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भारतीय संस्कृति का विकृत रूप

भारतीय संस्कृति का विकृत रूप

by पार्थसारथी थपलियाल
in विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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भारतीय चिंतन परंपरा में ईश्वर की उपस्थिति सर्वत्र मानी गई गई। ईशोपनिषद में कहा गया है कि “ईशावास्यमिदं सर्वं यदकिंचिदजगत्यां जगत” संसार की प्रत्येक वस्तु में ईश्वर का वास है। वैदिक संस्कृति में ईश्वर को ब्रह्म कहा गया है। उसे ही परमेश्वर और परमात्मा भी कहते हैं। वह परमात्मा अपने सूक्ष्म अंश के रूप में प्रत्येक प्राणी की आत्मा में स्थित है। भारतीय संस्कृति जो पुनर्जन्म में विश्वास रखती है का यह चिंतन है सत्कर्म ही आत्मा की मुक्ति या पुनर्जन्म में अच्छी योनि पाने के कारक हैं। इसलिए किसी को पीड़ा न पहुंचाओ।

प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। इस संस्कृति में यह भी है कि मानो तो शंकर न मानो तो कंकर। आप ईश्वर को निराकार मानते है तो आपका मार्ग आपकी आस्था ही खोलेगी। वेद में कहा गया है- एक: सद विप्र: बहुधा वदन्ति। अर्थात एक सत्य को लोग तरह तरह से जानते है। यजुर्वेद में यह भी लिखा है-

न तस्य प्रतिमा अस्ति। उस परमेश्वर का को स्वरूप नही है।

लेकिन जो लोग ज्ञान के प्रारंभिक दौर में होते हैं उन्हें स्वरूप के माध्यम से समझना और समझाना उसी तरह आसान होता है जिस तरह हम छोटे बच्चों को खिलौनों के माध्यम से सिखाते हैं अथवा ए फ़ॉर एप्पल। स्मृति के लिए हमें रूप या आकार की आवश्यकता पड़ती है। इस बात पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है-

देखिअहिं रूप नाम आधीना, रूप ज्ञान नही नाम विहीना।

कितने ही मुस्लिम कवि हुए जिन्होंने राम को अपना आराध्य माना। कृष्ण भक्ति के मुस्लिम कवियों की नामावली काफी बड़ी है। अब्दुल रहीम ख़ान खाना ने लिखा-

रामचरित मानस विमल, संतन जीवन प्राण,

हिन्दुअन को वेदसम जमनहिं प्रगट कुरान’।।

लखनऊ के मिर्ज़ा हसन नासिर का ये छंद देखिये-

कंज-वदनं दिव्यनयनं मेघवर्णं सुन्दरं।

दैत्य दमनं पाप-शमनं सिन्धु तरणं ईश्वरं।।

गीध मोक्षं शीलवन्तं देवरत्नं शंकरं।

कोशलेशम् शांतवेशं नासिरेशं सिय वरम्।।

अल्लामा इक़बाल ने लिखा था-

है राम के वजूद पे हिंदोस्तां को नाज़,

अहले नज़र समझते हैं उनको इमाम-ए-हिंद।

रसखान परंपरा के अनेक कवि हुए जिन्होंने कृष्ण को को आराध्य माना। रसखान ने लिखा-

मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।

जो पशु हौं तौ कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥

पाहन हौं तौ वही गिरि को जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन।

जो खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन

सूफी कवि अमीर खुसरो ने लिखा-

अपनी छवि बनाइ के जो मैं पी के पास गई

जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई।

छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइ के

बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैना मिलाइ के।

आज हम तेरा ईश्वर मेरा ईश्वर की भावना से एक दूसरे कमतर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। यह न धर्म है न धार्मिकता। धर्म, इहलोक और परलोक को ध्यान में रखकर किये गए व्यवहार का नाम है। इस दौर में भारत मे बहुसंख्यक हिन्दू अपनी संस्कृति बचाने का प्रयास कर रहा है और आगत संस्कृतियां छद्म रूप से ISIS, SIMI, या PFI के माध्यम से भारतीय संस्कृति को विरूपित कर रहे हैं। हाल के दिनों में जो घटनाएं हुई हैं उन्होंने भारत की सामाजिक समरसता को कसैला बना दिया। इसकी बुनियाद वहाबी आंदोलन ने डाली जिसका उद्देश्य पूरी दुनिया का इस्लामीकरण करना है। भारतीय लोगों को इन प्रपंचों को समझने की आवश्यकता है।

निदा फ़ाज़ली मेरे पसंदीदा शायर रहे हैं, उनका शेर आप भी पढ़िए-

उठ-उठ के मस्जिदों से नमाज़ी चले गए,

दहशतगरों के हाथ में इस्लाम रह गया।।

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Tags: bharatiya sanskritihindi vivekisisislamic radicalismjihadist mindsetmuslim jihadipfireligious fanaticismsimi

पार्थसारथी थपलियाल

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