़के को फिर उसी टाटा हॉस्पिटल में ले गये, जहां वह पहले भर्ती था। जे.सी. जैन ने टाटा हॉस्पिटल के डॉक्टरों से प्रत्यक्ष मुलाकात कर वहां के डॉक्टरों से प्ाूछा कि इस बच्चे के इलाज के लिए कितना खर्च होगा। डॉक्टरों ने जे.सी जैन से कहा, जरा रुकिए, हम आपको इलाज का खर्च बताते हैं। कुछ देर बाद अस्पताल प्रशासन की ओर से इलाज की रकम बतायी गई। जे.सी. जैन ने तत्काल उक्त धनराशि का चेक अस्पताल प्रशासन को सुप्ाुर्द किया। इलाज की धनराशि का चेक मिलने के बाद उक्त बिहारी दंपति के लड़के को टाटा अस्पताल में फिर भर्ती कराया और कहा कि मैं इस बच्चे को देखने फिर आऊं गा, ऐसा कहकर जे.सी.जैन अपने ऑफिस रवाना हो गये। कालान्तर में वे इस बात को भी भूल गये कि मैंने एक बच्चे के इलाज के लिए बड़ी रकम दी है। अपने कार्यों में मग्न रहना जैन का स्वभाव ही बन गया है। उनका कहना है कि जो ध्यान में रहता है, उसे दान नहीं कहा जाता।

ढाई माह के बाद टाटा हॉस्पिटल के डॉक्टर का जैन को फोन आया। आप हैं कहां, मरीज को हमारे यहां भर्ती करने के बाद आप फिर कभी आये नहीं । आप जिस स्थिति में हों, उसी स्थिति में तत्काल टाटा हॉस्पिटल में आयें। जे.सी. जैन को लगा कि उस मरीज का कुछ बुरा तो नहीं हुआ। क्या वह और ज्यादा बीमार हो गया है, ऐसे कई सवाल उनके मन को परेशान कर रहे थे। इन सवालों को मन में लेकर जब जैन टाटा हॉस्पिटल में पहुंचे तो वहां के डॉक्टरों ने जे.सी. जैन से कहा आप जिस मरीज को इस अस्पताल में भर्ती करके गये थे, जरा पहचानिये तो वह कौन है। छोटे बच्चों का वार्ड होने के कारण वहां कई छोटे बच्चों को इलाज के लिए भर्ती किया गया था, जिस बच्चे को जैन ने भर्ती कराया था, उसे वे पहचान नहीं पाये। वार्ड में भर्ती करते समय वह बच्चा

अत्यंत कमजोर स्थिति में था। जैन किसी को भी पहचान नहीं पाये । जे.सी. जैन ने डॉक्टरों से प्ाूछा कि बताइये वह बच्चा कहां है तब उन्होंने एक सुन्दर से बच्चे की ओर अंग्ाुली दिखाकर कहा कि ये देखिये यह रहा, वह बच्चा, जिसे आपने यहां इलाज के लिए भर्ती कराया था। यह बच्चा अब कैंसर जैसी भयंकर बीमारी से प्ाूरी तरह से मुक्त हो गया है। इस बच्चे को उसके माता-पिता डिस्चार्ज दिलाकर अब यहां से अपने घर बिहार ले जा रहे हैं । इस बच्चे तथा उसके माता-पिता ने आप से मिलने की इच्छा व्यक्त की थी, इसलिए आप को फोेन करके तुरन्त बुला लिया। यह सुनकर जे.सी. जैन को अपने द्वारा दी गयी मदद अच्छे कार्य में लगी, इसका बेहद आनन्द हुआ। मेरी मदद से एक बच्चे का जीवन फिर फूल की तरह खिल गया, यह देखकर वे गदगद हो गये। जाते-जाते उस बच्चे ने जैन से कहा कि आप ने मुझे जीवन दिया है, आज से आप ही मेरे बाबा हैं । डॉक्टरों ने जब जैन को यह बताया कि बच्चे के इलाज के बाद कुछ धनराशि बची है, तो जैन ने कहा कि अच्छी बात है, मैं उस धनराशि में कुछ और डालता हूं, आप गरीब बीमार बच्चों के इलाज का सिलसिला इसी तरह से चलाते रहें।

इस घटना को अब कई साल बीत गये हैं, वह बच्चा अब युवक हो चुका है। वह अच्छी तरह से अपना व्यवसाय कर रहा है और हर साल कम से कम दो बार जैन से मिलने के लिए आता है, तो ऐसी है जे.सी. जैन की दान देने की पद्धति। किसी भी तरह का पूर्व विचार न करके मन के किसी कोने में उन्हें यह लगता है कि मदद देनी है तो वह तुरंत मदद देते हैं और

दिये गए दान का प्रचार नहीं करते हैं । दिये गए दान की राशि कहीं भी नहीं बताते हैं । इस तरह के अनेक कार्य जे.सी. जैन की ओर से लगातार किये जाते रहे हैं । जे.सी. जैन फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से जे.सी. जैन के सेवा कार्य लगातार जारी हैं । जैन महाराष्ट्र के अनेक सेवाभावी संस्थाओं से संबंधित हैं।

जीव दया जैन जी के कार्यों का महत्वप्ाूर्ण आधार है। भारतीय जैन संघ, महाराष्ट्र फेडरेशन ऑफ गौशाला पांजलपोल संस्थाओं के वे कार्यवाहक हैं । भारतीय जैन संघ के माध्यम से किये जाने वाले अनेक सेवा कार्यों में जे.सी.जैन का योगदान अहम रहा है। वर्तमान में महाराष्ट्र में भीषण अकाल पड़ा है, इस कारण किसानों तथा उनके जानवरों की हालत बहुत खराब हो गयी है। पानी तथा चारे के अभाव में ये जानवर तड़प रहे हैं । जानवरों को चारा और पानी मिले, इसके लिए जे.सी. जैन तथा उनके सहयोगी प्रयत्नशील हैं। जैन ने भारतीय जैन संघ के माध्यम से कई गांवों में चारा छावनियां बनवायी हैं।

कठिन अवसर पर महाराष्ट्र में रहने वाले राजस्थानी समाज का उल्लेख करते हुए जैन बताते हैं कि राजस्थान के मरू स्थल से आये हुए लोगों को महाराष्ट्र की भूमि ने सम्मान दिया है। आज महाराष्ट्र की भूमि अकाल से ग्रस्त हैं, ऐसे दौर में हम सभी को महाराष्ट्र का सहयोग करना चाहिए, ऐसी अपेक्षा व्यक्त करते हुए जे.सी. जैन राजस्थानी समाज से कहते हैं कि आप लोग जहां भी हों, वहां आप संस्था अथवा सरकारी संस्था के माध्यम से उचित सहायता करें।

सदैव सेवा कार्य करने की प्रवृत्ति होने के कारण आज जे.सी. जैन जिस महाराष्ट्र फेडरेशन ऑफ गोशाला एंड पांजलपोल के सचिव हैं, उस संस्थान के कार्यों की समीक्षा करने पर यह पता चला कि उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। सचिव पद का कार्यभार संभालते समय संस्था के कॉपर्स फंड में पैसों की कमी होने के कारण संस्था की आर्थिक स्थिति नाजुक चल रही थी। इसके बाद जैन ने नियमित रूप से केन्द्र सरकार की ओर से दी जाने वाली निधि के उपयोग करने की ओर ध्यान दिया, इसका फायदा इस तरह हुआ कि आज यह संस्था आर्थिक द़ृष्टि से काफी सबल हो गई है। आज समाज में गौ सेवा करने वाली अनेक संस्थाओं का आधार बनकर उनकी मदद कर रही है । जे.सी. जैन ने अपने सामाजिक परिचय के बूते पर केन्द्र सरकार से मिलने वाली अनुदान राशि में लगातार वृद्धि करायी, इस कारण महाराष्ट्र फेडरेशन ऑफ गोशाला एण्ड पांजलपोल के विकास कार्यों में तेजी आयी। जैन का कहना है कि जैसे दान तथा सेवा अच्छे कार्यों के लिए किया जाना चाहिए, वैसे ही समय का भी अच्छे कार्यों में उपयोग करना चाहिए, इसी कारण आज 75 वर्ष की आयु में भी जे.सी.जैन व्यस्त रहते हैं। उनकी यह व्यस्तता समाज के लिए समर्पित है, इस कारण सदैव विभिन्न कार्यों के माध्यम से जे.सी. जैन लम्बी उम के बाद भी अपना योगदान समाज के लिए दे रहे हैं। जैन का मन मन्दिरों में कभी नहीं रमा, वे कहते हैं कि समाज रू पी मन्दिर में मुझे अपना भगवान दिखायी देता है । जे.सी. जैन कहते हैं कि समाज सेवा से मिलने वाले समाधान को मैं शब्दों में प्रस्तुत ही नहीं कर सकता।

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