वसुधैव कुटुंबकम् की अलख जगाता ‘सेवा इंटरनेशनल’

‘सेवा इंटरनेशनल’ के कार्यकर्ता भारतीयों के साथ-साथ अफ्रीकन, मलेशिया, सिंगापुर आदि देशों के लोगों की भी मदद कर रहे हैं। युद्ध के दौरान ही ‘सेवा इंटरनेशनल’ ने रूसी सैन्य हमले के बीच यूक्रेन के सूमी से नाइजीरिया के 367 तथा नामीबिया, जाम्बिया एवं दक्षिण अफ्रीका से 100 अन्य छात्रों सहित कुल 467 अफ्रीकी छात्रों को बाहर निकाला।

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के बाद से वहां करीब 20 हजार से अधिक भारतीय नागरिक फंस गए थे, जिनमें से अधिकांश लोग स्टूडेंट्स थे, जो वहां पढ़ने गए हुए थे। युद्व शुरू होने के बाद भारत सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती इन भारतीय नागरिकों को सकुशल वहां से वापस लाना था। जिसके बाद भारत सरकार ने ‘ऑपरेशन गंगा’ की शुरुआत की।  ‘ऑपरेशन गंगा’ के तहत भारत के चार केंद्रीय मंत्री भी वहां भेजे गए, जिन्होंने विभिन्न देशों के दूतावासों से संपर्क कर भारतीय नागरिकों को सुरक्षित वहां से निकालने का काम किया। इस काम में भारत के केंद्रीय मंत्रियों के अलावा, एयर इंडिया का विमान, विदेश मंत्री यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार कार्य कर रहे थे, यानी एक तरह से हम कह सकते हैं कि भारत ने अपनी आधी सरकारी मशीनरी को इस काम के लिए लगा दिया था।

‘सेवा इंटरनेशनल’ की ‘इंटरनेशनल सेवा’

वहां एक ऐसा भी संगठन है, जिसने न तो भारत सरकार से कुछ मदद ली, और न ही वहां फंसे किसी भारतीय नागरिक या उसके घर वालों से। बावजूद इसके यह संगठन दिन रात वहां लगा रहा और वहां से भारतीय नागरिकों को निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस संगठन का नाम है ‘सेवा इंटरनेशनल’।

हिंदू स्वयंसेवक संघ से सम्बद्ध ‘सेवा इंटरनेशनल’ यूक्रेन में फंसे भारतीयों के साथ-साथ दूसरे देश के लोगों की भी वहां से निकलने में मदद कर रहा है। सेवा के इस काम में 15 देशों के करीब 300 कार्यकर्ता लगे हैं, जो दिन रात फोन द्वारा पीड़ितों से संपर्क कर उनका मार्गदर्शन करते हैं। यूक्रेन की सीमा सात देशों सहित ‘ब्लैक सी’ से भी लगती है। ‘सेवा इंटरनेशनल’ के कार्यकर्ता इन सभी आठ बॉर्डर सहित वहां के 15 शहरों में रह कर दिन रात अपनी सेवा दे रहे हैं। यही नहीं अभी तक ‘सेवा इंटरनेशनल’ के कार्यकर्ता 3500 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से और 32 हजार से अधिक लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से मदद पहुंचा चुके हैं। यह सभी लोग युद्ध से प्रभावित लोगों को यूक्रेन से बाहर निकालने के लिए गाड़ी के साथ-साथ भोजन, पानी और ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े की भी व्यवस्था कर रहे हैं। सेवा इंटरनेशनल के 300 स्वयंसेवक ऐसे हैं, जो अभी भी 100 से अधिक ऑन-द-ग्राउंड 5 सीमा की चौकियों पर तैनात हैं, जो यूक्रेन में और उसके आसपास कई तरह से मदद और सेवा करने के लिए नॉन-स्टॉप काम कर रहे हैं।

आंख-कान बना ‘सेवा इंटरनेशनल’

सेवा इंटरनेशनल ने बताया कि, वैसे तो बाढ़-तूफ़ान सहित अन्य प्राकृतिक आपदा क्षेत्रों में ‘सेवा इंटरनेशनल’ की तरफ से कई बार राहत कार्य किये गये थे, लेकिन यह पहली बार था कि जब ‘सेवा इंटरनेशनल’ युद्ध प्रभावित क्षेत्र में कम कर रही थी, इसका न तो कोई अनुभव था और न ही कोई प्लान। बस हमने वसुधैव कुटुंबकम के भाव से शुरू कर दिया। सेवा इंटरनेशनल आगे कहता है कि स्थिति काफी खराब थी, हर शहर के छात्र बिखरे हुए थे, हर छात्र होस्टल छोड़ कर बंकर में रह रहा था, इसलिए हमारे पास आये व्हाट्सऐप मैसेज को हमने सिंक्रोनाइज किया और एक गूगल शीट बना कर उसे लोगों को शेयर किया। पीड़ित छात्र गूगल शीट के माध्यम से अपनी पूरी जानकारी दे देते, और फिर जिसे  जैसी जरूरत पड़ती है, उसकी मदद उसी तरह से की जाती थी। ‘सेवा इंटरनेशनल’ के कार्यकर्ता वहां फंसे पीड़ितों और भारतीय दूतावास के लिए आंख-कान बने हुए थे। कार्यकर्ता दूतावास के अधिकारियों के साथ मिलजुल कर एक समन्वय बनाकर पीड़ितों की मदद कर रहे हैं। ‘सेवा इंटरनेशनल’ के कार्यकर्ता प्रभावित लोगों के साथ लगातार आनलाइन संपर्क में हैं। जो जहां हैं वहां से कैसे निकलेंगे, किस इलाके में कौन सी जगह सुरक्षित है, उनके रहने और भोजन की व्यवस्था कैसे होगी सहित अन्य परेशानियों पर पूरा ध्यान दे रहे हैं। इसके अलावा जो छात्र बंकर के अंदर फंसे हैं, वहां से निकालने की व्यवस्था भी ‘सेवा इंटरनेशनल’ के द्वारा किया जा रहा है।

देशी ही नहीं विदेशियों की भी सेवा

भारतीय दूतावास के साथ मिलकर ‘सेवा इंटरनेशनल’ ने जैसा काम किया, यह कहना गलत नहीं होगा कि, अपने देश के नागरिकों को यहां से निकालने में जितना सक्रिय भारतीय दूतावास रहा, उतना किसी और देश का दूतावास नहीं हुआ। ‘सेवा इंटरनेशनल’ के कार्यकर्ता भारतीयों के साथ-साथ अफ्रीकन, मलेशिया, सिंगापुर आदि देशों के लोगों की भी मदद कर रहे हैं। युद्ध के दौरान ही ‘सेवा इंटरनेशनल’ ने रूसी सैन्य हमले के बीच यूक्रेन के सूमी से नाइजीरिया के 367 तथा नामीबिया, जाम्बिया एवं दक्षिण अफ्रीका से 100 अन्य छात्रों सहित कुल 467 अफ्रीकी छात्रों को बाहर निकाला। संगठन ने एक बयान में बताया कि जब भारतीय छात्रों के माध्यम से विदेशी छात्रों तक मदद की बात पहुंची तो यूक्रेन में नाइजीरिया के राजदूत शिना अलेगे ने ‘सेवा इंटरनेशनल’ से संपर्क किया और उनके देश के फंसे हुए छात्रों को बाहर निकालने की गुहार लगाई। जिसके बाद ‘सेवा इंटरनेशनल’ ने काफी विपरीत परिस्थियों में सभी जरुरी सामानों की व्यवस्था की और नाइजीरियाई सहित अन्य अफ़्रीकी देशों के छात्रों को वहां से सुरक्षित बाहर निकाला गया। जिसके बाद, नाइजीरिया के विदेश मामलों के मंत्री जियोफ्री ओनयेमा ने ट्वीट करके ‘सेवा इंटरनेशनल’ को धन्यवाद दिया।

सेवा इंटरनेशनल का 25 देशों में चल रहा है काम

आरएसएस का अनुषांगिक संगठन सेवा इंटरनेशनल एक गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्था है। 1991 में नई दिल्ली में इसकी स्थापना की गई थी। अभी 25 से अधिक देशों में संस्था कार्यरत है। विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोग इसके सदस्य हैं। भारत या भारत के बाहर किसी भी तरह की विपदा आने पर संगठन के सदस्य सेवा कार्य में लग जाते हैं। देश विदेश के तीन लाख से अधिक लोगों के आर्थिक सहयोग से संस्था का काम चलता है। कोरोना संक्रमण के समय संस्था ने दवा से लेकर कई अस्पतालों को वेंटिलेटर तक उपलब्ध कराए थे। इसकी कई देशों में और भी शाखाएं हैं, जो उस देश में कार्यरत शाखा के नाम से जानी जाती है। जैसे यूरोप में इसकी एक स्वतंत्र इकाई है जिसे ‘सेवा यूरोप’ के नाम से जाना जाता है। ‘सेवा यूरोप’ पूरे यूरोप और यूरेशिया के कई देशों के लिए आपदा राहत और पुनर्प्राप्ति प्रयासों के लिए काम करती है। ‘सेवा यूरोप’ के कार्यकर्ता यूक्रेन के अलावा जर्मनी, पोलैंड, फिनलैंड, नॉर्वे जैसे देशों में भी अपनी सेवा दे चुके हैं। साथ ही इन देशों में रहने वाले कई हिंदू इस संगठन के कार्य को देखते हुए इसका हिस्सा बन चुके हैं। इसके अलावा ‘सेवा यूएसए’ और ‘सेवा यूके’ सहित दुनिया भर में फैली अन्य सेवा अंतरराष्ट्रीय इकाइयों के स्वयंसेवक सूचना और संसाधनों के साथ राहत प्रयासों में मदद कर रहे हैं।

सेवा की मानें तो अभी भी कुछ भारतीय छात्र वहां हैं, जो अपने विदेशी मित्र छात्रों के साथ वहां से आने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन उन पर भी ‘सेवा इंटरनेशनल’ की नजर लगातार बनी हुई है। ‘सेवा इंटरनेशनल’ का कहना है कि किसी भी आपात परिस्थिति में उन तक तत्काल मदद पहुंचाई जाएगी।

 – संतोष तिवारी

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