नवोन्मेष की प्रत्यक्ष मिसाल आबा साहब पटवारी

आबा साहब संघ स्वयंसेवक थे। समाज से हर वर्ग से जुड़े रहना ही उनके जीवन का सार था। ‘संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो, भला हो जिसमें देश का वो काम सब किए चलो।’ इस संघगीत को आबा साहब ने अपने जीवन में उतार लिया था। वे सदैव इसी मार्ग पर चले।

इस धरती पर कोई भी अजरामर होने का वरदान लेकर नहीं आया है। जिसने जन्म लिया है उसका वृद्ध होना और अंत में मृत होना तय है। परंतु कुछ लोग जन्म और मृत्यु के बीच का अंतर जिसे जीवन कहा जाता है, कुछ इस तरह जीते हैं कि उनका नश्वर शरीर तो संसार से विदा ले लेता है परंतु उनके विचार और उनके कार्य सदैव उनकी स्मरण सुगंध फैलाते रहते हैं। श्रीपाद उपाख्य आबा साहेब पटवारी कुछ ऐसे ही लोगों में से एक थे। 20 अप्रैल 2021 को हृदयाघात से उनका निधन हो गया। आबा साहब ने जिस क्षेत्र में कदम रखा या जिस काम में हाथ डाला वह स्वर्णिम अध्याय लिखने वाला रहा।

‘नवोन्मेश’ शब्द को अपने कार्यों के माध्यम से यर्थाथ में उतारने वाले आबा साहेब मुंबई के उपनगर डोंबिवली के निवासी थे। डोंबिवली को मराठी संस्कृति के प्रमुख केंद्रों में गिना जाता है। ऐसी डोंबिवली के रहिवासी आबा साहेब का अपनी संस्कृति को संजोने का भरसक प्रयास करना आश्चर्यजनक नहीं था। आबा साहेब के लिए किसी भी आयु वर्ग के साथ घुलना-मिलना सहज साध्य था। विशेषकर युवाओं से उनकी खूब जमती थी। जब वे युवाओं को 31 दिसम्बर को न्यू ईयर मनाते देखते तो उनके मन में प्रश्न उठता था कि यह पीढी अगर 31 दिसम्बर को नया साल मनाती और मनाती रही तो भारतीय संस्कृति के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाये जाने वाले नववर्ष को भूल जाएगी। आबा साहेब ने इस समस्या के लिए न तो युवाओं को दोषी माना, न ही उन्हें समझाया बुझाया और न ही लम्बे चौड़े भाषण दिए। आबा साहेब ने शुरू की ‘नववर्ष स्वागत यात्रा।’ डोंबिवली के गणेश मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ‘नववर्ष स्वागत यात्रा’ की शुरुआत की। उनके देखते-देखते ही 15 वर्षों में इस ‘नववर्ष स्वागत यात्रा’ को पूरे देश भर के हिंदू समाज ने स्वीकार कर लिया है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को इस ‘नववर्ष स्वागत यात्रा’ में शामिल होने वालों में सबसे ज्यादा संख्या युवाओं की होती है। पारंपरिक परिधानों में अपने वाद्ययंत्रों को बजाते, ध्वजों को फहराते हुए पारंपरिक नृत्य करते ये युवा आबा साहब का स्वप्न पूर्ण करते दिखाई देते है। ‘नववर्ष स्वागत यात्रा’ अब एक परंपरा बन गई है, जिसकी नींव आबा साहेब ने ही रखी थी।

सहकार क्षेत्र में भी आबा साहब ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। वे डोंबिवली नागरी सहकारी बैंक के संस्थापक थे, इसके अलावा ठाणे जनता सहकारी बैंक के पहले कुछ शेयर धारकों में से एक थे। आबा साहब ने इन बैंकों के अलावा महाराष्ट्र की अन्य सहकारी बैंकों की न सिर्फ स्थापना की बल्कि उन बैंकों की हर जरूरत के समय उन्हें सहायता भी की। कई बैंकों को सक्षम रूप से खड़ा करने में आबा साहब का महत्वपूर्ण योगदान था।

आबा साहब राजनीति में भी काफी सक्रिय रहे। ठाणे-डोंबिवली की राजनीति में उनकी अहम भूमिका थी। इंदिरा गांधी के द्वारा थोपे गए आपातकाल के बाद देश में जब नगर पालिकाओं के चुनाव हुए तब जनसंघ के देश के पहले नगराध्यक्ष बनने का सम्मान आबा साहब को मिला था। हालांकि महाराष्ट्र की जातिगत राजनीति के कारण उन्हें कुछ समय के पश्चात राजनीति से किनारे कर दिया गया परंतु इसका आबा साहब के जन संगठन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने अपने सामाजिक कार्यों को अबाधित रूप से जारी रखा।

शिक्षा क्षेत्र में भी आबा साहब ने अपनी छाप छोड़ी थी। वे कई शिक्षा संस्थानों के संचालक पद पर सक्रिय रहे। डोंबिवली का पेंढारकर कॉलेज इन्हीं में से एक है।

आबा साहब जब साप्ताहिक विवेक (मराठी) के कार्यकारी सम्पादक के रूप में कार्यरत थे तब उन्होंने विवेक के कंटेंट के साथ-साथ विवेक को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए अत्यधिक मेहनत की। विविध विशेषांकों के माध्यम से अपने पाठकों को विविध जानकारियां देने के साथ ही उनके माध्यम से विवेक की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने का उद्देश्य भी आबा साहब ने अपने सामने रखा था। कुछ नवीन और भव्य करने की धुन आबा साहब को हमेशा ही लगी रहती थी। तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की कविताओं का संग्रह हिंदी तथा मराठी में अनुवाद कर प्रकाशित करने की संकल्पना को आबा साहब ने ही साकार किया था। पुस्तक प्रकाशन की इस पूरी प्रक्रिया के दौरान आबा साहब और राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम के बीच बहुत घनिष्ठता हो गई थी और इसी घनिष्ठता के कारण विवेक राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गया। पाठकों की संख्या में वृद्धि करने के प्रयत्नों से लेकर विवेक के भविष्य के लिए युवाओं की एक पूरी पीढ़ी तैयार करने का श्रेय आबा साहब को भी जाता है। विवेक का आज का विस्तार आबा साहब की दूरदृष्टि का ही परिणाम है।

व्यक्ति तथा व्यक्तियों के माध्यम से विविध संस्थाओं से सम्पर्क करना आबा साहब का विशेष गुण था। व्यक्ति तथा संस्थाओं के सकारात्मक और उत्तम गुणों को पहचानकर उन्हें सक्षम, सामर्थ्यशाली और समाजोपयोगी बनाने के लिए आबा साहब ने हर संभव प्रयत्न किए। अत: महाराष्ट्र की कई संस्थाएं, लोग, आज भी अपनी सफलता का श्रेय आबा साहब को देते हैं।

आबा साहब संघ स्वयंसेवक थे। समाज से, हर वर्ग से जुड़े रहना ही उनके जीवन का सार था। ‘संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो, भला हो जिसमें देश का वो काम सब किए चलो।’ इस संघगीत को आबा साहब ने अपने जीवन में उतार लिया था। वे सदैव इसी मार्ग पर चले।

जीवन के अंतिम क्षणों में उनके चेहरे पर समाधानपूर्वक जीवन जीने के भाव थे। पत्नी श्रीमती शुभदा पटवारी, बेटे योगेश, राजेश तथा उमेश और सम्पूर्ण परिवार के अलावा समाज के कई लोगों को आबा साहब के दुखद निधन ने शोकाकुल कर दिया है। 20 अप्रैल 2021 की शाम को हृदयाघात से उनका इस संसार से विदा लेना कई लोगों के जीवन में रिक्तता भर गया।

आबा साहब का जीवन और उनके द्वारा किए गए विभिन्न सामाजिक कार्य आनेवाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। जब भी नववर्ष स्वागत यात्रा होगी, उन्हें याद किया जाएगा। सदैव कुछ नया तथा भव्य करने की जिद रखनेवाले आबा साहब को हिंदी विवेक परिवार की ओर से आदरांजलि।

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