छोटी छोटी बातों की बड़ी कहानी

 

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लाल किले से भाषण के तुरंत बाद कुछ प्रमुख समाचार चैनलों पर आयोजित चर्चा में उस भाषण का दिलचस्प विश्लेषण सुनने को मिला। एक प्रमुख हिंदी चैनल पर विशेषज्ञ के रूप में पधारे एक हिंदी संपादक का मानना, कि मोदी का उद्बोधन बहुत ही साधारण किस्म का था, ‘जनरलाइज़’ शब्द प्रयोग था। उन्हें यह बात बड़ी अजीब लग रही थी कि प्रधान मंत्री ने लाल किले की प्राचीर से अपने पूर्ववर्ती प्रधान मंत्रियों की तरह कोई बड़ी नीतिगत घोषणाएं क्यों नहीं कीं। योजना आयोग खत्म कर उसके स्थान पर नया ढांचा बनाने की घोषणा भी मोदी ने इतने साधारण ढंग से की कि वह महत्वहीन हो गई। हालांकि, दूसरे विशेषज्ञों का मत था कि मोदी ने देश की ज्वलंत समस्याओं के समाधान के लिए आम लोगों की भाषा में जिस तरह अपनी बात रखी, इससे पहले शायद ही किसी प्रधान मंत्री ने रखी हों। दरअसल यह ‘साधारणता’ ही है जो भाजपा के पूर्ण बहुमत वाली राजग सरकार के पदभार ग्रहण करने के पहले दिन से ही दिख रही है|े मोदी की अगुआई वाली सरकार उन छोटी-छोटी बातों को ठीक कर रही है जिनकी वजह से देश के राजकाज में बड़ी-बड़ी समस्याएं पनपी हैं।

‘काम ज्यादा, बातें कम’ इस सरकार का मूल मंत्र बन गया है। इससे सरकार की कार्यसंस्कृति रातोरात बदल गई है। दिल्ली के प्रशासन तंत्र में दशक भर बाद पहली बार एक पूर्ण अधिकारसंपन्न सरकार और उसके मुखिया की धमक साफ दिखाई देती है। १० साल में पहली बार सरकार सचमुच काम करती दिख रही है। मोदी ने १५ अगस्त के अपने भाषण में इस बात का उल्लेख किया कि अधिकारियों-कर्मचारियों का समय पर ऑफिस में पहुंचना भी ‘न्यूज’ बन गया है। उन्होंने उस गिरावट की ओर ध्यान दिलाया जिससे केंद्रीय राजसत्ता पंगु हो गई थी। लेकिन अधिकारी और कर्मचारी ही नहीं, मंत्रियों को भी दिल्ली में रहने पर समय पर ऑफिस पहुंचने की ताकीद है। इसके लिए केंद्र सरकार के कार्यालयों में बायोमिट्रिक प्रणाली शुरू की जा रही है। अब बड़े से बड़े अफसर से लेकर अदने कर्मचारी तक सब को ऑफिस पहुंचने और निकलने के समय अपना कार्ड मशीन में पंच करना होगा जिससे उनका आने और जाने का समय दर्ज हो जाएगा। प्रशासनिक सेवा यानि आइएएस, आइपीएस और भारतीय वन सेवा के अफसरों के ४७ साल पुराने प्रशासनिक नियमों को भी मोदी सरकार ने आते ही सुधार दिया। अब बड़े अधिकारियों के लिए यह जरूरी है कि वे न केवल जरूरतमंदों, खास तौर पर समाज के कमजोर वर्ग के लोगों से बिना हील-हवाला किए मिलें, बल्कि अपना सरकारी काम बिना पक्षपात और लालच के करें। इन नियमों में कई नए प्रावधान आज के युग की जरूरतों के हिसाब से जोड़े गए हैं। मंत्रालयों के सचिवों और खुद मंत्रियों को अपने मंत्रालय के विभिन्न कामों में से प्रत्येक के लक्ष्य (टारगेट) तय करने पड़ रहे हैं और उनको पूरा करने के लिए डेडलाइन (समय-सीमा) प्रधान मंत्री कार्यालय को बतानी पड़ रही है। मोदी अपने मंत्रियों से उनके विभाग के बारे में स्वयं पूछताछ करते हैं। इस कारण सभी मंत्रियों को अपने मंत्रालय के हरेक काम की अद्यतन जानकारी रखना जरूरी हो गया है। उत्तर प्रदेश से चुनकर आए एक वरिष्ठ नेता, जो कैबिनेट मंत्री हैं, ने बड़ी गंभीरता से बताया कि उन्हें आजकल जितना पढऩा पड़ता है, उतना तो उन्होंने अपनी पढ़ाई के दिनों भी नहीं पढ़ा। सिर्फ एक वरिष्ठ मंत्री को छोडक़र दूसरा कोई भी मंत्री न तो अपनी पसंद का निजी सचिव रख सका, न ही निजी सहायक तैनात कर सका; हालांकि सरकार में नंबर दो समझेे जाने वाले एक अन्य वरिष्ठ मंत्री को बाद में यह अनुमति मिल गई। कैबिनेट की नियुक्ति समिति में सिर्फ मोदी और उनके गृहमंत्री ही हैं। यही समिति विभिन्न मंत्रालयों में तैनाती करती है। मोदी ने नीतियों को लटकाए रखने की वजह बने मंत्रियों के सभी समूह खत्म कर दिए। ऐसे दो तरह के समूह मनमोहन सिंह सरकार की खासियत थे। प्रधान मंत्री ने सरकार के सचिवों को कह दिया है कि किसी भी फाइल के पड़ाव तीन चरणों से अधिक नहीं होने चाहिए। यह बड़ा बदलाव है जिससे निर्णयों में तेजी आई है।

भाजपा के केंद्रीय कार्यालय में मंत्रियों में से हरेक की सप्ताह में एक दिन उपस्थिति जरूरी कर दी गई है ताकि पार्टी का सामान्य कार्यकर्ता उनसे मिल सके। मंत्रियों को अपने निर्वाचन क्षेत्र में हर महीने कुछ निश्चित समय बिताना ही है। इसके लिए भी उन्हें स्पष्ट निर्देश मिले हैं। कैबिनेट मंत्रियों को शपथ लेने के तुरंत बाद ही बता दिया गया कि वे अपने मंत्रालय के कामकाज का बंटवारा अपने राज्यमंत्रियों में भी उचित ढंग से करें और उसकी लिखित सूचना पीएमओ को दें। मंत्री पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद अपने मंत्रालय के काम के बोझ से इतने लद गए कि स्वागत-सत्कार के ढेर सारे कार्यक्रम तो छोड़िए, उनमें से कई तो मंत्री बनने का जश्न भी नहीं मना पाए। भाजपा के सभी सांसदों को भी क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस बारे में नियमों का छपा हुआ पुलिंदा प्रधानमंत्री मोदी से भेंटस्वरूप मिला है। उनके कामकाज के आधार पर उनका रिपोर्ट कार्ड बनेगा। मोदी ने हरेक राज्य से चुने गए भाजपा सांसदों के संग खुद बैठकें भी की हैं। क्षेत्र की जनता को महंगाई के वास्तविक कारण नहीं बताने के लिए महाराष्ट्र के भाजपा सांसदों को तो उनकी झिडक़ी भी सुननी पड़ी।

एक और छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बात हुई है। मंत्री, सांसद और अधिकारियों ने बिना जरूरत मीडिया से बातें करना बंद कर दिया है। बड़बोले बयान बंद हो गए हैं। सरकार के पदभार ग्रहण करते ही दो नए मंत्रियों की उक्तियों से गैरजरूरी विवाद पैदा हो गया था। प्रधान मंत्री के सख्त संदेश के बाद ऐसी कोई उक्ति अब सुनने को नहीं मिलती। स्वयं मोदी भी महत्वपूर्ण अवसरों पर ही बोलते हैं। प्रधान मंत्री पद संभालने के बाद या तो वे संसद में या किसी सरकारी कार्यक्रम में या फिर विदेशी दौरों में ही बोले हैं। टीवी चैनलों की हर ‘ब्रेकिंग न्यूज’ पर उनका प्रतिक्रिया व्यक्त न करना उनके नए-नए मुरीद बने कई बुद्धिजीवियों को खटक रहा है। प्रधान मंत्री कार्यालय तो जैसे मीडिया के लिए अभेद्य दुर्ग ही बन गया है। नीतिगत निर्णयों की सूचना मीडिया को मंत्रालयों के आधिकारिक प्रवक्ताओं या पत्र सूचना कार्यालय से मिलती है। और ‘सूत्रों के हवाले से’ या ‘जानकारों के मुताबिक’ जैसी अपुष्ट खबरों का टोटा हो गया है। यहां तक कि प्रधान मंत्री के विदेश दौरों में मीडिया के ले जाने का चलन भी बंद हो गया है। हाल में ब्रिक्स देशों के सम्मेलन और नेपाल यात्रा में प्रधानमंत्री के साथ सरकारी मीडिया यानि पीआइबी, दूरदर्शन और आकाशवाणी के संवाददाता ही ले जाए गए। मंत्रियों के महत्वहीन विदेश दौरों पर लगाम लगने से उनके साथ भी मीडिया के जाने की संभावनाओं को ग्रहण लग गया है। मुफ्त में विदेशी दौरों का आदी दिल्ली के मीडिया का एक वर्ग इससे खासा परेशान है।

हाल में पूरे हुए संसद के बजट सत्र में जितने घंटे कामकाज हुआ, वैसा मुद्दत बाद हुआ है। सदन के कामकाज का प्रतिशत १०४ रहा है जो दस वर्षों में सर्वाधिक है। कुल १२ विधेयक दोनों सदनों ने पारित किए जिनमें बजट और सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्टों में जजों की नियुक्तियों के लिए बना विधेयक भी था। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़ों से पता चलता है कि सिर्फ लोकसभा में ही १६६ घंटे ५६ मिनट कामकाज हुआ जिसमें १४ घंटे २३ मिनट शोरशराबे में जाया हुए लेकिन इस व्यर्थ हुए समय की भरपाई सदन ने २७ घंटे १० मिनट देर तक बैठकर कर ली। सत्ताधारी गठबंधन में संख्याबल का वह अहंकार नदारद था जो कांग्रेस सरकारों की बड़ी बीमारी बन गया था। सत्तारूढ़ पक्ष हर मुद्दे पर बहस और चर्चा करने के लिए हर बार तैयार दिखा। संसद में यह एक बड़ा बदलाव है जिसे गंभीर विश्लेषकों ने दर्ज किया है। मोदी और भाजपा का नारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ हर कहीं गूंज रहा है।

डेढ़ सौ साल पुरानी व्यवस्था दस्तावेजों का गजेटेड अफसर से अटेस्टेशन खत्म करना छोटी-सी बात लग सकती है लेकिन यह एक बड़ा प्रशासनिक सुधार है। अब एफिडेविट देने की व्यवस्था खत्म करने की भी तैयारी है। यह कितनी राहत की बात है इसका अंदाज लगाना मुश्किल नहीं। मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने उद्बोधन में गरीबों के लिए जनधन योजना, कौशल विकास के साथ-साथ संतान पर अच्छे संस्कार डालने, साफ-सफाई के लिए ‘स्वच्छ भारत अभियान’ चलाने और हर घर में शौचालय की जरूरत (देश भर में कुल ५३ प्रतिशत घरों और गांवों में ६९ फीसदी घरों में शौचालय नहीं हैं) जैसी जो छोटी-छोटी बातें कहीं, उनके आयाम बड़े हैं। बाबा आदम के जमाने के श्रम कानूनों को नया रूप दिया जाएगा, जिससे कर्मचारी का हितलाभ बढ़े और व्यवसाय में भी सुभीता हो, ब्रिटिश काल के ६०० से अधिक अप्रासंगिक कानूनों को समाप्त करने की कार्रवाई, मनमोहन सिंह के शासन में पारित भूमि अधिग्रहण कानून, जिससे उद्योग-व्यापार का ढांचागत निर्माण के लिए सरकारों और उद्यमियों का जमीन लेना लगभग असंभव हो गया था, में बदलाव, ५०,००० करोड़ रू. के राजमार्ग प्रोजेक्टों को हरी झंडी, बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए विदेशी निवेश के कई प्रस्तावों को स्वीकृति, दक्षेस के पाकिस्तान समेत नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, भूटान जैसे पड़ोसी देशों से संबंधों के नए अध्याय और चीन जैसी महाशक्ति के साथ बराबरी के रिश्तों की पहल, ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों में बराबरी से नेतृत्व यह सब महज दो महीने में हुआ है। चुनाव सुधार और भ्रष्टाचार से संघर्ष अगले एजेंडे पर है। मोदी ने लेह में सैनिकों के सामने जब ऐलान किया कि ‘‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’’े तो देश भर में दो नंबर की कमाई पर पलने-बढऩे वाले कइयों की रूह कांप गई होगी।

प्रधान मंत्री पद संभालते ही मोदी ने जान लिया (दिल्ली की जड़ हो चुकी कार्यसंस्कृति का हल्का-सा उल्लेख उन्होंने १५ अगस्त के भाषण में किया) कि नए भारत के निर्माण के लिए उन्हें जनता ने जो पांच बरस दिए हैं वे पर्याप्त नहीं होने वाले। सो, वे न खुद चैन से सोएंगे, न अपनी टीम को चैन से सोने देंगे। उनकी सरकार ने छोटी बातों से बड़े बदलाव की ओर कदम बढ़ाए हैं। ऐसे में जब बड़े बदलाव होंगे तो वे भी शायद छोटे लगे। सो, देश की भाग्यदशा अच्छे के लिए बदलने की उम्मीद करनी चाहिए।

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