भारत द्वारा रूस से सस्ती दर पर कच्चे तेल की खरीद से रूपये को मजबूती मिलेगी और भारतीय विदेशी मुद्रा के भंडार में भी कमी नहीं आएगी। साथ ही, इससे व्यापार घाटे की खाई भी ज्यादा चौड़ी नहीं होगी। भारत की इस कूटनीतिक पहल से अंतरराष्ट्रीय बाजार और दुनिया के देशों में भारत की साख में बढ़ोत्तरी होने की संभावना भी बढ़ी है।
भारत का रूस और यूक्रेन दोनों के साथ कारोबारी सम्बंध हैं। साथ ही हजारों की संख्या में भारतीय भी वहां रहते हैं। यूक्रेन में ज्यादातर लोग पढाई करने जाते हैं, जबकि रूस में भारतीय पढाई, नौकरी और कारोबार करने जाते हैं। मौजूदा संकट से इन दोनों देशों में फंसे हुए भारतीयों को निकालने के लिए भारतीय सरकार पुरजोर कोशिश कर रही है।
भले ही रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया है, लेकिन अभी भी इस युद्ध में अमेरिका या अन्य देश सीधे तौर पर शामिल नहीं हुए हैं। सीधे युद्ध की जगह अमेरिका और नाटो ने रूस पर प्रतिबंध लगाने का रास्ता चुना है, लेकिन रूस पर लगाये जाने वाले प्रतिबंध बहुत प्रभावशाली नहीं हैं। इसलिए, रूस अभी भी आक्रामक रुख अपनाये हुए है।
कच्चे तेल की कीमत वर्ष 2008 के बाद पहली बार 7 मार्च 2022 को 139 डॉलर प्रति बैरल हुई थी। जानकारों के मुताबिक अगर कच्चे तेल की कीमत यूं ही आसमान को छूती रही तो रुपया और भी कमजोर होकर डॉलर के मुक़ाबले 80 के स्तर पर पहुंच सकता है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक रुपए के अवमूल्यन को रोकने के लिए पिछले 10 से 12 कारोबारी सत्रों से मुद्रा के कारोबार में हस्तक्षेप कर रहा है।
ओपेक का सदस्य यूनाइटेड अरब ऑफ अमीरात (यूएई) द्वारा तेल उत्पादन का समर्थन करने के बाद 10 मार्च को रुपया 0.34 प्रतिशत मजबूत होकर 76.31 पर बंद हुआ। उल्लेखनीय है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत में 1 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि से भारत में तेल की लागत में लगभग 8000 से 10,000 करोड़ रुपये की वृद्धि होती है।
दुनिया में सऊदी अरब, रूस और अमेरिका तेल के तीन सबसे बड़े उत्पादक देश हैं। रूस में 12 प्रतिशत, 12 प्रतिशत सऊदी अरब में और 18 प्रतिशत अमेरिका में कच्चे तेल का उत्पादन होता है। भारत 85 प्रतिशत तेल का आयात करता है। भारत ज्यादातर आयात सऊदी अरब और अमेरिका से करता है, लेकिन कुछ प्रतिशत तेल का आयात इराक, ईरान, ओमान, कुवैत, रूस आदि देशों से भी करता है।
रूस और यूक्रेन की लड़ाई से भारत का तेल आयात आंशिक रूप से प्रभावित होना तय है और इससे भारत के तेल आयात की लागत में बढ़ोतरी होगी, जिससे देश की विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आयेगी। हालांकि, भारत के पास अभी पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा का भंडार है, लेकिन अगर युद्ध कुछ और दिनों तक या महीनों तक चलता है तो भारत के लिए भी मुश्किलें बढ़ जायेंगी।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अभी ब्रेंट ब्लेंड तेल की कीमत लगभग 135 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है, जबकि वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल। डब्ल्यूटीआई को पूरी दुनिया में सबसे बढ़िया गुणवत्ता युक्त कच्चा तेल माना जाता है। भारत की कुल ईंधन खपत में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी लगभग 6 प्रतिशत है और इसकी आपूर्ति के लिए भारत पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। भारत इसका आयात क़तर, रूस, ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे आदि देशों से करता है। इसे लिक्विफाइड नेचुरल गैस यानी एलएनजी कहा जाता है। भारत लाकर इसे पीएनजी और सीएनजी में परिवर्तित किया जाता है। फिर इसका इस्तेमाल कारखानों, बिजली घरों, सीएनजी वाहनों और रसोई घरों में होता है।
रूस विश्व में प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। यह वैश्विक मांग का 10 प्रतिशत उत्पादन करता है। घरेलू प्राकृतिक गैस की कीमत में एक डॉलर की बढ़ोतरी होने पर सीएनजी की कीमत भारत में लगभग 5 रुपये प्रति किलो बढ़ जाती है। फिलवक्त, युद्ध की वजह से भारत में सीएनजी की कीमत में 15 से 20 रूपये प्रति किलो तक वृद्धि हो सकती है। प्राकृतिक गैस की कीमत में उछाल आने से रसोई गैस की कीमत भी बढ़ सकती है, जिससे भारतीय सरकार की सब्सिडी लागत में भी इजाफा होगा। रूस 40 प्रतिशत तेल और प्राकृतिक गैस, यूरोप को बेचता है, जिसे युद्ध की वजह से रूस बंद कर सकता है। इसलिए, अमेरिका कोशिश कर रहा है कि क़तर एलएनजी यूरोप को बेचे। अभी, क़तर एलएनजी भारत, चीन, जापान आदि देशों को बेच रहा है। अगर कतर अमेरिका की बात मान लेता है तो भारत के हिस्से के एलएनजी की कटौती क़तर कर सकता है।
ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स के आंकड़ों के अनुसार भारत ने वर्ष 2020 में यूक्रेन से 1.45 बिलियन डॉलर का खाद्य तेल आयात किया था। इससे पता चलता है कि भारत खाद्य तेल की अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए यूक्रेन पर आंशिक रूप से निर्भर है। युद्ध शुरू हो जाने से आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो गई है और भारत में खाद्य तेल की कीमत में उछाल आने की संभावना बढ़ गई है। इधर, भारत में वर्ष 2020 की तुलना में वर्ष 2021 में खाद्य तेल की कीमत में दोगुनी से भी ज्यादा की वृद्धि हो चुकी है। ऐसे में आम जनता की पहुंच से खाद्य तेल पूरी तरह से दूर हो सकता है।
यूक्रेन, विश्व का सबसे बड़ा परिष्कृत सूरजमुखी तेल का भी निर्यातक है। इस मामले में दूसरे स्थान पर रूस है। भारत भी इन दोनों देशों से सूरजमुखी तेल का आयात करता है। इसलिए, इसकी उपलब्धता भारत में कम हो सकती है। यूक्रेन से भारत खाद भी बड़ी मात्रा में खरीदता है। भारत ने वर्ष 2020 में लगभग 210 मिलियन डॉलर की खाद और लगभग 103 मिलियन डॉलर का न्यूक्लियर रिएक्टर व बॉयलर यूक्रेन से खरीदा था। यूक्रेन न्यूक्लियर रिएक्टर व बॉयलर के मामले में भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। इसलिए, मौजूदा युद्ध से भारत के न्यूक्लियर एनर्जी से जुडी परियोजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना लाजिमी है।
रूस पैलेडियम का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश है, जिसका इस्तेमाल बहुत सारे कीमती उत्पादों के निर्माण में होता है। रूस और यूक्रेन वैश्विक स्तर पर हथियारों के बड़े आपूर्तिकर्ता हैं। भारत भी इनसे हथियार खरीदता है। भारतीय नेवी के इस्तेमाल के लिए टरबाइन भी यूक्रेन भारत को बेचता है। इसलिए, इस युद्ध से भारत में हथियार की आपूर्ति पर भी नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है। इसके अलावा भारत, रूस से मोती, क़ीमती पत्थर, धातु भी आयात करता है। इनमें से कुछ का इस्तेमाल फोन और कंप्यूटर बनाने में किया जाता है। रूस और यूक्रेन के बीच सैन्य कार्यवाही का नकारात्मक असर भारत और चीन के बीच के वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भी देखने को मिल सकता है, क्योंकि चीन मौके का फायदा उठाकर भारत पर कूटनीतिक दबाव बना सकता है। चूंकि, अमेरिका का पूरा ध्यान अभी रूस पर है इसलिए, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
रूस दुनिया के सबसे बड़े गेहूं निर्यातक देशों में से एक है, जबकि यूक्रेन विश्व में गेहूं का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। दोनों देशों के गेहूं निर्यात को मिला दें तो यह कुल वैश्विक निर्यात का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। वहीं, भारत विश्व में गेहूं उत्पादन के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश है। इसलिए, कयास लगाये जा रहे हैं कि जो देश अभी रूस और यूक्रेन से गेहूं आयात कर रहे थे वे अब भारत से गेहूं का आयात कर सकते हैं, जो अब सच भी साबित हो रहा है।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की वजह से भारत का गेहूं निर्यात मौजूदा वित्त वर्ष के 70 लाख टन से बढ़कर 2022-23 में एक करोड़ टन के नए रिकॉर्ड को छू सकता है। भारतीय गेहूं की कीमत महज 10 दिनों के अंदर 320 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 360 डॉलर प्रति टन हो गई है। गेहूं का फरवरी के अंत तक निर्यात 66 लाख टन के स्तर तक पहुंच चुका है और मार्च के अंत इसका निर्यात 70 लाख टन के स्तर पर पहुंचने का अनुमान है।
भारत और रूस के बीच कच्चे तेल की आपूर्ति को लेकर हाल ही में एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ है, जिसके अनुसार सस्ती दर पर रूस भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति डॉलर की जगह रूपये में करेगा। यह समझौता भारत की शर्तों पर हुआ है, जिसके तहत रूस भारतीय सीमा के तट तक कच्चे तेल की आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। यह शर्त मौजूदा प्रतिबंधों की जटिलता से बचने के लिए रखी गई है। इस समझौते का सीधा फायदा भारतीय उपभोक्ताओं मिलेगा। फ़िलहाल, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों को लेकर दुनिया के देशों पर दबाव की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में यह समझौता भारत के लिए बेहद लाभदायक है। भारत द्वारा रूस से सस्ती दर पर कच्चे तेल की खरीद से रूपये को मजबूती मिलेगी और भारतीय विदेशी मुद्रा के भंडार में भी कमी नहीं आयेगी। साथ ही, इससे व्यापार घाटे की खाई भी ज्यादा चौड़ी नहीं होगी। भारत की इस कूटनीतिक पहल से अंतरराष्ट्रीय बाजार और दुनिया के देशों में भारत की साख में बढ़ोतरी होने की संभावना भी बढी है।