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आगामी संघर्ष का केंद्र होगा ताइवान?

आगामी संघर्ष का केंद्र होगा ताइवान?

by हिंदी विवेक
in अप्रैल -२०२२, देश-विदेश, विशेष, सामाजिक
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ताइवान में अमेरिका की रूचि बहुत अधिक है, क्योंकि वह इसे एक ऐसे क्षेत्र के रूप में मानता है जहां से चीनी आधिपत्यवादी योजना का प्रतिवाद हो सकता है। ताइवान का एक प्रमुख सेमी-कंडक्टर चिप निर्माता होना इस मित्रता को बड़े लाभ की ओर ले जाता है। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ताइवान पर ख़तरे की स्थिति में यही समझौता अमेरिकी हस्तक्षेप को आवश्यक करेगा।

दुनिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य में पिछले कुछ महीनों में बदलाव आया है। यूरोप, मध्य-पूर्व और अफ्रीका के क्षेत्रों में स्पष्ट हो रहा है कि इनके कुछ संभावित संवेदनशील स्थान प्रमुख संघर्ष के क्षेत्रों के रूप में बदल गए हैं। विश्व ने शीत युद्ध के युग को धूल-धूसरित, बीता हुआ और दफन हो चुका मान लिया था, परंतु उभरता हुआ वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य इस मान्यता के पुनरुत्थान का संकेत दे रहा है। कहीं यह शीत युद्ध 2.0 के पूव सर्ंकेत तो नहीं हैं?

बदलता राजनीतिक परिदृश्य

रूस, चीन, तुर्की, ईरान और पाकिस्तान को मिलाकर एक नया शक्ति गठबंधन उभर रहा है। तर्क यह दिया जा रहा है कि अगर नाटो गठबंधन बन सकता है तो ये देश क्यों नहीं? बड़ा सवाल जो अब सामने आ रहा है, वह यह है कि यूक्रेन के बाद अगला संघर्ष हम कहां देखते हैं। क्या बड़े और मजबूत राष्ट्र, छोटे और कमज़ोर राष्ट्रों को अपने अधीन करने के लिए शिकारी मानसिकता में आते नज़र आ रहे हैं? जर्मनी और जापान की अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने की ताज़ा घोषणाएं निश्चित रूप से आने वाले समय में संकट का संकेत हैं। क्या तब हम संघर्ष को दक्षिण चीन सागर में ताइवान पर केंद्रित होता देख रहे हैं? क्या चीनी वर्तमान परिदृश्य को बड़े अवसर के रूप में देखते हुए आगे बढ़ेंगे, जैसा कि अक्सर उनके बारे में कहा जाता है कि वे हमेशा अराजकता में एक अवसर ढूंढते हैं।

ताज़ा हालात

हाल ही में, ताइवान के वायु रक्षा क्षेत्रों में कई युद्धक विमानों और ड्रोन्स के घुसने की खबरें आई थीं। ऐसा लगता है कि चीन ताइवान पर सरगर्मियां बढ़ा रहा है। ताइवान के रक्षा मंत्रालय के अनुसार पिछले एक साल से अब तक 200 से अधिक चीनी विमान ताइवान हवाई क्षेत्र में प्रवेश कर चुके हैं। आज, चीन और ताइवान के बीच तनाव पहले से कहीं ज्यादा खराब है, हाल ही में ताइवान के रक्षा मंत्री चिउ कुओ चेंग ने कहा है कि, एक सैनिक के रूप में मेरे लिए संकट बिलकुल मेरे सामने है। पिछले 40 से अधिक वर्षों से मैं सेना में हूं, और वर्तमान स्थिति सर्वाधिक गंभीर है। उन्होंने आगे कहा कि चीन तैयारी कर रहा है और वर्ष 2025 तक न्यूनतम लागत और संघर्ष के साथ ताइवान पर आक्रमण  करने में सक्षम होगा। जाहिर है, बिना गोली चलाए युद्ध जीतने की चीनी रणनीति काम करती दिख रही है।

चीन भी ताइवान द्वारा फ्रांस, नीदरलैंड और न्यूजीलैंड जैसे देशों के साथ समय-समय पर किये जाने वाले सैन्य अभ्यास से खुश नहीं है। बीजिंग अन्य देशों के साथ ताइपे के किसी भी आधिकारिक राजनयिक आदान-प्रदान का भी विरोध करता है। यूनाइट्स स्टेट्स ताइवान के रक्षा उपकरणों का मुख्य आपूर्तिकर्ता है। हालांकि, चीन के साथ युद्ध की स्थिति में ताइवान की सेना का चीन की सैन्य शक्ति से कोई मुकाबला नहीं होगा, इसलिए ताइवान के लिए बाहरी विशेष रूप से अमेरिकी समर्थन लेना अनिवार्य हो जाएगा।

यूक्रेन संघर्ष का चीन की रणनीति पर प्रभाव

यूक्रेन के संघर्ष में अमेरिका और नाटो के शामिल न होने से चीन निश्चित रूप से उत्साहित था। कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि लंबे समय से ताइवान पर कब्जा करने के उसके घोषित उद्देश्य को इससे बढ़ावा मिला है। हालांकि, इसी संदर्भ में यूक्रेन की स्थानीय आबादी में रूसी सेनाओं का प्रतिरोध करने के लिए जिस तरह का राष्ट्रवादी उत्साह है वह अभूतपूर्व है और इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए, क्योंकि चीन से गहरी नापसंदगी रखने वाले ताइवान के लोगों से भी ऐसी ही उम्मीद की जा सकती है।

चीनी नेताओं के दिमाग पर एक और महत्वपूर्ण प्रभाव उन प्रतिबंधों के लेकर होगा जो पश्चिम द्वारा रूसियों पर लगाए गए हैं। चीनी अर्थव्यवस्था, संभवतः इस परिदृश्य को बर्दाश्त नहीं कर सकती। ये सभी कारक निश्चित रूप से शी जिनपिंग के दिमाग में भविष्य में ताइवान पर चीनी आक्रमण की स्थिति में की जाने वाली कार्रवाई का निर्णय लेने में बोझिल स्थिति का निर्माण कर रहे होंगे।

ताइवान पर चीनी हमले की स्थिति में बनने वाला परिदृश्य

बहुत सारे रणनीतिक विश्लेषकों की राय इस बात पर अलग-अलग है कि क्या ताइवान पर हमला होने पर अमेरिका की प्रतिक्रिया भी वैसी ही थी जैसी यूक्रेन के लिए थी? मेरी राय में ऐसा नहीं लगता है कि यह सिद्धांत ताइवान पर लागू किया जा सकता है; क्योंकि दोनों स्थितियों में भू-राजनीतिक निहितार्थ अलग-अलग हैं।

ताइवान में अमेरिका की रूचि बहुत अधिक है, क्योंकि वह इसे एक ऐसे क्षेत्र के रूप में मानता है जहां से चीनी आधिपत्यवादी योजना का प्रतिवाद हो सकता है। ताइवान का एक प्रमुख सेमी-कंडक्टर चिप निर्माता होना इस मित्रता को बड़े लाभ की ओर ले जाता है। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि अमेरिका और ताइवान के बीच ताइवान संबंध समझौता है, जो कि वास्तविक मित्रता के समान है और ताइवान को ख़तरे की स्थिति में यही समझौता अमेरिकी हस्तक्षेप को आवश्यक करेगा।

अमेरिका पहले ही एक सैन्य गठबंधन, ऑकस स्थापित कर चुका है, जो ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक त्रिपक्षीय सुरक्षा समझौता है। यह मुख्य रूप से चीन केंद्रित है और इसका उद्देश्य भारत-प्रशांत या दक्षिण चीन सागर में किसी भी मुद्दे का सामना करने पर अमेरिका की सैन्य शक्ति को बढ़ाना है।

ज़रूरत पड़ने पर अमेरिका ताइवान की ओर अपने अभियानों को आगे बढ़ाने के लिए अपने सैन्य संसाधनों को आधार प्रदान के लिए जापान का उपयोग भी कर सकता है।

वर्तमान संदर्भ में ऐसा लगता है कि चीन हिंसा के बिना जबरदस्ती की अपनी नीति को जारी रखेगा। यह ताइवान पर चीनी मुख्य भूमि के साथ पुन: एकीकरण को स्वीकार करने के लिए दबाव डालने के लिए राजनयिक, आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य जैसे अपने सभी तंत्रों का उपयोग करेगा।

जिनपिंग निश्चित रूप से इन घटनाक्रमों को बहुत करीब से देख रहे हैं, क्योंकि यह स्पष्ट हो रहा है कि अमेरिका और नाटो यूक्रेन की स्थिति को प्रभावित करने में असमर्थ हैं। यह हमें उत्तर कोरिया, ईरान या चीन के एक बहुत ही परेशान कर देने वाले परिदृश्य की ओर ले जाता है, जो प्रतिरोध की बहुत कम संभावना को देखते हुए अपनी ताक़त को तोल रहे हैं। ईराकी शहर इदरीस पर ईरान द्वारा हाल ही में किया गया मिसाइल हमला आने वाली चीजों का संकेत है।

निष्कर्ष

इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए रूस पर अधिकतम दबाव बने, इसके लिए अमेरिका अपने सहयोगियों के साथ अनथक वार्ता कर रहा है। यहां तक की उसने चीन को किसी भी तरह से रूस की मदद करने से रोकने के साथ-साथ ताइवान की ओर किसी भी बड़ी गतिविधि से बचने के लिए चीन के साथ भी बातचीत शुरू की है। हालांकि अभी तक कोई भी चीनी दिमाग को नहीं पढ़ पाया है। अत: यह मान लेना अनुचित नहीं होगा कि चीन ताइवान पर हमला करके पूरी दुनिया को आश्चर्यचकित कर सकता है। अमेरिका तथा पश्चिम जगत को आने वाले हफ़्तों में चीनी गतिविधियों और चीनी चाल पर अत्यन्य जागरूक दृष्टि बनाए रखने की आवशयकता है।

यूक्रेन संघर्ष के अनुभव से भारत के लिए सबक यह है कि एक राष्ट्र के रूप में हमारे भविष्य के विकास और कल्याण की कुंजी हमारी सैन्य और आर्थिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए स्वदेशीकरण है।

–  मे. ज. (से .नि) डॉ. राजन कोचर 

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Tags: #Chinaglobal issueshindi vivektaiwanwarworld politics

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