‘आनंदमठ’ हिन्दुओं की संघर्षगाथा

बंकिम बाबू रचित “आनंदमठ” बंगाल के दुर्भिक्ष और आक्रांता राज के शोषण के कालखंड की सत्यकथा है, जिसे अक्सर लोग “संन्यासी विद्रोह” कहकर भी पुकारते हैं; मगर मेरी दृष्टि में यह संन्यासी आंदोलन या विद्रोह नहीं था बल्कि यह कालखंड “संन्यासी जागरण” था। जिसमें जाग्रत सन्यासियों ने अपने तेज से बाकी समाज को भी झकझोरकर जगा दिया था।संन्यास का व्रत लेकर व्रत पूर्ण होने तक घर-गृहस्थी त्यागने का संकल्प ले चुके संन्यासी जीवानंद को दैवयोग से अपनी पत्नी से मिलने का अवसर प्राप्त होता है। वर्षों के बाद पत्नी से मिलन के भावुक क्षणों में वो संन्यासी अपना व्रत, अपनी प्रतिज्ञाएं भूल जाता है और भावावेश में अपनी पत्नी को हृदय से लगाते हुये उससे कहता है : – 

“मेरा व्रत भंग होता है तो हो जाये परंतु अब तुम्हें देखने के बाद दुबारा लौटने का मन नहीं करता है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और सारा संसार, व्रत-होम, यज्ञ सब एक तरफ है और दूसरी तरफ तुम हो। मैं किसी तरह भी समझ नहीं पाता हूँ कि कौन सा पलड़ा भारी है। देश तो अशांत है, मैं देश लेकर क्या करूँगा। तुम्हारे साथ एक बीघा भूमि लेकर भी बड़े आनंद से मेरा जीवन बीत सकता है। तुम्हें लेकर मैं स्वर्ग गढ़ सकता हूँ। क्या करना है मुझे देश लेकर? देश की उस संतान का अभाग्य है जो तुम्हारी जैसी गृहलक्ष्मी पाकर भी सुखी न हो सके। मुझसे बढ़कर देश में कौन दुखी होगा? तुम्हारे शरीर पर ऐसा कपड़ा देखकर मुझे लोग देश में सबसे गरीब ही समझेंगे। मेरे सारे धर्मों की सहायता तो तुम हो, उसके सामने फिर सनातन धर्म क्या है? मैं किस धर्म के लिये देश-देश, वन-वन, बन्दूक कंधे पर लेकर प्राणी-हत्या कर इस पाप का भार संग्रह करूँ? पृथ्वी संतानों की होगी या नहीं कौन जानता है लेकिन तुम मेरी हो-तुम पृथ्वी से भी बड़ी हो – तुम्हीं मेरा स्वर्ग हो, चलो घर चलें, अब वापस न जाऊंगा।”

 

ये सुनकर उसकी पत्नी शांति कुछ देर तक कुछ बोल न सकी। उसके बाद बोली- “छी: ! तुम वीर हो- मुझे पृथ्वी पर सबसे सबसे बड़ा सुख यही है कि वीर-पत्नी हूँ। तुम अधम-स्त्री के लिये वीर धर्म का परित्याग करोगे? तुम अपने वीर-धर्म का कभी परित्याग न करना।” और वो देवी इस तरह अपने पति को पुनः उसके कर्तव्य पथ पर निर्ममता से वापस धकेल देती है। “आनंदमठ” की कथा काल्पनिक नहीं है बल्कि ये तो महाकाव्य है रामायण और महाभारत की तरह। “आनंदमठ” की कथा भारत के अब तक “हिन्दू” रहने के संघर्ष की भी कथा है। यह कथा उन त्यागों और बलिदानों की अनंत सत्य कथाओं के बीच की ही एक कथा है जिसमें हिन्दू नारी “नारायणी” बनकर उपस्थित है।

कर्तव्य-पथ और व्यक्तिगत हितों के बीच के संघर्ष में भ्रमित पुरुषों का प्रबोधन करने वाली देवियों की अमर कथा है “आनंद मठ”। बंकिम बाबू के “आनंदमठ” को आसपास के बुक-स्टाल में तलाशिये। इसे माँग कर या पीडीएफ में नहीं बल्कि खरीद कर पढ़िये। भारत के पुनर्जागरण के अनेक अभियानों में एक अभियान ये भी हो, यही आप सबसे याचना है

  • अभिजीत

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