कौन थे बाबा फूलासिंह, जिन्होने पेशावर पर लहाराया था भगवा ?


14 मार्च 1823 को बाबा फूला सिंह की शहादत की वजह से ही पेशावर पर भगवा लहराया था। महाराजा रणजीत सिंह के साथ बाबा फूला सिंह ने बड़ी लड़ाई लड़ी और अपने जीवन का बलिदान कर यह लड़ाई जीत ली। दरअसल जब अफगानी मुगल आजम खान की सेना ने बलपूर्वक पेशावर पर कब्जा कर लिया तब महाराजा रणजीत सिंह की चिंता बढ़ गयी क्योंकि आजम खान लगातार आगे बढ़ता चला आ रहा था। पेशावर पर कब्जा करने के बाद आजम खान नौशेरा के मैदान तक पहुंच गयी थी तब महाराजा रणजीत सिंह ने हरिसिंह नलवा और दीवान कृपा राम के सहयोग से सिखों की एक बड़ी फौज तैयार की और आजम खान का मुकाबला करने के लिए भेज दिया। उधर बाबा फूला सिंह अटक नदीं के किनारे दुश्मनों से लोहा लेने के लिए मौजूद थे लेकिन इसकी सूचना जैसे ही दुश्मनों को लगी उन्होने अटक नदीं पर बने एक मात्र पुल को उडा दिया जिससे महाराजा रणजीत सिंह की सेना आजम खान तक पहुंचने में नाकाम हो गयी। 

 
अटक नदी पर बना पुल टूटने के बाद राजा ने सेना को नावों से पुल बनाने का आदेश दिया लेकिन तभी महाराजा रणजीत सिंह को गुप्तचर ने खबर दी कि नदी के उस पार सेना की टुकड़ी को आजम खान के सैनिकों ने घेर लिया है। राजा को यह समझते देर नहीं लगी कि अब अगर देर किया तो हमारी सेना मारी जायेगी। राजा ने बाबा फूला सिंह की तरफ देखा और आगे बढ़ने का इशारा किया। बाबा फूला सिंह ने बिना एक पल गवाएं ही अपने बहादुर सैनिकों के साथ घोड़े को नदी में उतार दिया और नदी की धारा को चीरते हुए दुश्मनों पर हमला बोल दिया।
पेशावर की धरती पर आजम खान और सिख सैनिकों के बीच लड़ाई शुरु हो गयी, बाबा फूला सिंह लगातार सैनिकों का मनोबल बढ़ा रहे थे। सिख सैनिक पूरी ताकत से अफगानी सैनिकों पर टूट पड़े और जहांगीर के किले को अपने कब्जे में ले लिया। उधर अफगानी सेनापति मुहम्मद खान लुण्डा अपने करीब 30 हजार सैनिकों के साथ सिख सैनिकों को रोकने की पुरजोर कोशिश करना रहा लेकिन वह सफल नहीं हुआ। युद्ध की गंभीरता को देखते हुए महाराजा रणजीत सिंह ने अपने और भी सैनिक पेशावर के लिए रवाना कर दिये।

‘जो बोले सो निहाल सत श्री अकाला’ यह कह कर जब सिख सैनिक दुश्मनों पर टूट पड़े तो दुश्मन ‘या खुदा, या खुदा’ कह कर भागने लगे। दोनों तरफ से तलवारें चल रही थी। सिख सैनिक पूरी ताकत से दुश्मनों को काट रहे थे। बाबा फूला सिंह लगातार दुश्मन को काट रहे थे और सैनिकों को उत्साहित कर रहे थे, इस दौरान ही फूला सिंह दुश्मनों की नजर में आ गये जिसके बाद उन्हे निशाना बनाते हुए दुश्मन नें उन्हे पहली गोली मारी जिससे बाबा फूला सिंह की तलवार रुक गयी और लड़खड़ाने लगे। कई सिख सैनिक उन्हे बचाने के लिए दौड़े लेकिन बाबा ने मना कर दिया और कहा कि तुम्हारा काम युद्ध लड़ना है मुझे बचाना नहीं, मैं रहूं या ना रहूं लेकिन तुम्हे पेशावर पर भगवा लहराना है। बाबा फूला सिंह अपनी बात खत्म कर भी नहीं पाये थे कि अफगानी सैनिकों ने उन पर एक के बाद एक कई गोलिया चला दी जिससे वह युद्ध में ही शहीद हो गये। 
 
 
बाबा फूला सिंह की मौत के बाद सिख सैनिक पूरी ताकत से दुश्मन पर टूटे और उन्हे भागने पर मजबूर कर दिया। हर तरफ लाशें ही लाशें नजर आने लगी। बाबा फूला सिंह की शाहदत रंग लाई और जल्द ही सिख सैनिक पेशावर पर भगवा लहराने में सफल हो गये। हमारे देश में कई ऐसे महान योद्धा थे जिन्होने अपने धर्म और देश के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी लेकिन उन्हे बहुत की कम लोग जानते है। बाबा फूला सिंह इन्ही लोगों में से एक है। 
 

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