खुद ही खुद को गढ़ना होगा…

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हर वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। कई वर्षों से यह भारत में भी मनाया जा रहा है। हालांकि यह भारत की सांस्कृतिक देन नहीं है क्योंकि जन्मदिन, विवाह वर्षगांठ, जन्मतिथि और पुण्यतिथि के अलावा हमारे यहां व्यक्ति विशेष से सम्बंधित दिवस नहीं होते। महिला दिवस…

राजव्यवस्था में शक्ति के मुख्य स्रोत जन गण मन हैं

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संविधान की उद्देशिका में इन्हें ‘हम भारत के लोग‘ कहा गया है। संविधान सभा में 22 जनवरी 1947 के दिन पारित संकल्प (धारा 4) में कहा गया है, ‘‘प्रभुत्व संपन्न भारत की सभी शक्तियां और प्राधिकार, उसके संघटक भाग और शासन के सभी अंग ‘लोक‘ से उत्पन्न हैं।‘‘ भारत का…

समाज में एकत्व भाव का निर्माण ही है समाजिक समरसता

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सामाजिक समरसता समाज के भीतर रहने वाले तमाम जन समुदायों के बीच एकत्व निर्माण की एक आदर्श स्थिति है, जिस समरस समाज की अवधारणा को प्रभु राम ने बताया जिसमें वे कहते है“ समाज का निर्माण व्यक्ति-व्यक्ति के भीतर परस्पर “एक होने” के भाव एवं समता, बंधुत्व के विचार पर…

राष्ट्रीयता एवं सामाजिक समरसता का जागृत भाव

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज पूरे विश्व में सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन गया है। वैश्विक स्तर पर कई देशों में तो संघ की कार्य पद्धति पर कई शोध कार्य किए जा रहे हैं कि किस प्रकार यह संगठन अपने 97 वर्षों के लम्बे कार्यकाल में फलता फूलता रहा है एवं…

सामाजिक समरसता के पुरोधा स्वामी विवेकानंद

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भारत की दुरावस्था का कारण और निदान स्वामी जी की दृष्टि में- स्वामी विवेकानंद जी की मान्यता थी की भारतीय जीवन दर्शन दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है। इतने श्रेष्ठ जीवन दर्शन के बाद भी सामाजिक विषमता की खाई देखकर उन्हें गहन वेदना होती थी।

तुलसी की सामाजिक समरसता

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तुलसीदास जिस समय अपने विश्वप्रसिद्ध प्रबंध ‘रामचरित मानस’ की रचना कर रहे थे, देश में मुस्लिम शासकों का साम्राज्य स्थापित हो चुका था। मुसलमान परम्पराये, रहन-सहन और संस्कृति भारतीय हिन्दू पराम्पराओं और सनातन संस्कृति से मेल नहीं खाती थीं।

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