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वोटों की पिटारी और यूपीए

वोटों की पिटारी और यूपीए

by रवीन्द्र गोले
in अक्टूबर-२०१३, राजनीति
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सन 2004 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार सत्तारूढ़ हुई। उसके पहले अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार सत्ता में थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपने कार्यकाल में देश को विकास के मार्ग पर आगे बढ़ाने के भरसक प्रयास किये थे। सुरक्षा, विदेश नीति, आंतरिक सुरक्षा, सामाजिक एकता, शिक्षा, रोजगार, यातायात आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने निभाई थी। अटल बिहारी वाजपेयीजी की सरकार के नेतृत्व में हर रोज 65 कि.मी. सड़कों का निर्माण होता था। गांव-देहात आपस में एक दूसरे से जोड़े जा रहे थे। आखिर सन 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व वाले एनडीए का शासन समाप्त हुआ और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सत्तारूढ़ बन गया। अटल बिहारी वाजपेयीजी ने विकास का मार्ग प्रशस्त बनाया था। लेकिन उस मार्ग से चलते यूपीए की – दूसरे शब्दों में कांग्रेस की मतों की पिटारी मजबूत होने की संभावना न थी। उसके फलस्वरूप कांग्रेस ने अपनी हमेशा की शैली के अनुसार जाति और धर्म का सहारा लेकर तुष्टिकरण आरंभ किया। मई 2004 में सत्तारूढ़ हुई इस सरकार ने एक ही बरस में दो करतूतें कीं, जिनसे भारत की एकात्मता, एकता, राष्ट्रीयता तथा सामाजिक सद्भावना को लेकर खतरा पैदा हुआ। वैसे तो ऐसे किसी खतरे से कांग्रेस का अथवा सत्ता हथियाने के लिए चाहे जो करने पर उतारू होनेवालों का कहीं कोई सरोकार ही नहीं था। वे केवल सत्ता और सत्ता ही चाहते हैं। सत्ता के हाथ से जाने पर वे बेचैन होते हैं। पानी के बाहर निकलने पर मछली जैसे तड़पती है, वैसे ही सत्ता के न होने पर ये लोग तड़पते हैं और इसीलिए सत्ता को बनाए रखने के लिए कुछ भी करने पर उतारू होते हैं।

मई 2004 में दिल्ली में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार स्थापित हुई और तुरन्त साम्प्रदायिक एवं जातीय भावनाओं को सहलाते-पुचकारते हुए लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की चाल चलना शुरू हुआ। उस दिशा में पहला कदम था रंगनाथ मिश्रा आयोग का। दि. 19 अक्तूबर 2004 को केंद्र सरकार ने न्या. रंगनाथ मिश्रा के नेतृत्व में एक आयोग गठित किया। इस आयोग का नाम ‘नेशनल कमीशन फॉर रिलिजियस एण्ड लिंग्निस्टिक मायनॉरिटीज’ (धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यक राष्ट्रीय आयोग) था। इस आयोग के माध्यम से धार्मिक अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने की योजना बनाई गई। निर्णय पहले ही किये जाने से उसी के अनुसार आयोग अपना काम करनेवाला था। केंद्र सरकार ने अपनी सत्ता के सहारे और मतों की पिटारी को सुरक्षित-मजबूत बनाने के इरादे से आयोग की स्थापना की और वह कौनसा काम कैसे करें यह भी बता दिया। चार बिंदुओं पर काम करने के लिए आयोग से कहा गया।

1) सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से धार्मिक तथा भाषाई अल्पसंख्यक निश्चित करने के निकष तैयार करना। 2) धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों में सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े लोगों की उन्नति हेतु शिक्षा और शासकीय सेवाओं में आरक्षण के मार्ग सुझाना। 3) आयोग की सिफारिशों पर कार्यवाही करने के लिए संविधानात्मक, कानूनी तथा प्रशासकीय तरीके कौन से हों इसे लेकर सुझाव देना। 4) उच्चतम न्यायालय में सन 1950 के संविधानात्मक आदेशों को आह्वान देनेवाली याचिकाएं दर्ज की गई हैं। इन आदेशों में अनुसूचित जातियों का समावेश करने की दृष्टि से धार्मिक अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने की दिशा में क्या किया जाए, इसे लेकर किस पद्धति का अवलंब किया जाए, यह तय करना।

यह आयोग उपर्युक्त चार बिंदुओं के आधार पर काम करने जा रहा हो, तो भी आयोग को सिर्फ ईसाई और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में ही काम करना होगा, यह अलिखित संकेत था। जिस धर्म में अछूत प्रथा नहीं, जातिभेद नहीं ऐसा कहा जाता है, उसी धर्म में वास्तव में जातिभेद है और फलस्वरूप कुछ समूह वंचित हैं। उन्हें विकास के दायरे में लाने के लिए आरक्षण देना चाहिए ऐसी आयोग ने सिफारिश की। ईसाई और मुस्लिम समाज में जातियों की खोज करने का काम इस आयोग ने किया। असल में इन दोनों धर्मों के धर्माचार्य तथा समाज के मुखिया ‘हमारे धर्म में जातिभेद-ऊंचनीच नहीं है’ ऐसा बारबार कहते हैं और उसी के आधार पर वंचित हिंदुओं का धर्मान्तरण करते हैं। इन दोनों धर्मों में अछूतप्रथा – जातिभेद अगर न होता, तो उनमें ‘दलित’ गुट के होने का दावा रंगनाथ मिश्रा आयोग ने किया तथा अपने संविधान ने जिनके हित में सही माने में आरक्षण रखा है, उनके मुंह का कौर छीनकर मुस्लिम और ईसाई समाज के तथाकथित दलितों को खिलाया गया। रंगनाथ मिश्रा आयोग ने अपना प्रतिवेदन सन 2007 में केंद्र सरकार को पेश किया।

उसमें निम्न सिफारिशें हैं –

1) दलित ईसाई और दलित मुस्लिमों का अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों में समावेश किया जाए। 2) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों वाला आरक्षण उन्हें दिया जाए। 3) धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए सरकारी सेवाओं में 15 प्रतिशत आरक्षण रखा जाए। 4) अन्य दलित वर्ग के लिए मंडल आयोग ने 27 प्रतिशत का आरक्षण रखा है। उसमें से 8.4 प्रतिशत आरक्षण दलित ईसाइयों के लिए रखा जाए।

ईसाई धर्मावलंबियों की मतों की पिटारी को कायम तौर पर बनाए रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने इस आयोग की रचना की तथा ईसाई दलितों की संकल्पना का निर्माण किया। महज मतों की राजनीति करनेवाली कांग्रेस ने ईसाइयों हेतु संविधान के मूल तत्त्वों पर ही कालिख फेर दी। अपना देश निधर्मी जनतंत्र का पालन करता है। संविधान ने भी धार्मिक भेदभाव को स्वीकृति दी नहीं है। संविधान के आमुख में लिखे हुए, ‘हम भारतीय जनता’ के स्थान पर मनमोहन सिंह के नेतृत्ववाली सरकार ने भारतीय जनता का विभाजन कर कुछ विशिष्ट धर्म के लोग ऐसी रचना मानो की है। ऐसा नहीं कि केवल ईसाइयों के हित में मनमोहन सिंह ने ऐसे कदम उठाये, बल्कि मुस्लिम धार्मियों के लिए भी मनमोहन सिंह खास तौर पर दिलदार बने हैं।

मुस्लिम समाज की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करने के इरादे से मार्च 2005 में न्या. सच्चर के नेतृत्व में समिति का गठन किया गया था। न्या. रंगनाथा मिश्रा आयोग के समान ही सच्चर समिति भी राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित हुई थी। इस समिति के माध्यम से मुस्लिम मतदाताओं को लुभाते हुए चुनाव में लाभ उठाने की कांग्रेस की योजना बनी है। मुस्लिम तुष्टिकरण के कांग्रेस की ओर से जो भी प्रयास किये जाते हैं, उनमें से यह एक महत्वपूर्ण प्रयास था। उस हेतु संविधान को भी अनदेखा किया गया। भारतीय संविधान में कहा गया है कि, सभी गरीबों के हित में समान स्तर पर ही व्यवहार किया जाए। उनका जाति-धर्म के आधार पर विभाजन न किया जाए। फिर भी मनमोहन सिंह ने मुस्लिम धर्मियों से बड़ी ही हमदर्दी जताते उनकी गरीबी एवं लाचारी हटाने के इरादे से मुसलमानों के हित में अलग सा बजट तैयार करने की पहल की। सच्चर समिति की मूल सिफारिशों के आधार पर ‘इवन अपॉच्युनिटी कमीशन’ निर्माण करना घोषित किया जाता है। मुसलमानों के विकास हेतु 1000 करोड़ रुपयों का एक विशेष कोश बनाने की दिशा में प्रयास होते हैं। यह सारा ही मुसलमानों के मत प्राप्त करने के लिए मोर्चेबंदी करना ही तो है।

लेकिन यह मामला यहीं खत्म नहीं होता। सच्चर कमिटी ने भारतीय सेना दल में मुसलमान कितने हैं, इसकी गिनती करने के प्रयास किये। उस पर बड़ा भारी विवाद निर्माण हुआ। तीनों दलों के प्रमुखों ने इसके खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द की। राष्ट्रप्रेमी लोगों ने निषेध व्यक्त किया। सशस्त्र सेनादल में सभी सैनिक भारतीय होते हैं, कोई भी हिंदू, मुसलमान या ईसाई नहीं होता। परंतु यूपीए सरकार ने धर्म के आधार पर सेनादल का विभाजन करना आरंभ किया है। यूपीए ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालम को ‘अल्पसंख्मक संस्थान’ का दर्जा बहाल करने की पहल की और वैसा घोषित भी कर दिया, लेकिन उच्च न्यायालय ने उस निर्णय को खारिज किमा।
इस पृष्ठभूमि में किस तरह की मुस्लिम मानसिकता निर्माण हुई है, उसका नमूना उत्तर प्रदेश के एक मंत्री महोदय की बातों में दिखाई देता है। ये मंत्री महोदय कहते हैं, “मुस्लिम महिलाएं कितने भी बच्चे पैदा कर सकती हैं। उन बच्चों के पोषक आहार का प्रबन्ध सरकार की ओर से किया जाएगा। सरकार हर बच्चे के लिए 1400/- रुपये देगी।” इसी दिशा में विशेष प्रावधान करते यूपीए सरकार के सामने सिर्फ मुस्लिम और ईसाई ही होते हैं।

गरीबी, अज्ञान, बेरोजगारी ये समस्याएं केवल मुस्लिम समाज की ही नहीं हैं। समूचे भारतीय समाज के सामने मे समस्याएं खड़ी हैं। तो फिर यूपीए सरकार केवल मुस्लिम समाज को गरीबी, अज्ञान, बेरोजगारी से मुक्त कराने प्रयास क्यों कर रही है? आखिर इसके पीछे कौनसा गुर छिपा हुआ है? मुस्लिम समाज को विशेष अनुदान एवं खास सुविधाएं बहाल कर मतों की पिटारियों को मजबूत बनाने को छोड़कर और कौनसा उद्देश्य इस सरकार का होगा?

अपने स्वार्थ के हेतु संविधान के आमुख में ‘धर्म-निरपेक्ष’ इस शब्द को समाविष्ट करनेवाली कांग्रेस को अब धर्मनिरपेक्षता का विस्मरण जो हुआ है तथा धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र के स्थान पर धर्माधिारित जनतंत्र की दिशा में यूपीए कदम बढ़ा रही है। दूसरों को सांप्रदायिक, जातीयवादी कह कर आलोचना करनेवाले यूपीए के बड़बोले नेता अपनी इन धर्माधारित गतिविधियों को अपनी सुविधानुसार अनदेखा करते हैं, यही वास्तविकता है। धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र में ‘हम सभी भारतीय हैं’ इस मंत्र का घोष करते हुए जागरण करना चाहिए, परंतु सिर्फ मतों की भीख मिले इस हेतु कांग्रेस सच्चर कमिटी, मिश्रा आयोग के समान संविधान विरोधी उपक्रम कर रही है। ईसाइयों और मुसलमानों को एक ओर हिंदुत्व का हौवा दिखाना और दूसरी ओर ‘ईसाई-मुसलमान दलित हैं’ ऐसा कहते हुए पुराने दलितों की सुविधाएं देना, मानो लूटनेवाले खड़े करना ऐसी दोहरी चाल यूपीए सरकार चल रही है।

हम सभी भारतीय हैं और भारतीय संविधान के आधार पर ही अपने देश का संचालन होना चाहिए, लेकिन सिर्फ मतों की ओर देखकर देशहित तथा संविधान की अवहेलना करने का कुकर्म यूपीए सरकार कर रही है इस आह्वान को हमें स्वीकार करना होगा। देश में धार्मिक आधार पर समाज को विभाजित कर अपना स्वार्थ सिद्ध करनेवाली यूपीए सरकार को एक बार खासा सबक सिखाना ही होगा।
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