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वस्तुस्थिति को स्वीकार करे कांग्रेस

वस्तुस्थिति को स्वीकार करे कांग्रेस

by अवधेश कुमार
in ट्रेंडींग, राजनीति
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पंजाब के घटनाक्रम से परे राकांपा प्रमुख शरद पवार ने कांग्रेस को लेकर जो टिप्पणी की है भले वह कटाक्ष हो लेकिन है बिल्कुल यथार्थ। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस पुराने जमींदारों की तरह व्यवहार कर रही है जिनकी जमीनें खत्म हो गई लेकिन वे दोहराते रहे कि यह सारी हमारी थी । उनका कटाक्ष इस विषय को लेकर था कि कांग्रेस अपनी स्थिति के बारे में जमीनी सच्चाई को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है और इसी कारण न यूपीए का कोई स्वरूप बन रहा है और न स्वयं कांग्रेस ही अपने भविष्य को संभालने की व्यवहारिक कोशिश कर पा रही है। यह बात सही है कि यूपीए के बारे में जब कांग्रेस के नेताओं के सामने किसी नेता का नाम रखा जाता है तो वे कहते हैं कि राहुल गांधी है। जब आप की स्थिति प्रभावी होती है तभी आपको अन्य दल नेता के रूप में स्वीकार कर सकते हैं।

राहुल गांधी ने पिछले दिनों संसद सत्र के दौरान विपक्षी नेताओं को साथ लेकर साइकिल मार्च किया,  फिर सोनिया गांधी ने विपक्ष के नेताओं को बुलाकर राजनीतिक रणनीति पर बैठक की। उसमें अगर अनेक विपक्षी नेता शामिल हुए तो उसका कारण यह नहीं था कि वे कांग्रेस नेतृत्व को यूपीए के लिए भी स्वीकार करने को तैयार हैं। सच्चाई तो यह भी है कि कांग्रेस के अंदर ही वरिष्ठ नेताओं का एक समूह यूपीए के लिए शरद पवार के नाम को आगे करने की कोशिश कर रहा है। इन नेताओं को सोनिया गांधी,राहुल गांधी ,प्रियंका वाड्रा के नेतृत्व और अपनी कांग्रेस पार्टी के जनाधार की वास्तविकता का आभास है। दुर्भाग्य से 10 जनपथ के करीबी नेताओं को सच्चाई स्वीकार नहीं। उनकी नजर में शरद पवार का बयान बिल्कुल गलत है। उनके नकारने से क्या सच्चाई बदल जाएगी? 

दुर्भाग्य यह है कि जो नेता कांग्रेस के अंदर यथार्थ का उल्लेख करते हैं उन्हें पार्टी विरोधी करार दिया जाता है। आखिर जिसे जी 23 कहा जाता है वे सारे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता है। कांग्रेस की रीती रणनीति निर्धारण में उनकी भूमिका रही है । हम यह मानने को तो तैयार हैं कि कांग्रेस की वर्तमान दुर्दशा में उनकी भी भूमिका है लेकिन वे आज की जमीनी सच्चाई से पार्टी  को अवगत करा रहे हैं। कांग्रेस का हर परिपक्व नेता सच समझता है। लगातार दो लोकसभा चुनावों में विपक्ष के नेता का पद पाने के लायक भी सीटें न मिल पाने से ज्यादा कांग्रेस की दुर्दशा का और कोई सबूत नहीं हो सकता।

जिन राज्यों में भाजपा या किसी अन्य के विरुद्ध कांग्रेस अकेली पार्टी है मुख्यतः वही उसका कुछ ठोस जनाधार बचा है। राजस्थान, गुजरात,मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ ,हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड ऐसे राज्य हैं जहां जनता के पास भाजपा के विरुद्ध अगर किसी को वोट देने का विकल्प है तो वह कांग्रेस है। गुजरात में कांग्रेस की स्थिति अत्यंत बुरी हो है। जिन राज्यों में तीसरी पार्टी या कुछ और पार्टियां हैं उनमें हरियाणा को छोड़ दें तो कांग्रेस को वोट नहीं के बराबर मिलता है। पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन के रहते भी कांग्रेस मुख्य पार्टी थी इसलिए वह सफल रही। लंबे समय से अकाली के साथ हाशिए की पार्टी बनकर भूमिका निभाने वाली भाजपा पंजाब में प्रभावी नहीं है।

अकाली दल भी पहले से कमजोर हुई है और आम आदमी पार्टी का जनाधार वहां बढ़ा है। इनके समानांतर कांग्रेस के अलावा जनता के पास कोई विकल्प नहीं है। हालांकि वहां भी कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के फैसले के बाद कांग्रेसका भविष्य तत्काल प्रश्नों के घेरे में है। इसके अलावा आप पूरे देश में नजर दौड़ाइए, केरल, कर्नाटक और असम को छोड़कर कांग्रेस या तो पूरी तरह खत्म है या खत्म होने के कगार पर है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस जमीन पर कहीं नहीं दिखती। दिल्ली में भी वह खत्म है। बिहार में गठबंधन न हो तो उसके लिए लोकसभा की एक सीट जीतना भी संभव नहीं। झारखंड में वह तीसरे नंबर की पार्टी हो गई तो महाराष्ट्र में चौथे नंबर की। उड़ीसा, आंध्र और तेलंगाना से उसका उसका अस्तित्व खत्म हो रहा है। ऐसे में कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व और उनके सलाहकार भले सपनों की दुनिया में रहे जिन्हें बांके चुनाव की राजनीति करनी है वह उनको अगुआ कतई नहीं मानेंगे। 

आखिर थोड़ी भी जनाधार वाली कौन पार्टी नरेंद्र मोदी के सामने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मानकर विपक्षी गठबंधन का घटक बनेगी ? राहुल गांधी की रणनीति पर तो पार्टी में ही प्रश्न खड़े होते रहे हैं। असम चुनाव में बदरुद्दीन अजमल के साथ गठबंधन का उनका फैसला गलत साबित हुआ । कांग्रेस केरल और असम के चुनाव में सफल होती तो भी भविष्य के गठबंधन के लिए उनको नेता मानने को शायद ही कोई दूसरी पार्टी तैयार होती। इस समय तो कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में पिछले विधानसभा चुनाव में भी जनता द्वारा नकारी गई पार्टी है । सोनिया गांधी और उनके रणनीतिकार इस पर ईमानदार मंथन करें कि आखिर उनकी रणनीति क्यों विफल हो रही है और राहुल गांधी में जनता अपना नेता क्यों नहीं देख पा रही तो उन्हें इसका सही उत्तर मिल जाएगा। उत्तर मिलता भी होगा, पर पार्टी नेतृत्व परिवार के हाथों बनाए रखने की आकांक्षा में सार्वजनिक तौर पर सच नहीं स्वीकार किया जाता। 

हालांकि परिवार का राजनीतिक हित भी इसी में है कि पार्टी वास्तविकता को स्वीकार कर अपनी राजनीतिक और चुनावी रणनीति की व्यवहारिक रूप रेखा बनाए। शरद पवार यूपीए के प्रमुख नेता रहे हैं और महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ हैं। वह गलत आकलन करके विरोधी भाजपा के हाथों कोई राजनीतिक हथियार क्यों देंगे? पवार अनुभवी राजनेता भी हैं। हम उनकी राजनीति से सहमत या असहमत हो सकते हैं पर बयानों को लेकर वे हमेशा संयम का परिचय देते रहे हैं। कांग्रेस अगर इसे सकारात्मक रूप में ले तो वह जमीनी वास्तविकता समझ कर नए सिरे से अपने लिए उपयुक्त राजनीतिक रणनीति भी बना पाएगी। लेकिन जो पार्टी सच बताने वाले अपने ही वरिष्ठ नेताओं की निष्ठा पर प्रश्न उठा रही हो उससे कम से कम इस समय ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती। राजीव गांधी के शासनकाल में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलापति त्रिपाठी ने पार्टी की दशा को लेकर कई पत्र लिखे जो सुर्खियां बनी पर उस समय शायद ही किसी ने त्रिपाठी को पार्टी विरोधी का कहा।

 वर्तमान कांग्रेस की समस्या है कि जो कोई भी आईना दिखाता है उसे निंदा, आलोचना,लांछन सब झेलने पड़ते हैं। आप वस्तुस्थिति के आधार पर तथ्यपरक आलोचना भी करिए तो कांग्रेस के नेता, प्रवक्ता आपको आक्रामक तरीके से आरोपित करेंगे। इसमें किसी के लिए उपयुक्त सुझाव देना भी संभव नहीं रह गया है। ऐसा आचरण किसी भी पार्टी के भविष्य पर ग्रहण लगा देगा। आलोचनाओं का खुले मन से लेने और  उसके सकारात्मक विवेचना का आचरण किसी व्यक्ति या संगठन को स्वस्थ और सशक्त बनाए रखने का मूल आधार होता है।  इससे आपको अपने लिए भविष्य की योजना और रणनीति बनाने का रास्ता मिलता है। इसके विपरीत आचरण करने वाला व्यक्ति या संगठन हमेशा पतन का शिकार हुआ है। कांग्रेस बिल्कुल इसी अवस्था में आ चुकी है। जो सबको दिख रहा है उसे आप देखते हुए भी नहीं देखना चाहते तो फिर कोई आप का भला नहीं कर सकता। उम्मीद करिए कि कांग्रेस आज न कल इस बात को समझेगी कि वह अब पुरानी समय वाली संपूर्ण देश में सबसे ज्यादा जनाधार वाली पार्टी न है और ने निकट भविष्य में हो सकती है।

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