भारतवर्ष एक प्राचीन परंपरा और सांस्कृतिक देश है। कई हजार साल पहले रामायण, महाभारत से लेकर आज से सत्तर साल पीछे देश की आजादी तक हमने एक चीज बहुत निरंतरता से आजमाई है, वो संघर्ष है। कोई भी संघर्ष शस्त्र के बिना अधूरा है। यही नहीं बल्कि हमारे सभी देव-देवताओं के हाथ में भी कोई न कोई आयुध शस्त्र नजर आते हैं। यही सबसे बड़ा आधार है कि हमारे पुराणों में भी शास्त्र और शस्त्र दोनों को भी महत्वपूर्ण आयुधों के रूप मे बताया गया है। यह एक बड़ा संकेत है कि मनुष्य ने दोनों भी चीजों का पूजन, ग्रहण और विवेक विचार रखकर उसे परिस्थिती के अनुसार उचित प्रयोग करना चाहिए।
अश्विनी पक्ष की विजयादशमी के दिन हर जगह भगवान श्रीराम की पूजा के साथ तीन प्रमुख देवियों की पूजा भी की जाती है। साथ ही इस दिन सफलता की कामना लेकर अस्त्र-शस्त्र पूजन भी किया जाता है। भगवान श्रीराम ने भी रावण के वध से पहले देवी पूजा के साथ अपने शस्त्र की पूजा की थी। उन्होंने यह पूजा सफलता की कामना के लिए की थी। बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न दशहरा न केवल मानव जाति को एक सीख देता है, बल्कि यह भी बताता है कि दैवीय शक्तियां केवल सच्चाई का साथ देती हैं। सनातन परंपरा में शस्त्र और शास्त्र दोनों का बहुत महत्व है। शास्त्र की रक्षा और आत्मरक्षा के लिए धर्मसम्मत तरीके से शस्त्र का प्रयोग होता रहा है। प्राचीनकाल में क्षत्रिय शत्रुओं पर विजय की कामना लिए इस दिन का चुनाव युद्ध के लिए किया करते थे। पूर्व की भांति आज भी शस्त्र पूजन की परंपरा कायम है। देश की तमाम रियासतों और शासकीय शस्त्रागारों में आज भी शस्त्र पूजा बड़ी धूमधाम के साथ की जाती है।
जैसे कि हम अनुभव करते हैं, जितनी मात्रा में अन्य पूजा पाठ, धार्मिक विधी किए जाते हैं उस तुलना में आज शस्त्रों की पूजा बहुत कम दिखाई देती है। यह प्रमाण लुप्त होने कि कगार पर है। आज देश में झूठी वामपंथी विचारधारा, धर्मनिरपेक्षता और कई अन्य सामाजिक ध्रुवीकरण करने वाले घटकों ने हमारी शस्त्र और शस्त्र पूजन के प्रति धारणा, श्रद्धा और परंपरा को दुबला करने का काम किया है। जैसे कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी ने टिप्पणी की है कि जिस देश की सीमा तलवार की नोक से और जवानों के लहू से बांधी जाती है, वो देश कभी कमजोर नहीं होगा। इसका सीधा मतलब है कि मुफ्त या बिना किसी संघर्ष किए हुए मिली हुई चीज का कोई मोल नहीं होता।
जैसे कि हर श्रावण मास में हर घर, दुकान और व्यवसाय आदि जगहों पर वृद्धि और बढत के लिए सत्यनारायण भगवान का पूजा-पाठ किया जाता है। वैसे ही हमें कई महीनों के अंतर में शस्त्रपूजन भी करना चाहिए। यदि हम निरुद्देश्यता से किसी को पूछते हैं कि क्या उन्होंने शस्त्र पूजन का प्रसाद ग्रहण किया है, तो चौंक जाता है, शस्त्र पूजन का प्रसाद? यह सवाल उस व्यक्ति को शस्त्र पूजन की ओर आकर्षित कर देता है। शायद वह व्यक्ति शस्त्र पूजन करने लगे। यह तारिका शस्त्र पूजा के प्रति जागरूकता बढ़ाने हेतु एक छोटा प्रयास साबित हो सकता है।
वर्तमान की अस्थिरता हमें पल-पल याद दिलाती है कि हमें शस्त्र को क्यों नहीं भुलना चाहिए? ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत हैं। जिन देशों ने बड़े संघर्ष और युद्ध के बाद स्वतंत्रता प्राप्त की वो देश कुछ सालों बाद शस्त्र को भूल गए और आज उनकी दयनीय स्थिति बनी हुई है। जागतिक पटल पर इजरायल जैसा छोटा देश भी बहुत बड़ा बलवान साबित होता दिखाई देता है क्योंकि वे शस्त्र को भूले नहीं बल्कि युद्धनीति और शस्त्रागार में कई सुधार और आधुनिकीकरण कर चुके हैं। परिणाम हेतू आज इजराइल जैसा छोटा देश भी तुल्यबळ टक्कर दे सकता है। इसका दूसरा अंग है कि अफगान जैसा बड़ा देश भी आज शरण आता है क्योंकि वे शस्त्र भूल गए। आज हर हर प्रगत, उन्नत राष्ट्र को शास्त्र और शस्त्र दोनों के प्रति समान रुचि रखते हुए चलना होगा और दोनों का प्रयोग परिस्थिती समझकर पूरे विवेक से करना होगा।
भाषा शैली उत्तम… विचार करायला लावणारे विचार… अशा चांगल्या गोष्टी अंगिकारायला काहीच हरकत नाही…
वेगळा विषय, खुप छान मांडला
बहुत सुंदर लेख है।
आपने शास्त्र एव शस्त्र का महत्व सरल भाषामें समजाया है ।
Good artcle.
With the technology, we shud also upgrade to latest weapons such as Drone based attacks et al.
लेख अच्छा है। जब तक मुगलोंका राज था तबतक संघर्ष जारी था, विजीगीषु वृत्ती जारी थी हरेक के पास शस्र होता था और वह शस्र चलाना भी जानता था।
ब्रिटिश आनेके बाद उसमे कमी आ गयी और स्वतंत्रता आंदोलन बिन खडक बिना ढाल ही पढाया गया। कारण वश किसीके पास शस्र है ही नही, चलाने की बात दूर।
फारच उत्तम लेख.. काळाची गरज..शास्त्र और शस्त्र
सीखने के लिए कुछ चीजें हमेशा महत्वपूर्ण होती हैं … यह उनमें से एक है
Unbelievable … This is Amazing…