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कश्मीरी पंडितों का पलायन : आखिर पंडितों को ही क्यों बनाया गया निशाना

कश्मीरी पंडितों का पलायन : आखिर पंडितों को ही क्यों बनाया गया निशाना

by हिंदी विवेक
in अध्यात्म, जीवन, ट्रेंडींग, राजनीति, व्यक्तित्व, समाचार.., संस्कृति, सामाजिक
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आज से करीब तीन दशक पहले कश्मीरी पंडितों ने अपनी इज़्ज़त और सम्मान को बचाने के लिए कश्मीर छोड़ दिया था। इन तीन दशकों में वैसे तो बहुत कुछ बदल गया। यह बदलाव ना सिर्फ देश में आया बल्कि कश्मीर में भी देखने को मिला। जम्मू कश्मीर से लद्धाख को अलग कर दिया गया और जम्मू कश्मीर भी अब केंद्र सरकार के हाथ में चला गया है। केंद्र सरकार ने सर्वमत से धारा 370 को खत्म कर दिया और जम्मू कश्मीर को पूरी तरह से देश का हिस्सा बना दिया लेकिन इस सब बदलाव के बाद भी कश्मीरी पंडित अब भी बिना किसी गलती की सजा काट रहे है। कश्मीरी पंडितों की दूसरी पीढ़ी तो सब कुछ समझ गयी है लेकिन तीसरी पीढ़ी अपने परिवार से यह सवाल बार बार पूछती है कि हमें किस लिए बाहर किया गया है और परिवार के बड़े बूढ़े इसका जवाब नहीं देते क्योंकि वह अपना दर्द अपने बच्चों को नहीं देना चाहते है।

देश का विभाजन जब हुआ था तो बहुत से लोगों के घर उजड़ गये थे और लोग दूसरे देश में जाकर शरणार्थी हो गये थे लेकिन यह विभाजन का फैसला दो नेताओं के बीच का था जिससे इसे सभी को स्वीकार करना पड़ा था लेकिन देश के विभाजन के करीब 42 साल बाद कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थी बना दिया गया और वह भी सरकार की सहमति के बिना ही। यह कोई विभाजन भी नहीं था यह तो किसी पर थोपा गया एक ऐसा आदेश था जिसका या तो पालन करना था या फिर अपनी इज़्ज़त, धन और जान सब गवाना था। जम्मू-कश्मीर की मस्जिदों से अचानक से यह ऐलान किया गया कि आप अभी यह राज्य छोड़ कर निकल जाएं आप का धन और जमीन यहीं छोड़ कर जाएं। इस त्रासदी को भूलना मुस्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है।
भारत के राष्ट्रीय नेताओं ने देश के विभाजन का विकल्प तो चुना लेकिन उसके तात्कालिक परिणामों का डट कर कभी सामना नहीं किया। देश की आजादी के बाद भी अंग्रेजी हस्तक्षेप पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ और ब्रिटेन से भारत के सुरक्षा मामलों और अंदरुनी कार्यों में हस्तक्षेप किया जा रहा था। अंग्रेजी सरकार अपने गवर्नर और भारत के प्रधानमंत्री के माध्यम से कश्मीर का भारत में विलय नहीं होने दिया। पाकिस्तान का भारत पर हमला भी अंग्रेजी सरकार की चाल थी और जब भारत विजय की तरफ था उस दौरान सेना को युद्ध विराम के लिए मजबूर किया गया। कश्मीर शुरु से ही भारत के लिए एक नासूर घाव था जो आजादी के 70 साल तक बना रहा। पाकिस्तान के विभाजन के बाद जम्मू कश्मीर में एक ऐसी सरकार को स्थापित करवाया गया जो सिर्फ एक परिवार के आधार पर चल रही थी। इस सरकार को ना लोकतंत्र में विश्वास था और ना ही भारत की धर्म निर्पेक्षता में। शेख अब्दुल्ला ने पाकिस्तान के साथ ना जाने का फैसला किया लेकिन सत्ता में आते ही सांप्रदायिक शासन स्थापित कर दिया और जम्मू कश्मीर को भारत से दूर रखने की कोशिश की। शेख अब्दुल्ला ने घाटी की जनता को लगातार भारत के खिलाफ भड़काने का काम किया और इसे पाकिस्तान में मिलाने की भी कई बार धमकी दी।
समय के साथ  साथ घाटी के हालात खराब होने लगे थे। पाकिस्तान ने सीमा पर करारी हार के बाद अब भारत को आतंकी गतिविधियों के जरिए परास्त करने का रास्ता अपनाना शुरु कर दिया था। इधर घाटी में सांप्रदायिकता पुस्तैनी राजनीतिक हाथों ने निकल कर आतंकवादी संगठनों के हाथों में जा रही थी। शेख अब्दुल्ला और जमाते इस्लाम के बीच भी टकराव लगातार बढ़ता जा रहा था। पाकिस्तान आतंकवाद को राजनीतिक रुप में इस्तेमाल करना शुरु कर दिया था और इसके द्वारा ही भारत को नीचा दिखाने की नापाक कोशिश भी जारी थी। भारत विरोधी आंदोलन को राजनेताओं को हाथों से छीन कर आतंकी संगठनों के हाथों में सौंपने की तैयारी को अंतिम रुप दिया जा रहा था और 1988 तक इन सभी नीतियों को जमीन पर उतारने की तैयारी भी हो चुकी थी। अब ऐसा समय आ चुका था जब आतंकी किसी ऐसी घटना को अंजाम देना चाहते थे जिससे भारत सरकार के लिए गंभीर स्थिति पैदा हो जाए और स्थानीय राजनीतिक नेताओं से लोगों का मोहभंग हो जाए और इसी दौरान घाटी के कश्मीरी पंडितों को आसानी से निशना बनाया गया। कश्मीरी पंडित ज्यादातर सरकारी नौकरी पर निर्भर थे क्यों कि विभाजन के बाद ना तो इनके पास जमीनें बची थी और ना ही कारोबार। कश्मीरी पंडितों को बाहर करने की वजह यह भी है कि यह लोग भारत समर्थित माने जाते है और अगर इन्हे पूरी तरह से कश्मीर से बाहर कर दिया जायेगा तो घाटी हिन्दू विहिन हो जायेगी और आतंकी संगठन इस पर का दावा भी कर सकेगें कि घाटी पर भारत सरकार का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। घाटी में कश्मीरी पंडितों को अपना शिकार बनाने से केंद्र सरकार का भी मनोबल कमजोर होगा और स्थानीय मुस्लिम समाज भी आतंकियों के साथ हो जायेगा।
सन 1989 के आखिरी महीनों में जब कोर्ट के जज नील कंठ गंजू और दूरदर्शन के निदेशक लस्सा कौल की हत्या की गयी तो कश्मीरी पंडितों में डर का माहौल पैदा होने लगा था और घाटी का मौसम ठीक वैसा ही हो रहा था जैसा की आतंकी संगठन चाहते थे। जम्मू कश्मीर में मस्जिद बनाने के बहाने कुछ कश्मीरी पंडितों को बेघर किया गया और उनके घर जला दिये गये यह घटना भी एक पूर्वाभास था और इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने हिन्दू मुस्लिम भाई चारे की दुहाई देते हुए आगे बढ़ने की कोशिश की लेकिन समय इसके बिल्कुल विपरीत था।आखिरकार वह रात भी आ गयी जब 19 जनवरी 1990 को पोस्टर और लाउडस्पीकर से यह बता दिया गया कि जितने भी कश्मीरी पंडित हैं वह तुरंत से घाटी छोड़ दें। वैसे इस्लाम में काफिर को या तो कलमा पढ़ने के लिए मजबूर कर दिया जाता है या फिर उसे मार दिया जाता है लेकिन घाटी में तीसरा विकल्प भी दिया गया और वह था भागने का विकल्प। मस्जिदों से ऐलान होने लगा कि जल्द से जल्द घाटी को छोड़ दें अन्यथा उनकी मौत निश्चित है। काफिर इस ऐलान को सिर्फ एक सामान्य ऐलान ना समझें इसलिए करीब करीब सभी गलियों में एक एक कश्मीरी पंडित को मार कर उसकी लाश फेंक दी गयी और यह संदेश दे दिया गया कि अगर घाटी छोड़ने में देरी होगी तो यही परिणाम होगा।
निराश और डरे हुए अल्पसंख्यक लोग रातों रात घर छोड़ने को मजबूर हो गये। इस दौरान घर का पैसा और बेटी दोनों बचाना बहुत मुश्किल हो गया था लेकिन लोगों ने अपना पूरा सामर्थ लगा दिया कुछ लोग बचाने में सफल हुए लेकिन कुछ लोगों को अपना सब कुछ गवाना पड़ा। यह वह मनहूस रात थी जब कश्मीरी पंडितों की कोई भी मदद करने वाला नहीं था। स्थानीय नेता, प्रशासन, समाजसेवी और केंद्र सरकार हर किसी ने अपनी निगाहें नीची कर ली थी। आखिरकार भगवान भरोसे सभी लोगों ने अपना अपना पुस्तैनी घर छोड़ दिया और किसी अंजान जगह को अपना घर बनाया। घाटी छोड़ने के बाद ज्यादातर लोग दिल्ली पहुंचे थे क्योंकि उन्हे सरकार से मदद की उम्मीद थी। इस घटना को करीब 30 साल से अधिक का समय बीत चुका है और अब इसमें से ज्यादातर लोग नौकरी के चलते देश के अलग अलग स्थानों में शिफ्ट हो चुके है और कुछ ऐसे भी है जिन्होने विदेशों में अपना घर बना लिया है लेकिन इन सभी के मन में आज भी एक ही सवाल है कि आखिर वह कब अपने गांव जा सकेंगे।
केंद्र की मोदी सरकार ने घाटी से धारा 370 को खत्म कर दिया और जम्मू कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश हो चुका है जिससे अब कोई भी दूसरे राज्य का व्यक्ति घाटी में कहीं पर जमीन या घर खरीद सकता है। केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद अब कश्मीरी पंडितों में यह आस फिर से जगी है कि वह अपनी घर वापसी कर सकते है।

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