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दिल्ली जीत पाएंगे केजरीवाल?

दिल्ली जीत पाएंगे केजरीवाल?

by रुपेश गुप्ता
in फरवरी 2020 - पर्यावरण समस्या एवं आन्दोलन विशेषांक, राजनीति
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केजरीवाल की राह 2015 के मुकाबले 2020 में बहुत ही चुनौतीपूर्ण है। केजरीवाल ने ट्वीट में ‘भगवान के भला करने की बात’ लिखी है। केजरीवाल का कितना भला होता है यह भगवान ही जानें।

दिल्ली विधान सभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पहली चाल चलते हुए 70 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। वहीं कांग्रेस ने भी कुछ उम्मीदवारों के नाम जारी किए हैं। भाजपा अभी ‘रुको और देखो’ की मुद्रा में है। हाल ही में उनकी संसदीय दल की बैठक भी हुई है।

दिल्ली चुनाव को लेकर दिल्ली वासियों का मूड क्या है, आइए इसे समझने का प्रयत्न करते है। अरविंद केजरीवाल सरकार की उपलब्धियों की बात की जाए तो पहले 4 सालों में उन्होंने केंद्र सरकार पर काम नहीं करने देने का आरोप लगाया। इसके अलावा कई मौकों पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोसते भी नजर आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार की जा रही टिप्पणियों के कारण वह आम जनमानस में अपनी पैठ खो रहे थे। इस बात की जमीनी सच्चाई समझने के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टीका-टिप्पणी करना बंद कर दिया और चुनाव को नजदीक आता देख अपनी दूसरी चाल चल दी। वह दिल्ली वासियों के साथ ‘फ्री’ की राजनीति करने लगे। ताकि चुनाव के पहले दिल्ली वासियों का दिल जीता जा सके। लेकिन दिल्ली देश की राजधानी होने के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामों की समीक्षा दिल्ली वासी खुद कर पा रहे थे। इसके चलते 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान मोदी लहर में दिल्ली की सातों लोकसभा सीट से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। इसके अलावा दिल्ली भाजपा ने महानगर पालिकाओं के भी कई चुनाव जीते।

केजरीवाल सरकार जामिया और जेएनयू में हुए हिंसक विरोध को भी बाहर से समर्थन देती आई नजर!

केजरीवाल सरकार जामिया और जेएनयू में हुए हिंसक विरोध को भी बाहर से समर्थन देती नजर आई। इसके चलते भी उन पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगा। वहीं केंद्र सरकार ने मजबूती से खड़े रह कर आम जनता को यह स्पष्ट संदेश भी दिया कि वह किसी भी परिस्थति में तुष्टीकरण की राजनीति को सफल नहीं होने देगी। इससे हिंदुओं में भी जागरूकता आई और भाजपा  उन्हें एकत्रित करने में सफल रही। सरकार वामपंथियों के इस षड्यंत्र को उजागर करने में सफल रही कि वामपंथी विचारधारा टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन करती है और आम आदमी पार्टी भी परोक्ष रूप से उनके साथ खड़े नजर आती है। जेएनयू और जामिया में हुए हिंसक विरोध से लेकर कश्मीर में सेना विरोधी नारों का समर्थन परोक्ष रूप से आम आदमी पार्टी की शह पर होने की बात भी दिल्ली वासियों को समझ में आई हैं। जबकि दिल्ली वासियों के मन में सेना के प्रति आदर और सम्मान है। इन सभी बातों से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंची हैं। दिल्ली वासियों ने यह जाना कि अरविंद केजरीवाल देश विरोधी तत्वों को बढ़ावा देते हैं। शाहीन बाग में हो रहे धरना प्रदर्शन से भी लोगों को यह बात समझ में आई कि अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस की तर्ज पर अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण की राजनीति करने लगे हैं। ऐसा कर उन्होंने कांग्रेस को भी अपने से दूर कर लिया। आम आदमी पार्टी को 2015 के चुनाव में बड़ी संख्या में बनियों, बुद्धिजीवियों और पंजाबियों ने वोट दिया था लेकिन 2020 में अरविंद केजरीवाल का तिलिस्म टूट चुका है और इन सभी लोगों का केजरीवाल से मोहभंग हो चुका है। इसके चलते केजरीवाल एक बार फिर प्रचंड बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने का विचार नहीं कर सकते।

दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश होने के बाद भी इसका अपना मुख्यमंत्री भी है। इसके कई काम केंद्र सरकार के अधीन हैं। ऐसे में कुछ ही काम हैं जो दिल्ली सरकार या मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अंतर्गत आते हैं। अरविंद केजरीवाल ने पिछले 4 वर्षों में बिजली और पानी पर कोई ठोस काम नहीं किया। हालांकि चुनावी वर्ष में उन्होंने लोगों को रिझाने के लिए कुछ छूट दी हैं। इसके चलते उन्होंने अपनी खोई हुई कुछ जमीन वापिस पाने की कोशिश की है। हालांकि कामों के स्तर पर तुलना की जाए, तो केंद्र सरकार के काम दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के किए गए कामों पर भारी हैं, फिर चाहे वह झुग्गी-झोपड़ियों को उसी जगह पर पक्का मकान देने की योजना हो या अवैध कालोनियों को वैध करना हों। इसके अलावा देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2019 में हुई भारी जीत हो, राम मंदिर का फैसला हो, धारा 370 का निरस्तीकरण हो या विश्व स्तर पर भारत की बढ़ती साख हो, इन सभी बातों को देख कर यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगवानी में दिल्ली का किला भाजपा जीत सकती हैं। साथ ही अमित शाह की मजबूत रणनीतिक चालें दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी का झंडा लहरा सकती हैं। इसके लिए भारतीय जनता पार्टी को उनके किए गए कामों को दिल्ली वासियों के मन में दर्ज करना पड़ेगा। भारतीय जनता पार्टी को अंदरूनी कलह से भी निपटना पड़ेगा। साथ ही उन्हें दिल्ली वासियों को अरविंद केजरीवाल के मुकाबले अधिक शक्तिशाली और सुलभ मुख्यमंत्री कौन होगा, इसकी भी जानकारी देनी होगी फिर भले ही चुनाव दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही क्यों न लड़ा जाए।

अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने कई गलतियां भी की हैं। उन्होंने कई विधायकों के टिकट काटे हैं। जिसमें लाल बहादुर शास्त्री के परिवार के सदस्य और एप्पल इंडिया के हेड रहे आदर्श शास्त्री का भी टिकट भी शामिल है। इसके अलावा उन्होंने कमांडो सुरेंद्र का भी टिकट काट दिया। आम आदमी पार्टी से कपिल मिश्रा और अलका लांबा बगावत कर कर बाहर जा चुके हैं। वहीं आम आदमी पार्टी ने विवादित लोगों को भी टिकट देने से परहेज नहीं किया है। कांग्रेस की पार्षद रह चुकी राजकुमारी ढिल्लो ने तो टिकट पक्का होने के बाद ही आम आदमी पार्टी की सदस्यता ली! उन्हें जगदीप सिंह का टिकट काट कर दिया गया है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के 5 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन्होंने में आने के 24 घंटे के अंदर ही टिकट प्राप्त कर लिया है। इनमें पूर्व कांग्रेस नेता नवीन चौधरी, जय भगवान उपकार, विनय कुमार मिश्र और राम सिंह शामिल हैं। आम आदमी पार्टी ने जितेंद्र सिंह तोमर को भी टिकट दिया है, जो केजरीवाल कैबिनेट में कानून मंत्री रहने के दौरान फर्जी डिग्री को लेकर जेल भी जा चुके हैं। रामसिंह पर जमीन कब्जा करने का आरोप है और उनकी छवि भू-माफिया की है। राजौरी गार्डन से टिकट पाने वाले धन्वंती चंदोला के खिलाफ भी आपराधिक मामले दर्ज हैं। सीलमपुर के उम्मीदवार अब्दुल रहमान पर इल्जाम है कि वह जाफराबाद में लोगों को उपद्रव करने के लिए भड़का रहे हैं। अब्दुल रहमान का नाम दंगे भड़काने वाले लोगों के खिलाफ हुई ऋखठ में भी शामिल है। इन सभी के चलते केजरीवाल की राह 2015 के मुकाबले 2020 में बहुत ही चुनौतीपूर्ण है। केजरीवाल ने भी इस बात को मानते हुए उम्मीदवारों की सूची जारी करते समय ट्वीट में ‘भगवान के भला करने की बात’ लिखी है। केजरीवाल का कितना भला होता है यह भगवान ही जानें।

 

 

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