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राष्ट्रीयता एवं सामाजिक समरसता का जागृत भाव

राष्ट्रीयता एवं सामाजिक समरसता का जागृत भाव

by हिंदी विवेक
in विशेष, संघ, संस्कृति
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज पूरे विश्व में सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन गया है। वैश्विक स्तर पर कई देशों में तो संघ की कार्य पद्धति पर कई शोध कार्य किए जा रहे हैं कि किस प्रकार यह संगठन अपने 97 वर्षों के लम्बे कार्यकाल में फलता फूलता रहा है एवं किस प्रकार यह समाज के समस्त वर्गों को अपने साथ लेते हुए अपने कई कार्यकर्मों को लागू करने में सफलता अर्जित करता आया है। आज जब कई देशों में अलगाववाद के बीज बोकर भाई को भाई से लड़ाया जा रहा है ऐसे माहौल में संघ भारत के नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना विकसित कर उनमें सामाजिक समरसता के भाव को जगाने में सफल रहा है।  

यूं तो संघ में अलग अलग प्रकार की कई बैठकें होती हैं परंतु इनमे  सबसे बड़ी एवं निर्णय की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण बैठक प्रतिनिधि सभा के रूप में होती है। अभी हाल ही में दिनांक 11 मार्च से 13 मार्च 2022 के बीच प्रतिनिधि सभा की बैठक गुजरात के कर्णावती में सम्पन्न हुई है। पूर्व में प्रतिनिधि सभा की बैठकें केवल नागपुर नगर में ही हुआ करती थीं परंतु अब नागपुर नगर के बाहर भी इस बैठक का आयोजन किया जाने लगा है। प्रतिनिधि सभा की बैठक में चयनित प्रतिनिधि, प्रान्त संघचालक, प्रान्त कार्यवाह एवं विविध संगठनों के प्रतिनिधि अपेक्षित रहते हैं। इस वर्ष देश भर के सभी प्रांतों से 1248 कार्यकर्ता बैठक में अपेक्षित थे। प्रतिनिधि सभा की बैठक में आगामी वर्ष में किए जाने वाले कार्यों के बारे में योजना बनायी जाती है तथा गत वर्ष में सम्पन्न किए गए कार्यों की समीक्षा की जाती है। सरकार्यवाह संघ कार्य एवं विभिन्न प्रांतों का प्रतिवेदन भी इस बैठक में प्रस्तुत करते हैं। आज संघ समाज में समरसता, पर्यावरण, परिवार प्रबोधन अदि विषयों पर अनेक संगठनों के साथ मिलकर कार्य कर रहा है, इन विषयों पर भी प्रतिनिधि सभा की बैठक में चर्चा की जाती है।

हाल ही के समय में देश भर में संघ का कार्य बहुत तेजी से फैला है। हालांकि कोरोना महामारी के चलते संघ की प्रत्यक्ष शाखाओं का कार्य भी प्रभावित हुआ था परंतु अब तो संघकार्य 2020 की तुलना में 98.6% पुनः प्रारम्भ हो चुका है। साप्ताहिक मिलन की संख्या भी बढ़ी है। दैनिक शाखाओं में 61% शाखाएं छात्रों की हैं और 39% व्यवसायी शाखाएं हैं। संघ की दृष्टि से देशभर में 6506 खंड हैं, इनमें से 84% में शाखाएं हैं। 59,000 मंडलों में से लगभग 41% मंडलों में संघ का प्रत्यक्ष शाखा के रूप में कार्य है। 2303 नगरीय क्षेत्रों में से 94% में शाखा का कार्य चल रहा है एवं आने वाले दो वर्षों में सभी मंडलों में संघ की शाखा हो, ऐसा प्रयास किया जा रहा है। संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर संघ कार्य एक लाख स्थानों तक ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 2017 से 2021 तक संघ की वेबसाइट में ‘जोइन आरएसएस’ के माध्यम से 20 से 35 आयु वर्ग के लगभग 1 लाख से 1.25 लाख युवाओं ने प्रतिवर्ष संघ से जुड़ने की इच्छा व्यक्त की है।

कोरोना महामारी के दौरान संघ के स्वयंसेवकों ने समाज के साथ मिलकर सक्रियता के साथ सेवा कार्य किया था। लगभग 5.50 लाख स्वयंसेवकों ने महामारी के पहले दिन से ही सेवा कार्य प्रारम्भ कर दिया था  तथा पूरे समय समाज के साथ सक्रिय सहयोग किया।। विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां बहुत बड़ी संख्या में मठ, मंदिर, गुरुद्वारों से बहुत बड़ा वर्ग सेवा कार्य के लिए निकला। यह एक जागरूक राष्ट्र के लक्षण हैं। साथ ही संघ द्वारा धर्म जागरण, कृषि विकास, पर्यावरण संरक्षण, कुटुंब प्रबोधन, गौसंवर्धन एवं ग्रामीण विकास का कार्य बहुत अच्छी मात्रा में एवं अच्छी गति के साथ चल रहा है।

देश को अंग्रेजों से स्वतंत्रता दिलाने के उद्देश्य से पूर्व में तो देश भर में एक  सार्वदेशिक और सर्वसमावेशी राष्ट्रीय आन्दोलन चलाया गया था। इस आंदोलन के माध्यम से स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद आदि आध्यात्मिक नेतृत्व ने देश के जन और जननायकों को ब्रिटिश अधिसत्ता के विरुद्ध सुदीर्घ प्रतिरोध करने हेतु प्रेरित किया था। इस आन्दोलन से देश में महिलाओं, जनजातीय समाज तथा कला, संस्कृति, साहित्य, विज्ञान सहित राष्ट्रजीवन के सभी आयामों में स्वाधीनता की चेतना जागृत हुई थी। लाल-बाल-पाल, महात्मा गांधी, वीर सावरकर, नेताजी-सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, वेळू नाचियार, रानी गाईदिन्ल्यू आदि ज्ञात-अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों ने आत्म-सम्मान और राष्ट्र-भाव की भावना को और प्रबल किया। कालांतर में प्रखर देशभक्त डॉ. हेडगेवार के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने भी अपनी भूमिका का निर्वहन किया।

देश में संघ की स्थापना की आवश्यकता इसलिए भी हुई थी क्योंकि मुगल आक्रांताओं ने भारत को लूटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी एवं अंग्रेजों ने भारत पर उपनिवेशवादी आक्रमण अपने व्यापारिक हितों को साधते हुए किया था, साथ ही, भारत को राजनैतिक, साम्राज्यवादी और धार्मिक रूप से गुलाम बनाने का भरपूर प्रयास किया था। अंग्रेजों ने भारतीयों के एकत्व की मूल भावना पर आघात करके मातृभूमि के साथ उनके भावनात्मक एवं आध्यात्मिक संबंधों को दुर्बल करने का षड्यंत्र किया था। उन्होंने भारत की स्वदेशी अर्थव्यवस्था, राजनैतिक व्यवस्था, आस्था-विश्वास और शिक्षा प्रणाली पर प्रहार कर स्व-आधारित तंत्र को सदा के लिए विनष्ट करने का भी प्रयास किया था। अतः किसी ऐसे राष्ट्रीयता से ओतप्रोत संगठन की आवश्यकता थी जो देश में पुनः राष्ट्रीयता की भावना का संचार कर सके। इस कार्य को संघ ने बखूबी अंजाम दिया है।

भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में कतिपय कारणों से ‘स्व’ की प्रेरणा क्रमशः क्षीण होते जाने से देश को विभाजन की विभीषिका झेलनी पड़ी थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् इस ‘स्व’ की भावना को राष्ट्र-जीवन के सभी क्षेत्रों में अभिव्यक्त करने का हमें मिला हुआ सुअवसर भी शायद गवां दिया गया था। परंतु अब भारतीय समाज को एक राष्ट्र के रूप में सूत्रबद्ध रखने और राष्ट्र को भविष्य के संकटों से सुरक्षित रखने के लिए ‘स्व’ पर आधारित जीवनदृष्टि को ढृढ़ संकल्प के साथ पुनः स्थापित करना आवश्यक है और अब स्वाधीनता की 75वीं वर्षगांठ इस दिशा में पूर्ण प्रतिबद्ध होने का अवसर उपलब्ध कराती है।

प्रतिनिधि सभा की बैठक के अंतिम दिन प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संघ की आगे आने वाले समय की योजना के बारे में बताते हुए कहा है कि भारत के विमर्श को मजबूत करने एवं उसे प्रभावी बनाने के लिए आने वाले वर्षों में विशेष प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि भारत के हिन्दू समाज, संस्कृति, इतिहास, यहां की जीवन पद्धति के बारे में एक सही चित्र को समाज के सम्मुख रखना चाहिए। भारत में और विदेशों में भी भारत के बारे में अज्ञान के कारण या जानबूझकर भ्रांतियां फैलाने का षड्यंत्र लंबे समय से चल रहा है। इस वैचारिक विमर्श को बदलकर तथ्यों पर आधारित भारत बोध के सही विमर्श को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। समाज में बहुत सारे लोग इस विषय पर कार्य कर रहे हैं, शोध किया गया है, पुस्तकें लिखी गई हैं।

इस विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए उनके साथ भी समन्वय-सहयोग किये जाने के प्रयास किए जाएंगे। संघ का स्वयंसेवक हर बस्ती-मंडल में राष्ट्रीयता, राष्ट्र भावना को आगे बढ़ाने का कार्य करता है साथ ही समाज में संकट के समय समाज के सब लोगों को जोड़ने का कार्य भी संवेदना के साथ करता है। अपने संगठन की ताकत बढ़ाना संघ का उद्देश्य बिलकुल नहीं है परंतु समाज की आंतरिक शक्ति जरूर बढ़नी चाहिए। देश में सामाजिक एकता, समरसता, संगठन भाव भी बढ़ना ही चाहिए। इस दृष्टि से संघ की शाखाओं के विस्तार की योजना भी बनाई गई है। इसी भावना को समझते हुए समाज ने अभी तक सहयोग भी किया है और स्वीकार भी किया है।

संघ के स्वयंसेवक समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। स्वयंसेवकों की पहल से समाज की सज्जन शक्ति के सहयोग से समाज परिवर्तन के कार्य को परिणामकारी ढंग से आगे बढ़ाया गया है। संघ चाहता है कि समाज के सभी लोग मिलकर तालमेल के साथ कार्य करें। इसलिए समाज परिवर्तन के कार्य को समाज का आंदोलन बनाना चाहते हैं। संघ देश के हर जिले में एक गांव को आदर्श गांव बनाना चाहता है। अभी देश में 400 गांव प्रभात गांव हैं, जहां कुछ परिवर्तन दिखता है। इस कार्य को भी संघ आगे आने वाले समय में गति प्रदान करेगा।

 – प्रहलाद सबनानी 

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Tags: hindi viveknationalismrashtriya swayamsevak sanghrsssocial equality

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