हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
महाराष्ट्र धर्म का आत्माभिमान करें जागृत

महाराष्ट्र धर्म का आत्माभिमान करें जागृत

by अमोल पेडणेकर
in मई २०१६, विशेष, सामाजिक
0

संन्यासी अंतःकरण से राजधर्म का पालन करें, यह महत्वपूर्ण विचार समर्थ रामदास जी ने छत्रपति शिवाजी महाराज को दिया था। महाराष्ट्र की संस्कृति के ताने-बाने से साकार होने वाला महाराष्ट्र धर्म हमेशा सभी से दो कदम आगे रहा है। आज महाराष्ट्र धर्म की नैतिकता की दुहाई देते समय हमें अपनी पगडंडी भी स्वच्छ रखने की अनिवार्यता आन पड़ी है।

1 मई, महाराष्ट्र राज्य के निर्माण की वर्षगांठ है। 1 मई, 1960 को निर्मित महाराष्ट्र राज्य इस वर्ष अपनी निर्मिती के 61 वर्ष पूर्ण कर रहा है। ऐसे अवसर पर हम जिसे महाराष्ट्र कहते हैं वह क्या है? महाराष्ट्र धर्म क्या है? इस संबंध में हमारे कर्तव्य क्या हैं? यह जानना आवश्यक है। सह्याद्रि एवं सतपुड़ा पर्वतों के बीच की भूमि है महाराष्ट्र। महाराष्ट्र की इस भूमि ने अनेक ज्ञात-अज्ञात नरसिंहों को जन्म दिया। प्रत्येक 20 वर्ष के अंतराल में इस भूमि को एक उत्कृष्ट नेतृत्व मिला। संत ज्ञानेश्वर, छत्रपति शिवाजी महाराज, रामदास स्वामी, महात्मा फुले, शाहू जी महाराज, स्वातंत्र्यवीर सावरकर, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, डॉक्टर हेडगेवार जैसे व्यक्ति इस महाराष्ट्र की मिट्टी में जन्में। परंतु, इसी काल में महाराष्ट्र धर्म को कुंठित करने का काम भी किया गया और यह काम महाराष्ट्र की बाहरी ताकतों ने नहीं किया वरन् यह महाराष्ट्र के भीतर के ही स्वार्थी प्रवृत्ति के लोगों द्वारा किया गया। छोटी-छोटी पहाड़ियों को पर्वत एवं नाले-नालियों को नदी की उपमा देने जैसी भाषा केवल चापलूस लोगों के मुंह से अच्छी लगती है, जो कि आज मानसिकता बन गई है। यह समूह बधिरता केवल किसी एक के कारण या अचानक उत्पन्न नहीं हुई। 10 वर्ष पूर्व तक देश के प्रथम क्रमांक के राज्य को दिनों-दिन अधोगति की ओर ले जाने का अपश्रेय इन सभी खुशामदियों को ही जाता है। महाराष्ट्र धर्म का जो पतन होता दिखाई दे रहा है, वह सब इन्हीं कारणों से है।

निकट भूतकाल तक महाराष्ट्र में कानून व्यवस्था की स्थिति आदर्श थी। कोरोना काल में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने जिस सचिन वाजे नामक निलंबित अधिकारी की पुनर्नियुक्ति गुणगान करते हुए की थी, उसी ने कानून व्यवस्था की सुस्थिति पर कालिख पोतने का काम किया। ‘सचिन वाजे, कोई ओसामा बिन लादेन नहीं है’ ऐसा कहकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री क्या साबित करना चाहते हैं? यह प्रश्न यदि महाराष्ट्र की आम जनता में उठता है तो उसमें आश्चर्य क्या है? और वही सचिन वाजे हफ्ता वसूली के लिए या अपने आकाओं की स्वार्थ पूर्ति के लिए या स्वत: का स्वार्थ साधने के लिए जब देश के श्रेष्ठ उद्योगपति के घर के सामने जिलेटिन से भरी गाड़ी पार्क करता है तब उसके पीछे उसका उद्देश्य क्या हो सकता है? किसकी सहमति और आशीर्वाद से वह यह सब कर रहा था? यदि सचिन वाजे ने यह सब स्वप्रेरणा से किया तो क्या उसे प्रमाणपत्र देने वाले मुख्यमंत्री का उस पर नियंत्रण नहीं था? इस प्रकार के कई अलग-अलग प्रश्न नागरिकों के मन में निर्माण हुए हैं। यह तो हुआ सिक्के का एक पहलू। दूसरा पहलू तो इससे भी भयावह है। मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह ने राज्य के गृहमंत्री पर यह संगीन आरोप लगाया है कि गृहमंत्री पुलिस अधिकारियों से प्रतिमाह 100 करोड़ रुपए हफ्ता वसूली के लिए निर्देश देते हैं और उस अनुसार काम करने को मजबूर करते हैं।  महाराष्ट्र के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन को देखते हुए यह प्रश्न उठता है कि क्या महाराष्ट्र का सारा सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक व्यवहार इन्हीं लोगों के हाथों में चला गया है? महाराष्ट्र के नागरिकों के सामने यह निश्चित एक प्रश्नचिन्ह है।

ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र को प्रगति की दिशा में यदि कोई ले जाने वाला न हो तो समाज को जागरूक होने की आवश्यकता है। समाज के मन में महाराष्ट्र की मिट्टी की सुगंध है। इस मिट्टी से निर्माण हुए सैकड़ों समाज सुधारकों की स्मृति कायम है। क्या आश्चर्य है देखिए, इसी महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर, छत्रपति शिवाजी महाराज, रामदास स्वामी, लोकमान्य तिलक, स्वातंत्र्यवीर सावरकर, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने जन्म लिया एवं महाराष्ट्र सहित सम्पूर्ण देश को समृद्ध करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। महाराष्ट्र धर्म के लिए जागृत रहकर महाराष्ट्र में जागृति लाने का प्रयत्न किया। जिस महाराष्ट्र में अभी तक महाराष्ट्र धर्म के प्रति अभिमान था उस महाराष्ट्र से वह सब क्यों समाप्त हो रहा है? इसके पीछे का मुख्य कारण है, स्वत: की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का पालन करने वाले क्षूद्र एवं उथली बुद्धि के राजनीतिक लोग इस महाराष्ट्र पर राज कर रहे हैं। वर्तमान में सरकार की विश्वसनीयता का प्रश्न सबसे बड़ा है। कार्टूनिस्ट आर. के. लक्ष्मण ने टाइम्स आफ इंडिया में एक कार्टून प्रकाशित किया था। उस कार्टून में जिहादी कपड़े पहने हुए एक राजनीतिक नेता भाग रहा है और ईंट, पत्थर, डंडे लेकर लोग उसका पीछा कर रहे हैं। महाराष्ट्र को इस स्थिति में लाने का श्रेय किसे है, इसे खोजना अत्यंत आवश्यक है। मंत्रालय और संपूर्ण प्रशासकीय तंत्रमें घुसे हुए इन भ्रष्टाचारियों ने संपूर्ण महाराष्ट्र की अस्मिता और महाराष्ट्र धर्म का नाश कर दिया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस, कांग्रेस एवं शिवसेना इन तीनों राजनीतिक दलों ने महाराष्ट्र द्रोही की भूमिका का सतत् निर्वहन किया है। एक बार फाइनेंस का ऑडिट भले ही न हो, परंतु, सत्ता पर बैठे हुए इन लोगों की कार्यक्षमता और नीतिमत्ता का ऑडिट होना अत्यंत आवश्यक है।

सन 1961 में महाराष्ट्र में क़रीब 6800 कारखाने थे। अब उनमें तिगुनी वृद्धि हो गई है। परंतु, जनसंख्या के अनुसार आवश्यक रोज़गार देने की क्षमता इन कारखानों में नहीं है। अनुदान पर जीवित ये कारखाने अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहे हैं। राज्य की कमाई में खेती का हिस्सा मात्र 15% ही है। गन्ने की खेती में बड़े प्रमाण में बढ़ोतरी का दावा शासन और शक्कर सम्राट करते हैं। प्रत्यक्ष में गन्ने के क्षेत्रफल में बढ़ोतरी तो हुई परंतु गन्ने की ऊंचाई और उसमें शक्कर की मात्रा नहीं बढ़ी। विकास के मामले में किसी समय प्रथम क्रमांक पर रहने वाला महाराष्ट्र आज निचले पायदान पर चला गया है। अपराधीकरण में बिहार एवं उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ने का क्रम जारी है। यह कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, शिवसेना के मुंह पर करारा तमाचा है। जनता के मन में सुरक्षा की भावना पैदा करना किसी भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए और इसी भावना से राज्य की जनता में विश्वास स्थापित हो इस हेतु प्रयत्न होने चाहिए। अब तो स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि जनता का इस त्रिवेणी सरकार पर से विश्वास समाप्त हो गया है और ऐसा विश्वास हो गया है कि यह हफ्ता वसूली की सरकार है।

हमारा समाज बहुत जल्द एक विषय से दूसरे विषय की ओर अपना ध्यान केंद्रित कर लेता है। बीते वर्ष इस प्रकार के उदाहरण देखने हों तो अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु का मामला, उनकी मैनेजर की हत्या या आत्महत्या ये सारे मामले आज पटल से ओझल हो गए हैं। सचिन वाजे, पुलिस के माध्यम से हफ्ता वसूली, ये सारे प्रश्न भी क्या इसी तरह समाज मन से समाप्त होने की स्थिति निर्माण हो जाएगी? वास्तव में यह प्रश्न कब और कैसे समाज मन से समाप्त हो जाएंगे यह हमें पता भी नहीं लगेगा। क्योंकि शायद तब तक कोई नया स्वादिष्ट प्रश्न जुगाली करने के लिए समाज को मिल जाएगा। समाज में घटित होने वाली परिणामकारक घटनाओं का समाज के मन पर प्रभाव इस प्रकार शून्य क्यों हो जाता है? जनता की कमज़ोर स्मरण शक्ति और टीआरपी के लिए नए-नए विषयों का पीछा करने की प्रसार माध्यमों की प्रतिस्पर्धा इसके लिए जिम्मेदार हैं। समाज, जनता एवं प्रचार माध्यमों के इस रवैये से महाराष्ट्र का बहुत नुकसान हो रहा है। साथ ही सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर राजनीतिक नेता और स्वार्थी लोग अपना स्वार्थ निश्चित ही साध रहे हैं, इसमें कोई शंका नहीं है। क्या महाराष्ट्र धर्म इतना बांझ है? महाराष्ट्र धर्म में यह संकल्पना जात-पात, धर्म-पंथ, अमीर-ग़रीब के परे है और सभी स्तरों पर समरसता से संबंधित है। महाराष्ट्र की सामाजिक-सांस्कृतिक और साहित्यिक रचना में इन सब का उल्लेख हमें मिलता है। पिछले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र की जो प्रगति हुई है वह इसी भावना का परिणाम है। सभी का कल्याण हो, यही यहां की प्रवृत्ति है। उसको संजोने का काम समय-समय पर समाज के महापुरुषों ने किया है। यह महाराष्ट्र की वास्तविक परंपरा, संस्कृति और संस्कार है। एक समय महाराष्ट्र धर्म बढ़ रहा था, परंतु, अब वह सिमट रहा है। उसके कारण भी वैसे ही हैं। पुराण कथाओं में कहा गया है (उतू नये, मातू नये, घेतला वसा टाकू नये) अर्थात् सत्ता का घमंड न करें, उन्मत्त ना बनें, जो व्रत लिया है उसे छोड़ ना दें’। परंतु, महाराष्ट्र धर्म का व्रत तोड़ दिया गया। ‘महाराष्ट्र धर्म छोड देंगे तो कुछ नहीं होगा’ शासकों की इस भावना ने ही ने महाराष्ट्र की प्रगति में कील ठोक दी है। आज जो दशा महाराष्ट्र की है, वह शासकों की इसी भावना के कारण है।

शिवसेना संस्थापक प्रबोधनकार ठाकरे कट्टर महाराष्ट्रवादी थे। उन्होंने स्वत: के विचारों का और महाराष्ट्र धर्म का बीजारोपण शिवसेना में किया था। महाराष्ट्रवादी जनता के लिए वह एक प्रकार का आश्वासन था। बाला साहब ठाकरे कुशल संगठक थे। शिवसेना ऐसे दूरंदेशी व्यक्तियों की थी। आज महाराष्ट्र धर्म के लिए शिवसेना, कांग्रेस की अपेक्षा ज्यादा ख़तरनाक साबित हो रही है। आज शिवसेना का मुखौटा महाराष्ट्र धर्म की रक्षा के लिए वादग्रस्त हो गया है। महाराष्ट्र पर सत्ता करने की लालसा में शिवसेना लाचार की भूमिका में आ गई है। महाराष्ट्र धर्म पालन करने का आग्रह आज शिवसेना से गायब हो गया है। उद्धव ठाकरे की नवसेना ने तो महाराष्ट्र द्रोह की अति कर दी है। शिवसेना में तो अब भारतीय, महाराष्ट्रीय संस्कृति, धर्म, हिंदुत्व, इन शब्दों का उच्चारण भी पाप हो गया है। महाराष्ट्र में जन्म लेना दुर्लभ है। शौर्य तथा साधुत्व का नैसर्गिक संगम इस भूमि में हुआ है। इसके कारण त्यागबुद्धि एवं कर्तव्यनिष्ठा ये दोनों गुण जन्मत: महाराष्ट्रीय व्यक्ति में मिलते हैं। सामाजिकता एवं राजनीति उनका देहभाव हो गया है। कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस तथा शिवसेना की राजनीतिक संस्कृति, व्यापारी एवं नोच कर खाने वाली होने के कारण, इस महाराष्ट्र राज्य एवं महाराष्ट्र धर्म का नाश करने वाली है। इस पार्श्वभूमि पर महाराष्ट्र की सांस्कृतिक और वैचारिक अंतरंगता का विचार करना पड़ेगा वरना महाराष्ट्र धर्म की आज की स्थिति का अचूक उत्तर नहीं मिलेगा।

आज संपूर्ण महाराष्ट्र अंधेरे में कुछ ढूंढता हुआ सा नज़र आ रहा है। ‘महाराष्ट्र मेला तर राष्ट्र मेले, महाराष्ट्र विना राष्ट्र गाडा न चाले’, ‘महाराष्ट्र नहीं रहा तो देश नहीं रहेगा, बिना महाराष्ट्र के देश आगे नहीं बढ़ेगा’ यह दृष्टिकोण सामने रखकर महाराष्ट्र के विकास के लिए जो राजनीति होती थी, वह कहां गई? कहां गया वह राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक, क्षेत्र में महाराष्ट्र के विकास की राजनीति करने वाला नेतृत्व?

समर्थ रामदास स्वामी एवं छत्रपति शिवाजी महाराज के संबंधों के इतिहास से संपूर्ण महाराष्ट्र सहित पूरा भारत परिचित है। छत्रपति शिवाजी महाराज को समर्थ रामदास ने यह संदेश दिया था कि राजधर्म का पालन करते हुए जनता को ख़ुशहाल रखने की जिम्मेदारी भगवान ने शासक को सौंपी है। राज्य के प्रति मोह न रखते हुए तुम्हें तुम्हारे राजधर्म का पालन कर प्रजा को सुखी करना है, तुम राजा हो, फिर भी मैं सन्यासी के भगवे वस्त्र तुम्हें देता हूं। उसका तुम भगवा ध्वज बनाओ जिससे सभी को संन्यास (वैराग्य) की याद रहेगी। धन्य हैं वे शिवाजी महाराज और धन्य हैं वे स्वामी रामदास! संन्यासी अंतःकरण से राजा अपने राजधर्म का पालन करें, यह महत्वपूर्ण विचार समर्थ रामदास जी ने छत्रपति शिवाजी महाराज को दिया था। हम महाराष्ट्र के लोगों को इस प्रकार के समर्थ व्यक्तियों पर हमेशा गर्व रहा है। महाराष्ट्र की संस्कृति के ताने-बाने से साकार होने वाला महाराष्ट्र धर्म हमेशा सभी से दो कदम आगे रहा है। महाराष्ट्र के सामने आज तक जो प्रश्न उत्पन्न हुए हैं उसके उत्तर ढूंढने वाले अनेक व्यक्ति यहीं निर्माण हुए हैं। आज महाराष्ट्र धर्म की नैतिकता की दुहाई देते समय हमें अपनी पगडंडी भी स्वच्छ रखने की अनिवार्यता आन पड़ी है। अब हमें तय करना है कि हमें कैसे जीना है? सार्थक या निरर्थक? जो प्रकार अभी घटित हुए हैं, उससे महाराष्ट्र का मन अस्वस्थ है, इसमें रत्ती भर भी शंका नहीं। ऐसे समय में इतिहास से आज तक जो सामर्थ्य बीज महाराष्ट्र ने अपने मन में बोये हैं, जिसने हमारे मन पर गहरा सकारात्मक प्रभाव डाला है, वह जागृत कर प्रकाश की दिशा में चलने का हम सभी को प्रयत्न करना चाहिए। मन में प्रकाशित इस विचार को देह कार्य की ओर प्रवृत्त करें।

1 मई, 2021 को महाराष्ट्र राज्य की निर्मिति को 61 वर्ष पूर्ण हो गये हैं। समय गतिमान है और वह अपनी गति से चलता है, परंतु, समय के साथ ही चलने वाली हमारी बुद्धि, मन और शरीर की चाल, प्रगति और जागरूकता की दिशा में होना चाहिए। आज की पीढ़ी की ऐसी बचकानी कल्पना भी नहीं है कि समाज के सभी स्तरों के सभी लोगों की प्राथमिक आवश्यकता एक झटके में ही पूर्ण हो जाएगी। इसके लिए मर्यादित अधिकारों की चौखट में रहकर ही क्यों न हो, प्रयत्न करने की शक्ति सब में निर्माण हो तो भी बहुत है। महाराष्ट्र धर्म का स्वाभिमान हम सब में जागृत हो इतना भी बहुत है। हमने कहीं एक कविता पढ़ी है कि ‘बहुत अंधेरा है, कम से कम एक दिया जलता रहे’। अंधेरा छाने के लिए कुछ नहीं करना पड़ता। प्रकाश का अभाव ही अंधेरे की उपस्थिति है। मुख्य प्रश्न तो प्रकाश का ही है। हम महाराष्ट्र धर्म का जागरण और रक्षा जितनी जागरूकता से कर सके उतनी हमें करनी है। एक बार यदि महाराष्ट्र धर्म के लिए जागृत रहने का आत्माभिमान हम में उत्पन्न हो गया तो इससे द्रोह करने वाले क्षुद्र राजनीतिक, सामाजिक नेतृत्व, डाका डालने वाली, हफ्ता वसूलने वाली मनोवृति के लोग अपने आप दूर हो जाएंगे। महाराष्ट्र धर्म का आत्माभिमान जागृत करने की पगडंडी पर क्या हम चल सकते हैं? यदि इसका उत्तर सकारात्मक है, तो इस तिमिर (अंधकार) को प्रकाश किरणों की झालर है, ऐसा हम कह सकते हैं।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazineselectivespecialsubective

अमोल पेडणेकर

Next Post
बंगाल में  भाजपा का उदय

बंगाल में भाजपा का उदय

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0