विज्ञान कितनी भी तरक्की कर ले लेकिन भगवान की आस्था कभी कम नहीं होती है। आज भी दुनिया जितना विज्ञान पर भरोसा करती है उससे अधिक भगवान पर विश्वास करती है यहां तक कि खुद वैज्ञानिक भी अपने किसी काम से पहले भगवान की पूजा करते हैं। हालांकि बदलते समय के साथ लोग भगवान से दूर भी हो रहे हैं जिसमें कहीं समय की कमी है तो कहीं पर आस्था की कमी है लेकिन आम जनता से अलग एक समाज ऐसा भी है जो पूरी तरह से भगवान की भक्ति में लीन है और अपना पूरा जीवन भगवान की भक्ति में लगा दिया है। इन सभी लोगों की भीड़ कुंभ स्नान में देखने को मिलती है जो सिर्फ कुंभ में नजर आते है और फिर कहीं पहाड़ों में चले जाते हैं।
तपस्या या साधना एक बहुत बड़ा शब्द है लेकिन वर्तमान जनसंख्या इससे बहुत दूर हो चुकी है, अब पैसा ही सबकुछ हो चुका है क्योंकि बिना पैसे के कोई भी भौतिक सुख नहीं मिल सकता है और आजकल इसे ही सबसे अधिक प्राथमिकता दी जाती है। योग, साधना और तपस्या जैसे शब्द अब समाज से बहुत दूर हो चुके हैं लेकिन देश के कुछ संत आज भी इसे अपनी जिंदगी बना कर चल रहे हैं। उत्तराखंड का बदरीनाथ धाम 20 नवंबर को पूरे विधि विधान के साथ बंद कर दिया गया जिसके बाद अब वहां किसी को भी रुकने की इजाजत नहीं है। मंदिर परिसर में सिर्फ सुरक्षाबलों को रुकने की अनुमति होती है इसके साथ ही कुछ साधु संतों को भी हर साल अनुमति मिलती है जो अपनी साधना करते हैं।
इस साल भी 11 संतों को साधना करने की अनुमति मिल गयी है। चमोली जिला प्रशासन की तरफ से कुछ स्वास्थ्य परीक्षण के बाद इन सभी संतों को इजाजत दी जाती है। इस बार 39 साधुओं ने जिला प्रशासन से मंदिर परिसर में रुकने के लिए आवेदन दिया था जिसमें से अभी तक 11 लोगों को अनुमति दे दी गयी है। मंदिर का कपाट बंद होने के बाद वहां बर्फबारी शुरु हो जाती है और करीब 15 फीट तक की बर्फबारी होती है जिससे किसी को भी वहां रुकने की अनुमति नहीं होती है। बर्फबारी के दौरान बद्रीनाथ धाम का तापमान करीब 20 डिग्री तक माइनस में चला जाता है लेकिन इस समय भी सभी साधु-संत वहां अपनी अपनी कुटिया में साधना करते है।