हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
इस हिंसा के असली दोषी

इस हिंसा के असली दोषी

by अवधेश कुमार
in विशेष
0

निस्संदेह गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजधानी दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के नाम पर हुई हिंसा के कारण पूरे देश में क्षोभ का माहौल है। लेकिन अगर आप कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर आंदोलन कर रहे नेताओं के बयान और तेवर देखिए तो आपका गुस्सा ज्यादा बढ़ जाएगा। इनमें से कोई भी इस हिंसा के लिए स्वयं को दोषी मानने को तैयार नहीं है। अभी भी दिल्ली पुलिस और सरकार को निशाना बनाया जा रहा है। ज्यादा से ज्यादा ये पंजाब के एक अभिनेता और एक दूसरे दूसरे नेता को इसके लिए दोषी ठहरा रहे हैं। वास्तव में यह सब अपनी जिम्मेदारी, अपने दोष से बचने की धूर्ततापूर्ण रणनीति है।
पूरा देश जानता है कि गणतंत्र दिवस के अवसर पर ट्रेक्टर परेड न निकालने के लिए सरकार ने अपील की, दिल्ली पुलिस ने भी कई प्रकार के कारण बताएं जिनके आधार पर कहा गया कि आप कृपया रैली ना निकालें, अनेक बुद्धिजीवियों- पत्रकारों ने अपने अपने अनुसार तर्कों से ट्रैक्टर परेड को अनुचित करार दिया…। बावजूद वे डटे रहे। इनका कहना था कि एक ओर अगर जवान परेड कर रहे होंगे तो दूसरी ओर किसान भी परेड करेंगे। दिल्ली पुलिस ने हिंसा और गड़बड़ी की आशंका भी जताई तथा कुछ रिपोर्ट भी बताए गए। ये टस से मस नहीं हुए। उन्होंने कहा कि हमारा ट्रैक्टर मार्च निकलकर रहेगा और निकाला। तो फिर हिंसा के लिए ये स्वयं को क्यों नहीं जिम्मेवार मानते?

ध्यान रखने की बात है कि आंदोलनरत 37 संगठनों ने बाजाब्ता हस्ताक्षर करके पुलिस के सामने कुछ वायदे किए थे। उदाहरण के लिए ट्रैक्टरों के साथ ट्रौलियां नहीं होंगी, उन पर केवल 3 लोग सवार होंगे, केवल तिरंगा और किसान संगठन का झंडा होगा, कोई हथियार डंडा आदि नहीं होगा, आपत्तिजनक नारे नहीं लगाए जाएंगे, पुलिस के साथ तय मार्गों पर  अनुशासित तरीके से परेड निकाली जाएगी आदि आदि। आपने देखा ट्रैक्टरों के साथ ट्रौलियां भी थी जिनमें डंडे, रॉड और अन्य सामग्रियां भी भरी थी। ट्रैक्टरों पर काफी लोग बैठे थे। आपत्तिजनक नारे भी  लग रहे थे। आखिर परेड में शामिल होने वाले लोग पुलिस के साथ किए गए वायदे का पालन करें इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी किसकी थी? जाहिर है, इन नेताओं ने प्राथमिक स्तर पर भी इसे सुनिश्चित करने की कोशिश नहीं की। ट्रैक्टर परेड में आने वाले लोगों को अगर ऐलान करके बताया जाता कि हमने ने पुलिस के साथ क्या-क्या वायदे किए हैं और उन सब का पालन करना हमारे लिए जरूरी है तो संभव है स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती। दूसरे, जब यह तय हो गया था कि गणतंत्र दिवस के परेड समाप्त होने यानी 12:00 बजे के बाद ही ट्रैक्टर परेड निकाली जाएगी। इसके विपरीत 8:30 बजे से ही ट्रैक्टर परेड निकालने की होड़ मच गई। जगह-जगह पुलिस को उनको रोकने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ रही थी।

तीन जगह से ट्रैक्टर परेड निकलना था- गाजीपुर, सिंधु और टिकरी। तीनों जगह यही स्थिति थी। क्या इन नेताओं का दायित्व नहीं था कि वे तय समय का पालन करते और करवाते? गणतंत्र परेड का सम्मान करना और करवाना इनका दायित्व था। परिणाम हुआ कि गाजीपुर से निकलने वाले परेड के लोगों ने अक्षरधाम, पांडव नगर पहुंचते-पहुंचते स्थिति इतनी बिगाड़ दी की पुलिस को आंसू गैस के गोले तक छोड़ने पड़े। उन्हें काफी समझाया गया कि अभी गणतंत्र दिवस परेड का समय है, आपका परेड 12:00 से निकलना है.. कृपया, अभी शांत रहें… जहां है वहीं रहें..। वे मानने को तैयार नहीं। इसमें पुलिस और सरकार कहां दोषी है?

विडंबना देखिए किसान नेता आरोप लगा रहे हैं कि दिल्ली पुलिस ने उन मार्गों पर भी बैरिकेट्स लगा दिए जो ट्रेक्टर परेड के लिए निर्धारित थे। राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस के दिन परेड संपन्न होने तक अनेक रास्तों को पुलिस हमेशा बंद रखती है। उन पर बैरिकेड लगाए जाते हैं। जब तक परेड अपने गंतव्य स्थान पर नहीं पहुंच जाता ये बैरिकेट्स नहीं हटाए जाते। सुरक्षा की दृष्टि से प्रत्येक लोग इसका पालन करते हैं। गणतंत्र दिवस परेड करीब 11:45 बजे खत्म हुआ। उसके बाद ही किसानों का ट्रैक्टर परेड निकल सकता था। ये पहले ही घुस गए और जगह-जगह से निर्धारित मार्गों को नकार कर दूसरे मार्गों पर भागने लगे। आखिर आईटीओ पर जबरन लुटियंस दिल्ली में घुसने की जिद करने का क्या कारण था? आईटीओ पर उधम मचाया गया, ट्रैक्टरों से पुलिस को टक्कर मारने की कोशिश हुई, उनका रास्ता रोकने के लिए जो बसें लगाई गई उनको एक साथ तीन-तीन चार-चार ट्रैक्टरों से मार-मार कर पलटने की कोशिश हुई, लाठी-डंडों रडों से उनके शीशे तोड़े गए। ऐसा लगा जैसे दिल्ली पुलिस बेबस लाचार खड़ी है। पुलिस आरम्भ में अनुनय विनय करती रही। पूरी दिल्ली में जगह-जगह ऐसा ही दृश्य था। ट्रैक्टर ऐसे चल रहे थे मानो वह कोई तेज रफ्तार से चलने वाली कारें हों। ट्रैक्टरों को तेज दौड़ा कर पुलिस को खदेड़ा जा रहा था। आम आदमियों को खदेड़ा जा रहा था। भयभीत किया जा रहा था। क्या यही अनुशासन का पालन है?

ये जानते थे कि लाल किला तीनों स्थलों के निर्धारित मार्गो में कहीं नहीं आता था। भारी संख्या में लोग लालकिले तक पहुंचे। वहां अंदर घुस कर किस ढंग से खालसा पंथ का झंडा लगाया गया, किस तरह  पुलिसवाले घायल हुए, कैसे लोगों को मारा पीटा गया, तलवारें भांजी गई यह सब देश ने देखा। इसे दोहराने की जरूरत नहीं है। गणतंत्र की झांकियों को भी नुकसान पहुंचाया गया। जहां से 15 अगस्त को प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं उस स्थल पर तोड़फोड़ की गयी। ये सारे कृत्य डरा रहे थे। खालसा पंथ का सम्मान संपूर्ण भारतवर्ष करता है, करेगा लेकिन लालकिले पर झंडा लगाकर वे देश और दुनिया को क्या संदेश देना चाहते थे? गणतंत्र दिवस के अवसर पर ऐसा करने का क्या औचित्य हो सकता था?

पूरा देश शर्मसार हुआ है। खालसा झंडा की जगह लाल किला नहीं हो सकता। इससे उसकी पवित्रता भी भंग हुई है। किंतु क्या इन सब की आशंका पहले से नहीं थी? क्या पुलिस ने आगाह नहीं किया था? क्या मीडिया ने नहीं बताया था कि किसान आंदोलन के नाम पर अनेक खालिस्तानी समर्थक तत्व अपना एजेंडा चला रहे हैं? पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के सजायाफ्ता हत्यारे की तस्वीरें लगाकर लंगर चलाई जाती थी। इनका पूरा विवरण अखबारों में छपा था। शहीद ए खालिस्तान नामक पुस्तक का वितरण हुआ जिसमें भिंडरावाले को महिमामंडित किया गया था। और तो छोड़िए पंजाब में लुधियाना के कांग्रेसी सांसद ने बताया कि खालिस्तान के नाम पर जनमत संग्रह 2020 का समर्थन करने वाले तत्व आंदोलन में शामिल हो गए हैं। उन्होंने अपराधी तत्वों के भी इसमें शामिल शामिल होने का आरोप लगाया। कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं था। किसान नेता उल्टे कहते थे कि हमको तो खालिस्तानी कहा जा रहा है, देशद्रोही कहा जा रहा है। वे पूछते थे कि क्या हम खालिस्तानी समर्थक और देशद्रोही हैं? जो वास्तविक किसान संगठन, वास्तविक किसान नेता और वास्तविक किसान हैं उनको किसी ने खालिस्तानी या माओवादी या अराजक हिंसक नहीं कहा था। लेकिन ऐसे तत्व उसमें शामिल थे। तो जो लोग इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं क्या उनको यह सब दिखाई नहीं पड़ रहा था? अगर दिखाई पड़ रहा था तो. इससे आंदोलन को अलग करने के लिए उन्होंने क्या कदम उठाए? ट्रैक्टर परेड शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो, अलगाववादी, हिंसक तत्व लाभ उठा कर गणतंत्र दिवस को गुंडा तंत्र दिवस में ना बदले इसके लिए इन्होंने क्या पूर्व उपाय किए?

देश इन सारे प्रश्नों का उत्तर चाहता है। आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं को देश को बताना चाहिए कि उन्होंने क्या-क्या कदम उठाए। सत्य यह है कि उन्होंने ऐसा कोई कदम उठाया ही नहीं तो बताएंगे क्या। वास्तव में निर्धारित समय और मार्गों का पालन न करने, बैरिकेडों को तोड़ने, पुलिस के साथ झड़प और अन्य गड़बड़ियों की शुरुआत सिंधु बॉर्डर से हुई लेकिन कुछ ही समय में टिकरी और गाजीपुर सीमा से भी ऐसी ही तस्वीरें सामने आने लगीह किसान नेता तीनों मार्गो पर कहीं भी परेड में शामिल नहीं दिखे। कायदे से इन सबको अपने क्षेत्रों में परेड के साथ या उसके आगे चलना चाहिए था। जाहिर है, इन्होंने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा। वैसे भी अगर कोई आंदोलन इस ढंग से हिंसा और अलगाववाद को अंजाम देने लगे तो उसकी जिम्मेदारी केवल उनकी नहीं होती जो ऐसा करते हैं बल्कि मुख्य जिम्मेवारी नेतृत्वकर्ताओं की ही मानी जाती है। आंदोलन का नेतृत्व आप कर रहे हैं, पुलिस को आप वचन देते हैं, सरकार से आप बातचीत करते हैं, मीडिया में आप बयान देते हैं, अगर यह परेड अहिंसक तरीके से संपन्न हो जाता तो उसका श्रेय आप लेते तो फिर देश को शर्मसार करने आतंक का वातावरण बनाने, इतने लोगों को घायल करने आदि का दोष भी आपके सिर जाएगा। कायदे से दिल्ली पुलिस को सबसे पहले इनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी। समय की मांग है कि इस आंदोलन को तुरंत समाप्त किया जाए। वैसे भी तीनों कृषि कानूनों का मामला इस समय उच्चतम न्यायालय में है।

वहां की समिति इस पर बातचीत कर रही है। उच्चतम न्यायालय फैसला देगा। देश में कृषि कानूनों का जितना समर्थन है उसकी तुलना में यह विरोध अत्यंत छोटा है। अगर कानून में दोष हैं तो उसके लिए सरकार ने स्पष्टीकरण देने और संशोधन करने की बात कही है। यही लोकतंत्र में शालीन तरीका होता है। दोनों पक्ष बातचीत करके बीच का रास्ता निकालते हैं। लेकिन इस आंदोलन को उस सीमा तक ले जाया गया जहां से बीच का रास्ता निकलने की गुंजाइश खत्म हो गई।  सारे बयान भाषण भड़काने वाले थे। आंदोलन में शामिल वांछित – अवांछित.. सभी प्रकार के लोगों के अंदर गुस्सा पैदा करने वाले थे। इस तरह की हठधर्मिता और झूठ का परिणाम ऐसा ही होता है। किसान नेता अब देश से क्षमा मांगे तथा स्वयं को कानून के हवाले करें। ऐसा नहीं करते तो फिर कानूनी एजेंसियों को ऐसा करना चाहिए।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #Delhi #TractorParadeOn26Janhindi vivekhindi vivek magazineselectivespecialsubective

अवधेश कुमार

Next Post
इन 5 योग से खत्म होगा घुटने का दर्द.

इन 5 योग से खत्म होगा घुटने का दर्द.

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0