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सीपीईसी को लेकर पाकिस्तान में असंतोष और विरोध

सीपीईसी को लेकर पाकिस्तान में असंतोष और विरोध

by अरुण आनंद
in देश-विदेश, विशेष, सामाजिक, सितंबर- २०२१
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इस गलियारे को ऊपरी तौर पर केवल व्यापारिक दृष्टि से एक व्यापार संबंधी नया रूट खोलने के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है मगर तथ्य यह है कि सीपीईसी के कारण चीन की पकड़ इस क्षेत्र में जबरदस्त ढंग से मजबूत हो जाएगी और इससे सामरिक संतुलन बिगड़ेगा। खासकर अरब सागर में चीनी विस्तारवाद के लिए ग्वादर एक नया आधार बनेगा। 

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को सीपीईसी के नाम से जाना जाता है। यह दक्षिण एशिया में सामरिक संतुलन की दृष्टि से एक अत्यंत महत्वपूर्ण योजना है। मोटे तौर पर इस योजना को चीन वित्तीय सहायता दे रहा है। विभिन्न अनुमानों के अनुसार चीन इस पूरी परियोजना पर 60 अरब डॉलर से अधिक राशि खर्च कर रहा है। इस योजना के अंतर्गत पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित ग्वादर बंदरगाह से लेकर चीन के शिनजियांग प्रांत तक एक पूरा गलियारा विकसित किया जा रहा है, जिससे व्यापार संबंधी आवागमन कम से कम समय में तथा निर्बाध ढंग से हो सके। इस गलियारे को ऊपरी तौर पर केवल व्यापारिक दृष्टि से एक व्यापार संबंधी नया रूट खोलने के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है मगर तथ्य यह है कि सीपीईसी के कारण चीन की पकड़ इस क्षेत्र में जबरदस्त ढंग से मजबूत हो जाएगी और इससे सामरिक संतुलन बिगड़ेगा। खासकर अरब सागर में चीनी विस्तारवाद के लिए ग्वादर एक नया आधार बनेगा।

रातों-रात बदल गया नक्शा

यह परियोजना आरंभ से ही विवादों में घिरी हुई है। असल में पहले इस परियोजना का जो नक्शा तय किया गया था, उसमें बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों से गलियारे का अधिकतर हिस्सा निकलता था लेकिन पाकिस्तान में नवाज शरीफ की सरकार के आने के बाद रातों-रात नक्शा बदल दिया गया और गलियारे के बड़े हिस्से को पंजाब के रास्ते विकसित करने की बात तय कर दी गई। इससे पाकिस्तान में जबरदस्त विवाद हुआ था। यह सभी जानते हैं कि नवाज़ शरीफ और उनके परिवार के व्यावसायिक हित पंजाब से जुड़े हुए हैं इसलिए यह साफ था कि इस गलियारे के तहत जितनी ज्यादा योजनाएं पंजाब में आएंगी, इससे उन्हें आर्थिक और राजनीतिक लाभ होगा लेकिन इसे लेकर अन्य प्रांतों में भारी विरोध हुआ। इस तरह सीपीईसी अब पाकिस्तान के संघीय ढांचे में दरार डालने वाला एक प्रमुख मुद्दा बन गया है। पाकिस्तानी सत्ता के गलियारों में सीपीईसी का नया नाम अब ’चीन-पंजाब आर्थिक गलियारा’ हो गया है।

बलूचिस्तान में क्यों तेज हुआ आंदोलन?

दूसरा सीपीईसी से जुड़ा बलूचिस्तान का मसला है। बलूचिस्तान में सीपीईसी को लेकर भारी रोष है। इस रोष के दो कारण हैं- पहला बलूची लोगों का मानना है कि इस योजना के तहत उनके प्राकृतिक संसाधनों का शोषण पाकिस्तान के दूसरे प्रांतों के लिए हो रहा था। अब चीन को खुश रखने के लिए यह शोषण और तेजी से बढ़ेगा। दूसरा, इस सीपीईसी के मामले में बलूची नेताओं या जनता को विश्वास में लिए बिना ही पाकिस्तानी सरकार ने चीन के साथ मिलकर उसकी सुविधा के अनुरूप फैसले कर दिए।

क्या कहता है बलूचिस्तान का इतिहास?

आज हम जिसे बलूचिस्तान कहते हैं, उसका अधिकतर हिस्सा कलात नामक राज्य के अंतर्गत आता था। ब्रिटिश राज के समय भारत में कलात राज्य सार्वभौम था अर्थात उसे ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं माना जाता था। दिलचस्प बात यह है कि कलात के नवाब ने पाकिस्तान के संस्थापक माने जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना को भारत तथा लंदन में प्रिवी काउंसिल के सामने अपने राज्य के स्वतंत्र अस्तित्व के समर्थन में दलीलों के लिए साल 1920 के दशक मे अपना वकील नियुक्त किया था। कलात के नवाब ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्होंने जिन्ना को उनके वजन के बराबर सोने में तौल दिया था और जिन्ना की बहन को भी कीमती उपहार दिए थे, जिसमें लाखों रुपए के आभूषण भी शामिल थे।

सीपीईसी का सबसे ज्यादा असर अगर कहीं पड़ रहा है, तो वह बलूचिस्तान है। ध्यान रहे कि बलूचिस्तान में बलूची राष्ट्रीयता का आंदोलन साल 1948 से लगातार चल ही रहा था, लेकिन अब सीपीईसी के बाद इसमें और तेजी आ गई है। इस संदर्भ में थोड़ी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि समझने पर बातें और ज्यादा स्पष्ट हो जाती हैं। इससे यह पता चलता है कि क्यों बलूचिस्तान में सीपीईसी और पाकिस्तानी हुक्मरानों का इतना जबरदस्त विरोध हो रहा है?

जिन्ना ने दिया धोखे का परिचय

जिस जिन्ना को साल 1947 तक कलात के नवाब अपने वकील के तौर पर लाखों रुपए फीस में देते रहे, उसी जिन्ना ने पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बनने के कुछ महीनों के भीतर ही पाकिस्तानी फौज को कलात पर कब्जा करने भेज दिया और इस प्रकार धोखे व जबरदस्ती से कलात को पाकिस्तान में शामिल किया गया। हालांकि दो दशक से भी अधिक समय बाद पाकिस्तान ने बलूचिस्तान नाम से इस क्षेत्र को एक अलग प्रांत के रूप में घोषित किया लेकिन साल 1948 के बाद से ही बलूचिस्तान में प्रखर राष्ट्रीय आंदोलन लगातार चलता रहा है।

हज़ारों बलूचियों को इसके लिए अपनी जान गंवानी पड़ी है। उनके खिलाफ पाकिस्तान के इस्लामी कट्टरवादी संगठन, इस्लामी आतंकवादी संगठन व पाकिस्तानी सेना संयुक्त अभियान चला रहे हैं। यह भी ध्यान देने की बात है कि बलूचिस्तान, खनिज पदार्थों व प्राकृतिक गैस की दृष्टि से पाकिस्तान में सबसे समृद्ध प्रांत है।

प्रचुरता के बावजूद पिछड़ा इलाका

पाकिस्तान की ऊर्जा संबंधी 80 प्रतिशत आवश्यकताओं और खनिज पदार्थें की आपूर्ति भी बलूचिस्तान से होती है। ग्वादर बंदरगाह जो बलूचिस्तान में है और जिस पर सीपीईसी के तहत चीन की नजर होर्मुज जलसंधि के निकट है, जहां से इस क्षेत्र के 80 प्रतिशत तेल के टैंकर गुज़रते हैं। ग्वादर बंदरगाह की अत्यंत महत्वपूर्ण व्यापारिक व सामरिक स्थिति और प्राकृतिक संसाधनों की इतनी प्रचुरता के बावजूद विकास के पैमाने पर बलूचिस्तान पाकिस्तान के सबसे पिछड़े इलाकों में है।

पाकिस्तान के ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स ने साल 2016 की अपनी रिपोर्ट में बताया था कि ग्वादर में 33680 आवासीय इकाइयां हैं, जिनमें से केवल 20 प्रतिशत के पास पक्के मकान थे। 35 प्रतिशत के पास बिजली थी और 45 प्रतिशत के पास पाइप से आने वाला पीने का पानी उपलब्ध था। खाना पकाने के लिए आवश्यक गैस केवल 0.86 प्रतिशत परिवारों के पास ही उपलब्ध थी। यह हाल तब है, जब ग्वादर इलाका सीपीईसी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।

इस पृष्ठभूमि में बलूचिस्तान में सीपीईसी को लेकर आशंका और विरोध का माहौल होना स्वाभाविक है। वहां के लोग चीनी लोगों की बढ़ रही उपस्थिति को लेकर भी विरोध दर्ज करवा रहे हैं। पहले ही वहां जनसंख्या का स्वरूप असंतुलित हो गया है और अब चीनी उसे और बिगाड़ रहे हैं। सीपीईसी को लेकर ऐसे कई और भी विवाद हैं, जो इस मेगा परियोजना के स्थायित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं।

 

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