धार्मिक कपड़ों से स्कूल में बढ़ेगी कट्टरता!

एक स्कूल में कुछ लड़कियां हिजाब व बच्चे कुर्ता पजामा में नजर आ रहे है, कुछ भगवा धोती कुर्ते में पढ़ाई कर रहे हैं कुछ बच्चों ने सिर्फ गाढ़ा लाल कलर की धोती पहन रखी है तो कुछ बच्चे नग्न होकर पढाई कर रहे है। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा स्कूल है जहां ऐसे बच्चे पढ़ाई करते है तो आप को बताना चाहूंगा कि अगर धार्मिक आधार पर कपड़े पहनने की आजादी होगी तो आने वाले समय में स्कूल का नजारा कुछ ऐसा ही हो सकता है। अभी तो सिर्फ हिजाब पहनने की मांग हो रही है लेकिन अगर इसे मान्यता मिलती है तो फिर बाकी धर्म जैसे हिन्दू, बौद्ध, जैन सहित सभी धर्मों के लोग भी स्कूल में अपने अपने धार्मिक ड्रेस में नजर आने लगेंगे। 

स्कूल कोई धार्मिक केंद्र नहीं है फिर वहां हिजाब पहनकर जाने की जरूरत ही नहीं है यह तो सिर्फ विवाद पैदा करने की एक शरारत है। दुनिया के सभी स्कूलों में ड्रेस कोड इसलिए ही लगाया जाता है कि ताकि सभी बच्चों के बीच में समानता रहे जबकि धार्मिक कपड़ों की वजह से बच्चों के बीच में दूरी होना स्वाभाविक है इसके साथ ही एक दूसरे के प्रति द्वेष की भावना भी उत्पन्न हो सकती है इसलिए स्कूल में धार्मिक कपड़ो को वरीयता नहीं मिलनी चाहिए और इस पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए।

हिजाब एक ऐसा पहनावा है जिसका गलत इस्तेमाल भी हो सकता है क्योंकि इसे पहनने वाली महिला की पहचान नहीं होती है इसलिए इसका गलत फायदा भी उठाया जा सकता है। कोई पुरुष भी इसे पहन कर असामाजिक कार्यों को अंजाम दे सकता है। वहीं बौद्ध व जैन धर्म के पहनावे इसके बिल्कुल उलट हैं, बौद्ध धर्म में जहां सिर्फ एक बड़े कपड़े को पूरे शरीर में लपेटा जाता है तो जैन धर्म में सिर्फ सफेद कपड़ो को मान्यता दी गयी है जबकि दिगंबर को मानने वाले लोग बिना कपड़ो के ही रहते हैं और अपने शरीर के बालों को खुद के उखाड़ते रहते हैं। 

अब अगर सभी धर्मों के लोग अपने अपने धार्मिक पहनावे के साथ स्कूल में प्रवेश करेंगे तो फिर स्कूल का नजारा कुछ और ही होगा। वहीं स्कूल का अध्यापक धार्मिक पहनावे के कारण अपने धर्म के छात्रों के प्रति पक्षपात कर सकता है जबकि दूसरे धर्म के बच्चों के मन में इस बात का डर हमेशा होगा कि अध्यापक उनके धर्म का नहीं है इसलिए उनके साथ पक्षपात हो सकता है। देश और दुनिया में जहां तेजी से लोग विकास कर रहे हैं और जाति धर्म से ऊपर उठकर सभी एक साथ आगे बढ़ने की बात करते हैं तो वहीं भारत में जातिवाद बहुत तेजी से अपना पैर पसार रहा है और इसके लिए राजनीतिक दल ही जिम्मेदार हैं। राजनीतिक रैलियों से लेकर छोटे मोटे कार्यक्रम के माध्यम से नेता सभी को जाति के आधार पर बांट रहे हैं और अपना वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। कर्नाटक का बुर्का विवाद भी कहीं ना कहीं राजनीति से प्रेरित है इसलिए कुछ नेता इस आग को खत्म करने की बजाय इसे बढ़ाने पर तुले हुए है क्योंकि उसके माध्यम से वह खुद को मुसलमानों का हितैषी बताना चाहते हैं। 

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