भारत में प्रायः सुप्त पड़ी हिन्दू अस्मिता के पुनः जागरण ने जहाँ एक और अयोध्या में प्रभु राम जन्मभूमि मंदिर के भव्य निर्माण को साकार रूप दिया है तो वही भारत की प्राचीन नगरी काशी को भी दिव्यता दी है, वही मथुरा भी भविष्य में अपने उसी वैभव को प्राप्त करेगी ऐसी आशा ज़रूर हिन्दू समाज के मन में जागृत हुई है। भारत में आज कुछ बदला है तो वो है की आज भारत का हिंदू समाज आत्मविश्वास से भरा है। अपने ही देश में उसे अल्पसंख्यक अधिकारो को वरीयता दिये जाने के कारण दूसरे दर्जे के नागरिक होने जैसा लगने वाले भाव से मुक्ति भी मिली है।
क्या कभी आपने सोचा भी था की हमारे देश का प्रधानमंत्री किसी मंदिर के निर्माण का भूमि पूजन भी कर सकता है, या प्रधानमंत्री अपने आवास पर दुर्गा पूजा भी कर सकता है। हमें भारत का इतिहास विदित है कि जहाँ देश के प्रधानमंत्री ने बड़े भारी मन से सोमनाथ मंदिर के जिणोद्धार को स्वकृति दी थी वही देश के राष्ट्रपति ना जा सके इसका भी पूरा प्रयास किया था । लेकिन लौहपुरुष सरदार पटेल का संकल्प और करोड़ों हिन्दू समाज की शक्ति ही थी जिसने उन्हें भारत के राष्ट्र गौरव को पुनः जीवंतरूप में लाने का सम्बल दिया और सोमनाथ का भव्य मंदिर दुनिया के सामने आया। वही अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर के निर्माण को वर्षों क़ानूनी दिक़्क़तों के कारण प्रतीक्षा करनी पड़ी लेकिन हज़ारों वर्षों के संघर्ष और क़ानूनी दाव पेंच के बाद देश के हिन्दू समाज की ही जीत हुई और राम मंदिर का निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ साथ ही केदारनाथ मंदिर का जिणोद्धार भी हुआ।
अब ये सब होने पर मुट्ठिभर लोगों के द्वारा गाहे-बगाहे ही सही इस बात को उठाया जाता है की आज मंदिर की क्या आवश्यकता है हमें विद्यालय और चिकत्सालय की आवश्यकता है। क्या आप जानते ऐसे ही कुछ प्रश्न उस समय भी उठाये गए जब देश की आज़ादी के बाद सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के जिणोद्धार की बात की थी तब लोग कहते थे आज देश के सामने भुखमरी और तमाम मूलभूत आवश्यकता का सवाल है ऐसे में आप मंदिर की बात कह रहे है तब भी देश का हिंदू समाज कह रहा था की बिना अपने आत्मस्वाभिमान को जागृत किए क्या हम वर्षों की अधीनता से निजात पा सकते है तो नही। इसीलिए जहाँ एक ओर अंग्रेजो के नामो पर बनी सड़कों , इमारतों के नाम को बदला गया वही भारत के महापुरुषों का पुनः स्मरण भी किया गया।
इतना ही नही भारत के संविधान में भी हमारे संस्कृतिक प्रतीकों को उकेरा गया प्रभु राम -कृष्ण को संविधान का हिस्सा बनाया गया, वही महात्मा बुद्ध को भी भारत की अस्मिता का प्रतीक माना गया। किसी भी राष्ट्र की आत्मा उसकी संस्कृति, उसके धर्म में होती है अगर उसे ही समाप्त कर दिया जाए तो उस राष्ट्र का समाज कभी भी किसी दमन के ख़िलाफ़ नही खड़ा हो सकता। भारत में 712 ईसवी में मुस्लिम लुटेरों का आना हुआ उनका काम तो भारत की सम्पदा को लूटना ही रहा लेकिन साथ वो हमारी बहु बेटियों को भी उठा ले जाते थे। वही केरल में मुस्लिम व्यापारियों का आना और धीरे-धीरे मस्जिद का निर्माण और धीरे ही सही हिंदू महिलाओं से वैवाहिक़ सम्बंध और धीरे धीरे इस्लाम की बढ़ोतरी। लेकिन ये सब बहुत मध्यम गति से चला लेकिन 1192 में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद जहाँ मुस्लिम आक्रांता पंजाब से बाहर उत्तर भारत के कई हिस्सों में आ गये वही अब वो सिर्फ़ लूटने नही बल्कि शासक बनाने के इरादे से भी आए और यही से शुरू हुआ भारत में “राज्य-संरक्षण” में चलने वाला धार्मिक मतंतारण। बड़ी भारी संख्या में ज़मींदारी और जामिनो पर अधिकार देने के नाम पर हिंदू आबादी को मुस्लिम बनने के लिए प्रेरित किया गया वही जब वो सफल नही हुए तो तलवार के दम पर धर्मांतरण का ये खेल चलाया गया।
1526 में बाबर के देश में आने के बाद तो बहुत से मन्दिरो को तोड़ा गया मस्जिदों का निर्माण किया गया, हुमायूँ के सत्ता में आना,फिर उसका भाग जाना उसका हिन्दू परिवार में शरण लेना और वही अकबर का जन्म तथा अकबर का हिन्दू परिवेश में लालन-पलान ने जहाँ अकबर को थोड़ा सहिष्णु बनाती है वही इस्लाम धर्म प्रचारकों को सूफ़ीवाद के नाम पर नये प्रकार के इस्लाम के प्रचार की स्वीकृति भी दे देते है। अकबर के काल में भी हिंदुओ को “सॉफ़्ट इस्लाम” के नाम पर बड़ी भारी मात्रा में ठगा गया। अब देखे ये वही समय था जब भक्ति आंदोलन चला, ये भक्ति आंदोलन क्या केवल जातिवाद या ऊँच-नीच के ही विरुद्ध था या हिन्दूत्व के ख़िलाफ़ था। जब इतिहास के पृष्ठों को पलटते है तो ज्ञात होता है की ये पूरा भक्ति का आंदोलन इसी “सॉफ़्ट इस्लाम” के तहत हो रहे धार्मिक मतांतरण के ख़िलाफ़त का एक ज़न आंदोलन था।
अगर आगे और देखे तो ज्ञात होता है की मुस्लिम शक्ति के पतन के उपरान्त अंग्रेज़ भारत में आए, शासन सत्ता के साथ-साथ वे अपने साथ ईसाई पादरी भी लाये जो सेवा के नाम पर हिंदू समाज की दमित जातियों को धीरे-धीरे ईसाई बनाने लगे। इसमें एक और बात जानने की है कि भारत में धार्मिक मतांतरण प्रारम्भ में दो कारणो से हुआ पहला था देश के अगड़े कहे जाने वाले वर्ग ने ये मतांतरण ज़मीन, सम्पति के लिए किया तो वही वंचित दलित साज ने आत्म सम्मान के लिए ये परिवर्तन किया वही दूसरा प्रकार था तलवार के दम पर मतांतरण करवाना। भारत में जबरन धर्म परिवर्तन एक बड़ी समस्या बन गया है। धार्मिक परिवर्तन तब होता है जब एक निश्चित धर्म से संबंधित व्यक्ति खुद को एक अलग धर्म में परिवर्तित कर लेता है। यह स्वैच्छिक है, लेकिन जब इसे जबरदस्ती किया जाता है, तो यह एक जबरदस्ती धर्म परिवर्तन(Forced Religious Conversion) कहलाता है।
ऐतिहासिक रूप से भारत जबरदस्ती धार्मिक परिवर्तन का स्थान रहा है। इतिहास स्पष्ट है कि बलपूर्वक और कपटपूर्ण धर्मांतरण, मतांतरण मानव इतिहास की वैश्विक घटना है। लोगों को अपने धर्म में परिवर्तित करने के अपने उत्साह में मुसलमानों और ईसाइयों दोनों ने अरबों लोगों को मार डाला, लाखों महिलाओं का बलात्कार किया और लाखों मंदिरों और अन्य पूजा केंद्रों को नष्ट कर दिया। उन्होंने माया मेसोपोटामिया, रोमन, मिस्र आदि कई प्राचीन संस्कृतियों को नष्ट कर दिया है। आज ये धर्म परिवर्तन लव जिहाद के माध्यम से या दैवीय सुख या नाराजगी के लालच में या दान, शिक्षा, नौकरी, धन, चिकित्सा सुविधाओं के नाम पर या बल, धोखाधड़ी के माध्यम से किए जा रहे हैं और उनके शिकार किसी भी जाति, समुदाय और क्षेत्र के हो सकते हैं।
इस तरह के मतांतरण न केवल आदिवासी क्षेत्रों, अनुसूचित और पिछड़े वर्गों, दूरस्थ और वंचित क्षेत्रों में बल्कि शहरी और शिक्षित युवा लड़के और लड़कियों में भी किए जा रहे हैं, जो इन ताकतों के सहयोग से निरंतर नियोजित और संगठित प्रयासों का परिणाम है। विदेशी फंड इस कार्य में एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत की 79.80% जनसंख्या हिंदू, 14.23% मुस्लिम, 2.30% ईसाई, 1.72% सिख, 0.70% बौद्ध और 0.37% जैन है। 1961 में, आंध्र प्रदेश में मुसलमानों की आबादी 7.55% (27,15,021) थी । इस प्रकार के मतांतरण ने आज जहाँ उत्तर-पूर्व में अशांति का वातावरण का निर्माण किया है वही कश्मीर से हिन्दू आबादी को ज़बरन कश्मीर छोड़ भाग जाने को मजबूर किया है। ये धार्मिक मतांतरण आज भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए बड़ी मुसीबत का कारण बना हुआ है।