हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
अद्धभुत, अकल्पनीय अभियांत्रिकी से दमकता नया भारत

अद्धभुत, अकल्पनीय अभियांत्रिकी से दमकता नया भारत

by डॉ. अजय खेमरिया
in युवा, विशेष, शिक्षा
0

बहुत पुरानी बात नही है जब सरहद पर मीटरों के फासले दिनों में तय हो पाते थे,आज किलोमीटरों का सफल मिनिटों में पूरा हो रहा है।इंच इंच रास्ता संघर्ष को आमंत्रित करता था अब मीलों की सुरंग भारत की संप्रभुता,सम्मान और सक्षमता की कहानी बयां कर रहीं है।यह नया भारत है। अपनी सीमाओं की चौकसी में खड़ा हर दुश्मन की आंख में आंख डालकर चुनौती को स्वीकार करने।यह भारत की अद्धभुत इंजीनियरिंग का नया अध्याय भी है जिसे देखकर पूरी दुनियां चकित है।एफिल टावर ,स्टेचू ऑफ लिबर्टी की ऊंचाइयों को अब भूल जाइए।गगनचुंबी ऊंचाइयों पर अभियांत्रिकी को देखना है तो कश्मीर की वादियों में आइए,केवडिया में माँ नर्मदा के तट पर पहुँचिये,यहां नए भारत की मेधा,कौशल और इंजीनियरिंग आपको नए संकल्पों से रु– ब -रु कराते मिलेंगे।हजारों साल पहले जिस वास्तु औऱ विनिर्माण तकनीकी से हमारे पूर्वजों ने,मठ मंदिर,किलों की स्थापत्य कला से दुनियां को परिचित कराया था, कमोबेश आज 21 वी सदी में भी भारतीय इंजीनियरिंग के नायाब कौशल की अनेक ऐसी ही कहानियां लिखी जा रही है।

 आज विश्व की सबसे लंबी टनल हो या सबसे ऊंची प्रतिमा या फिर सबसे ऊंचा रेल पुल सब कुछ भारत के नाम पर है।यह भारत की महान एवं विज्ञान सम्मत इंजीनियरिंग विरासत को पुनर्प्रतिष्ठित करने जैसा भी है।आज हमारी अभियांत्रिकी का सिक्का दुनियां को अचंभित कर रहा है।यह सब हो रहा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जिन्होंने भारतीय प्रतिभा को प्रतिष्ठित करने के अतिरेक प्रयासों को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा हुआ है।3428 किलोमीटर लंबी भारत की एलएसी पर आज कोई ऐसा क्षेत्र नही बचा है जहाँ पहुँचने के लिए हमारी सेनाओं को मौसम खुलने का इंतजार करना पड़े।सब दूर सड़कों,पुलों,सुरंगों का ऐसा संजाल मोदी सरकार ने खड़ा कर लिया है, जो दुश्मन देशों को बुरी तरह खटक रहा है।यह सब आज से 10 बर्ष पहले तक असंभव सा लगता था और तथ्य यह है कि तत्कालीन सरकारों की प्राथमिकता से बाहर ही था।

केंद्रीय रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने सदन में खड़े होकर स्वीकार किया था सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत सरंचना विकास हमारी सामरिक नीति का हिस्सा नही है।यानी सीमाओं पर विकास में कांग्रेस की कोई रुचि नही थी।नतीजतन 1997 में सयुंक्त मोर्चा सरकार के समय तबके प्रधानमंत्री श्री एचडी देवगौड़ा ने असम-अरूणाचल को जोड़ने वाले जिस “बोगीवील पुल” का भूमिपूजन किया था उसे 2014 तक ठंडे बस्ते में पटककर रखा। 5920 करोड़ की लागत वाले इस पुल को मोदी सरकार ने अपनी प्राथमिकता में लेकर रिकार्ड समय में पूरा कर दिखाया।4.94किलोमीटर का यह पुल भारत के इंजीनियरों की अदम्य औऱ अद्धभुत क्षमताओं का उदाहरण भी है।

असम के डिब्रूगढ़ से अरुणाचल प्रदेश के धकोजी जिले को जोड़ने वाले इस पुल पर आपातकाल में लड़ाकू विमान तक उतारे जा सकते है।हमारे इंजीनियर्स ने इसे  कुछ इस तरह डिजाइन किया है कि भूकंप औऱ बाढ़ जैसी आपदाओं में भी यह अगले 120 बर्षों तक यूं ही खड़ा रहेगा।पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी के जन्मदिवस पर तीन साल पहले प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था।इस पुल ने न केवल असम और अरुणाचल को जोड़ दिया बल्कि चीन की सीमा तक रसद औऱ सेना भेजना मिनिटों में संभव कर दिया है।

इस डबल डेकर पुल के ऊपरी तल पर तीन लेन सड़क एवं निचले तल पर ट्रेन का ट्रेक बनाया गया है।जिन प्रतिकूल परिस्थितियों में यह पुल बॉर्डर रोड आर्गनाइजेशन के इंजीनियरों  ने  बनाया है वह भारतीय इंजीनियरिंग कौशल का अचंभित कर देना वाला पक्ष है। सीमा पर घात लगाए बैठे ड्रेगन लिए तो यह किसी सदमे से कम नही है।देश के इंजीनियर्स का यह कमाल यहीं तक सीमित नही है, बल्कि सामरिक महत्व के हर उस हिस्से में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है जो भारत की सम्प्रभुता,एकता और सीमाई अखण्डता के लिए संवेदनशील माने जाते रहे है।

-लिपूलेख दर्रा सड़क से कैलाश मानसरोवर की सुगमता- 17500 फिट की ऊंचाई पर 80 किलोमीटर की यह सड़क बॉर्डर रोड आर्गनाइजेशन के इंजीनियरों के कौशल का एक  बड़ा ही महत्वपूर्ण उदाहरण है।इसके निर्माण ने चीन की सीमा पर हमारी सतत निगरानी को सुनिश्चित तो किया ही है साथ ही कैलाश मानसरोवर की दुर्गम यात्रा को भी सरल बना दिया है।2005 में इस प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिली थी लेकिन इसका काम आरंभ हुआ 2018 में जब कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने इसे सर्वोच्च प्राथमिकता वाले प्रोजेक्ट में शामिल करते हुए 440 करोड़ रुपए स्वीकृत किये।2022 तक इसे पूरा किया जाना था लेकिन देश के इंजीनियर्स ने इसे समय से पहले ही बना दिया।यह सड़क धारचूला को लिपूलेख(चीन बॉर्डर)से जोड़ती है।इस परियोजना “हीरक”के चीफ इंजीनियर विमल गोस्वामी के अनुसार सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस मार्ग के बन जाने से तवाघाटी के पास माँगती शिविर से शुरू होकर व्यास घाटी में गूंजी और सीमा पर भारतीय भूभाग में स्थित सुरक्षा चौकियों तक के 80 किलोमीटर से अधिक के दुर्गम हिमालयी क्षेत्र तक पहुँचना आसान हो गया है।इस नए मार्ग से की जाने वाली कैलाश मानसरोवर की यात्रा का लगभग 84 प्रतिशत हिस्सा भारत में है,केवल 16 फीसदी ही चीन में पड़ता है जबकि सिक्किम,काठमांडू मार्ग से जाने पर 80 फीसदी हिस्सा चीन में पड़ता था।खासबात यह भी है कि अब चीन के पांच किलोमीटर क्षेत्र को छोड़कर सम्पूर्ण यात्रा वाहनों से हो रही है।कैलाश का महत्व हिंदुओं के अलावा बौद्ध,जैन तिब्बतियों के लिए भी है।भारतीय इंजीनियरिंग ने इस यात्रा को भी अपने कौशल से सुगम्य बना दिया है।

-एफिल टावर से ऊंचा रेल पुल बनकर तैयार- दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल कश्मीर के रियासी में बन कर तैयार हो गया है।ये दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज जो कि एफ़िल टॉवर से भी 35 मीटर ऊंचा है. इसकी नदी तल से ऊंचाई 359 मीटर है।कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है इसे रेलवे लाइन के माध्यम से भी सिद्ध किया जाना एक सपने जैसा था लेकिन हमारे इंजीनियर्स ने इस सपने को भी अब पूरा कर दिखाया है। इस रेल लाईन से सेना को कश्मीर घाटी तक पहुंचने में 4 से 5 घंटे की बचत होगी. इस खबर से चीन काफ़ी परेशान हो रहा है।ये ब्रिज जम्मू कश्मीर के रियासी ज़िले में बना है। भारत का चिनाब ब्रिज एफ़िल टॉवर से भी ऊंचा है। स्ट्रेटजिक महत्व के इस ब्रिज के बन जाने से अब पूरी कश्मीर घाटी देश बाक़ी हिस्सों से जुड़ गई है। ये ब्रिज जम्मू के ऊधमपुर से लेकर कश्मीर के बारामूला तक बन रही रेल लाईन यूएसबीआरएल प्रॉजेक्ट का हिस्सा है। इस रेल लाईन के बन जाने से भारतीय सेना को भारत चीन बॉर्डर तक पहुंचने में न सिर्फ़ सहूलियत होगी बल्कि चार से पांच घंटे की बचत भी होगी।

इस ब्रिज को बनाने के लिए भारतीय रेलवे के इतिहास की अब तक की इस सबसे ऊंची क्रेन का इस्तेमाल किया गया है। इससे, आसमान में क्रेन के रोपवे से लटक कर जाते भारी स्टील के ब्रिज सेग्मेंट अपनी निर्धारित सटीक जगह पर रखना हमारे इंजीनियर्स की अद्धभुत क्षमताओं औऱ निपुणता का उदाहरण है। अब रेल लाईन का ये डेक आगे बढ़ेगा और चिनाब आर्च के ऊपर बन रहे पुल से जुड़ जाएगा जिसके ऊपर रेल लाईन बिछाई जाएगी.  28 हज़ार करोड रूपए के इस प्रॉजेक्ट से कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश  रेलवे लाईन से जुड़ जाएगा। 272 किलोमीटर की इस रेल लाईन परियोजना को राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया है।कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड के सीएमडी संजय गुप्ता के अनुसार ये रेल लाईन हिमालय की शिवालिक पर्वत माला और मध्य हिमालय की पीर पंजाल श्रंखला के सबसे दुर्गम इलाक़े के बीच से पार हो रही है।272 किलोमीटर की इस रेल लाईन परियोजना में 38 सुरंगें और 97 ब्रिज हैं।

–ब्रिज की ख़ास बातें- रेलवे का दावा है कि किसी आतंकवादी ब्लास्ट के हमले में भी इसे नुक़सान नहीं होगा. एक स्पान ध्वस्त हो जाने पर भी ये काम करता रहेगा. इस पर 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से ट्रेन चलेगी। 266 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चलने वाली हवा को भी ये बर्दाश्त कर सकता है। इसकी अनुमानित उम्र 120 वर्ष है। 584 किलोमीटर की वेल्डिंग इसमें हुई है।इसका स्टील -10 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान को सहने के योग्य है। पुल के निर्माण में 28,660 मिट्रिक टन स्टील लगी है। चिनाब आर्च में स्टील के बक्से हैं जिसमें स्थिरता के लिए कंक्रीट भरा गया है।आर्च का कुल वज़न 10,619 मिट्रिक टन है। मुख्य आर्च स्पैन की लम्बाई 467 मीटर वर्टिकल है और 550 मीटर हॉरिज़ॉंटल है। चिनाब ब्रिज की कुल लम्बाई 1.315 किलोमीटर है।मार्के वाली बात यह भी है कि 2003 में शुरु हुआ यह काम बीच में ही रुक गया था लेकिन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इसे राष्ट्रीय महत्व की परियोजना घोषित कर फिर से आरम्भ कराया और देश के इंजीनियरों ने इसे साकार भी कर दिया।

-भूल जाइए स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी,औऱ स्प्रिंग टेम्पल की ऊंचाई– सामान्य ज्ञान की किताबों में पढ़ी जाने वाली विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी,स्प्रिंग टेम्पल अब ऊंचाई के लिहाज से किताबों में नही होंगी,क्योंकि भारत के इंजीनियरों ने अपने पुरुषार्थ से गुजरात के केवडिया में 182 मीटर ऊंची सरदार पटेल की प्रतिमा निर्मित की है यह न्यूयॉर्क में लगी 93 मीटर ऊंची स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से दोगुनी ऊंची है।इस मूर्ति के निर्माण में चार धातुओं का इस्तेमाल किया गया है।जिससे सालों तक जंग का खतरा नही है।5700 मीट्रिक टन स्ट्रक्चरल स्टील औऱ 18500 मीट्रिक टन रिइनफोर्समेंट बार्स के अलावा 22500 मीट्रिक टन सीमेंट से बनी इस ऐतिहासिक प्रतिमा को 44 महीने के रिकार्ड समय में 2500 इंजीनियर एवं 4076 श्रमिकों ने बनाया है।यह हमारी इंजीनियरिंग का अनूठा नमूना भी है कि रिक्टर स्केल  6.5 तीव्रता भूकम्प भी इस प्रतिमा को नुकसान नही कर सकता है।

मुंबई में छत्रपति शिवाजी महाराज की 210 मीटर ऊंची प्रतिमा को बनाने के काम में भी भारत के इंजीनियर दिनरात जुटे हुए है।चीन के स्प्रिंग टेम्पल  में लगी बुद्ध की प्रतिमा 153 मीटर ऊंची है जिसे सबसे बड़ी बुद्ध मूर्ति कहा जाता है।अब भारत के इंजीनियरों ने 210 मीटर ऊंची शिवाजी की मूर्ति का संकल्प लिया है।4000 करोड़ से बनने वाली यह प्रतिमा औऱ संग्रहालय असल सिर्फ ऊंचाई भर के महत्व की नही है यह भारत के इंजीनियरों के ऊंचे जज्बे औऱ क्षमताओं का वैश्विक प्रदर्शन भी है।

-अंडर रिवर मैट्रो-2009 से लंबित पड़ी कोलकोता में प्रस्तावित अंडर रिवर मैट्रो रेल परियोजना का निर्माण मोदी सरकार के कार्यकाल में भारतीय इंजीनियरिंग का एक  औऱ नायाब उदाहरण बना है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: engineeringengineering marvelsengineering studiesengineers nationengineers shape the nationfuturehindi vivek magazineindian projectsinformativelearningmodernnew engineers

डॉ. अजय खेमरिया

Next Post
चुनौतियों से भरा जीवन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जन्मदिन की शुभकामनाएं

चुनौतियों से भरा जीवन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जन्मदिन की शुभकामनाएं

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0