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म्यांमार : योद्धा भिक्षु विराथु

म्यांमार : योद्धा भिक्षु विराथु

by अमिय भूषण
in देश-विदेश, राजनीति, विशेष, व्यक्तित्व
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म्यांमार के बौद्ध भिक्षु विराथु को जेल से रिहाई मिली है।उन्हें खुली हवाओ में साँस लेने की यह आजादी उस वक़्त मिली है जब म्यांमार की सत्ता पर सेना का नियंत्रण है।यह सब कुछ ऐसे वक्त मे हुआ है जब यांगून के शासन पर लोकतंत्र हनन के गंभीर आरोप है।वही दूसरी ओर तालिबान के लौटने के बाद से इस्लामिक अतिवाद का क्रूरतम चेहरा पूरी दुनिया देख रही है।आखिर ऐसे वक्त में विराथु के बाहर होने के मायने क्या है?इसे जानने के लिए हमे विराथु के अतीत का विचार करना होगा।महज चौदह साल की उम्र में घर छोड़ने वाले यह भिक्षु आज बर्मा के लोगो की आवाज है।वे सभाओं से लेकर सोशल मीडिया तक अत्यंत लोकप्रिय है।एक छोटे से गाँव से मांडला के मठ मासोयेन तक का उनका सफर कई उतार चढ़ाव से होता हुआ पहुँचा है।यू भी मांडला कोई कोई सामान्य नगर नही है।कभी यह महान मणिपुरी राजाओ द्वारा शासित रही है।यह लोकमान्य तिलक की साधना भूमि भी है।
यही ब्रिटिश सलाखों के पीछे रहकर उन्होंने प्रसिद्ध ग्रंथ गीता रहस्य को पूर्ण किया था।तिलक जी के स्वराज संबंधित विचारों के निर्माण की भूमि भी मांडला है।आज उसी भूमि पर त्रिपिटक और गीता के मर्म रहस्यों के साथ एक बौद्ध भिक्षु स्वधर्म के लिए आंदोलित है।युद्ध तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय: अर्थात हे कौन्तेय  उठो निश्चय कर युद्ध मे प्रवृत्त हो।इस भावना के साथ वो स्वधर्म और स्वदेश के  रक्षनार्थ वैचारिक क्रांति के मार्ग पर है।जहाँ उनके एक स्वर पर लाखों लोग सड़कों पर कभी भी उतर सकते है।वही सैकड़ों बौद्ध भिक्षु उनके साथ साथ होते है।अकेले उनके मांडला मठ में ही करीब ढाई हजार भिक्षु  उनके संकेतों के प्रतीक्षा मे खड़े होते है। यह सब तब है जब फेसबुक जैसे लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने उन्हें प्रतिबंधित कर रखा है।तब भी वो इंटरनेट पर सर्वाधिक सर्च किए जाने वाले बर्मीज व्यक्ति है।दरसल भिक्षु अशीन विराथु उन कुछेक भगवा वस्त्रधारीयों मे से है जिन्होंने समय रहते इस्लाम के अतिवादी चरित्र को जाना है।वो विस्तारवादी इस्लाम के हर चाल से भलीभांति अवगत है।उन्हें इस्लाम के हर चेहरे के पीछे छिपा आतंक दिखता है।
दरसल उनकी दृष्टि में यहाँ कुछ भी प्रगतिशील और परिवर्तनशील नही है।उदारवादी इस्लाम एक धोखे वाला मुखौटा है।ऐसे में उन्होंने मठ में रहकर केवल  ज्ञान साधना की जगह सड़को पर निकल संघर्ष का रास्ता चुना।जिसकी शुरुआत सन् 2001मे आंदोलन 969 के नाम से हो चुकी है।यह नाम बौद्ध मान्यताओं का एक पवित्र अंक पर आधारित है। वो अपने आक्रामक भाषणो प्रवचनो मे कहते है की मुसलमान, अफ़्रीकी भेड़िए लुपस्टर की तरह हैं।वो तेजी से आबादी बढ़ाते हैं।हिंसात्मक गतिविधियों में शामिल रहते हैं।वही ये शातिर आसपास के सभी जीवों का अस्तित्व समाप्त कर ही दम लेते है।आज ये न केवल तेजी से प्रजनन कर रहे हैं अपितु हमारे महिलाओं को फसा, चुरा रहे हैं।उनका बलात्कार भी कर रहे हैं।वास्तव में ये हमारे देश पर कब्जा करना चाहते है,लेकिन मैं उन्हें ऐसा नहीं करने दूंगा।वो मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या,अलग पहचान और अलगाववादी स्वभावो के सख्त खिलाफ है।वो मुसलमानों से विवाह और व्यापार की मनाही करते है।वे कहते है ऐसा कर आप एक शत्रु मोल ले रहे है।ऐसे ही कारणों से धर्म और जातिये पहचान को गंभीर संकट आ खड़ा हुआ है।इसके लिए वो कुछेक ऐतिहासिक घटनाओं का भी जिक्र करते है।वे कहते है कभी इंडोनेशिया, मलेशिया और अफगानिस्तान की पहचान कुछ और थी।किन्तु अतिवादी स्वभाव से लैस इस्लाम के आगमन ने यहाँ की पूरी जातिये पहचान ही मिटा दी।
हिंदुस्तान से लेकर हिन्दचीन तक के अनेकों मंदिर मठ नष्ट कर दिये गए।इनमें बौद्ध आस्था और शिक्षा के केंद्र नालंदा, ओदन्तपुर(बिहारशरीफ) और गया थे।वही वो अपने उदाहरणों मे पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे नवसृजित इस्लामिक मुल्कों के बनने की कहानी भी सुनाते हैं।वो अपने अनुयायियों से अतीत की इन घटनाओं से सीखने और वर्तमान के बदलते वैश्विक परिदृश्य से अवगत होने की अपील भी जारी करते है।वो भारत,श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों में हो रहे आतंकी घटना और मुस्लिमों के उन्मादपूर्ण प्रदर्शनों की चर्चा एक चेतावनी के तौर पर करते है।वे कहते है की इनके अतिवादी स्वभाव और बढ़ते आबादी के नाते ये देश परेशान है।ऐसे मे हम अपने देश में अपने धर्म और देश के विरोधी विचारो से ओतप्रोत मुसलमानों को रहने की इजाजत नहीं दे सकते है।अन्यथा यहाँ भी यही कुछ दोहराया जा सकता है।आज इनके प्रयासों से बर्मा मे मुस्लिम घुसपैठियों की पहचान उजागर हुई है।वही  बांग्लादेशी मूल के लाखों रोहिंग्या को अंततःदेश छोड़ कर जाना पड़ा है।किन्तु ये कुछ इतना आसान नहीं था।सन् 2003 मे इन्हें अगले पच्चीस वर्षों के लिए सजा सुनाई गई थी।किन्तु संयोगवश 2010 मे कुछ राजनैतिक कैदियों के साथ इन्हें भी रिहा कर दिया गया था।
फिर अपने आक्रामक बयानों के नाते इन्हें सरकार के समर्थन और विदेशी प्रभाव वाले सर्वोच्च बौद्ध प्राधिकरण द्वारा भी एक वर्ष के लिए प्रतिबंधित किया गया था।इस दौरान बर्मा मे इनके सार्वजनिक संबोधनों पर प्रतिबंध था।इनकी बढ़ती हुई लोकप्रियता के साथ ही उनकी छवि को एक शैतान के तौर पर पेश करने के भी प्रयास निरंतर होते रहे है।प्रसिद्ध पत्रिका टाइम ने जुलाई 2013 मे इन पर एक सनसनीखेज विवरण छापा था।तब पत्रिका के मुख्य पृष्ठ पर दी फेस ऑफ बुद्धिस्ट टेरर शीर्षक के साथ इनकी तसवीर प्रकाशित की गई थी।उन दिनों का इनका एक बयान सुर्खियों में रहा है।आखिर एक काषय वस्त्रों वाले सन्यासी भिक्षु के रूप में कोई इतना आक्रामक और असहनशील कैसे हो सकता है।जबकि आपके भगवान तो करुणावतार हैं।तब इन्होंने कहा था,आप दया और प्रेम से भरे बौद्ध हो सकते है पर एक पागल कुत्ते के साथ तो कतई नहीं सो सकते है।ठीक ऐसे ही हम ऐसे किसी आक्रांता समुदाय के साथ रहते हुए एक सुखद भविष्य की कल्पना नहीं कर सकते है।वही इस्लामिक चरमपंथ के पैरोकार अलजजीरा द्वारा लिया गया इनका एक साक्षात्कार भी चर्चा में रहा है।इन्होंने अलजजीरा  प्रतिनिधि को कहा दुनिया अल्पसंख्यकों के रूप में मुस्लिमों को दया भाव से देखती है।लेकिन उन्हें जानिए तो पता चलता है कि ये छोटा सा समूह कितना ग़लत है।ये लोग कितना नुकसान पहुंचाते हैं।सिर्फ हमारा धर्म ख़तरे में नहीं है।पूरा देश ख़तरे में हैं।
जिस तरह उन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश बनाया उसी तरह 2010 से वो बर्मा को इस्लामिक स्टेट बनाने की कोशिशों में हैं।इनके ही प्रयासों का परिणाम है की रखाइन के मुस्लिम बौद्ध तनावों के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति थेन सेन द्वारा मुस्लिम घुसपैठियों के निष्कासन हेतु कानून लाया गया।इन्होंने बर्मा को धर्म संस्कृति संरक्षण के लिए दो और मुद्दे भी दिए हैं।जहाँ पहला मुद्दा इस्लामिक आतंकवाद को चोट करने वाला आर्थिक बहिष्कार है वही दूसरा मुद्दा नए वैवाहिक कानून को लेकर है।इनके अनुसार मुस्लिमों को गैर मुस्लिमों से शादी की अनुमति नहीं दी जाए।वही इनके समर्थक देश भर में घूम घूम मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार का अभियान चलाते रहते है।इनके इन अभियानों का असर इतना व्यापक है की दूरसंचार क्षेत्र मे आई कतर की कंपनी को अपने मुस्लिम कर्मचारियों के साथ बैरंग लौटना पड़ा।
बर्मा मे इनके समर्थक प्रशंसक आमजन से लेकर राष्ट्रीय प्रमुख तक रहे है।
जब पश्चिमी मीडिया ने इनकी तुलना क्रूर आतंकी ओसामा बिन लादेन से की तो यहाँ उन्हें बुद्ध पुत्र की उपमा से पुकारा गया।किन्तु असली समस्या 2018 से शुरू हुई।इनके देशव्यापी प्रदर्शनों ने तत्कालीन आंग सान सू सरकार को भयाक्रांत कर दिया था।ऐसे में परिवर्तन की आशंकाओं से घिरी पश्चिमी देश और चर्च के प्रभाव वाली सरकार ने आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया।सू की सरकार ने बहुलतावाद लोकतंत्र और अंतरराष्ट्रीय छवि का हवाला देते हुए इनके गिरफ्तारी का आदेश दिया।फलतः 2019 मे इन्हें कारावास मे डाल दिया गया।यांगून की सरकार के क्रूर जेल ने इस योद्धा साधु के स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुँचाया है। इस कारावास ने इन्हें लकवाग्रस्त भी कर दिया है।उनका एक हाथ अब पूरी तरह बेकार है।फिर भी आत्मबल के धनी इस साधु ने एक वीडियो संदेश द्वारा अपने अनुचित कारावास को चुनौती दी।इन्होंने हाल ही में गंभीर आरोपों में बंद कारोबारी यू हटे आंग,चरमपंथी माइकल क्याव माइंट और पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल रहे पूर्व सांसद यू हला स्वे को दिये गए जमानत को भी मुद्दा बनाया था।जिससे इनकी सुनवाई में गति आई।
राजनैतिक कारणों से बंद किए गए इन भिक्षु को अंततः न्यायालय द्वारा बाइज्जत बरी किया गया।ऐसा करते हुए न्यायालय ने इनसे संबंधित सभी मामलों को भी तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया है।ऐसे में देखना बेहद दिलचस्प होगा की अब आगे क्या सब होता है।इनके तौर तरीकों ने आसपड़ोस के हिन्दू बौद्ध पहचान वाले देशों को भी प्रभावित किया है।श्रीलंका में भिक्षु थेरो ज्ञानसारा ने इनके मार्ग पर चलते हुए बोदु बाला सेना का गठन किया है।आज ये लोग हिन्दू बौद्ध समन्वय की बात कर रहे है।वही बौद्ध हिन्दू पहचान वाले देश और संगठनों के बीच बेहतर संबंधों पर विचार कर रहे है।ऐसा ही कुछ पड़ोसी थाईलैंड में भी चल रहा है।कुछ समय पूर्व दक्षिणी थाईलैंड के तीन मुस्लिम बाहुल्य प्रान्तों मे चरमपंथी मुसलमानों द्वारा किए गए उत्पात के बाद से यहाँ भी इस्लामिक अतिवाद के खिलाफ एक वातावरण खड़ा हुआ है।वही श्रीलंका मे भिक्षु ज्ञानसारा और अतुरालिये रत्ना के प्रयासों ने पूर्णरूपेण गोहत्या बंदी को लागू कराया है।बात अगर भारत की हो तो 2020 के पालघाट मे हुए हिन्दू संतों की निर्मम हत्या के बाद ट्विटर पर एक हैश टैग चल रहा था।संतों हमे विराथू दो, हजारों ट्वीट इस नाम के साथ ट्रेंड कर रहे थे।ये इस बात को बताने के लिए पर्याप्त है की अब बदलते वैश्विक परिदृश्य में हर गैर इस्लामिक देश को  एक आशिन विराथु चाहिये।आखिर देश धर्म और संस्कृति  के रक्षण का जो मुद्दा है।काश की नेपाल और भारत के संत समाज में भी कोई विराथु हो।किन्ही शंकराचार्य की पीठ से ऐसा ही कोई योद्धा सन्यासी निकलता जो बयानों से आगे बढ़ राष्ट्र प्रेम की बयार बहाता।

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