हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
समाज बंधुओं के लिए सदैव तत्पर रहूंगा– आर. एन. सिंह

समाज बंधुओं के लिए सदैव तत्पर रहूंगा– आर. एन. सिंह

by विशेष प्रतिनिधि
in जून २०२१, विशेष, साक्षात्कार
0

अपने परिवार और गांव को छोड़कर मुंबई आने वाले लोगों में अधिकांश लोग उत्तर प्रदेश के ही हैं। मुंबई की चमक-दमक, यहां मिलने वाली सुविधाएं और आजीविका के साधनों से आकर्षित होकर कई लोग अपनी किस्मत आजमाने यहां आते हैं। कुछ लोगों के सपने साकार होते हैं, कुछ लोगों के नहीं, परन्तु कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिनके सपने स्वयं के साथ-साथ समाज कल्याण से भी जुड़े होते हैं। ऐसी ही एक सख्सियत हैं आर.एन. सिंह। सुरक्षा से सम्बन्धित व्यवसाय करने वाले आर.एन. सिंह सामाजिक और लोक-कल्याण के कार्यों के लिए अधिक प्रसिद्ध हैं। प्रस्तुत है इसी सन्दर्भ में उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

उत्तर प्रदेश के दूर-दराज के इलाके से पहली बार जब आप मुंबई आये, तब आप क्या सपना संजोकर आये थे?

मैं जब मुंबई आया तो मेरे पास सिर्फ 100 रुपये थे। मैं यहां नौकरी करने के साथ-साथ बच्चों को ट्यूशनशन पढ़ाता था। नेपियन सी रोड पर मैंने हिंदी की क्लासेस ली है। मुंबई आने के 10 सालों में मैंने बहुत संघर्ष किया। मेरी पत्नी ने मेरे साथ बहुत दुख उठाये। हम सदा सोचते थे कि ऐसा कुछ विशेष करें ताकि हमारी और हमारे साथ हमारे सामाजिक बन्धुओं की उन्नति हो।

आपके सपनों का यह सफर किस तरह रहा?

मैं गोरखपुर जिले के भरौली गांव का रहने वाला हूं। वहां पर मैंने इण्टर मीडिएट तक शिक्षा प्राप्त की। सन 1967 में मैं मुंबई आया। यहां लगभग 10 वर्ष मैंने नौकरी की। उसके बाद मैंने सिक्यूरिटी का व्यवसाय शुरू किया। आज इतने वर्षों के बाद भारत के कई शहरों में हमारी शाखाएं हैं और मुख्य कार्यालय मुंबई के पवई क्षेत्र में है।

इस व्यवसाय की शुरुआत कैसे हुई?

मेरा इस व्यवसाय से कोई सम्बन्ध नहीं था। मेरे एक मित्र को इसकी जानकारी थी। उन्हीं के साथ मैंने पार्टनरशिप में यह व्यवसाय शुरू किया। तीन साल एक साथ काम करने के बाद हमने अपना व्यवसाय अलग कर लिया। मैंने बाम्बे इंटेलिजेन्स सिक्यूरिटी नामक कम्पनी को चलाने का फैसला किया।

इस व्यवसाय में सुरक्षा रक्षकों को प्रशिक्षित करने की बड़ी आवश्यकता होती है। इसका प्रबन्ध आपने कैसे किया है?

गांव में ही मैंने सिक्यूरिटी गार्ड को प्रशिक्षण देने के लिए प्रशिक्षण केन्द्र खोले हैं। मेरे गांव के साथ-साथ ये केन्द्र चेन्नई, कर्जत, खण्डवा, बड़ौदा में भी चलाये जाते हैं। जयपुर में भी एक नया प्रशिक्षण केन्द्र शुरू करने की योजना है। बहुत बड़ी संख्या में सिक्यूरिटी गार्ड इन केन्द्रों से प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और देशभर में कार्य करते हैं। हमारी भी देश के कई शहरों में शाखाएं हैं जो सुरक्षा का कार्य करती हैं। सभी शहरों को मिलाकर लगभग एक लाख लोग हमारे यहां काम कर रहें हैं। मुझे इस बात का संतोष है कि इन एक लाख लोगों की रोजी-रोटी का प्रबन्ध मेरे द्वारा किया जा रहा है।

व्यावसायिक सफलता के साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में भी आप सराहनीय कार्य कर रहे हैं। इसकी प्रेरणा कहां से मिली और इसका संचालन कैसे करते हैं?
मेरी पत्नी अब हमारे बीच नहीं है। उनकी इच्छा थी कि हमारे गांव में लड़कियों के लिए कॉलेज खोला जाए। उनकी इच्छा के अनुरूप मैंने गांव में लड़कियों के लिए जूनियर कॉलेज और डिग्री कॉलेज की स्थापना की। आज लगभग कई लड़कियां वहां शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। उनके आने-जाने की सुविधा के लिए वहां बसें चलायी जा रहीं हैं। मुंबई में भी उत्तर भारतीय संघ के अन्तर्गत कॉलेज शुरू किये गए हैं जिनमें डिग्री कॉलेज, जूनियर कॉलेज शामिल हैं। यहां भी बड़ी संख्या में विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

धार्मिक क्षेत्र में भी आपने किसी तरह का योगदान किया है?

हां, किया है। गांव में मैंने दुर्गा जी का बहुत बड़ा मन्दिर और तालाब बनवाया है। मैं जब भी गांव जाता हूं, वहां दर्शन करने जरूर जाता हूं।

उत्तर भारतीय संघ के रूप में आपका कार्य बहुत बड़ा माना जाता है। इसके गठन एवं कार्य क्षेत्र के बारे में कुछ बताएं?

उत्तर भारतीय संघ एक सामाजिक संस्था है। संस्था के माध्यम से उत्तर भारतीय लोगों की समस्याओं के समाधान और उनके कल्याण के लिए विभिन्न कार्य किये जाते हैं। कार्यकारिणी में इंक्यावन सदस्य होते हैं और ये सदस्य हर पांच साल में अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। अध्यक्ष के चुनाव के बाद वह उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष का चयन करता है। मैं अपने इस पद को अपना दायित्व समझता हूं ,जिसे निभाने के लिए ही मैं रोज शाम को 1-2 घण्टे उत्तर भारतीय संघ के कार्यालय में आता हूं ताकि लोगों की परेशानियां सुन सकूं और उनका समाधान कर सकूं।

संस्था के माध्यम से क्या- क्या कार्य किये जा रहे हैं?

उत्तर भारतीय संघ के माध्यम से जूनियर कॉलेज और डिग्री कॉलेज चलाये जा रहे हैं, जहां लगभग 1500 बच्चे पढ़ रहे हैं। असल्फा में हमारा एक विद्यालय भी चलाया जा रहा है, जहां लगभग दो-तीन हजार बच्चे पढ़ रहे हैं। इस संस्था में कार्य करने के कारण मुझे समाज के लोगों से जुड़ने का मौका मिला। उत्तर भारतीय संघ के माध्यम से गेस्ट हाउस भी बनाये जा रहे हैं। उत्तर भारत से मुंबई में आने वाले लोगों की एक मुख्य समस्या होती है आवास की। लोग चार धाम की यात्रा के लिए निकलते हैं। आजाद मैदान में उनकी बसें खड़ी होती हैं। हमारा यह प्रयास है कि इन यात्रियों के लिए गेस्ट हाउस बनाये जाएं जिससे उन यात्रियों को आवास की सुविधा प्राप्त हो सके। कैंसर के मरीजों के लिए इस गेस्ट हाउस में कुछ कमरे अलग रखे जाएं जिससे वे लोग यहां के अस्पतालों में रहकर इलाज करवा सकें। आजकल शादी-ब्याह के लिए भी बड़े हॉल और कमरों की आवश्यकता होती है। उत्तर भारत से आने वाले लोगों के लिए मुंबई के होटलों में शादी का खर्च उठाना बहुत महंगा काम होता है। ऐसे लोगों के लिए भी इन अतिथि गृहों का उपयोग हो सकता है।

समाज के पीड़ित वर्गों या सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में भी संस्था के कुछ कार्य हैं?

उत्तर भारतीय संघ के माध्यम से आर्थिक सहायता भी दी जाती है। उदाहरण के लिए कुछ दिन पूर्व ही उत्तराखण्ड के बाढ़ पीड़ितों के लिए उत्तर भारतीय संघ की ओर से 11 लाख रुपये मुख्यमंत्री राहत कोष में दिये गए। इसके पहले सरहद पर शहीद हुए दो जवानों के परिजनों को दो-दो लाख रुपए की सहानुभ्ाूति की राशि दी गयी थी। हमारे यहां कुछ ऐसे बच्चे पढ़ते हैं जो होनहार तो हैं परन्तु उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है। ऐसे बच्चों की भी हम सहायता करते हैं। कुछ बच्चों की हमने फीस माफ कर दी है। हमारा हमेशा यही प्रयत्न रहता है कि उत्तर भारतीय संघ की ओर से समाज में अधिक से अधिक कार्य हो।

आप प्रिंट मीडिया के क्षेत्र में भी कार्यरत हैं। इस ओर आपकी रुचि कैसे जागृत हुई?

मैं ‘हमारा महानगर’ नामक अखबार का संरक्षक हूं। इस अखबार को चलाने का प्रस्ताव भी मुझे मेरे एक मित्र द्विजेन्द्र तिवारी ने दिया था। अखबार के पूर्व संरक्षक निखिल वागले उसे बेच रहे थे। मैंने इसे खरीद लिया और चलाना शुरू किया। पिछले आठ साल से मैं यह अखबार निकाल रहा हूं। हालांकि इस उद्योग में मुनाफा नहीं होता, फिर भी मैं इसे चला रहा हूं। अब यह अखबार मुंबई के साथ-साथ पुणे और नासिक से भी प्रकाशित होता है। नवी मुंबई के रबाले में हमारी आधुनिक प्रेस है।

मुंबई में इस बात से नाराजगी होती है कि उत्तर भारतीय स्थानीय लोगों का हक छीन रहे हैं और मुंबई का पैसा उत्तर भारत में जा रहा है। इस सम्बन्ध में आपकी राय?

हर किसी का यह कर्तव्य है कि वे अपने माता-पिता और परिवार की देखभाल करें। अगर हम मुंबई में पैसा कमाने आये हैं और उन्हें पैसे नहीं भेजेंगे तो उनकी देखभाल कैसे हो पाएगी? वहां के लोगों की यह हालत है कि अगर बाहर की कमाई नहीं होगी तो जीवन यापन करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि घर की कृषि से होने वाली आमदनी बहुत कम होती है।

कुछ नेताओं ने यहां के लोगों की यह धारणा बना दी है कि हम मुंबई की उन्नति नहीं चाहते। इतने सालों से हम लोग यहां हैं तो निश्चित रूप से हम मुंबई की उन्नति ही चाहेंगे। यहां तक कि हमारी अगली पीढ़ियां तो अब अपने गांव भी वापस नहीं जाना चाहती। हमने यहां किसी का हक नहीं मारा और न ही किसी को काम करने से रोका है। महाराष्ट्रियन लोग भी हमारे साथ काम कर सकते हैं। नेताओं को उन्हें उकसाने की राजनीति से दूर रहना चाहिए और वोट बैंक की राजनीति से दूर रहना चाहिए।

Tags: hindi vivekhindi vivek magazineselectivespecialsubective

विशेष प्रतिनिधि

Next Post
Black & White फंगस की पूरी जानकारी और बचाव

Black & White फंगस की पूरी जानकारी और बचाव

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0