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कलात्मक अराजकता  पर अदालत भी सख्त

कलात्मक अराजकता पर अदालत भी सख्त

by अनंत विजय
in अप्रैल -२०२१, फिल्म, सामाजिक
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ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री को लेकर अब एक दिशानिर्देश जारी कर दिया है लेकिन इस दिशानिर्देश में न तो सजा का प्रावधान है और न ही किसी प्रकार के दंड का। सर्वोच्च अदालत ने इस पर कड़ी टिप्पणी की है, इसलिए सरकार की ओर से अब पुनर्विचार किया जा रहा है।

पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने ओटीटी (ओवर द टॉप) प्लेटफॉर्म पर दिखाए जाने वाले कंटेंट को लेकर बेहद सख्त टिप्पणी की है। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा कि सरकार जिस तरह के दिशानिर्देश लेकर आई है वे नख दंत विहीन हैं। अदालत ने बेहद सख्त लहजे में सरकार को कहा कि वह कोर्ट के सामने ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देशों को पेश करें। उनके मुताबिक ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखाई जाने वाली सामग्रियों में संतुलन की बेहद आवश्यकता है। अदालत की टिप्पणियों से ऐसा प्रतीत होता है कि वह इन प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील सामग्रियों को दिखाने को लेकर बेहद नाराज हैं। अदालत की ये टिप्पणियां तब आईं जब वह अमेजन प्राइम वीडियो की भारत प्रमुख अपर्णा पुरोहित की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

दरअसल पिछले दिनों कुछ ऐसा घटा है जो मनोरंजन की दुनिया की दशा और दिशा दोनों बदल सकता है। पुलिस ने वेब सीरीज ‘तांडव’ में आपत्तिजनक कंटेंट को लेकर दर्ज कराए गए केस के संबंध में अपर्णा पुरोहित का बयान दर्ज किया है। साढ़े तीन घंटे तक अपर्णा पुरोहित से लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली में पुलिस ने पूछताछ की थी। जब अपर्णा अपनी अग्रिम जमानत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंची तो अदालत ने जमानत देने से इंकार कर दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपर्णा पुरोहित को अंतरिम जमानत दे दी है।

दरअसल वेब सीरीज ‘तांडव’को लेकर अपर्णा पर नोएडा में भी केस दर्ज हुआ था। उस सिलसिले में वे हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत चाहती थी। पिछले कई सालों से वीडियो स्ट्रीमिंग साइट, जिसको ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म भी कहते हैं, पर दिखाई जाने वाले वेब सीरीज की सामग्री को लेकर तो कई बार वहां दिखाई जाने वाली फिल्मों को लेकर विवाद होते रहे हैं। पिछले तीन साल से इन वेब सीरीज पर दिखाए जाने वाली सामग्री में हिंसा, यौनाचार, मनोरंजन की आड़ में विचारधारा की पैरोकारी, हिंदू धर्म प्रतीकों का गलत चित्रण से लेकर अन्य कई तरह के आरोप लगते रहे हैं।

जब भी इन बातों को लेकर विवाद उठते थे तो सरकार से ये मांग भी की जाती थी कि ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री के संदर्भ में विनियमन नीति लागू की जानी चाहिए। इस क्षेत्र में बढ़ रही अराजकता पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को दिशानिर्देश या कटेंट के प्रमाणन की व्यवस्था करनी चाहिए। सरकार के स्तर पर विनियमन लागू करने के लिए इस क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ कई दौर के संवाद भी हुए थे, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका था। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री को लेकर 2018 में सख्त टिप्पणी की थी, संसद में भी ये मामला कई बार उठा। इस पृष्ठभूमि में सरकार ने ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री को लेकर अब एक दिशानिर्देश जारी कर दिया है। लेकिन इस दिशानिर्देश में न तो सजा का प्रावधान है और न ही किसी प्रकार के दंड का।

केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश में ओटीटी पर दिखाई जाने वाली सामग्री के लिए स्वनियमन की बात की गई है। स्वनियमन की बात तो की गई है लेकिन ये नियमन कैसे हो और इसका दायरा क्या हो इसको सरकार ने स्पष्ट कर दिया है। ये स्पष्ट कर दिया गया है कि कोई भी प्लेटऑर्म भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को आघात पहुंचाने वाले दृश्य और संवाद नहीं दिखाएंगे। कलात्मक स्वतंत्रता की आड़ में कोई भी ऐसी सामग्री दिखाने की अनुमति नहीं होगी जो कानून सम्मत नहीं है। लेकिन सरकार ने दिशानिर्देश जारी करते हुए सेवा प्रदताओं को इसका तंत्र विकसित करने को कहा है।अच्छी बात ये है कि सरकार ने जो व्यवस्था बनाई है उसमें कार्यक्रमों को दिखाने के पहले किसी से अनुमति लेने की बात नहीं है यानि की प्री सेंसरशिप का रास्ता सरकार ने नहीं अपनाया। उन्होंने सबकुछ इन प्लेटफॉर्म पर छोड़ दिया है।

नए नियमों के अनुसार सेवा प्रदाता कंपनियों को खुद अपनी सामग्रियों का वर्गीकरण करना होगा। बच्चों के देखने लायक सामग्री से लेकर अलग अलग उम्र की मनोरंजन सामग्रियों का वर्गीकरण कर दिया गया है। सेवा प्रदाता कंपनियों को इसका पालन करना होगा। अगर किसी को शिकायत होती है या किसी प्रकार से इन नियमों का उल्लंघन होता है तो उससे निबटने के लिए तीन स्तरीय व्यवस्था बनाई गई है। ये व्यवस्था लगभग उसी तर्ज पर है जिस तर्ज पर टेलीविजन के कार्यक्रमों का स्वनियमन होता है। लेकिन अब अदालत के रुख के बाद सरकार फिर से इन दिशानिर्देशों पर विचार कर रही है। कोर्ट के कहे अनुसार अब इन दिशानिर्देशों को नख दंत सहित पेश करने की तैयारी है।

सरकार के इस स्वनियम के दिशानिर्देशों को लेकर तमाम तरह की शंकाएं जताई जा रही हैं। फिल्म इंडस्ट्री के कुछ स्वयंभू निर्देशक इस कदम की आलोचना कर रहे हैं और इसको कलात्मक स्वतंत्रता को बाधित करने वाला कदम बता रहे हैं। दरअसल जब वो कलात्मक स्वतंत्रता की बात करते हैं तो उनको इस बात का ध्यान नहीं रहता कि ये स्वतंत्रता असीमित नहीं है। भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाओं को भी स्पष्ट किया गया है। ऐसा भी नहीं है कि इंटरनेट मीडिया पर चलने वाले इन मनोरंजन के माध्यमों के लिए दिशानिर्देश जारी करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है। कई देशों में ओटीटी के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश हैं। सिंगापुर में तो बकायदा इसके लिए एक प्राधिकरण है जिसको इंफोकॉम मीडिया डेवलपमेंट अथॉरिटी कहते हैं। इसकी स्थापना ब्राडकास्टिंग एक्ट के तहत की गई थी। इसमें सभी सेवा प्रदाताओं को ब्राडकास्टिंग एक्ट के अंतर्गत इस प्राधिकरण से लाइसेंस लेना पड़ता है। ओटीटी, वीडियो ऑन डिमांड और विशेष सेवाओं के लिए एक विशेष कंटेंट कोड है। इसमें सामग्रियों के वर्गीकरण की स्पष्ट व्यवस्था है। सिंगापुर की इंफोकॉम मीडिया डेवलपमेंट प्राधिकरण को अधिकार है कि वह ओटीटी प्लेटऑर्म पर दिखाई जाने वाली सामग्री को अगर कानून सम्मत नहीं पाती है तो उसका प्रसारण रोक दें। इसके अलावा नियम विरुद्ध सामग्री दिखाने पर जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है।

सिर्फ सिंगापुर ही नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया में भी इस तरह के प्लेटऑर्म पर नजर रखने के लिए ई सेफ्टी कमिश्नर हैं। उनका दायित्व है वो डिजीटल मीडिया पर चलने वाली सामग्रियों पर नजर रखें। वहां तो विनियमन इस हद तक है कि ई सेफ्टी कमिश्नर अगर पाते हैं कि किसी मनोरंजन सामग्री का वर्गीकरण अनुचित है या गलत तरीके से उसको किया गया है तो वह दंड के तौर पर उसको प्रतिबंधित भी कर सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया में भी ओटीटी पर चलनेवाली सामग्री की शिकायत मिलने पर उसके निस्तारण की एक तय प्रक्रिया है।

इसके अलावा भी दुनिया के कई देशों में किसी न किसी तरह के दिशानिर्देश लागू हैं। हमारे देश में अबतक ओटीटी की सामग्री को लेकर किसी तरह का कोई नियमन नहीं था। इसका नतीजा यह था कि कई प्लेटफॉर्म पर तो बेहद अश्लील सीरीज भी परोसे जा रहे थे, बिना किसी वर्गीकरण के। कहीं किसी कोने में छोटा सा अठारह प्लस लिख दिया जाता था लेकिन किसी प्रकार की कोई रोकटोक नहीं थी। कोई भी उसको देख सकता था।

जहां तक कलात्मक स्वतंत्रता को बाधित करने की बात है उसको लेकर जो लोग प्रश्न खड़े कर रहे हैं वे यह भूल रहे हैं कि हमारे देश में फिल्मों को भी रिलीज के पहले प्रमाणन करवाना होता है। क्या इस प्रमाणन की व्यवस्था से हमारे देश में फिल्मों की कलात्मक स्वतंत्रता बाधित हुई? टीवी चैनलों को लेकर स्वनियमन लागू है तो क्या टीवी चैनलों पर दिखाई जाने वाली सामग्रियों में कलात्मक स्वतंत्रता बाधित दिखती है?

दरअसल इस तरह के नियमनों से अराजकता पर रोक लगती है। ये कौन सी कलात्मक स्वतंत्रता है जिसमें वेब सीरीज की आड़ में राजनीति की जाती हो, भारतीय सेना की छवि को धूमिल किया जाता हो, कश्मीर में सेना के क्रियाकलापों को गलत तरीके से पेश किया जाता हो, हिंसा, गालीगलौज़ और यौनिकता के दृश्यों को प्रमुखता से दिखाया जाता हो। कोई भी माध्यम समाज सापेक्ष होना चाहिए, समाज से, संस्कृति से, निरपेक्ष होकर कला का विकास नहीं हो सकता है। समाज और संस्कृति को छोड़ कर कोई भी कला अपने उच्च शिखर को प्राप्त नहीं कर सकती है।

इस मामले में तो सरकार ने बहुत लंबे समय तक प्रतीक्षा की कि ओटीटी प्लेटफॉर्म अपनी तरफ से कोई स्वनियमन की नीति बनाकर देंगे लेकिन जब उनके बीच सहमति नहीं बन सकी तो सरकार ने दिशानिर्देश जारी कर दिए। जो लोग इसको बाधा मान रहे हैं उनको ये पता होना चाहिए कि कला भी अनुशासन की मांग करती है। सरकार ने ओटीटी के लिए दिशानिर्देश जारी करने में थोड़ी देरी अवश्य की थी लेकिन अब जब ये जारी हो गए हैं और अदालत ने फिर से इसको मजबूत करने को कहा तो उम्मीद की जानी चाहिए कि ओटीटी पर हर वाक्य में गालीगलौज़ नहीं होगी और अश्लीलता की सीमाएं भी नहीं टूटेंगीं।

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