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सीपेक तो बहाना है, भारत को डराना है

सीपेक तो बहाना है, भारत को डराना है

by पार्थसारथी थपलियाल
in आर्थिक, उद्योग, देश-विदेश, राजनीति, विशेष
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संसार में चीन एक मात्र ऐसा देश है जिसके बारे में कहावत है ” ऐसा कोई सगा नही जिसको हमने ठगा नही”। चीन की यह नीति रही कि पड़ोसी देशों का अतिक्रमण किया जाय। हांगकांग और मकाऊ चीन ने पहले ही हड़प लिए हैं उसकी सीमाओं से सटे 14 देश चीन की विस्तारवादी नीति से बहुत परेशान हैं।   कैलाश मानसरोवर सहित भारत की 39000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को चीन ने 1962 भारत से हड़प लिया। अक्साई चीन भी गया। उसकी तिरछी निगाह भूटान पर भी है।

उसने अपनी चाल से नेपाल में साम्यवाद को फैलाया, मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश को आर्थिक सहायता देकर भारत को कमजोर करने के उसके प्रयास जगजाहिर हैं। आज श्रीलंका की जो आर्थिक स्थिति है उसका मुख्य कारण चीन है, जिसने वहाँ भारीमात्रा में आर्थिक निवेश किया और कर्ज भी दिया। लिहाजा श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह को चीन को 99 वर्षों की लीज पर देना पड़ा। चीन की आर्थिक मदद का दुरुपयोग श्रीलंका के राजनेताओं ने किया और आज श्रीलंका गृहयुद्ध की स्थिति में है। यदि नेपाल न संभला  तो यही स्थिति नेपाल की भी होनेवाली है।

कहते हैं कि अगर दुश्मन गुड़ खाकर ही मर सकता हो तो उसे ज़हर क्यों दिया जाय।  चीन ने इसी नीति को अपनाया। अपनी चेक बुक लेकर जिस देश मे गया मनचाहा कर्ज़ अपनी शर्तों पर देकर आया।

आपने सीपेक के बारे में सुना होगा। इसका फुलफॉर्म है चाइना-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर अर्थात “चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा”। यह चीन और पाकिस्तान के मध्य एक समझौता है। इस समझौते के अंतर्गत चीन पाकिस्तान में सड़क, हवाई अड्डे, संचार , शिक्षा और गरीबी दूर करने के आर्थिक संसाधनों का ढांचागत विकास करेगा। इस विचार की आधारशिला चीन ने तब रख ली थी जब पिछली शताब्दि के अंतिम दशक में चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह निर्माण का काम अपने हाथ मे ले लिया था।

सीपेक परियोजना में चीन अपने शिनजियांग प्रांत से पाक अधिकृत कश्मीर होते हुए ग्वादर बदरगाह तक ऐसी सड़क बना रहा है जिससे चीन अपने माल को आसानी से मध्यपूर्व के देशों तक पंहुचा सके और इन मुल्कों से पेट्रोलियम पदार्थ सीधे स्वदेश ले जा सके। इस परियोजना पर चीन 60 अरब डॉलर से अधिक व्यय कर रहा है। काम काफी हो चुका है। इस परियोजना का रणनीतिक दृष्टिकोण यह है कि पाकिस्तान में चीन की उपस्थिति भारत को कमज़ोर करेगी।

ग्वादर बन्दरगाह पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत में है। बलोचिस्तान खनिज संपदा से भरपूर क्षेत्र है लेकिन उसका लाभ वहां के लोगों को नही मिल पाया। इसलिए बलोचिस्तान पाकिस्तान से अलग होने के संघर्ष में है। विगत दिनों बलोच लिबरेशन आर्मी ने कई चीनी अधिकारियों/कर्मचारियों पर हमले किये व मौत के घाट उतार दिया। चीन समझ नही पा रहा कि वह क्या करे। बहुत से इंजीनियर व कर्मचारी चयन लौट चुके हैं। पाकिस्तान अपने अंतरराष्ट्रीय कर्जों के व्याज चुकाने के लिए जो कर्ज इधर उधर से लेता था अब कोई उसे कर्ज देने को तैयार नही।

चीन का 60 अरब डॉलर भी अनुदान नही कर्ज है। एक डॉलर की कीमत 194 रुपये हो गई है। मंहंगाई बहुत बढ़ गई है। आम आदमी का जीवन अल्लाहताला की मर्जी पर है।  चीन को गधे बेचकर पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने के प्रयास कर रहा है। उसकी एक मात्र उम्मीद भारत है। यदि भारत पाकिस्तान के साथ व्यापार समझौते को आगे बढ़ाए तो अंतिम सांस लड़ती पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को ऑक्सीजन मिल सकती है वरना पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था छिन्न भिन्न हो जाएगी।

अब चीन भारत के विरुद्ध जिस रणनीति को आगे बढ़ा रहा था सीपेक उसके गले की हड्डी बन गई है। इधर भारत और नेपाल के संबंधों में कुछ तरावट दिखाई दे रही है। श्रीलंका को आर्थिक सहायता देने में भी भारत ने कोर कसर नही छोड़ी। ये आधुनिक भारत है, चीन को धकियाने वाला भारत। मजबूत, अर्थव्यवस्था, वैश्विक स्वीकार्यता, राष्ट्रप्रथम की नीति, और शेर का जबड़ा खोलकर दांत गिनने की शक्ति। भारत न डरता है न डराता है केवल झुकाता है।

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Tags: china pakistan economical corridorcpecdebt traphindi vivekinternational businessinternational politics

पार्थसारथी थपलियाल

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