हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
दोहरी जंग

दोहरी जंग

by अजित राय
in कहानी, जुलाई -२०१४
0

रमेश आज बहुत खुश था। वह अपने कमरे में अखबारों का ढेर लगाए एक-एक कर सबको पलटने में मशगूल था। अखबारों में अपनी तस्वीरों को देख-देख कर मन ही मन वह इठलाए जा रहा था। आखिर आज वो क्यों न इठलाए? उस पर चारों ओर से खुशियों की बरसात जो हो रही थी। मां ने उसे एक महीने पहले बताया था कि उसकी शादी पड़ोस के गांव में तय कर दी गई है। आज गांव आने पर मां ने उसे देखने जाने की योजना बनाई थी, दोस्तों से लड़की की खूबसूरती की तारीफें तो बहुत सुनी थी, परंतु उसे साक्षात देखने का सुअवसर पहली बार मिलने वाला था। इस अहसास से ही उसके मन में रंगीन तरंगें हिलोरें मार रही थीं। परंतु उससे भी बड़ी खुशी तो वह थी, जिसके लिए वह आज सुबह से ही अखबारों का ढेर लगाए बैठा था। पिछले महीने सीमा पर उसके विशेष साहसिक प्रदर्शन के लिए उसे वीर चक्र प्रदान करने की घोषणा की गई थी। इस सूचना से ही पूरे जिले में खुशी की लहर दौड़ गई थी। चारों तरफ से बधाइयों का तांता लग गया था। रमेश के लिए भी तीन साल के कैरियर और मात्र 21 साल की उम्र में इतना बड़ा सम्मान प्राप्त होना किसी सपने सरीखा था। गांव आने पर कल जिला मुख्यालय पर कलेक्टर द्वारा सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में उसका सम्मान किया गया था, जिसे जिले के सभी समाचार पत्रों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। जिन्हें देखकर वह अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रह था। इन्हीं भावनाओं में डूबते उतराते रमेश की नजर कमरे की दीवार पर टंगी एक तस्वीर पर पड़ी। तस्वीर में उसके कंधों पर हाथ रखे मेजर समर सिंह दिखाई दे रहे थे। इस तस्वीर पर नजर पड़ते ही रमेश पुरानी यादों में खोता चला गया।

तीन साल पहले 18 साल की उम्र में उसे भारतीय सेना का हिस्सा बनने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। गांव के बहुत से लड़के सेना में थे और उसके जिले में सेना को लेकर बहुत क्रेज था। जिले में सेना की रैली भर्ती में वह भी कॉलेज से बंक मार दोस्तों के साथ पुलिस लाइन मैदान पहुंचने लग गया था दौड़ की लाइन में। कुछ जोश और कुछ नियमित अभ्यास का परिणाम एक-एक कर सारी परीक्षाएं पास करता गया। चयनित उम्मीदवारों को पत्र द्वारा सूचित करने की सूचना के साथ अधिकारी मुख्यालयों को प्रस्थान कर गए। एक-दो दिनों की चर्चा के बाद उसकी जिंदगी पूर्ववत चलने लगी। लगभग डेढ़ महीने बाद एक दिन रोजाना की ही तरह शाम को जब वह कॉलेज से घर पहुंचा, तो मां ने एक लिफाफा उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा; अरे सुन तेरे नाम से ये चिट्ठी आई है पढ़ तो क्या लिखा है? डाकिया बाबू मिठाई खिलाने को कह रहे थे। वह भी सोच में पड़ गया ऐसा क्या होगा इसमें? और मुझे चिट्ठी कौन भेजेगा? इसी उधेड़बुन में उलझे वह चिट्ठी खोलकर पढ़ने लगा। पत्र के एक-एक शब्द जैसे उसके तन-मन में उमंग की तरंगें भर रहे थे, उसकी खुशी धीरे-धीरे गोल बूंदों का आकार लेती आंखों से निकलकर गालों पर लुढ़कने लगी थी और वह खुशी के मारे मां से लिपट गया। मां बार-बार पूछ रही थी अरे बता तो सही चिट्ठी में क्या लिखा है, जिसके जवाब में उसकी जबान से सिर्फ एक ही बात निकल सकी- मां मैं सैनिक बन गया। यह शब्द सुनते ही मां ने उसके चेहरे को ऊपर उठाते हुए कहा- बेटा जी जान से देश की सेवा कर कुल-खानदान और जिले का नाम रोशन करना। खुशी में मां ने पूरे मोहल्ले में मिठाइयां बांटी। 15 दिनों बाद रमेश को ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना था। पिताजी उसके लिए नए-नए कपड़े, जूते लेकर आए। मां ने तो ढेर सारे लड्डू आदि बनाकर पहले ही बांध दिए थे। बाद में घी का एक बड़ा सा डिब्बा बैग में जबरी ठूंसते हुए बोली, रमेश खाने-पीने का बहुत ध्यान रखना, मजबूत रहेगा तभी तो देश के लिए लड़ेगा।

नियत समय पर वह ट्रेनिंग सेंटर पहुंच गया। अगले दिन सबको सुबह 6 बजे पीटी ग्रउंड में हाजिर होने को कहा गया। सुबह-सुबह रमेश भी बकायदा तैयार होकर ग्रउंड में पहुंचा। उसके अलावा बैच में कुल 80 लड़के थे। मैदान में सबका स्वागत कुछ जवानों के साथ-साथ आधा दर्जन नाइयों द्वारा हुआ, जिन्होंने एक-एक कर के सभी के बाल शहीद कर दिए। रमेश अपने प्यारे बालों को खोकर बहुत दुखी हुआ। परंतु सैनिक बनने के जुनून के आगे वो कुछ भी नहीं था। दोपहर में सबका सामना ट्रेनिंग इंचार्ज मेजर समर सिंह से हुआ। फिल्म अभिनेता संजय दत्त जैसा आकर्षक व्यक्तित्व एवं चेहरे पर खेलती मोहक मुस्कान ने हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया था। परंतु उससे भी आकर्षक था, उनका संबोधन जिसे सुनने के बाद सबके मन में देशप्रेम की भावना में गुणोत्तर उफान सा आ गया। शाम को कैंटीन स्टाफ से जानने को मिला कि मेजर समर सिंह को कारगिल विजय के दौरान शानदार युद्ध कौशल के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। परंतु एक खबर यह भी सुनने को मिली की वह ट्रेनिंग के दौरान अनुशासन को लेकर बहुत सख्त हैं। उन्हें पुराने रंगरूटों ने कसाई का नाम दे रखा था, परंतु आज उसने जो देखा समझा था, उसे देखकर तो उसे समर सिंह बेहद विनम्र व भावुक इंसान लगे थे। उसे इस बात पर जरा भी विश्वास नहीं हुआ। अगले दिन से सबकी ट्रेनिंग शुरू हो गई। सुबह 4 बजे ही जगकर ग्रउंड पहुंचना और घोड़े की तरह 10-10 कि.मी. भागना ऊपर से अन्य कसरतें। ऐसा लगता था जैसे सैनिक बनने नहीं, कोई सजा काटने आया हो, ऊपर से तथाकथित कसाई समर सिंह की सख्ती ने तो नाक में दम कर दिया था। उनके प्रति रमेश के पहले दिन के अनुभव पूरी तरह से गलत साबित हुए थे। बैच के सभी जवान मेजर को तरह-तरह की गालियां देकर अपनी भड़ास निकालते थे। कभी-कभी उसके मन में आता गांव भाग जाऊं परंतु सैनिक बनने का जुनून कदम रोक देता था। एक दिन वह जानबूझकर ग्राउंड पर नहीं गया और तबीयत ठीक न होने का बहाना बनाकर रूम पर ही रह गया। अगले दिन इस संतुष्टि के साथ मैदान पर पहुंचा कि चलो एक दिन तो आराम करने को मिला। निममित अभ्यास के बाद जब सब लोग कैंप लौटने लगे, तो मेजर ने रमेश को रोकते हुए पीठ पर 25 कि.मी. का वजन लादकर 5 कि.मी. की दौड़ लगाने की सजा सुना दी। उसके तो होश ही उड़ गए पर मरता क्या न करता। अगले दिन फिर यही सजा। शाम को वह मेजर समर सिंह को ढेर सारी गालियां देते हुए सो गया। थकावट के मारे नींद भी जल्द आ गई, पर रात भर शरीर दर्द से टूटता रहता था। सजा का यह दौर पांच दिनों तक चला और उसके बाद न केवल वह बल्कि किसी भी जवान ने मेजर के खिलाफ जाने की कोशिश नहीं की। ट्रेनिंग पूरा होने में अब केवल चंद दिन बचे थे कि रमेश को बुखार आने के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया। शाम को बुखार के चलते उसका शरीर तप रहा था और पूरा बदन टूट रहा था। उसे मां की बहुत याद आ रही थी। काश आज मां मेरे पास होती, इन्हीं खयालों में डूबे उसे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। रात के करीब दस बजे अपने सिर पर किसी के हांथों के अहसास ने उसकी नींद तोड़ दी। कमरे के हल्के प्रकाश में उस अजनबी को जानने के लिए वह आंखें खोलने की कोशिश कर ही रहा था तभी ‘आराम से सोए रहो’ की आवाज ने आंखें बंद रखने को मजबूर कर दिया। सहसा कानों में पड़ी इस आवाज ने उसे चौंका दिया, उसे विश्वास नहीं हो रहा था, कहीं वह सपना तो नहीं देख रहा था। क्या प्यार भरी यह आवाज मेजर समर सिंह की है? जिसको सुनते ही सबकी हालत पतली हो जाती थी। पर यह सच था सपना नहीं, जिससे इंकार किया जा सके। उस दिन मेजर साब दो-तीन घंटे उसके पास रुके। उन्होंने अपने हांथों से उसे दवाइयां खिलाईं। उनका एक सैनिक के प्रति यह प्यार देखकर रमेश का मन द्रवित हो उठा और वह अपने आपको कोसने लगा कि मैं मेजर साब को कितना गलत समझता था, कितनी गालियां देता था। जबकि पत्थर दिल दिखने वाले मेजर साब के दिल में प्यार का सागर भरा पड़ा था। वह हफ्ते भर में पूरी तरह ठीक होकर अस्पताल से छुट्टी पा गया। उसके ठीक होने में दवाओं से ज्यादा मेजर साब के प्यार और स्नेह का योगदान था। वे निममित रूप से सुबह-शाम उसको देखने आते और पूरी देखभाल करते। ट्रेनिंग पूरा होने के बाद सभी रंगरूटों को एक-एक महीने का छुट्टी मिली और सब अपने-अपने गांव रवाना हो गए। गांव पहुंचकर रमेश ने सबसे अपने अनुभव एवं ट्रेनिंग के किस्से सुनाए, जिसमें ज्यादातर मेजर साब के ही होते थे। वह सबसे कहता था कि मुझे मेजर साब की ही तरह बनना है।

छुट्टियां पूरी होने के बाद रमेश की पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर के पुंछ में हुई। पुंछ में आए दिन गोलाबारी होने की बातें उसने सुन रखी थी, जिसमें एक बार मन में डर सा लगा परंतु उसी पल मन में इस विचार के आते ही की तभी तो बहादुरी साबित करने का मौका मिलेगा, सारा डर काफूर हो गया। शाम ज्वाइनिंग के बाद जब उसे यह बात पता चली कि वह मेजर समर सिंह की बटालियन का ही एक हिस्सा है, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह तुरंत भागते हुए मेजर के पास जा पहुंचा। उन्होंने भी उसे गले से लगा लिया। वे अहसास आज भी उसके मन में उमंगे भर देता है। चूंकि मेजर साब और उसका मेस अलग-अलग था और ड्यूटी के समय वे बहुत सख्त हुआ करते थे, जिससे उनसे बात करने का बहुत कम ही मौका मिलता था। परंतु यहां जो सुनने को मिला वह ट्रेनिंग कैंप से बिल्कुल अलग था, यहां हर कोई उनकी तारीफ करता था। हर किसी पर मेजर साब पुत्रवत स्नेह रखते थे। वे हमेशा हंसते मुस्कराते रहते थे और दूसरों को भी खुश रखते थे। उनकी आवाज में जगजीत सिंह की गजलों को सुनने को हर कोई बेताब रहता था। वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी… उनकी पसंदीदा गजल थी। कभी-कभी मेजर साब से मुलाकात हो जाती थी, तो वह उनसे ढेर सारी बातें करता था। एक दिन उसने यूं ही पूछा सर आप ऐसे क्यों हैं? उन्होंने कहा-ट्रेनिंग में हमें बंदर जैसे उदंड युवा मिलते हैं जिनको हमें देशभक्त जवान बनाना होता है। जबकि यहां पर हमें जवान मिलते हैं, जिनको सिर्फ कर्तव्यबोध कराना होता है एवं देशप्रेम के जज्बे को प्रोत्साहित करना होता है। ऐसे ही एक-एक दिन बढ़ते रहे और रमेश को मेजर साब के बारे में ढेर सारी बातें जानने को मिलीं। वह उनका और वो उसके सबसे ज्यादा करीबी हो गए थे। वे उससे हमेशा एक दोस्त, एक भाई की तरह पेश आते थे। बटालियन के सभी लोग उन दोनों को देखकर कहते थे कि तुम दोनों पिछले जनम में जरूर बाप-बेटे थे। यह सुनकर उसे काफी अच्छा लगता था। मेजर साब की शादी करीब-करीब बारह साल पहले हुई थी। परंतु अब तक कोई संतान नहीं थी। घर में पत्नी के अलावा मां और एक छोटा भाई था जो अभी 10 वीं में पढ़ रहा था। मेजर साब की शादी के बाद शुरू के पांच-छह साल तो सब ठीक रहा, घर में खुशहाली रही। परंतु उसके बाद घर की खुशियों को जैसे किसी की नजर लग गई। मां और पत्नी में रोज किसी न किसी बात पर झगड़े होने लगे थे, भाई की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही थी, जिसके चलते उन्होंने उसे भी हॉस्टल में भर्ती करा दिया। मेजर साब जब कभी परेशान होते थे, तो रमेश को अपने बैरक में बुला लेते और उसके सामने अपने दिल का दर्द बयां करते थे। कभी-कभी तो वो रो भी पड़ते थे। उनकी मां और पत्नी के झगड़े ने उन्हें तोड़ सा दिया था। सबको खुश रखने वाले मेजर साब अपने परिवार के चलते इतने व्यथित हैं, यह जानकर रमेश को बहुत दु:ख हुआ। दुश्मनों की बटालियन को अकेले नेस्तनाबूत करने का जज्बा रखने वाले इंसान को उसके अपनों ने ही पस्त सा कर दिया था। कभी-कभी वे ये कहते-कहते बेहद भावुक हो जाते थे कि यार अब तो घर पर बात करने का मन ही नहीं करता, पर बात किए बिना रहा भी नहीं जाता। मां से बात करो तो पत्नी की शिकायत, पत्नी से करो तो मां की शिकायत और दोनों बस एक सुर अलापती रहती हैं इनके साथ अब मैं नहीं रह सकती। मेजर साब ने तो इन रोज-रोज के झगड़ों को रोकने के लिए अपनी सेलरी को भी तीन हिस्सों में बांट रखा था। एक मां को, एक पत्नी को और तीसरा अपना खर्च का निकालकर भाई को पढ़ाई के लिए भेजते थे। इसके बावजूद झगड़े कम होने का नाम नहीं लेते थे। एक दिन शाम को उन्होंने उसे अपने कमरे में बुलाया और पूछा रमेश दारू पीता है? उसने कहा नहीं साब जी होली पर बियर भले पी लेता हूं पर दारू नहीं पीता। उसकी बातों को अनसुना करते हुए उन्होंने कहा-तू एक काम कर कहीं से भी मेरे लिए दारू ला। यह बात सुनकर रमेश चौंक गया, क्योंकि मेजर साब छोटा नशा भी नहीं करते थे और दूसरों को भी करने से रोकते थे। रमेश ने थोड़ी देर इधर-उधर टहलने के बाद उनसे जाकर बोला साब जी नहीं मिल पाई। रमेश का जवाब सुनकर उनके चेहरे पर व्यंग्यात्मक हंसी खेल गई और वो बोले- मुझसे झूठ बोलता है, तू नहीं चाहता न कि मैं दारू पीऊं? वह चुपचाप सिर झुकाए सुनता रहा। एक तू ही तो है जो मेरा अपना है, मुझे सच्चा प्यार करता है। चल ठीक है, इधर आ एक बार गले लग जा, पता नहीं फिर तुझे गले लगाने का मौका मिले न मिले। उसे गले लगाकर वो काफी देर तक फफक-फफक कर रोते रहे और रात करीब 12 बजे उसके न चाहते हुए भी उसे सोने के लिए भेज दिया। सुबह-सुबह कोलाहल के चलते जब रमेश की नींद खुली तो कारण जानने के लिए वह उसी हालत में भागा-भागा भीड़ की दिशा में गया, जो मेजर साब के बैरक के बाहर लगी थी। वहां का हाल सुनते ही रमेश जड़ सा हो गया। मेजर साब ने अपने आपको गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। लाल खून बहकर फर्श पर जम सा गया था। उनके शव से थोड़ी दूरी पर तलाक के लिए भेजा गया एक कानूनी नोटिस पड़ा था, जिसमें बड़े ही निष्ठुर शब्दों में मेजर साब को नपुंसक बताकर अपनी पूरी जिंदगी बर्बाद करने का इल्जाम लगाते हुए उनकी पत्नी ने उनसे तलाक मांगा था। पारिवारिक तनाव और पत्नी की निष्ठुरता ने एक जवान को आज असमय काल को गले लगाने को मजबूर कर दिया था। इसी बीच किचन से आती मां की आवाज ‘अरे बेटा जल्दी से तैयार हो जा, बहू को देखने चलना है।’ मां की आवाज ने उसकी तंद्रा को तोड़ा। उसने डबडबाई आंखों से सामने पड़े अखबार को किनारे रखा, जो आंसुओं के टपकने से पूरी तरह गीला हो गया था। रमेश भारी मन से किचन की ओर बढ़ा। उस समय उसके मन मस्तिष्क में सिर्फ एक ही सवाल गूंज रहा था, क्या यह वही देश है, जहां नारियां अपनी चिंता से मुक्त करते हुए पति-पुत्र को देश सेवा के लिए तिलक लगाकर भेजती थीं? यह कैसी भारतीय नारियां हैं जो सीमा पर तैनात जवानों को दुश्मनों के साथ-साथ अपनों द्वारा पैदा की गई औचित्यहीन समस्याओं से भी एक सामांतर जंग लड़ने को मजबूर कर दे रही हैं? किचन में पहुंचकर वह मां के गले से लिपट फफक-फफक कर रो पड़ा, उसके आंसू मां के कंधे को भिगोने लगे। हतप्रभ मां अभी कशमकश में थी कि रमेश के रुंधे गले से निकली आवाज उनके कानों में पड़ी-मां, मैं शादी नहीं करूंगा।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: arthindi vivekhindi vivek magazineinspirationlifelovemotivationquotesreadingstorywriting

अजित राय

Next Post
यक्ष प्रश्न

यक्ष प्रश्न

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0