शहीद दिवस: आखिर अंग्रेजों के निशाने पर क्यों थे भगत सिंह?

देश की आजादी में लाखों लोगों ने अपना योगदान दिया है जिसमें से कुछ को दुनिया जानती है और कुछ को नहीं, कुछ लोगों को देश का बड़ा राष्ट्रभक्त कहा गया जबकि कुछ गुमनाम ही रह गये। यह कहना गलत नहीं होगा कि उस समय भी राजनीति हुई और तमाम देशभक्तों के बलिदान को दबा दिया गया। देश के प्रति सभी का बलिदान सराहनीय रहा है यह ना तो कम होता है और ना ही ज्यादा। समय के मुताबिक सभी ने अपना अपना योगदान दिया कोई हिंसा के रास्ते पर चल कर देश को आजाद कराना चाहता था क्योंकि उनका मानना था कि अंग्रेज अहिंसा की बात नहीं समझे है जब कुछ लोग अहिंसा के रास्ते देश को आजादी दिलाना चाहते थे। 
 
देश की आजादी के रास्ते को लेकर मतभेद था लेकिन मंजिल सभी की एक ही थी कि भारत देश फिर से आजाद हो और यहां का हर नागरिक गुलामी से मुक्त हो। देश के लिए अपनी जान तक कुर्बान करने वाले वीर सपूतों को हम आज भी याद करते है और आने वाली पीढ़ी को यह बताना चाहते है कि जो आजादी को आप अपना अधिकार बताते है वह किसी के जीवनदान के बाद मिली है इसलिए इसकी कद्र करें और हमेशा देश के प्रति प्रेम और भाव को बनाए रखें। आज के दिन यानी 23 मार्च को मां भारती के वीर सपूत सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दी थी जिसकी याद में हम 23 मार्च को शहीद दिवस के रुप में मनाते है। 
 
भगत सिंह एक क्रांतिकारी थे और उनका आजादी का तरीका महात्मा गांधी से बिल्कुल अलग था, भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी भाइयों का बदला लेने के लिए कई अंग्रेज अधिकारियों को जान से मार दिया जिसके बाद से अंग्रेजी सरकार में दहशत हो गयी। भगत सिंह ने लाहौर में सांडर्स को गोली मार दी थी जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी थी। सांडर्स की हत्या भगत सिंह का बदला था क्योंकि लाला लाजपत राय की जिस लाठीचार्ज के दौरान मौत हुई थी उस लाठीचार्ज का आदेश सांडर्स ने ही दिया था जिसके बाद भगत सिंह और राजगुरु ने सांडर्स को गोली मार दी। 
 
अंग्रेजी सरकार सन 1929 में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल ला रही थी। यह बिल भारतीयों के लिए काफी खतरनाक था जिससे इसका विरोध शुरु हो गया लेकिन सरकार पीछे हटने के मूड में नजर नहीं आ रही थी। इस बिल के द्वारा क्रांतिकारियों को खत्म करने की तैयारी थी जिसके बाद क्रांतिकारियों की तरफ से असेंबली में बम फेंक इसका विरोध करने की तैयार की गयी। भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंका लेकिन इससे कोई हताहत नहीं हुआ। बम फेंकने के पीछे मकसद सिर्फ विरोध करना था। असेंबली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 
 
असेंबली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर पर केस चला लेकिन अंग्रेजी सरकार भगत सिंह के पीछे थी। उसी समय जेल में सुखदेव और राजगुरु भी बंद थे जिसके बाद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर सांडर्स की हत्या का भी केस चलाया गया और 7 अक्टूबर 1930 को तीनों को फांसी की सजा सुनायी गयी। कोर्ट ने तीनों को 24 मार्च को फांसी देने का दिन तय किया था लेकिन भगत सिंह की लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेजी सरकार को इस बात का डर था कि कहीं फांसी वाले दिन पूरे देश में बवाल ना हो जाए इसलिए उन्होने 23 मार्च शाम को ही भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर लटका दिया गया। 
 
देश के लिए अपने जान की बाजी लगाने वालों को शहीद का दर्जा दिया जाता है। देश के लिए शहीद होना गर्व की बात होती है। भारत जब गुलाम था तब से आज तक बहुत से वीरों ने अपने प्राण देश के लिए गवाएं है इसलिए पूरे साल में कई बार शहीद दिवस मनाया जाता है। एक वर्ष के दौरान कुल 5 बार शहीद दिवस मनाया जाता है जिसमें रानी लक्ष्मीबाई से लेकर भारतीय सेना तक के जवानों को शामिल किया गया है। 
 
शहीद दिवस
30 जनवरी महात्मा गांधी 
23 मार्च भगत, सुखदेव व राजगुरु
21 अक्टूबर पुलिस शहीद दिवस 
17 नवंबर लाला लाजपत राय 
19 नवंबर रानी लक्ष्मीबाई

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