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दशकों बाद मनायी जायेगी कुछ अलग वाली होली!

दशकों बाद मनायी जायेगी कुछ अलग वाली होली!

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, राजनीति, विशेष, सामाजिक
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हिन्दी फागुन (फाल्गुन) महीना शुरु होने के साथ ही होली का खुमार तेजी से बढ़ने लगता है। वैसे तो होली का त्यौहार सिर्फ दो दिन का होता है पहला दिन होलिका दहन और दूसरा दिन होली लेकिन इस त्यौहार की इतनी महत्ता है कि यह पूरे महीने तक खेला जाता है। उत्तर भारत के कुछ गावों में तो इसे पूरे महीने तक खेला जाता है। अगर फागुन महीने में कोई रिश्तेदार घर पर आता है तो उसे रंगों से सराबोर कर देते है। होली प्यार और रंगों का त्यौहार है इस त्यौहार के दौरान सभी लोग एक दूसरे के साथ पुराने भेदभाव मिटाकर रंग लगाते है। होली की शुरुआत तो भारत देश से हुई थी लेकिन यह धीरे धीरे विश्व के बाकी देशों तक पहुंच चुका है। अब विदेशों में भी होली बड़े रुप में मनायी जाती है।

हिन्दु त्यौहारों की अपनी एक अलग मान्यता होती है और करीब सभी त्योहार धार्मिक मान्यताओं से बधें होते है इतना ही नहीं हिन्दू त्यौहारों और मान्यताओं के पीछे वैज्ञानिक कारण भी होते है जो हमारे जीवन के लिए सकारात्मक होते है। होली का पर्व कितना पुराना है इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसका वर्णन नारद पुराण और भविष्य पुराण में भी है। होली को लेकर कई कथाएं है लेकिन जो सबसे अधिक चर्चित है वह है प्रहलाद की कथा।

प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस था जो अधिक बलशाली होने की वजह से खुद को ही ईश्वर मानता था उसने अपने राज में ईश्वर की पूजा करने पर रोक लगा दी थी लेकिन बलशाली राक्षस का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु की पूजा करता था जो हिरण्यकश्यप को रास नहीं आ रहा था। हिरण्यकश्यप ने तमाम तरफ से अपने पुत्र को प्रताड़ित किया लेकिन प्रहलाद ने अपनी भक्ति नहीं छोड़ी जिसके बाद बलशाली राक्षस ने अपने पुत्र को आग में जलाने का प्रयास किया। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था इसलिए होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ गयी लेकिन इस बार होलिका जल गयी और प्रहलाद बच गया। इस घटना के बाद से ही होलिका दहन का मनाया जाने लगा क्योंकि यह सत्य की असत्य पर जीत थी। धर्म की अधर्म पर जीत थी।

होलिका दहन के बाद से ही हिन्दी वर्ष का नया साल भी शुरू हो जाता है। होलिका दहन के साथ ही नयी फसल का आगमन होता है। होलिका में अधपके अन्न की बाली को भी चढ़ाया जाता है और उसे प्रसाद के रूप में पूरा परिवार ग्रहण करता है। होलिका दहन के दिन पूरे परिवार को सरसों पीस (बुकवा) कर लगाया जाती है ऐसा कहा जाता है कि इसके लगाने से पूरे परिवार की दरिद्रता खत्म हो जाती है।

होली का त्यौहार दशकों से मनाया जा रहा है लोग पूरे साल से होली की तैयारी करते है और हम कर इसका लुत्फ उठाते है लेकिन इस बार की होली हर बार की तरह नहीं होने वाली है क्योंकि कोरोना नामक वायरस की वजह से इस बार सब कुछ बंद है। कुछ राज्यों में तो सरकार ने होली खेलने और होलिका दहन पर भी रोक लगा दी है। कोरोना वायरस के दौरान सभी को एक दूसरे से दूरी बनाना अनिवार्य है जबकि होली एक ऐसा त्यौहार जिसमें रंग लगाने के लिए एक दूसरे को छूना पड़ता है इस लिहाज से होली को लेकर सरकार ने कुछ गाइडलाइन जारी कर दी है।

इस साल सभी को कोविड वाली होली खेलनी होगी यानी कि बिना छुए ही आप को इस त्यौहार को मनाना होगा। इस बार आप होली के दिन सिर्फ लोगों से बात करें और घर पर ही होली खेलें। घर पर अच्छे पकवान बनाकर भी आप होली मना सकते है। बाहर निकलने और किसी को गले लगाने से बचें साथ ही लोगों को छूने से बचें क्योंकि यह सब आप की जीवन को खतरे में डाल सकते है। हिन्दी विवेक भी आप सभी से यह निवेदन करता है कि होली के दिन बाहर ना निकलें और खुद को सुरक्षित रखें।

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