भौगोलिक रचना,  वनस्पति एवं आयुर्वेद

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भारत के उत्तर क्षेत्र में स्थित देवभूमि उत्तराखंड लगभग साढ़े त्रेपन हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ देश का सांस्कृतिक, पौराणिक, संगठनात्मक तथा वैदिक दृष्टि से संपन्न प्रदेश है। उत्तराखंड का क्षेत्रफल भारत के कुल क्षेत्रफल का मात्र 1.7% होने पर भी उत्तराखंड का योगदान भारत में अहितीम है।

भावी परिदृष्य

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एक ओर मैदानी क्षेत्रों के लोग कृषि को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं, जबकि पहाड़ों में इस व्यवसाय को उपेक्षित या हेय दृष्टि से देखा जाने लगा। इस कारण से भी उत्तराखंड के लोगों ने अपने प्राचीन व परंपरागत व्यवसाय को अपनाने की अपेक्षा शहरों में जाकर नौकरी करना उपयुक्त समझा। इसलिए हमें चाहिए कि हम लोगों के मन में अपनी खेती, पशुपालन व परंपरागत व्यवसाय को अपनाने के प्रति पुनः आकर्षण उत्पन्न करें।

गौ रक्षा मेरा धर्म

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श्री मनोहरलाल जुयाल की जीवन यात्रा सचमुच में बहुत अद्भुत है। देहरादून में आकर व्यापार की तरफ रुख किया। अपनी मेहनत और लगन से धीरे-धीरे उन्होंने तरक्की करनी शुरू की और आज वे देहरादून के नामचीन होटलों के मालिक हैं। उन्होंने मायादेवी एज्युकेशन फाउंडेशन के माध्यम से उच्च विद्या का प्रसार करने में अपना योगदान दिया हैं। साथ में गौ भक्त मनोहरलाल यह उनकी विशेष पहचान हैं।

पीएम मोदी के जन्मदिन पर ऐसा उपहार !

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देश के प्रधानमंत्री ने 17 सितंबर को अपना 71वां जन्मदिन मनाया लेकिन यह बाकी जन्मदिन से बिल्कुल अलग था। हम अपने जन्मदिन पर केक काटते हैं और दोस्तों व परिवार के साथ पार्टी करते है जबकि पीएम मोदी ने अपने जन्मदिन पर ऐसा कुछ भी नहीं किया। उन्होंने अपना जन्मदिन…

भारतीय राजनीति में नरेंद्र “मोदी” होने के मायने

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भारत 'नवनिर्माण' की अमृत बेला से गुजर रहा है। 'अंत्योदय' के दर्शन में विकास को ढाल कर 'राष्ट्रोदय' की स्वर्णिम संकल्पना को साकार करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस युगांतरकारी 'नव निर्माण' के वास्तुकार हैं। वंचितों, शोषितों, उपेक्षितों, उपहासितों, किसानों और महिलाओं के सर्वांगीण उत्थान को समर्पित यह  'निर्माण प्रक्रिया' भारत…

चुनौतियों से भरा जीवन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जन्मदिन की शुभकामनाएं

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जीवन बहुत ही संघर्षों के बीच गुजरा है और अब भी शायद कुछ ऐसा ही बीत रहा है हालांकि उन्होने जो मुकाम हासिल किया है वह आम लोगों के बस की बात नहीं है उसके लिए एक विशेष संघर्ष की ही जरूरत होती है। बेहद साधारण परिवार से…

अद्धभुत, अकल्पनीय अभियांत्रिकी से दमकता नया भारत

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बहुत पुरानी बात नही है जब सरहद पर मीटरों के फासले दिनों में तय हो पाते थे,आज किलोमीटरों का सफल मिनिटों में पूरा हो रहा है।इंच इंच रास्ता संघर्ष को आमंत्रित करता था अब मीलों की सुरंग भारत की संप्रभुता,सम्मान और सक्षमता की कहानी बयां कर रहीं है।यह नया भारत है। अपनी सीमाओं की चौकसी में खड़ा हर दुश्मन की आंख में आंख डालकर चुनौती को स्वीकार करने।यह भारत की अद्धभुत इंजीनियरिंग का नया अध्याय भी है जिसे देखकर पूरी दुनियां चकित है।एफिल टावर ,स्टेचू ऑफ लिबर्टी की ऊंचाइयों को अब भूल जाइए।गगनचुंबी ऊंचाइयों पर अभियांत्रिकी को देखना है तो कश्मीर की वादियों में आइए,केवडिया में माँ नर्मदा के तट पर पहुँचिये,यहां नए भारत की मेधा,कौशल और इंजीनियरिंग आपको नए संकल्पों से रु- ब -रु कराते मिलेंगे।हजारों साल पहले जिस वास्तु औऱ विनिर्माण तकनीकी से हमारे पूर्वजों ने,मठ मंदिर,किलों की स्थापत्य कला से दुनियां को परिचित कराया था, कमोबेश आज 21 वी सदी में भी भारतीय इंजीनियरिंग के नायाब कौशल की अनेक ऐसी ही कहानियां लिखी जा रही है।  आज विश्व की सबसे लंबी टनल हो या सबसे ऊंची प्रतिमा या फिर सबसे ऊंचा रेल पुल सब कुछ भारत के नाम पर है।यह भारत की महान एवं विज्ञान सम्मत इंजीनियरिंग विरासत को पुनर्प्रतिष्ठित करने जैसा भी है।आज हमारी अभियांत्रिकी का सिक्का दुनियां को अचंभित कर रहा है।यह सब हो रहा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जिन्होंने भारतीय प्रतिभा को प्रतिष्ठित करने के अतिरेक प्रयासों को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा हुआ है।3428 किलोमीटर लंबी भारत की एलएसी पर आज कोई ऐसा क्षेत्र नही बचा है जहाँ पहुँचने के लिए हमारी सेनाओं को मौसम खुलने का इंतजार करना पड़े।सब दूर सड़कों,पुलों,सुरंगों का ऐसा संजाल मोदी सरकार ने खड़ा कर लिया है, जो दुश्मन देशों को बुरी तरह खटक रहा है।यह सब आज से 10 बर्ष पहले तक असंभव सा लगता था और तथ्य यह है कि तत्कालीन सरकारों की प्राथमिकता से बाहर ही था। केंद्रीय रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने सदन में खड़े होकर स्वीकार किया था सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत सरंचना विकास हमारी सामरिक नीति का हिस्सा नही है।यानी सीमाओं पर विकास में कांग्रेस की कोई रुचि नही थी।नतीजतन 1997 में सयुंक्त मोर्चा सरकार के समय तबके प्रधानमंत्री श्री एचडी देवगौड़ा ने असम-अरूणाचल को जोड़ने वाले जिस "बोगीवील पुल" का भूमिपूजन किया था उसे 2014 तक ठंडे बस्ते में पटककर रखा। 5920 करोड़ की लागत वाले इस पुल को मोदी सरकार ने अपनी प्राथमिकता में लेकर रिकार्ड समय में पूरा कर दिखाया।4.94किलोमीटर का यह पुल भारत के इंजीनियरों की अदम्य औऱ अद्धभुत क्षमताओं का उदाहरण भी है। असम के डिब्रूगढ़ से अरुणाचल प्रदेश के धकोजी जिले को जोड़ने वाले इस पुल पर आपातकाल में लड़ाकू विमान तक उतारे जा सकते है।हमारे इंजीनियर्स ने इसे  कुछ इस तरह डिजाइन किया है कि भूकंप औऱ बाढ़ जैसी आपदाओं में भी यह अगले 120 बर्षों तक यूं ही खड़ा रहेगा।पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी के जन्मदिवस पर तीन साल पहले प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था।इस पुल ने न केवल असम और अरुणाचल को जोड़ दिया बल्कि चीन की सीमा तक रसद औऱ सेना भेजना मिनिटों में संभव कर दिया है। इस डबल डेकर पुल के ऊपरी तल पर तीन लेन सड़क एवं निचले तल पर ट्रेन का ट्रेक बनाया गया है।जिन प्रतिकूल परिस्थितियों में यह पुल बॉर्डर रोड आर्गनाइजेशन के इंजीनियरों  ने  बनाया है वह भारतीय इंजीनियरिंग कौशल का अचंभित कर देना वाला पक्ष है। सीमा पर घात लगाए बैठे ड्रेगन लिए तो यह किसी सदमे से कम नही है।देश के इंजीनियर्स का यह कमाल यहीं तक सीमित नही है, बल्कि सामरिक महत्व के हर उस हिस्से में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है जो भारत की सम्प्रभुता,एकता और सीमाई अखण्डता के लिए संवेदनशील माने जाते रहे है। -लिपूलेख दर्रा सड़क से कैलाश मानसरोवर की सुगमता- 17500 फिट की ऊंचाई पर 80 किलोमीटर की यह सड़क बॉर्डर रोड आर्गनाइजेशन के इंजीनियरों के कौशल का एक  बड़ा ही महत्वपूर्ण उदाहरण है।इसके निर्माण ने चीन की सीमा पर हमारी सतत निगरानी को सुनिश्चित तो किया ही है साथ ही कैलाश मानसरोवर की दुर्गम यात्रा को भी सरल बना दिया है।2005 में इस प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिली थी लेकिन इसका काम आरंभ हुआ 2018 में जब कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने इसे सर्वोच्च प्राथमिकता वाले प्रोजेक्ट में शामिल करते हुए 440 करोड़ रुपए स्वीकृत किये।2022 तक इसे पूरा किया जाना था लेकिन देश के इंजीनियर्स ने इसे समय से पहले ही बना दिया।यह सड़क धारचूला को लिपूलेख(चीन बॉर्डर)से जोड़ती है।इस परियोजना "हीरक"के चीफ इंजीनियर विमल गोस्वामी के अनुसार सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस मार्ग के बन जाने से तवाघाटी के पास माँगती शिविर से शुरू होकर व्यास घाटी में गूंजी और सीमा पर भारतीय भूभाग में स्थित सुरक्षा चौकियों तक के 80 किलोमीटर से अधिक के दुर्गम हिमालयी क्षेत्र तक पहुँचना आसान हो गया है।इस नए मार्ग से की जाने वाली कैलाश मानसरोवर की यात्रा का लगभग 84 प्रतिशत हिस्सा भारत में है,केवल 16 फीसदी ही चीन में पड़ता है जबकि सिक्किम,काठमांडू मार्ग से जाने पर 80 फीसदी हिस्सा चीन में पड़ता था।खासबात यह भी है कि अब चीन के पांच किलोमीटर क्षेत्र को छोड़कर सम्पूर्ण यात्रा वाहनों से हो रही है।कैलाश का महत्व हिंदुओं के अलावा बौद्ध,जैन तिब्बतियों के लिए भी है।भारतीय इंजीनियरिंग ने इस यात्रा को भी अपने कौशल से सुगम्य बना दिया है। -एफिल टावर से ऊंचा रेल पुल बनकर तैयार- दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल कश्मीर के रियासी में बन कर तैयार हो गया है।ये दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज जो कि एफ़िल टॉवर से भी 35 मीटर ऊंचा है. इसकी नदी तल से ऊंचाई 359 मीटर है।कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है इसे रेलवे लाइन के माध्यम से भी सिद्ध किया जाना एक सपने जैसा था लेकिन हमारे इंजीनियर्स ने इस सपने को भी अब पूरा कर दिखाया है। इस रेल लाईन से सेना को कश्मीर घाटी तक पहुंचने में 4 से 5 घंटे की बचत होगी. इस खबर से चीन काफ़ी परेशान हो रहा है।ये ब्रिज जम्मू कश्मीर के रियासी ज़िले में बना है। भारत का चिनाब ब्रिज एफ़िल टॉवर से भी ऊंचा है। स्ट्रेटजिक महत्व के इस ब्रिज के बन जाने से अब पूरी कश्मीर घाटी देश बाक़ी हिस्सों से जुड़ गई है। ये ब्रिज जम्मू के ऊधमपुर से लेकर कश्मीर के बारामूला तक बन रही रेल लाईन यूएसबीआरएल प्रॉजेक्ट का हिस्सा है। इस रेल लाईन के बन जाने से भारतीय सेना को भारत चीन बॉर्डर तक पहुंचने में न सिर्फ़ सहूलियत होगी बल्कि चार से पांच घंटे की बचत भी होगी। इस ब्रिज को बनाने के लिए भारतीय रेलवे के इतिहास की अब तक की इस सबसे ऊंची क्रेन का इस्तेमाल किया गया है। इससे, आसमान में क्रेन के रोपवे से लटक कर जाते भारी स्टील के ब्रिज सेग्मेंट अपनी निर्धारित सटीक जगह पर रखना हमारे इंजीनियर्स की अद्धभुत क्षमताओं औऱ निपुणता का उदाहरण है। अब रेल लाईन का ये डेक आगे बढ़ेगा और चिनाब आर्च के ऊपर बन रहे पुल से जुड़ जाएगा जिसके ऊपर रेल लाईन बिछाई जाएगी.  28 हज़ार करोड रूपए के इस प्रॉजेक्ट से कश्मीर से…

भारतीय खेलों में प्रतिमान बदलाव

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हम 130 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश हैं इसलिए स्वाभाविक रूप से खेल बिरादरी से बहुत अधिक अपेक्षाएं हैं।  टोक्यो ओलंपिक और पैरा ओलंपिक में प्रत्येक भारतीय ने हमारे एथलीटों के प्रदर्शन का तहे दिल से स्वागत किया है।  हालांकि ओलंपिक में पदकों की संख्या सिर्फ सात है, लेकिन…

अपंग कल्याणकारी शिक्षण संस्था ने मनाया स्वतंत्रता दिन अमृत महोत्सव

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पुणे. वानवडी स्थित अपंग कल्याणकारी शिक्षण संस्था व संशोधन केंद्र में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ ध्वजारोहण कर ७५ वां स्वतंत्रता दिन अमृत महोत्सव मनाया गया. इस दौरान संस्था के सेवानिवृत्त कर्मचारियों सहित कोरोना योद्धाओं का सम्मान किया गया. प्रमुख अतिथि के रूप में सेवा सहयोग फाउन्डेशन के अध्यक्ष व…

सावित्रीबाई फुलेः स्त्री शिक्षा की अग्रणी प्रणेता

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दुनिया में लगातार विकसित और मुखर हो रही नारीवादी सोच की ऐसी ठोस बुनियाद सावित्री बाई और उनके पति ज्योतिबा ने मिल कर डाली, जिसने भारत में महिला शिक्षा एवं सशक्तिकरण की नींव रखी।

शिक्षा का भविष्य और भविष्य की शिक्षा

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नई शिक्षा नीति का उद्देश्य ज्ञान आधारित जीवंत समाज का विकास रखा गया है जिसे प्राप्त करने के लिए विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को पर्याप्त लचीला बनाया जाएगा। यह भारतीय शिक्षा पद्धति को राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना के अनुरूप संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाने के प्रयास की अभिव्यक्ति है।

नई शिक्षा नीति आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ता कदम

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लगभग 35 वर्षों बाद नई जीवनानुकूल शिक्षा प्रणाली आ रही है। नई शिक्षा नीति में ऐसे छात्रों का निर्माण होगा, जो भारत की जड़ों से जुड़े रहें और आधुनिकता के साथ भी कदम मिलाए। इसलिए इस नीति का स्वागत ही किया जाना चाहिए, क्योंकि यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ा एक और महत्वपूर्ण कदम है।

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