फिर जरा मुस्कुराइये

हिंदी सिनेमा के 108 वर्ष के इतिहास में यूं तो सैकड़ों अभिनेता-अभिनेत्रियां हुए हैं जिन्होंने अपने अभिनय से हिंदी फिल्मों में हास्य को जीवित रखा। ये ऐसे लोग थे जिनका चेहरा याद आते ही आदमी मुस्कुरा देता था। हास्य का यह रूप समय के साथ बदलता रहा है।

नाट्य शास्त्र के प्रमुख रसों में एक रस है हास्य रस। कहते हैं कि संसार में यदि सबसे कोई कठिन कार्य है तो वह है किसी को हंसाना। भारत में सिनेमा की शुरुआत 1913 में राजा हरिश्चंद्र से हुई। खामोश फिल्मों को आवाज़ 1931 में मिली जब पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ का प्रदर्शन 14 मार्च को हुआ। सिनेमा की शुरुआत में जिस तरह के विषय लिए गए वह अधिकतर भारतीय समाज में प्रचलित कथा कहानियों एवं साहित्य से प्रभावित रहे। संस्कृत नाटकों, लोक कथाओं आदि में अपने अभिनय से हास्य बिखेरने का कार्य करने वाले अभिनेता का परिचय, विदूषक, भांड के तौर पर ही होता था। विश्व सिनेमा में अमेरिकी अभिनेता की स्टोन कॉप्स एवं चार्ली चैप्लिन की फिल्मों का लोगों को हंसाने में अद्भुत योगदान रहा है। भारत में भी मूक फिल्मों के समय से ही हास्य अभिनेता को एक प्रमुख स्थान मिला।  भारतीय सिनेमा के आरंभिक समय के कुछ प्रसिद्ध अभिनेताओं में दीक्षित, घौरी, गोप, याकूब, नूर चार्ली, भगवान दादा आदि के नाम शामिल हैं जिनको देखते ही लोगों के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती थी।

हिंदी सिनेमा के 108 वर्ष के इतिहास में यूं तो सैकड़ों अभिनेता (स्त्री-पुरुष) हुए हैं जिन्होंने अपने अभिनय से हिंदी फिल्मों में हास्य को जीवित रखा। हिंदी सिनेमा में मुख्य कहानी के साथ हास्य का भी एक ट्रेक साथ-साथ चलता था। अक्सर हास्य अभिनेता नायक का दोस्त या फिर नौकर दिखाया जाता था। यह कलाकार ना केवल फिल्म में हास्य उत्पन्न करता था, वक्त आने पर उसके पात्र के माध्यम से कोई संदेश भी दर्शकों को दिया जाता है। आज हम कुछ ऐसे ही उल्लेखनीय हास्य अभिनेताओं की बात करते हैं।

सबसे पहले हम बात करते हैं टुनटुन की। टुनटुन को पहली महिला हास्य अभिनेत्री भी माना जाता है। टुनटुन का वास्तविक नाम उमा देवी था। अपने फिल्मी सफर की शुरुआत तो उन्होंने एक गायिका के रुप में की थी और नौशाद साहब के संगीत निर्देशन में कई कालजयी गीत उन्होंने गाए थे। उनका गाया गीत ‘अफसाना लिख रहीं हूं दिले बेकरार का’ आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों पर छाया है। गायिका के रूप में लोकप्रियता में कमी होने के बाद उन्होंने नौशाद साहब की सलाह पर फिल्म ‘बाबुल’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा। उनकी लोकप्रियता इतनी थी की वास्तविक जीवन में किसी भी हृष्ट-पुष्ट महिला को लोग टुनटुन कह कर संबोधित करते थे।

अगर हम पुरुष हास्य अभिनेताओं की बात करें तो सबसे पहले नाम आता है जॉनी वाकर का। जॉनी वाकर का असली नाम था हाजी बदरुद्दीन काजी। मुंबई में बस कंडक्टर से अभिनेता बने जॉनी वाकर की लोकप्रियता का आलम ये था कि उनके नाम से ही एक फिल्म का निर्माण भी किया गया जिसमें उन्होंने मुख्य अभिनेता की भूमिका निभाई थी। प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता, निर्देशक गुरुदत्त उन्हें अपनी फिल्मों की सफलता की गारंटी मानते थे। उनके नाम से ही टिकट खिड़की पर लोगों की भीड़ लग जाती थी। उनके ऊपर अनेक लोकप्रिय गीत फिल्माए गए।

इसके बाद हास्य अभिनेता के रुप में अगर किसी ने सफलता के शिखर को छुआ तो वो थे महमूद। महमूद अपने समय में बड़े बड़े हीरो को टक्कर देते थे। कहते हैं कि कई बड़े सितारे ऐसे भी थे जो उनके साथ काम नहीं करना चाहते थे क्योंकि उनको लगता था कि महमूद उन्हें खा जाएंगे। महमूद ने आगे चलकर कई फिल्मों का निर्माण निर्देशन भी किया। फिल्म कुंआरा बाप में उन्होंने अपने संवेदनशील अभिनय से लोगों को खूब रुलाया। उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में पड़ोसन, बॉम्बे टू गोवा, दो फूल, भूत बंगला आदि शामिल हैं।

हास्य कलाकारों की अगर बात करें तो किशोर कुमार का नाम स्वयं ही होठों पर आ जाता है। भारतीय सिनेमा में उनकी तरह बहुमुखी प्रतिभा का कलाकार कोई ओर नहीं हुआ है। निर्माता, लेखक, निर्देशक, अभिनेता, गीतकार, संगीतकार, संपादक किशोर कुमार सिनेमा की सभी विधाओं में पारंगत एवं दर्शकों द्वारा स्वीकार्य थे। चलती का नाम गाड़ी, हाफ टिकट, बढ़ती का नाम दाढ़ी, पड़ोसन, साधु और शैतान जैसी अनेकों फिल्मों में उन्होंने अपने हास्य अभिनय से लोगों को आनंदित किया है। अपने व्यक्तिगत जीवन में भी उनकी छवि एक मसखरे सी थी। उनकी शरारतों से उनके सह कलाकारों के साथ उनकी सह गायिकाएं भी परेशान रहती थीं। उन्होंने भारतीय सिनेमा के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना के करियर को शिखर पर पहुंचाने में उल्लेखनीय योगदान दिया था। आज उन्हीं के गाए गीतों ने आज भी राजेश खन्ना को उनके प्रशंसकों के बीच जीवित रखा है।

अपनी हास्य भूमिकाओं में भारतीय सिनेमा की मुख्य अभिनेताओं ने भी समय-समय पर अपने हाथ आजमाएं हैं। राजकपूर ने अपनी सिनेमाई छवि का निर्माण चार्ली चैप्लिन के किरदार पर किया। उनके द्वारा निर्मित, निर्देशित फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ एक हास्य कलाकार की संवेदनाओं का उत्कृष्ट चित्रण है। इसके अतिरिक्त सभी बड़े अभिनेताओं ने समय-समय पर हास्य को अपने अभिनय का हिस्सा बनाया। ट्रेजेडी किंग के नाम से प्रसिद्ध दिलीप कुमार ने भी राम और श्याम, गोपी जैसी फिल्मों में हास्य के रंग बिखेरे।

इसके अतिरिक्त मुकरी, जगदीप, असरानी, देवेन वर्मा, उत्पल दत्त, राकेश बेदी जैसे अनेकों अभिनेताओं ने सिनेमा प्रेमियों का मनोरंजन अपने अभिनय से किया।

कई ऐसे अभिनेता भी हुए जो मूल रूप से हास्य कलाकार नहीं थे, लेकिन जब उन्होंने इस क्षेत्र में हाथ आजमाया तो भी सफलता हासिल की। कादर खान, परेश रावल, अमरीश पुरी, शक्ति कपूर आदि कुछ ऐसे अभिनेता रहे हैं जो मूलत: खलनायक के किरदार निभाते थे लेकिन अपनी हास्य भूमिका में भी सराहे गए।

आज के प्रमुख हास्य कलाकारों का अगर उल्लेख किया जाएगा तो उसमें राजपाल यादव का नाम अवश्य लिया जाएगा। छोटे कद के राजपाल यादव बड़े कद के कलाकार हैं। ‘मुंगेरी के भाई नौरंगी’ से अपने अभिनय के जलवे बिखेरने वाले राजपाल ‘प्यार तूने क्या किया’ से हिंदी फिल्मों में छा गए। हंगामा, चुप चुप के, फिर हेराफेरी, ढोल, गरमा मसाला जैसी फिल्मों ने उन्हें सफलता के शिखर पर बिठा दिया। ये भी ऐसे कलाकार हैं जिनके लिए विशेष तौर पर किरदार गढ़े गए।

आज हिंदी सिनेमा को अनेक प्रतिभाशाली अभिनेता हैं जो अपने अभिनय से लोगों के जीवन में खुशियां बिखेर रहें हैं। सिनेमा के पर्दे पर पंकज त्रिपाठी, संजय मिश्रा, कपिल शर्मा, सुनील ग्रोवर जैसे अनेक प्रतिभाशाली कलाकार अपने अभिनय का जादू बिखेरते नज़र आते हैं। इन अभिनेताओं के साथ विशेष बात ये है कि फिल्मकार इनके लिए विशेष भूमिकाएं लिखने का जोखिम उठा रहें हैं और इनकी फिल्मों की सफलता उनके जोखिम को सार्थक सिद्ध कर रही है।

यहां बिहारवासी पंकज त्रिपाठी का उल्लेख करना आवश्यक लगता है। 2004 में ‘रन’ एवं ‘ओंमकारा’ से अभिनय के क्षेत्र में उतरने वाले पंकज त्रिपाठी की सफलता का सफर संघर्षों से भरा रहा। 2012 में प्रदर्शित ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से उन्हें पहचान मिली। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पंकज के चेहरे को देखकर लोग सिनेमा देखने जाते हैं। हाल ही में प्रदर्शित ‘कागज़’ में उन्होंने मुख्य भूमिका निभायी है। स्त्री, न्यूटन, गुंजन सक्सेना, शकीला, लूडो उनकी अन्य उल्लेखनीय फिल्में हैं।

एक अलग तरह के अभिनेता हैं संजय मिश्रा। उनको पर्दे पर देखना एक सुखद अनुभव होता है। उनकी कॉमिक टाइमिंग, किरदारों का प्रस्तुतिकरण रोचकता से भरा हुआ होता है। 1995 में ‘ओह डार्लिंग ये है इंडिया’ से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत करने वाले संजय मिश्रा का फिल्मी सफर तमाम उतार चढ़ावों से भरा रहा। धमाल, गोलमाल, मसान, आंखों देखी, कामयाब, कड़वी हवा आदि संजय की उल्लेखनीय फिल्में हैं।

एक लेख में सभी के साथ न्याय करना या फिर उनका उल्लेख करना संभव नहीं है, ऐसे अनेकों और भी कलाकार हैं जिनका फिल्मी सफर शिखर पर नहीं पहुंचा लेकिन उन्होंने समय-समय पर अपने निभाए किरदारों से हमारा दिल जीत लिया था परंतु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि अगर आप आंख बंद करके इन सब कलाकारों का स्मरण करेंगे तो आपके चेहरे पर स्वयं मुस्कान आ जाएगी और यही तो इनकी सफलता है।

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