देर आए, दुरुस्त आए!

केंद्र सरकार के पास अब पूरा मौका है जो काम गठबंधन की मजबूरियों के चलते वह अब तक नहीं कर सकी, वह इस दौरान करे। 2019 के चुनावों से पहले देश की जनता को उन्हें आश्वस्त करना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर की सभी समस्याओं के अंत के लिए वह प्रतिबद्ध है।

वर्ष 2015 में जम्मू-कश्मीर राज्य ने अपना मत स्पष्ट तौर से प्रकट करते हुए जम्मू संभाग ने भाजपा और कश्मीर घाटी ने पीडीपी को राज्य की जिम्मेवारी सौंपी। अलगाववाद, आतंकवाद और जम्मू-कश्मीर राज्य की समस्याओं को लेकर बिलकुल विपरित विचार रखने वाले दोनो दलों ने जनादेश का सम्मान करते हुए गठबंधन किया। इस गठबंधन की कल्पना राज्य की जनता ने तो क्या उनके समर्थकों ने भी कभी नहीं की थी। जनादेश कासम्मान करते हुए दोनों राजनीतिक दल एक साथ आ तो गए पर वैचारिक तौर पर इतनी भिन्नता होने की वजह से इस गठबंधन को जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में कैसे और कब तक चलाया जा सकता है, यह देखने का विषय था। सरकार चलाने के लिए दोनों दलों ने अपने वैचारिक विषयों को दूर रख एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत राज्य को विकास की राह में आगे बढ़ाने का लक्ष्य रखा। जिसमें बिना किसी भेदभाव के राज्य की समस्त जनता और तीनों संभाग जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के विकास में जोर दिया जाएगा।

कोई अन्य राज्य होता तब तो विकास के नाम पर एकदम विपरीत विचारधारा वाले राजनीतिक दल मिलकर सरकार चला भी सकते थे। पर आतंकवाद, अलगाववाद और विदेशी ताकतों के षड़यंत्रों में फंसी कश्मीर घाटी और उसी घाटी के ही इर्द-गिर्द घूमती राज्य की राजनीति के लिए केवल विकास के ऐजेंडे पर चलना काफी नहीं था। सरकार में होने के बावजूद भी प्रारंभ से ही राज्य में स्थानीय भाजपा विधायकों और मंत्रियों के साथ पीडीपी के नेतृत्व द्वारा एकदम दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया और उनके कामों को जानबूझ कर निरंतर लटकाया गया। आतंकवाद और अलगाववाद पर एकदम स्पष्ट रुख रखने वाली भाजपा ने जहां अलगाववादियों को महत्व न देकर उनको उनका स्थान दिखाया, वहीं सुरक्षा बलों को आतंकवाद के खात्मे के लिए खुली छूट प्रदान की। तो दूसरी ओर गठबंधन के

साथी पीडीपी की मुखिया और प्रदेश की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती हमेशा से ही प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उनकी हमदर्द रहीं। ऐसी परिस्थिति में इंतजार था कि सामरिक दृष्टि से इतने महत्वपूर्ण राज्य में आखिर कब तक यह जबरदस्ती का गठबंधन चल सकता है।

भाजपा ने इस इंतजार को खत्म कर अंततः प्रदेश सरकार से समर्थन वापिस ले लिया और सरकार से बाहर आ गई। भाजपा के वरिष्ठ नेता राम माधव ने आज प्रेस कांफ्रेंस कर बताया कि भाजपा के लिए अब इस गठबंधन में रहना असंभव हो गया है और देश की एकता और अखंडता के लिए वह सरकार से अपना समर्थन वापिस लेते हैं और राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग करते हैं। इसके कुछ घंटे बाद ही राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफती ने भी राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंपा और मीडिया को संबोद्धित करते हुए कहा कि सत्ता के लिए सरकार में नहीं आए थे, हमारा एक बड़ा एजेंडा था- सीजफायर, प्रधानमंत्री का पाकिस्तान दौरा और 11 हजार पत्थरबाजों के केस वापिस हुए जो पूरा हुआ।

समरिक दृष्टि से तो भाजपा और केंद्र सरकार ने इन तीन वर्षों में राज्य को लेकर कोई ढील नहीं बरती, पर वैचारिक दृष्टि से वह कोई ऐसा बड़ा काम भी इन तीन वर्षों में नहीं कर पाई जिसके लिए उसे स्पष्ट बहुमत मिला था। न तो राज्य से धारा 370 हटी, न ही राज्य में रहने वाले लाखों लोगों और महिलाओं से मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला अनुच्छेद 35ए को हटाने के लिए केंद्र सरकार या भाजपा द्वारा कोई विशेष प्रयास किए गए, न ही देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जम्मू से कोई रोहिंगया बाहर निकाला गया और न ही कश्मीर घाटी से आतंकवाद और कट्टरवाद का खात्मा किया गया। इन तीन सालों में महबूबा के अनुसार उनका एजेंडा पूरा हुआ, पर क्या भाजपा के पास कोई ऐसा काम है बताने को जिससे उसका एजेंडा पूरा करता हो?

गठबंधन से बाहर निकलने के जो भी कारण राम माधव ने बताए वह कोई नए नहीं थे। प्रारंभ से ही अलगाववादियों और पत्थरबाजों के प्रति पीडीपी और महबूबा मुफ्ती एक रवैया नरम था।केंद्र सरकार द्वारा आतंकवाद के खातमें के लिए सुरक्षा बलों को खुली छूट दी गई, वहीं राज्य में कानून व्यवस्था और पत्थरबाजों को लेकर महबूबा शुरू से ही भ्रांति की स्थिति में रहीं और कोई स्पष्ट निर्णय लेते नहीं दिखी। आतंकवाद के खातमें में सेना और सुरक्षा बल ऑपरेशन ऑल आउट के चलते एक मजबूत स्थिति में आ गए थे। तभी रमजान के महीने में ऑपरेशन स्थगित करने के निर्णय ने आतंकवादियों और कट्टरपंथीयों को और मजबूती से पैर जमाने का मौका दे दिया और आतंकवादी गतिविधियां और बढ़ीं। इन सब परिस्थियों के चलते देश की एकता और अखंडता के लिए पीडीपी जैसे दल के साथ गठबंधन में रहकर सरकार चलाना मुश्किल ही था।

गठबंधन में मजबूरियां कुछ भी रही हों, पर देर से लिया गया भाजपा का यह निर्णय देश और राज्य के लिए सकारात्मक परिस्थियां ही लेकर आए, यही अपेक्षा है। भाजपा, महबूबा मुफ्ती और राज्य के अन्य राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन अवश्यंभावी है। केंद्र सरकार के पास अब पूरा मौका है जो काम गठबंधन की मजबूरियों के चलते वह अब तक नहीं कर सकी, वह इस दौरान करे। 2019 के चुनावों से पहले देश की जनता को उन्हें आश्वस्त करना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर की सभी समस्याओं के अंत के लिए वह प्रतिबद्ध है।

 

 

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