भारतीय किसान संघ: कृषि विरोध प्रदर्शन में राष्ट्रविरोधी ताकतें भी शामिल!

किसान बिल का विरोध लगातार बढ़ता ही जा रहा है और किसानों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। हालांकि सरकार और किसान नेताओं के बीच कई बार बैठक हो चुकी है लेकिन इस पर अंतिम निर्णय होता नजर नहीं आ रहा है। वहीं सरकार के सख्त रवैये को देखते हुए किसानों ने मंगलवार को भारत बंद का ऐलान किया है और इसके लिए बाकी किसान दलों से भी सहयोग मांगा है। भारत बंद को लेकर जहां कुछ दल इससे सहमत है तो वहीं कुछ इससे असहमत भी है। भारतीय किसान संघ की तरफ से इस पर अपना पक्ष जाहिर किया गया और इस बंद को हर तरफ से गलत करार दिया गया है। भारतीय किसान संघ की तरफ से कहा गया कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गये तीनों कृषि क़ानूनों के विरोध में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने दिल्ली में धरना दिया हुआ है।

किसानों और सरकार के बीच 5बार बैठक हो चुकी है जो करीब बेनतीजा रही है। 9 दिसंबर को फिर से वार्ता होनी है लेकिन उससे पहले किसानों ने भारत बंद का ऐलान कर दिया है। किसानों को कई दलों का सहयोग मिल रहा है इसके साथ ही राजनीतिक पार्टियां अपनी वोट बैंक राजनीति की रोटी सेकने के लिए भी इस भारत बंद को समर्थन दे रही है। अब तक किसानों और सरकार के बीच हुई बैठक में सरकार इस बात पर राजी हो गयी है कि वह कृषि कानून में संशोधन के लिए तैयार है लेकिन किसान संगठनों की तरफ से बिल को पूरी तरह से वापस लेने की मांग की जा रही है। पंजाब सरकार की तरफ से वैकल्पिक बिलो में केंद्रीय कानून को निरस्त कर 5 जून से पूर्व की स्थिति बहाल करने का प्रावधान किया जा चुका है बावजूद इसके पंजाब के किसान बिल को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए है।

भारतीय किसान संघ बिलों को वापस नहीं लेकर, न्यूनतम समर्थन मूल्य से खरीदी नीचे ना हो, व्यापारियों से किसान की राशि की गारंटी रहे, अलग से किसानों के लिए न्यायालय बनाए जाए एवं अन्य संशोधनों के साथ लागू करने की मांग कर रहा है। पूरे देश में अलग अलग प्रकार की फसलों का उत्पादन करने वाले छोटे बड़े किसानों के लिए इन बिलों की उपयोगिता सिद्ध होती है इसलिए हम इसे वापस लेने की मांग नहीं करते है।

दिल्ली में करीब दो सप्ताह से किसानों का आंदोलन जारी है लेकिन यह आंदोलन अभी तक गैरराजनीतिक और किसानों के लिए था लेकिन अब इसमें परिवर्तन देखने को मिल रहा है और यह राजनीतिक और राष्ट्रविरोधी रुप ले रहा है। ऐसी खबरें है कि देश विरोधी ताकतें किसान आंदोलन के नाम पर दंगा और आराजकता फैलाने की कोशिश कर रही है। किसानों के इस विरोध प्रदर्शन को देखते हुए सन 2017 के मंदसौर की घटना याद आ रही है जहां किसान आंदोलन को आराजक तत्वों ने हाईजैक कर लिया और दंगे का रुप दे दिया। नतीजा पुलिस को फ़ायरिंग करनी पड़ी जिसमें कई किसानों की मौत हो गयी जबकि अराजक तत्व आसानी से अपनी चालाकी में कामयाब हो गये और किसी बड़े पद पर भी आसीन हो गये जबकि मृतक किसानों का परिवार आज भी गरीबी का दंश झेल रहा है।

भारतीय किसान संघ ने अपने कार्यकर्ताओं को सजग रहने और 8 दिसंबर के भारत बंद के लिए लोगों को जागरुक रहने के लिए भी कहा है। भारतीय किसान संघ ने खुद को भारत बंद से बाहर कर लिया है और बाकी दलों से भी आह्वान किया है कि भारत बंद का फैसला देश हित में नही है। देश की जनता से भी किसान संघ ने अपील की है कि वह शांति के साथ अपने काम पर निकले और किसी भी अप्रिय घटना की सूचना स्थानीय प्रशासन को तुरंत दें।

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  1. g s gill

    जब केंद्र सरकार कृषी उत्पाद का न्यूनतम मूल्य एक वैज्ञानिक तरीके से तय करती है तो हर किसान को मिले ही इसे कानून बनाकर पक्का करना भी तो सरकार की ही जिम्मेवारी है।

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