भोंसला मिलिट्री स्कूल

धर्मवीर डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे ने अंग्रजों के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति में भाग लिया। वे कुशाग्र बुद्धि थे। वे जानते थे कि अगर देश को स्वतंत्र कर उसे शक्तिशाली, स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर बनाना हो तो युवाशक्ति को संस्कारित करना होगा। इसी उद्देश्य से उन्होंने युवकों को अनुशासनबद्ध शिक्षा और संस्कार देनेवाले केंद्र की स्थापना का निर्णय किया। फलस्वरूप, नासिक में भोंसला मिलिट्री स्कूल की स्थापना की गई।

स्थापना

देशभक्ति से ओतप्रोत डॉ. मुंजे ने सैनिक शिक्षा देने के लिये सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एज्यूकेशन सोसायटी की स्थापना की और 1937 में भोंसला मिलिट्री स्कूल आरंभ हुई। इस वर्ष लगभग अगस्त माह में ‘दि सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एज्यूकेशन सोसायटी’ का पंजीयन हुआ। संस्था के पहले अध्यक्ष प्रताप शेठ (धुले) थे। संस्था की पहली सभा 16 अगस्त 1936 को हुई और इसी सभा में 15 जून 1937 से सैनिक स्कूल आरंभ करने का निर्णय किया गया। 26 मार्च 1938 को जिवाजीराव सिंधिया के करकमलों द्वारा स्कूल की इमारत का उद्घाटन किया गया। इस कार्यक्रम में डॉ. हेडगेवार उपस्थित थे। डॉ. मुंजे ने भोंसला परिवार के प्रति स्नेह के कारण स्कूल को भोंसला मिलिट्री स्कूल नाम दिया।

मार्गक्रमण

4 मार्च 1948 को डॉ. मुंजे का महानिर्वाण हुआ। उनकी प्रेरणादायी समाधि और अर्ध-प्रतिमा का अनावरण 1968 में तत्कालीन रक्षा मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह के हाथों हुआ।

डॉ. मुंजे के निधन के निधन के बाद स्कूल को कई कठिन प्रसंगों का सामना करना पड़ा। अहिंसा और सत्याग्रह के बल पर राष्ट्र निर्माण का आग्रह रखने वाली कांग्रेस ने सेना की ओर ध्यान देना कम कर दिया। इस नीति का फौजी प्रशिक्षण देने वाली सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं पर स्वाभाविक रूप से परिणाम हुआ। इससे लोगों में उदासीनता आ गई। इससे छात्रों का आना और आर्थिक सहायता मिलना मुश्किल हो गया। इस स्थिति में भी स्कूल चलाने के लिए डॉ. मुंजे के अनुयायी अथक प्रयास करते रहे।

1962 में भारत पर चीन का आक्रमण हुआ। भारत की हालत खस्ता हो गईऔर सारा देश मानो नींद से जाग उठा। देश की सेना बलशाली होनी चाहिए, यह बात जनता के साथ सरकार के भी ध्यान में आ गई। भोंसला मिलिट्री स्कूल सेना में भर्ती होने के पूर्व छात्रों को फौजी शिक्षा के लिए पूर्व प्रशिक्षण देने वाली संस्था है और इसी कारण वह सेना के लिए सक्षम युवकों की आपूर्ति करने वाली संस्था के रूप में अगुवा रही। नासिक स्थित सेना के आर्टिलरी सेंटर के अधिकारियों की पूर्ण सहानुभूति व सहयोग स्कूल को प्राप्त होने लगा। स्कूल ने इस अवसर को नहीं गंवाया। इस अवसर का पूरा लाभ स्कूल की फौजी शिक्षा के स्तर को सुधारने में हुआ।

शिक्षा के स्तर में सुधार के कारण भोंसला मिलिट्री स्कूल अधिकाधिक लोकप्रिय होने लगी। फौजी विषयों के विशेषज्ञों का सहयोग मिलने लगा। स्कूल की प्रगति होने लगी। यहां शिक्षा पाकर सेना में भर्ती होने वाले छात्रों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। सेना में विविध पदों पर कार्य करते हुए उनकी भी प्रगति हुई। सेना में उल्लेखनीय कार्य करने वाले पद्मभूषण लेफ्टि. जनरल (निवृत्त) री. एम.एल. चिब्बर, पी.वी.एस.एम. जनरल सहस्रबुद्धे, जनरल देशपांडे, विंग कमांडर एम.जी. दस्तक, विेंग कमांडर घटाटे, वीर चक्र पाने वाले आर्टिलरी के किटकुले आदि वरिष्ठ अधिकारी इसका श्रेय स्कूल को ही देते हैं।

वसंतराव साठे, श्रीकांत जिचकर, विनायकराव पाटील, अजय किनखेडे, भरत बोंडे, अनिल आदित्य आदि वरिष्ठ व्यक्तियों ने उल्लेखनीय कार्य कर स्कूल का गौरव बढ़ाया है। भारतीय सेना में भी लगभग 350 छात्र विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए अपनी सेवाएं राष्ट्र को अर्पित कर रहे हैं

1985 में स्कूल को राज्य सरकार से विशेष दर्जा प्राप्त हुआ है। फौजी शिक्षा देने वाले अध्यापकों को सरकारी मान्यता प्राप्त करने में स्कूल को सफलता मिली है। 1935 ये 1975 के चालीस वर्षों में सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एज्यूकेशन सोसायटी ने एकमात्र भोंसला सैनिकी स्कूल चलाई है, लेकिन इस पैतृक संस्था को उतनी प्रसिद्धि नहीं मिली। आर्थिक रूप से अनुकूलता पाने पर संस्था अब अपने विस्तार पर ध्यान दे रही है और विकास के क्रमानुसार चरण तय कर कार्य शुरू किया गया है। इसीसे निम्न गतिविधियां आरंभ हुईं-

1984 में नासिक के निवासियों के लिए स्वतंत्र स्कूल आरंभ की गई। प्रो. वि.वि. कोगेकर के मार्गदर्शन में आरंभ यह पौधा तेजी से फलने- फूलने लगा। मराठी व अंग्रेजी माध्यम की स्वतंत्र कक्षाएं शुरू हुईं। काफी प्रयासों के बाद सरकारी मान्यता भी प्राप्त हुई और केवल 10 वर्षों में ही 10वीं तक दोनों माध्यमों की स्वतंत्र कक्षाएं अपनी- अपनी इमारतों में चल रही हैं। बालक मंदिर, प्राथमिक व माध्यमिक अंग्रेजी व मराठी माध्यम की छह स्कूलें स्वतंत्र रूप से विकसित हो रही हैंऔर छात्र मेरिट सूची में भी चमकने लगे हैं। शिशु विहार, बालक मंदिर और विद्याप्रबोधिनी नामक ये शालाएं नागरिकों के आकर्षण का केंद्र बन गई हैं। आज यह स्कूल नासिक में खुले क्रीडांगण वाली दुर्लभ स्कूलों में से एक हैऔर 8/10 वर्षों से विकास का वृद्धिगत रुझान कायम रखे हुए हैं। स्कूल की विशेषता यह है कि संस्था ने बिना किसी सरकारी अनुदान के ही स्कूल चलाने का निर्णय किया है। फलस्वरूप, प्रबंधकों को अच्छे निर्णय करने में सुविधा होती है।

भोंसला मिलिट्री कॉलेज

बाबासाहेब घटाटे की विशिष्ट कार्यशैली थी। संस्था की आर्थिक स्थिति आसपास होने के बावजूद महाविद्यालय चलाने का आग्रह रखा और उस पर प्रत्यक्ष अमल भी किया। 1986 में स्कूल की एक कक्षा में ही 11वीं की कक्षा आरंभ हुई। विश्वविद्यालय और शिक्षा विभाग से क्रमानुसार अनुमतियां प्राप्त की गईं। 1987 में कॉलेज के लिए इमारत भी बन गई। नागपुर के डॉ. वा.न. भेंडे को प्राचार्य के रूप में नियुक्त किया गया और कॉलेज अपने दम पर ही चलने लगा। महाविद्यालय के कला, वाणिज्य व विज्ञान संकाय की कक्षाएं और उपाधि परीक्षाओं की तीनों संकायों की कक्षाएं आरंभ हुईं। स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में रक्षा विज्ञान व भौतिक विज्ञान विषयों के लिए छात्रों को प्रवेश दिया गया। 200 छात्रों और 100 छात्राओं के लिए छात्रावास की व्यवस्था भी की गई। छात्रावास के छात्रों और छात्राओं के लिए सैनिक प्रशिक्षण अनिवार्य किया गया। यशवंतराव चव्हाण मुक्त विश्वविद्यालय एम.बी.ए. पाठ्यक्रम का केंद्र भी शुरू किया गया। इसका छात्रों को काफी लाभ मिला और अनेकों को जीवन की दिशा मिली।

भोंसला संशोधन केंद्र

‘भोंसला संशोधन केंद्र, शांति एवं संघर्ष’ की स्थापना के बाद संशोधनात्मक कार्य को गति मिली। अनेक चर्चासत्रों और व्याख्यानों का आयोजन किया गया। इस पर आधारित अर्ध-वार्षिक पत्रिका ‘दक्ष’ का सम्पादन व प्रकाशन आरंभ हुआ। अनुसंधानात्मक स्तरीय सामग्री के कारण पत्रिका को कुछ ही दिनों में सैनिकी क्षेत्र में मान्यता प्राप्त हुई।

डॉ. मुंजे इंस्टीट्यूट

समय के अनुसार उत्पन्न आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर अगले कदम उठाए गए। डॉ. मुंजे इंस्टीट्यूट की स्थापना कर आर्थिक व औद्योगिक क्षेत्र के लिए अनुकूल पाठ्यक्रम आरंभ किए गए। इस क्षेत्र में कैरिअर करने के इच्छुकों के लिए यह संस्था आज महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। संस्था की भव्य और सभी साधन-सामग्री से युक्त इमारत संस्था का गौरवस्थान है।

भोंसला एडवेंचर फाउंडेशन

छात्रों की साहसी वृत्ति को नियोजित कार्यक्रमों के जरिए प्रोत्साहन देने की सभी सैनिकी शिक्षा में अनिवार्य आवश्यकता होती है। इस विचार से ही भोंसला एडवेंचर फाउंडेशन की स्थापना की गई। नासिक का छोटे-मोटे पहाड़ों से युक्त परिसर इस उपक्रम के लिए अत्यंत उपयुक्त साबित हुआ। ट्रेकिंग, रॉक क्लाइंबिंग, वॉटर स्पोर्ट्स तथा ग्लायडिंग जैसे हवाई उपक्रमों के लिए सुविधाजनक भौगोलिक वातावरण यहां उपलब्ध है। 15 अगस्त 1993 को भोंसला एडवेंचर फाउंडेशन का औपचारिक उद्घाटन मेजर जनरल नातू (निवृत्त) पीवीएसएम एमवीसी के शुभ हाथों हुआ। आनंद मुंजे की प्रकल्प अधिकारी के रूप में नियुक्ति की गई। उन्होंने फाउंडेशन के कार्य को गति प्रदान की। 1995 में तो मश्कट का 50 छात्रों का एक समूह इस कार्यक्रम के लिए विशेष रूप से भारत आया। 1997 में इटली से आये विशेषज्ञ रिचर्ड जोन्स व पोलो बोने के साहसिक प्रात्यक्षिक देखने को मिले।

भोंसला कंप्यूटर व मैनेजमेंट सेंटर

भोंसला कंप्यूटर व मैनेजमेंट सेटर का स्वतंत्र गठन किया गया। इस विषय के पाठ्यक्रम को सही दिशा देकर छात्रों को उसका लाभ पहुंचाने तथा साथ में मैनेजमेंट से जुड़े पाठ्यक्रम भी शामिल कर बाहरी छात्रों को भी उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए संस्था ने 1996 से यह सेंटर आरंभ किया है। संस्था की सभी स्कूलों के छात्रों के लिए कंप्यूटर का पाठ्यक्रम अनिवार्य किया गया है। चार्टर्ड एकाउंटंट के लिए होने वाली इंटरमीडिएट व फाउंडेशन परीक्षाओं की तैयारी के लिए भी कक्षाएं शुरू की गई हैं। इन कक्षाओं को इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंट्स ऑफ इंडिया ने मान्यता प्रदान की है। मुंबई के बाहर महाराष्ट्र में सर्वप्रथम कक्षाएं आरंभ करने का सम्मान नासिक को मिला है।

छात्रों की आर्थिक सहायता करने वाली संस्थाएं

1988 में अमरावती के शिंदोरे से प्राप्त 1 लाख रु. डिपॉजिट से स्वातंत्र्यवीर सावरकर प्रतिष्ठान की स्थापना की गई। इसके जरिए किसी हिंदुत्वनिष्ठ छात्र को सेना में भर्ती होने के लिए विशेष सैनिकी शिक्षा प्राप्त करने वाले यह छात्रवृत्ति दी जाती है। इसके अलावा महिंद्रा एण्ड महिंद्रा द्वारा महिंद्रा सर्च फॉर टैलेंट स्कालरशिप एण्ड अवार्ड नाम से छात्रवृत्ति दी जाती है। इसके लिए प्रति वर्ष 2 लाख रु. की राशि प्राप्त होती है। इससे भोंसला सैनिकी स्कूल के 9वी, 10वी व 12वीं की कक्षाओं में प्रथम आने वाले प्रत्येक छात्र को 2500 रु. और सभी स्कूलों में जो छात्र ‘गवर्नर्स सोअडर्’ का विजेता होता है उसे 5000 रु. का नकद पुरस्कार दिया जाता है।

समर मिलिट्री ट्रेनिंग कोर्स फॉर बॉइज

लड़कों के लिए प्रति वर्ष मई माह में सैनिक प्रशिक्षण कक्षाएं आयोजित की जाती हैं। ये कक्षाएं बहुत लोकप्रिय हुई हैं।

विंटर मिलिट्री ट्रेनिंग कोर्स फॉर गर्ल्स

1954 से महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल पक्वासा के सुझाव पर पूर्णिमाबेन पक्वासा के मार्गदर्शन में ये कक्षाएं शुरू हुईं। दीपावली के अवकाश के दौरान ये कक्षाएं ली जाती हैं। इसे भी प्रचंड समर्थन मिलता है।

व्यक्तित्व विकास शिविर

इस शिविर के पाठ्यक्रम 15 वर्ष से अधिक उम्र के छात्रों के लिए थे, लेकिन 1994 से अभिभावकों के आग्रह पर 12 से 15 वर्ष की आयुसीमा वाले छात्रों के लिए भी ‘अर्ध सैनिकी- व्यक्तित्व विकास शिविर’ आरंभ किए गए। कुछ सैनिक प्रशिक्षण के साथ व्यक्तिगत कला- कौशल को विकसित करने वाली ये कक्षाएं अप्रैल माह में ली जाती हैं।

संस्कार शिविर व ग्रीष्मकालिन शिविर

शिशु विहार व बालक मंदिर की ओर से 8 से 10 वर्ष की आयु के छात्र-छात्राओं के लिए ये कक्षाएं आयोजित की जाती हैं। ये शिविर अनिवासी होते हैं।

ग्रीष्मकालिन शिविर में 12 से 15 वर्ष की आयु के छात्रों को प्रवेश दिया जाता है। उनमें फोटोग्रफी, चित्रकला, योग, वनस्पति, पक्षी दर्शन जैसी रुचियों का संवर्धन किया जाता है।

वासंतिक शिविर

महाविद्यालय की ओर से किसी भी उम्र के लोगों के लिए अप्रैल में शिविर आयोजित किया जाता है। इसमें घुड़सवारी, तैराकी, नौकानयन जैसे विषय होते हैं।

भोंसला क्रीडा केंद्र

क्रीडा क्षेत्र में भोंसला सैनिकी स्कूल हमेशा अग्रणी रही है। विशेष रूप से फुटबॉल, हॉकी, तैराकी व निशानेबाजी जैसे तत्परता वाले खेलों में स्कूल की टीम ने अपना दबदबा कायम रखा है और समय- समय पर राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर सफलता पाई है। सरकार द्वारा प्रायोजित क्रीडा प्रबोधिनी सरकार की सिफारिश के आधार पर छात्रों को संबंधित खेलों में प्रशिक्षित करती है। इससे बेहतर खिलाड़ियों का निर्माण हो रहा है। क्रीडा क्षेत्र के विस्तार की मांग को ध्यान में रखकर भोसला क्रीडा केंद्र के नाम से स्वतंत्र विभाग की स्थापना की गई है। सभी तरह के देसी और विदेशी खेल, कबड्डी से लेकर टेनिस तक खेलों की व्यवस्था और इसके लिए आवश्यक साधन-सामग्री उपलब्ध होने से शिक्षा का ऊंचा स्तर बनाए रखने में सफलता मिली है। आंतरिक और बहिर्गत खेलों में बेहतर संतुलन बनाए रखा गया है। साल भर चलने वाले स्थानीय, राज्य व अंतरराज्यीय खेल स्पर्धाओं में खिलाड़ियों की सहभागिता होती है। योग, मल्लखांब, पिरैमिड जैसे प्रदर्शनकारी कार्यक्रम भी उत्सवों के दौरान आयोजित किए जाते हैं। इससे नासिक के क्रीडा क्षेत्र में केंद्र की सहभागिता उल्लेखनीय रूप से दिखाई दे रही है।

राष्ट्रीय संस्कार

डॉ. मुंजे व डॉ. हेडगेवार का चारित्र्यसम्पन्न और वीर वृत्ति के राष्ट्रभिमानी नागरिक निर्माण करने का कार्य यहां के वातावरण के चैतन्य, सभी कार्यक्रमों में हिंदू संस्कृति के संकेत और यहां के कर्मचारियों, अधिकारियों व कार्यकर्ताओं के सभी छात्रों के प्रति स्नेहपूर्वक व्यक्तिगत ध्यान के कारण प्रत्यक्ष में दिखाई देता है। मेघालय की 17/18 छात्राओं को छात्रावास में रखकर उनकी शिक्षा के अलावा उन्हें भारतीय संस्कृति का संस्कार देने वाला प्रकल्प सहजता से छात्रों तक राष्ट्रीय एकात्मता का संदेश पहुंचाता है। वनवासी बंधुओं की शिक्षा के लिए स्वतंत्र कक्षा की व्यवस्था कर उन्हें हमारी बराबरी से राष्ट्रीय प्रवाह में शामिल करने की योजना भी सामाजिक समरता की भावना छात्रों में प्रवाहित करती है।

भोंसला अश्वशाला

भोंसला सैनिकी स्कूल की अश्वशाला उसका गौरव है। अश्वशाला में उत्तम किस्म के व बलवान घोड़ों का ध्यान से लालन-पालन किया जाता है। उन्हें भी प्रशिक्षित किया जाता है। स्कूल के छात्रों को वर्षभर घुड़सवारी आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। विभिन्न आयु सीमा के लिए ग्रीष्म, शीत और व्यक्तित्व विकास शिविरों में भी आयु के हिसाब से घुड़सवारी का प्रशिक्षण दिया जाता है। उत्तम घोड़ों के चयन और बेहतर प्रशिक्षकों के कारण इस विभाग का बेहतर दर्जा है। संस्था ने मुंबई व पुणे के रेसकोर्स से निवृत्त हुए घोड़ों को खरीदने में प्राथमिकता दी है। कुछ घोड़े सारंगखेड़ा के बाजार से खरीदे गए तो कुछ दान में भी मिले हैं। प्रति वर्ष दशहरे के दिन समारोहपूर्वक अश्वपूजा कर उनका आदरपूर्वक सम्मान करने की परम्परा का संस्था निष्ठापूर्वक निर्वाह कर रही है। इसीलिए अश्वशाला संस्था का गौरव ही है इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।

भोंसला का राम मंदिर

अत्यंत मनोहारी व प्रकृति से सम्पन्न, शहर की भीड़भाड़ से दूर स्थित 160 एकड़ के परिसर की पवित्रता बनाए रखने के लिए डॉ. मुंजे ने सोचसमझकर इस भूमि का नाम रामभूमि रखा। इस पार्श्वभूमि में इस परिसर में सुंदर प्रेरणादायी राम मंदिर की स्थापना करने की उनकी इच्छा थी। 1984 में राम मंदिर के शिलान्यास से वह प्रत्यक्ष में आई। मार्च 1984 में कांची कामकोटी पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के शुभ हाथों मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की गई। इससे मंदिर को अनोखी पवित्रता व मंगलता प्राप्त हुई है।

मध्यवर्ती हिंदू सैनिकी शिक्षा मंडल का कार्य केवल नासिक में ही चल रहा था। डॉ. मुंजे के नागपुर नगर से करीबी रिश्तों को देखते हुए वहां भी डॉ. मुुंजे की स्मृति में कुछ न कुछ करने की बात कई लोगों के मन में थी। भोंसला सैनिकी स्कूल की एक शाखा नागपुर में आरंभ करने का आग्रह किया जाने लगा। 1994 में एक समिति स्थापित की गई। प्रयत्न शुरू हुए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रेशीमबाग स्थित इमारत में अस्थायी तौर पर जगह मिल गई। 1996 के जून में यह स्कूल आरंभ हुई। तत्कालिन मुख्यमंत्री मनोहरपंत जोशी और रा. स्व. संघ के पूर्व सरसंघचालक बालासाहेब देवरस के आशीर्वाद से उद्घाटन हुआ। मनोहरपंत जोशी को शायद सैनिकी शिक्षा का महत्व समझ गया और उन्होंने मुख्यामंत्री के रूप में महाराष्ट्र के प्रत्येक जिले में सैनिकी स्कूल आरंभ करने की योजना बनाईऔर शिक्षा संस्थाओं को इस तरह की स्कूलें शुरू करने का आवाहन किया। इस योजना का लाभ नागपुर की स्कूल को भी मिला और प्रगति की दिशा में मार्गक्रमण शुरू हुआ। नागपुर से 17 किमी दूर कोराडी मार्ग पर सरकार से प्राप्त भूमि पर इस स्कूल सुंदर परिसर है।

मध्यवर्ति हिंदू सैनिकी शिक्षा मंडल का कार्य बहुत बढ़ गया है। उसके मातहत चलने वाली अनेक उपसंस्थाओं पर नियंत्रण रखने के लिए मंडल के संविधान मेंं विकेंद्रिकरण की दृष्टि से संशोधन किया गया। प्रबंधन की सुविधा के लिए तीन स्वतंत्र विभाग बनाए गए- 1. मध्यवर्ति हिंदू सैनिकी शिक्षा मंडल का कार्यालय, 2. नासिक केंद्र का उपकार्यालय और 3. नागपुर का उपकार्यालय। इस तरह तीनों केंद्रों को पर्याप्त स्वायत्तता दी गई। कार्यकर्ताओं को काम करने के लिए बड़े पैमाने पर स्वतंत्रता और प्रोत्साहन मिला है। फलस्वरूप आज सारा कारोबार अनुशासन में और व्यवस्थित चल रहा है।

डॉ. मुंजे स्मारक

नासिक की रामभूमि में गंगापुर रोड़ से लगा एक छोटा दो मंजिला बंगला डॉ. मुंजे के निवास स्थान के रूप में था। नासिक आने पा वे वहीं रुकते थे। सन 2000 में उसके स्वरूप को न बदलते हुए उसे मजबूत व आधुनिक बनाया गया। डॉ. मुंजे की व्यक्तिगत वस्तुओं, अनेक प्रसंगों के फोटो का संकलन व प्रदर्शन यहां किया गया है। सामने उनकी अर्ध-प्रतिमा है। छोटा-सा मंच और खुला सभा स्थान है। सारा परिसर सुशोभित किया गया है। नासिक शहर का वह एक आकर्षण है और है उनकी कर्मभूमि में उनका स्मारक!

श्रीगुरुजी रुग्णालय

मध्यवर्ति हिंदू सैनिकी शिक्षा मंडल ने शिक्षा क्षेत्र में सेवाओं के अलावा स्वास्थ्य के खेत्र में सहयोग का निर्णय किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जनकल्याण समिति, महाराष्ट्र प्रांत के मातहत खड़की में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर रुग्ण सेवा प्रतिष्ठान की स्थापना कर पू. डॉ. हेडगेवार रुग्णालय चलाया जाता है। इसी तरह नासिक में भी इस प्रतिष्ठान की ओर से स्थानीय संघ स्वयंसेवकों के सहयोग से पू. गुरुजी रुग्णालय आरंभ किया गया है। इसके लिए मध्यवर्ति हिंदू सैनिकी शिक्षा मंडल ने 5 एकड़ की जमीन प्रदान की है। संघ स्वयंसेवकों के सहयोग से मंडल व आंबेडकर प्रतिष्ठान का यह संयुक्त स्वास्थ्य प्रकल्प नासिक के नागरिकों के लिए वरदान है।

संघ संस्कारों से छात्रों का निर्माण

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यप्रणाली में राष्ट्रीय उत्थान में परोक्ष व अपरोक्ष योगदान देने वाली संस्थाओं का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। हिंदू राष्ट्र की पुनर्स्थापना के लिए संघ विचारों के अनुकूल भावी पीढ़ी तैयार करने का कार्य जहां चलता है वहां संघ की स्वाभाविक रुचि होती ही है। हिंदू मिलिट्री एज्यूकेशन सोसायटी नासिक की ऐसी ही संस्था है। यही नहीं, संस्था की स्थापना से प.पू. डॉ. हेडगेवार का इसमें सहयोग रहा है यह भी एक कारण है। युवा पीढ़ी को संघ शाखाओं में संस्कार देकर प्रखर देशभक्तों की निर्मिति करने का कार्य संघ अनवरत कर रहा है। इसी के समांतर हिंदू मिलिट्री एज्यूकेशन सोसायटी का काम चल रहा है।

शिक्षा क्षेत्र में युवा पीढ़ी का निर्माण करने वाली अनेक शिक्षा संस्थाएं हैं, लेकिन वे केवल ‘कैरिअरिस्ट’ बनने के लिए छात्रों का व्यक्तित्व विकास कराती हैं। ऐसे अनेक कुशाग्र व कर्तव्यशील छात्र बाद में केवल अपने स्वार्थ के लिए विदेश जाते हैं और भरपूर धन कमाते हैं। लेकिन, जीवन का लक्ष्य न होने से उपभोगी ही बन जाते हैं। उनकी ज्ञान सम्पदा व कर्तृत्व का हमारे देश और मातृभूमि के लिए कदाचित ही उपयोग होता है। कहना होगा कि, हमारे देश की यह बौद्धिक सम्पदा एक अर्थ में जाया ही जाती है। इसका उपाय यह है कि इन अत्यंत कुशाग्र बुद्धि और कर्तृत्वशील पीढ़ी पर राष्ट्रीयता व देशभक्ति के समय रहते ही संस्कार करना और उसके लिए समुचित व्यवस्था करना। यही कार्य हिंदू मिलिट्री एज्यूकेशन सोसायटी की अनोखी विशेषता है।

बदलते समय के अनुसार अनुकूल शैक्षणिक क्षेत्र के नए- नए प्रवाह स्वीकार करते हुए अधिकाधिक युवकों को आकर्षित कर उन्हें बेहतर देशभक्त और वीरवृत्ति से प्रभावित बेहतर देशभक्त नागरिक बनाने का प्रयास करने वाली यह संस्था शिक्षा के क्षेत्र में केवल महाराष्ट्र मेें ही नहीं, देशभर में प्रसिद्ध है। देश के साहसी व वीरवृत्ति (मार्शल स्पिरिट) की भावना रखने वाले युवकों के लिए यह आदर्श संस्था बन गई है।
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