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उद्यम व आस्था का संगम  जुगल. पी. जालान

उद्यम व आस्था का संगम जुगल. पी. जालान

by विशेष प्रतिनिधि
in मई २०१३, साक्षात्कार
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श्री राणी सती दादीजी के परम भक्त श्री जुगल किशोर जालानजी धर्म में जीवन का उत्साह मानते हैं। जालानजी सौम्य और मृदुभाषी हैं तथा सत्य, परिश्रम, स्पष्टवादिता, कर्म, संस्कृति, सभ्यता, सहयोग तथा सद्भावना आदि विशेष मानवीय गुणों के पुजारी हैं। वह धार्मिक आयोजनों में सहभागी होकर प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। व्यवसाय तथा समाजसेवा को वे एक सिक्के के दो पहलू मानते हैं। वे भक्ति, सहयोग तथा कर्मठता की सशक्त त्रिवेणी हैं। पूरे मारवाड़ी समाज में आदर और सम्मान की नजर से देखे जाने वाले जालानजी को हर व्यक्ति तथा समाज से जुड़ी संस्था पूरा आदर‡सम्मान देती है। मुंबई महानगर के सभी प्रमुख धार्मिक एवं सामाजिक आयोजनों में जालानजी हमेशा दिखायी देेते हैं। यूं भी कहा जा सकता है कि आयोजन और जालानजी एक‡दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। श्री रामलीला, श्याम मण्डल गायन, श्रीमद्भागवत, अखण्ड रामायण पाठ, भागवत संकीर्तन, भजन आदि उत्सवों की पूर्णाहुति जालानजी के बगैर नहीं होती। ऐसी विलक्षण शख्सियत तथा व्यक्तित्व के धनी जालानजी से हमारे प्रतिनिधि द्वारा लिया गया साक्षात्कार हम नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं।

आप अपने विषय में हमें कुछ बताएं।

मेरा जन्म 21 मई, 1934 को श्री प्रहलादराय तथा श्रीमती गिनिया बाई जालान के घर लक्ष्मणगढ़, जिला सीकर, राजस्थान में हुआ। जीविकोपार्जन के सिलसिले में 1955 में मैं मुंबई आया। यहां आकर मैंने 1955 से 1970 तक टाटा टेक्सटाइल मिल में तथा 1971 से 1975 तक सेंचुरी बाजार में बतौर खजांची नौकरी की। 1975 में नौकरी छोड़कर मैंने स्वयं का व्यवसाय शुरू किया।

समाज सेवा की ओर आपका रुझान कैसे हुआ?

मैं राणी सती दादीजी का परम भक्त हूं। उनके किसी भी धार्मिक आयोजन में चाहे वह मुंबई के किसी भी कोने मेंक्यों न हो रहा हो, मैं हमेशा शामिल होता हूं। इन आयोजन के दौरान धीरे‡धीरे मेरा झुकाव धार्मिक तथा सामाजिक कार्यों की ओर हुआ। मैं तन‡मन‡धन से ऐसे कार्यों में अपनी ओर से सक्रिय सहयोग देने लगा।

आध्यात्म की ओर आपका झुकाव कैसे हुआ?

आध्यात्मिक गुरु परम पूज्य श्रीकांतजी शर्मा के सान्निध्य का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ। उनके सत्संग तथा अमृतमयी वाणी में प्रदत्त सारगर्भित ज्ञान ने मुझे धर्म और आध्यात्म के बारे में गहरी जानकारी प्रदान की। इससे मेरा झुकाव आध्यात्म की ओर दिनोदिन गहरा होता गया।

क्या आपने कोई धार्मिक आयोजन भी करवाये हैं?

मैंने राणी सती दादीजी के 125 से भी अधिक मंगलपाठ का आयोजन करवाया है। इसके अलावा भी अन्य धार्मिक व सामाजिक आयोजनों में अपनी ओर से योगदान देता रहता हूं। नारायण सेवा संस्थान, लोनावला में बने मन्दिर में भी मैं प्रमुख दानदाता सदस्यों में से एक हूं।

धर्म‡कर्म के बारे में आपकी राय?

मेरा मानना है कि धर्म‡कर्म से जीवन में उत्साहरूपी संगति का संचार होता है। मेरी राय में धर्म के साथ कर्म और आस्था का भी महत्वपूर्ण स्थान है। मनुष्य को धर्म के प्रति आस्थावान होने के साथ‡साथ कर्मयोगी भी होना चाहिए।

युवा पीढ़ी को आप क्या सन्देश देना चाहेंगे?

युवा पीढ़ी को अपने बड़े‡बुजुर्गो तथा शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए। समाज हित के कार्य करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। किसी भी तरह के व्यसन से दूर रहना चाहिए। गरीब तथा जरूरतमंदों की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। देश तथा समाज के हित के कार्य करने हेतु सदैव महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने के लिए कृतसंकल्प रहना चाहिए।

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Tags: hindi vivekhindi vivek magazinejugal p jalanjunctionsocial workspirituality

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