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ज्योतिरादित्य सिंधियाः चुनौतियां और पहेलियां

ज्योतिरादित्य सिंधियाः चुनौतियां और पहेलियां

by pallavi anwekar
in अप्रैल २०२०, राजनीति, संपादकीय
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टीम राहुल के सक्रिय सदस्य और अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सत्तासीन करने में प्रयत्नों की पराकाष्ठा करने वाले युवा नेता तथा ग्वालियर राजघराने के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। ज्योतिरादित्य के कांग्रेस से तौबा करते ही मध्यप्रदेश के 22 कांग्रेस विधायकों ने भी विधायकी से इस्तीफे दे दिए। इससे कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई।

मध्यप्रदेश में कुछ दिनों में ही सत्तांतर होने का माहौल पैदा हो गया है। मध्यप्रदेश में हुए इस सम्पूर्ण राजनीतिक नाट्य को महज संयोग नहीं कहा जा सकता। अपने स्वार्थ के लिए और राजनीति की ओर व्यक्तिगत करिअर के रूप में देखना कांग्रेस में पनपी बहुत बड़ी बीमारी है। सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे अनेक युवा नेता अपनी सारी शक्ति और बुद्धि दांव पर लगाकर कांग्रेस के विकास के लिए तेजी से काम पर लग गए थे। उन्होंने कांग्रेस से सौंपी गई इस जिम्मेदारी को गंभीरता से लिया था। अपने कर्तृत्व के आधार पर कांग्रेस पार्टी को पुनर्जीवित करने का उनका संकल्प था। राजस्थान में सचिन पायलट, मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रचंड परिश्रम से कांग्रेस सत्ता के करीब पहुंच गई। लेकिन ये युवा नेता प्रियंका और राहुल के लिए चुनौती साबित होंगे, इसे सोनिया गांधी ने भाप लिया और उनके पैर खींचने के प्रयास शुरू हो गए। ज्योतिरादित्य के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में कांग्रेस खड़ी होना शुरू हो गया था। हाल में मध्यप्रदेश विधान सभा के चुनावों में यह बात साफ हो गई थी। उम्मीद की जा रही थी कि मध्यप्रदेश सरकार का नेतृत्व करने का अवसर ज्योतिरादित्य को दिया जाएगा, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें किनारे कर कमलनाथ का पुराना घोड़ा ही ऐन मौके पर आगे कर दिया। राजस्थान में भी सचिन पायलट के बजाए अशोक गहलोत को सत्ता की कमान सौंपी गई। परिश्रम उठाने के लिए तरुण नेता और सत्ता आई कि उसका नेतृत्व करने के लिए कांग्रेस के बुजुर्ग! कांग्रेस में पिछले 15 वर्षों से यही हो रहा है। कांग्रेस में इस तरह की स्थिति हर राज्य और जिला स्तर तक अनुभव होती है। वहां युवाओं और बुजुर्गों में का संघर्ष चरम पर पहुंचा है। ‘न करूंगा, न करने दूंगा’ की राहुल गांधी की कांग्रेस नेतृत्व की शैली ध्यान में लें तो ज्योतिरादित्य के इस्तीफे पर आश्चर्य नहीं होगा। प्रश्न केवल यही था कि ज्योतिरादित्य इतने लम्बे समय तक क्यों रुके?

पार्टी भले डूब जाए लेकिन अपने परिवार के बजाए अन्य किसी के पास नेतृत्व न हो, यह गांधी घराने का कवच-कुंडल बन चुका है। जो कोई इस कवच-कुंडल के लिए खतरा पैदा होने लगेगा उसे घेरने के अलावा कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं होता। माधवराव सिंधिया और जगदीश टायटलर कांग्रेस के राजनीतिक बलि ही थे। अधिसंख्य कांग्रेस नेताओं का यही हश्र होता है। जब तक गांधी घराने की अनुकम्पा है तब तक नेता मौज कर लें। एक बार यदि गांधी घराने का आशीर्वाद हटा कि उनका मूल्य शून्य हो जाता है। ऐसा होने के पूर्व ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में प्रवेश किया है। उन्होंने अपना नया रास्ता खोजा यह बात उल्लेखनीय है। अतः सम्पूर्ण सिंधिया राजघराना भाजपा की सेवा में आ गया यह कहा जा सकता है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में आने से कांग्रेस का अस्तांचली जा रहा सूरज और अधिक कमजोर दिखाई देने लगा है। दूसरी ओर अनेक राज्यों में पराजय का अनुभव ले रही भारतीय जनता पार्टी में नई उमंग की स्थिति पैदा हो गई है। भाजपा में प्रवेश करते ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा की उम्मीदवारी दी गई। मध्यप्रदेश का यह राजनीतिक नाट्य राज्य में सत्ता प्राप्त करने के भाजपा के लिए अवसर रहा। कांग्रेस सरकार गिर गई और भाजपा के शिवराज सिंह मध्यपद्रेश के मुख्यमंत्री के रूप में पुनः विराजमान हो गए। अब ‘आपरेशन कमल’ के माध्यम से अगला लक्ष्य राजस्थान और महाराष्ट्र होगा। यह पैंतरा भाजपा कब और कैसे खेलती है इस पर देश की भविष्य की राजनीति निर्भर है। ज्योतिरादित्य का भाजपा में पुनर्वसन करते समय भारतीय जनता पार्टी को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कांगे्रस से ज्योतिरादित्य के भाजपा में आने से कांग्रेस की कमलनाथ सरकार का ढह गई है।

लेकिन ज्योतिरादित्य के साथ कांग्रेस से अलविदा कहने वाले 22 विधायकों का पुनर्वसन करना भी उतना ही महत्व रखता है। उन्हें विधान सभा में आने के लिए छह माह में फिर से चुनाव लड़ कर जीतना होगा। लेकिन अबकी बार इनमें से कितने लोग जीतेंगे इसकी कोई आश्वस्ति क्या भाजपा दे सकेगी? ग्वालियर और चंबल घाटी में भाजपा के दिग्गज नेता नरेंद्रसिंह तोमर के समक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बड़ी राजनीतिक चुनौती के रूप में उपस्थित होंगे। मध्यप्रदेश की राजनीति में प्रदीर्घ काल अपना वर्चस्व रखने वाले शिवराज सिंह के लिए भी ज्योतिरादित्य सिंधिया एक चुनौती साबित हो सकते हैं। युवा ज्योतिरादित्य को उम्र के साथ सत्ता का स्वाद लग चुका है। इसलिए राजनीति में सत्ता की परिधि में ही रह कर ही खेलने की भावना उनके मन में हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सार यह कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में प्रवेश से मध्यप्रदेश में जो हुआ वैसा महाराष्ट्र, राजस्थान व अन्य राज्यों में भी हो सकता है। इसीसे भाजपा का ‘आपरेशन कमल’ पूरा होगा। लेकिन इसीके साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में प्रवेश से मध्यप्रदेश राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कुछ पहेलियां निर्माण होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। मध्यप्रदेश के इस राजनीतिक नाट्य से उत्पन्न कुछ पहेलियां आज दिखाई दे रही हैं, वैसी ही कुछ दिखाई न देने वाली पहेलियां भी हैं। ये दिखने वाली और न दिखने वाली राजनीतिक पहेलियां उजागर होकर उन्हें हल करने के लिए कुछ समय तक इंतजार करना होगा।

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