‘लोकमंच’ का चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण भाजपा को राजतिलक का मौका

भारत के 28 राज्यों व 7 केंद्रशासित प्रदेशों में लोकसभा की कुल 543 सीटें हैं, जिनमें से सर्वाधिक 80 सीटें हैं उत्तर प्रदेश में। हर राज्य में 2014 के लोकसभा चुनावों पर असर करने वाले मुद्दें अलग-अलग हैं। महंगाई, भ्रष्टाचार, राष्ट्रीय एकात्मता इन मुद्दों के साथ विभिन्न जातीय मतदाताओं का प्रभाव हर राज्य में स्वतंत्र है। मिसाल के तौर पर पूर्वी राज्यों में कांग्रेस व वहां के क्षेत्रीय दलों में प्रमुख रूप से संघर्ष है, तो दक्षिण के राज्यों में स्थानीय क्षेत्रीय दल अधिक प्रबल हैं। हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा व कांग्रेस में ही संघर्ष है। उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, ओडिशा में 264 लोकसभा सीटें हैं और इनमें प्रादेशिक दलों का प्रभाव अधिक है। इसी तरह देश के दलित व मुस्लिम मतदाताओं का वोट बैंक अब एक दल की जागीर नहीं रही है। वह प्रत्येक राज्य में अलग-अलग संदर्भों में, अलग-अलग दलों में बिखरा हुआ है। मध्यम वर्गीय मतदाता भी कुछ राज्यों में कुछ दलों में बिखरा दिखाई देता है। इसी कारण देश में एक दल की निर्विवाद सत्ता आने में रुकावटें आ रही हैं। यह बाधा दौड़ भाजपा व भाजपा के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी किस तरह पार करते हैं इस पर भाजपा का सत्ता का सपना साकार होने वाला है।

आगामी लोकसभा चुनावों में कुल 543 सीटों में से न्यूनतम 272 सीटें जो दल, मोर्चा या गठबंधन जीतेगा वही सरकार बना पाएगा। अन्यथा देश में अस्थिर राजनीतिक स्थिति पैदा हो सकती है। कांग्रेस मोर्चे (यूपीए) के बारे में जो अनुमान है उससे लगता है कि असम, केरल, ओडिशा के अलावा पूर्व के छोटे राज्यों में कांग्रेस अन्य दलों से अधिक स्थान पा सकती है। इसी तरह बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा में भाजपा व भाजपा गठबंधन को अधिक सफलता मिलेगी। क्षेत्रीय दलों अथवा तीसरे मोर्चे की बहुलता आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, केरल, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल में है। अनुमान है कि तीसरे मोर्चे या क्षेत्रीय मोर्चों को प्राप्त होने वाली सफलता शायद भारत में अस्थिर राजनीतिक स्थिति को जन्म दे सकती है। कुल 543 सीटों में से 173 सीटों पर भाजपा व कांग्रेस इन दो राष्ट्रीय दलों में एक या दो नम्बर के लिए लड़ाई हो सकती है। शेष 370 सीटों के बारे में अनुमान है कि भाजपा व कांग्रेस के प्रतिस्पर्धी अन्य दल बलवती हो सकते हैं। इनमें से कुछेक सीटों पर तो इन दोनों राष्ट्रीय दलों एक या दो नम्बर का स्थान भी शायद ही मिले।

2014 के लोकसभा चुनाव के नगाड़े बजने लगे हैं। यह चुनाव दो प्रमुख राष्ट्रीय दल- कांग्रेस और भाजपा के समक्ष चुनौती है। दिल्ली विधान सभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को जो सफलता मिली उससे आगामी लोकसभा चुनाव में उसकी चर्चा होना स्वाभाविक है। भाजपा और कांग्रेस दोनों चुनाव-पूर्व गठबंधन कर चुनावों का सामना करेंगी। अतः लोकसभा चुनावों में मतदाताओं का रुझान किस राज्य में और कुल मिलाकर पूरे देश में कैसा होगा इसका विश्लेषण करना जरूरी है। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को सर्वाधिक नकारा जा सकता है; क्योंकि वर्तमान में मतदाताओं का रुझान कांग्रेस के विरोध में दिखाई देता है। कांग्रेस को नकारने का मतलब भाजपा गठबंधन (एनडीए) को सत्ता सौंपने का मतदाताओं का रुझान मान लें तो भाजपा गठबंधन की सत्ता का अंकगणित किेस तरह सफल होगा इसका विश्लेषण लोकमंच, कोल्हापुर की ओर से किेया गया। इस सर्वेक्षण के आधार पर पेश है देश का भविष्य का चुनावी परिदृश्य…

2014 का चुनाव भारत की स्थिर राजनीति के लिए महत्वपूर्ण होगा। स्थिर राजनीति के कारण देश की समस्याएं हल करने में सुविधा होगी। इस चुनाव के दौरान महत्वपूर्ण समस्याएं हल करने की चुनौती हर राजनीतिक दल के समक्ष रहेगी। भ्रष्टाचार, बिगड़ी हुई राजनीतिक अर्थव्यवस्था, महंगाई, आतंकवाद, बेरोजगारी, महिलाओं की सुरक्षा, बढ़ती जनसंख्या, राष्ट्रीय एकात्मता तथा धार्मिक व जातीय समीकरण ये सभी मुद्दें इस चुनाव पर प्रभाव डालने वाले होंगे। एक और जातीय समीकरण का मुद्दा प्रभाव डालने वाला होगा और वह है दलित मतदाताओं का। दलित मतदाताओं में जागरुकता आ जाने से यह वोट बैंक कांग्रेस से अलिप्त होता जा रहा है। इन मतदाताओं को जिन राज्यों में कांग्रेस के विकल्प के रूप में भाजपा के अलावा अन्य विकल्प नहीं है उन राज्यों में ये मतदाता भाजपा की ओर मुड़े हैं। लेकिन जिन राज्यों में विकल्प मौजूद है वहां ये मतदाता भाजपा की ओर जाने की अपेक्षा अन्य विकल्पों की ओर झुकते दिखाई दे रहे हैं और इसका उदाहरण है दिल्ली विधान सभा के चुनाव। यदि आगामी चुनाव में आम आदमी पार्टी चुनौती उपस्थित करती है तो कांग्रेस के नकारात्मक वोटों का लाभ भाजपा के अलावा आम आदमी पार्टी को मिल सकता है। लेकिन आम आदमी पार्टी को लोकसभा चुनाव लड़ने का अनुभव न होने और संगठनात्मक ढांचा ठीक से न होने से कितना लाभ होगा यह आज स्पष्ट रूप से कहना कठिन है।

2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मोर्चा बैकफुट पर आ गया है। राहुल गांधी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाना है। चुनाव के पूर्व कांग्रेस को मित्र दल मिलेंगे ऐसा नहीं लगता और कांग्रेस अपनी ताकत के बल पर सत्ता प्राप्त करने में सफल होगी ऐसा माहौल नहीं है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली व छत्तीसगढ़ में हाल में हुए विधान सभा चुनावों का विश्लेषण करें तो दिखाई देता है कि मतदाताओं ने कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया है। इन राज्यों के विधान सभा परिणामों को लोकसभा सीटों में परिवर्तित करें तो इन राज्यों की कुल 72 लोकसभा सीटों में से केवल 8 सीटें ही कांग्रेस को प्राप्त हो सकती हैं। कांग्रेस के वर्तमान मित्र दलों- तमिलनाडु में द्रमुक और महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस जैसे घटक दलों के पास उन राज्यों में वर्तमान में जो सीटें हैं उनमें से अनेक सीटें गंवानी पड़ सकती हैं ऐसा वर्तमान चित्र दिखाई देता है। कुछ राज्यों में आम आदमी पार्टी यदि स्वच्छ व सक्षम उम्मीदवार दे सकी तो वे सीटें आम आदमी पार्टी कांग्रेस से छीन सकती है।

भाजपा गठबंधन ने आगामी चुनावों के लिए नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है। भाजपा के इस निर्णय से देश के मतदाताओं में एक नया जोश आ गया है। नरेंद्र मोदी की ‘वोट फॉर इंडिया’ संकल्पना विकास की संकल्पना है। गुजरात राज्य के विकास का माडल नरेंद्र मोदी ने देश के मतदाताओं के समक्ष रखा है। इसलिए ‘विजन’ (दूरदृष्टि) रखने वाले प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी की ओर सभी क्षेत्रों के अनुभवी लोग व मतदाता देख रहे हैं। इस सम्पूर्ण परिस्थिति में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन क्या बहुमत की संख्या 272 से अधिक सीटें दिला पाएगा इसका चुनाव पूर्व विश्लेषण आगे किया गया है।

लोकसभा की कुल 543 सीटों में से राज्यनिहाय प्रत्येक सीट पर विभिन्न मुद्दों का आधार लेकर सर्वेक्षण किया गया है। इनमें सम्बंधित निर्वाचन क्षेत्र में मौजूद विभिन्न दल, उम्मीदवार, जातिनिहाय मतदाता, राष्ट्रीय व स्थानीय मुद्दें और विभिन्न मुद्दों पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष प्रत्येक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र की सांख्यिकीय जानकारी के साथ सर्वेक्षण किया गया है। इसके अनुसार भाजपा व भाजपा गठबंधन की 543 निर्वाचन क्षेत्रों में स्थिति का राज्यनिहाय विश्लेषण किया गया है।

अ. भाजपा व मित्र दल जहां प्रभावी उम्मीवार नहीं दे सकेंगे वे राज्य व संख्या
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अ.नं. राज्य                कुल सीटें        प्रभावी न होने वाली सीटें
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1. जम्मू-कश्मीर             6                    4
2. केरल                         20                  20
3. लक्षद्वीप                   1                      1
4. मणिपुर                      2                     2
5. पांडिचेरी                      1                     1
6. सिक्किम                    1                     1
7. मेघालय                      2                     2
8. मिजोरम                     1                     1
9. नागालैण्ड                   1                      1
10. त्रिपुरा                       2                      2
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कुल 37 35
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उपर्युक्त राज्यों में कुल सीटें 37 हैं। इनमें से जम्मू-कश्मीर की दो सीटें छोड़ दी जाए तो शेष 35 सीटों पर भाजपा अपने उम्मीदवार देकर जीताने की क्षमता नहीं रखती। देश भर में चुनाव की कोई भी लहर हो परंतु इन 35 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा का प्रभाव कम से कम आज तो शून्य ही है। यही नहीं इन राज्यों में भविष्य में कोई भी मित्र दल होने की संभावना क्षीण है। केरल व त्रिपुरा इन दो राज्यों में कांग्रेस व वाम मोर्चे में ही लड़ाई होती है। दोनों के उम्मीदवार अदल-बदल कर जीतते हैं। शेष निर्वाचन क्षेत्र पूर्वांचल के राज्यों के हैं तथा वहां कांग्रेस और स्थानीय क्षेत्रीय दलों में संघर्ष होता है। जम्मू-कश्मीर के चार निर्वाचन क्षेत्र 70 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले होने से उन क्षेत्रों में बहुत बार भाजपा को उम्मीदवार भी नहीं मिलता। इसका अर्थ यह कि 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से 35 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा व भाजपा गठबंधन को शून्य सीटें मिलेंगी। इन 35 सीटें घटाने के बाद शेष 508 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा गठबंधन को प्राप्त होने वाली सीटों का विश्लेषण करना आवश्यक है।

ब. भाजपा व मित्र दल जहां प्रभावी उम्मीदवार नहीं दे सकेंगे वे राज्य व संख्या
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अ.न. राज्य       कुल सीटें       प्रभाव न होने वाली सीटें
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1. आंध्र प्रदेश          42                      42
2. पश्चिम बंगाल    42                      41
3. ओडिशा              21                      20
4. तमिलनाडु          39                      39
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कुल 144 142
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उपर्युक्त प्रमुख राज्यों में लोकसभा की 144 सीटें हैं तथा भाजपा अपने अकेले बलबूते मात्र दो सीटें ही लड़ सकती हैं तथा जीत सकती है। इन राज्यों में कम से कम आज तो भाजपा का कोई मित्र दल नहीं है। तमिलनाडु में द्रमुक भाजपा का मित्र दल हो तब भी दोनों दलों की ताकत तमिलनाडु में प्रभाव डालने वाली नहीं है। उपर्युक्त राज्यों में से केवल तेलुगु देशम ही भाजपा के साथ आ सकता है। तेलंगाना राष्ट्र समिति का कांग्रेस में विलय हो सकता है। अन्य क्षेत्रीय दलों में से बिजू जनता दल तथा जयललिता की अन्ना-द्रमुक तीसरे मोर्चे में शामिल हो गए हैं। ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेगी। इस तरह इन दलों से भाजपा के चुनाव पूर्व गठबंधन की संभावना खत्म हो गई है। लेकिन चुनाव के बाद इन दलों से भाजपा के समझौते से इनकार नहीं किया जा सकता। उपर्युक्त राज्यों के 142 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा का प्रभाव 2014 के चुनाव में शून्य रहने की संभावना है। इसका अर्थ यह कि शेष 508 निर्वाचन क्षेत्रों में से 142 निर्वाचन क्षेत्र घटाने के बाद बाकी बचे 366 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा व भाजपा गठबंधन प्रभावी रूप से चुनाव लड़ सकते हैं। इन 366 निर्वाचन क्षेत्रों का विश्लेषण निम्न रूप से किया जा सकता है-

क. भाजपा के अकेले बलबूते प्रभावी रूप से लड़ सकने वाले राज्य व संख्या
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अ.नं.    राज्य                   कुल सीटें       प्रभाव वाली सीटें
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1. अंडमान निकोबार             1                         1
2. अरुणाचल प्रदेश               2                        2
3. असम                             14                       11
4. बिहार                             40                      40
5. चंडीगढ़                            1                         1
6. छत्तीसगढ़                      11                      11
7. दादरा नगर हवेली            1                          1
8. दिल्ली                            7                           7
9. गोवा                              2                           2
10. गुजरात                      26                          26
11. हिमाचल                      4                              4
12. झारखंड                       14                           14
13. कर्नाटक                      28                           28
14. मध्यप्रदेश                    29                          29
15. राजस्थान                    25                            25
16. उत्तर प्रदेश                  80                         80
17. उत्तराखंड                       5                          5
18. दमण दीव                       1                           1
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कुल 291 291
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उपर्युक्त राज्यों में 291 सीटों में से सभी 291 सीटों पर भाजपा अपनी ताकत पर प्रभावी उम्मीदवार खड़ी कर सकती है। इन राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों में मित्र दलों की आवश्यकता महसूस नहीं होती। पिछले कई चुनावों के आंकडों को देखें तो स्पष्ट होगा कि इन राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों में या तो भाजपा का उम्मीदवार जीता है या उसे दूसरे क्रमांक के वोट मिले हैं। इन राज्यों में भाजपा के विचारों वाले संगठनों का प्रबल कार्य है। जिन 366 निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा गठबंधन लड़ सकता है उनमें से 291 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा अपनी ताकत के आधार पर चुनाव लड़ सकती है। उपयुक्त राज्यों के 291 निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस को अत्यंत कम सीटें मिल सकती हैं और इसीलिए इन राज्यों में आम आदमी पार्टी अपने उम्मीदवार खड़े कर सकती है और कांग्रेस इन सीटों पर अप्रत्यक्ष रूप से आम आदमी पार्टी को मदद कर सकती है तथा भाजपा को रोकने का प्रयास कर सकती है। लेकिन मतदाताओं में जिस प्रकार की जागरुकता पैदा हो गई है उससे यह ‘प्लान’ कितना सफल होगा इसमें संदेह लगता है। शेष 71 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा व मित्र दल चुनाव लड़ेंगे। इन 71 सीटों के बारे में मित्र दलों के साथ विश्लेषण निम्नानुसार है-

क. भाजपा व मित्र दल प्रभावी रूप से लड़ सकने वाले राज्य व संख्या
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अ.नं. राज्य कुल सीटें भाजपा मित्र दल
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1. हरियाणा 10 6 4
2. महाराष्ट्र 48 25 23
3. पंजाब 13 3 10
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कुल 71 34 37
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उपर्युक्त राज्यों में कुल 71 सीटें हैं। इनमें से 34 सीटें भाजपा अपने बलबूते लड़ सकती है तथा शेष 37 सीटें भाजपा के वर्तमान में मित्र दल लड़ सकते हैं। इन 71 सीटों पर जीत का गणित भाजपा के सत्ता में आने के लिए निर्णायक हो सकता है।इस सर्वेक्षण का कुल सार यह है कि 2014 के लोकसभा चुनावों का भाजपा की दृष्टि से गणित रखना हो तो कुल 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से 35 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा प्रभावी उम्मीदवार खड़े नहीं कर सकती तथा 142 निर्वाचन क्षेत्रों में वहां के क्षेत्रीय दलों से चुनाव पूर्व गठबंधन करने पर भाजपा को सत्ता पाने में आसानी होगी। अन्यथा इन 142 निर्वाचन क्षेत्रों में भी भाजपा प्रभावी उम्मीदवार खड़े नहीं कर पाएगी। शेष 366 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा व भाजपा गठबंधन का बोलबाला है तथा इनमें से मित्र दलों के प्रभाव वाली 37 सीटें व भाजपा के अपने बलबूते पर लड़ी जाने वाली 329 सीटों पर जीत से ही भाजपा गठबंधन का केंद्र में सत्ता में आने का सपना निर्भर करता है। इन 370 सीटों में से बहुमत के लिए अर्थात सत्ता में आने के लिए 272 सीटें जरूरी है। अर्थात, 370 का गणित यदि मान लिया जाए तो उपर्युक्त सीटों में से कम से कम 75 प्रतिशत सीटों पर भाजपा व मित्र दलों का विजय पाना जरूरी है।

भाजपा का सत्ता पाने का गणित पूरा करने और नरेंद्र मोदी का नेतृत्व सफल करने के लिए भाजपा को अपनी रणनीति में कुछ परिवर्तन करने पड़ेंगे। इसके लिए भाजपा को कुछ निर्णय त्वरित करने होंगे, घटनाओं को उपयुक्त मोड़ देना होगा तथा चतुर बुद्धि का उपयोग करना होगा। देश के दलित मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उनके लिए विशेष कार्यक्रम के अंतर्गत उनके विकास के मुद्दों को प्रखरता से आगे करना होगा। इसी तरह युवा बेरोजगारों को नियत अवधि में रोजगार उपलब्ध कराने का विश्वास भी अपने चुनावी घोषणा-पत्र में देना आवश्यक है। देश की महिला खेत मजदूरों की समस्याएं हल करने में अनेक सरकारें विफल रही हैं। यदि इस समस्या पर भाजपा उपयुक्त कार्यक्रम व उपाय पेश करें तो इस वर्ग को भी भाजपा की ओर आकर्षित किया जा सकता है। वैसे ही भाजपा की मूल विचारधारा ‘हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व है’ इस संकल्पना से कदापि बिछोह नहीं हो इसका भाजपा नेतृत्व को कड़ाई से ध्यान रखना होगा।

इसका अर्थ यह कि, ‘वोट फॉर इंडिया’, ‘हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व’ और यही देश के विकास की संकल्पना है यह मानकर भाजपा को अंतर्मुख होकर कुछ निर्णय त्वरित करने चाहिए। भाजपा गठबंधन को सन 2014 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता प्राप्त करनी हो तो भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को ऊपर उल्लेखित स्थिति पर गंभीरता से विचार कर भावनात्मकता के बजाय यथार्थवादी निर्णय करना चाहिए। ऐसा होने पर ही सन 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सत्ता परिवर्तन हो सकता है।
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