2 जून 2022 को संघ के संघ शिक्षा वर्ग (तृतीय वर्ष) का प्रशिक्षण शिविर नागपुर में संपन्न हुआ। प्रथा के अनुसार समापन कार्यक्रम में सरसंघचालक जी का भाषण हुआ। रेशीमबाग के संघ स्थान पर पहले तृतीय वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग में आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार का समारोप भाषण हुआ था।वह उनका अंतिम भाषण था।यह भाषण उनके हृदयस्थ भाव से प्रकट संघ का तत्वज्ञान था। वह भाषण शब्दों से परे जाकर है। ऐसे ही इस वर्ष समारोप भाषण में मोहन जी द्वारा व्यक्त विचार हैं।
इस भाषण का अंग्रेजी के शब्दों में वर्णन करना हो तो कहा जा सकता है कि यह “मास्टर स्ट्रोक” था। प्रसार माध्यमों ने इस भाषण में उनके द्वारा किए गए ज्ञानवापी मस्जिद के जिक्र को ही मुख्य विषय बनाकर उस पर गलत- सलत चर्चा प्रारंभ कर दी गई। आजकल माध्यम व्यावसायिक हो गए हैं, उन्हें उनका व्यवसाय करने दें। परंतु किसी भी ऐतिहासिक भाषण का टुकड़ों- टुकड़ों में विचार नहीं किया जाता। ज्ञानवापी मस्जिद का उल्लेख भाषण में यूं ही नहीं आया है। उसके पीछे विचारों की मजबूत श्रंखला है। वह क्या है उसे समझे बिना सरसंघचालक जी को कौन सा संदेश देना है यह समझ में नहीं आएगा।
मोहन जी के भाषण के 4 भाग किये जा सकते हैं। प्रास्ताविक भाषण में उन्होंने कहा कि गत 2 वर्षों में कोरोना काल के कारण संघ शिक्षा वर्ग आयोजित नहीं किए गए। इसका अर्थ यह नहीं कि संघ कार्य बंद हो गया। कार्यक्रम का स्वरूप बदल गया और कोरोना को प्रतिबंधित करना यह प्रमुख कार्यक्रम हो गया। उससे भी स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण हुआ। वर्तमान प्रशिक्षण का उद्देश्य ‘राष्ट्र को परम वैभव के शिखर पर पहुंचाने की योग्यता’ प्राप्त कराने के लिए था। संघ कार्य किस लिए चल रहा है, यह मोहन जी ने संक्षेप में प्रतिपादित किया’। विश्व विजेता बनने की भारत की आकांक्षा नहीं है। हमें किसी को जीतना नहीं है वरन सब को आपस में जोड़ना है।
सबको जोड़ने के लिए ही भारत सजग है। यही हमारा ‘स्व’ है। यह विश्व याने एकमेव शाश्वत अद्वितीय सत्य का आविष्कार है। विश्व में विविधता है पर भेद नहीं है। अपनत्व की भावना से सब को जोड़ना है। सत्य, करुणा, शुचिता और तप ये धर्म के चार पैर हैं। इनके आधार पर हमारा राष्ट्र बना है। इन मूल्यों को हमें प्रत्यक्षत: जीवन में उतारना होगा। स्वत: के आचरण से अन्य लोगों को शिक्षित करना होगा। सबको साथ लेकर चलना यह हिंदू धर्म है, वही मानव धर्म और विश्वधर्म है।” ” ऋषियों के तप से हमारा राष्ट्र खड़ा हुआ है।( मोहन जी ने—‘— यह ऋचा कहकर सुनाई। हमारे ‘स्व’ तंत्र से संपूर्ण राष्ट्र जीवन का विकास करना और विश्व को हमारे धर्म की अनुभूति करानी है।” भाषण के इस दूसरे भाग में हम कौन हैं और हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य क्या है, यह बिल्कुल सरल भाषा में समझाया। यह भाग समझे बिना आगे के विषयों का आकलन करना कठिन है।
भाषण के तीसरे भाग में विचार कितना भी श्रेष्ठ हो फिर भी उसे शक्ति का आधार चाहिए, यह प्रतिपादित किया। शक्ति के भी विभिन्न प्रकार हैं। विद्या, धन, राजशक्ति का उपयोग जो दूसरों को कष्ट देने के लिए करते हैं, वह दुष्ट प्रवृति के लोग समझे जाते हैं। परंतु जन कल्याण के लिए जो इन शक्तियों का उपयोग करते हैं सज्जनों में उनकी गणना होती है। यूक्रेन और रशिया का उल्लेख इस संदर्भ में मोहन जी ने किया। रशिया के पास अणुबम है। यूक्रेन में यदि आप हस्तक्षेप करेंगे तो रशिया अणु बम का प्रयोग करेगा ऐसी धमकी रशिया ने दी है। अन्य देश युक्रेन को आधुनिक हथियार दे रहे हैं। भारत यदि पर्याप्त शक्तिशाली होता तो वह यह युद्ध रोक सकता था। इसलिए वर्तमान समय का विचार करते समय अधिक शक्ति संपन्न होना आवश्यक है यह युक्तिसंगत प्रतीत होता है। चीन इस समय शांत बैठा है परंतु वह भविष्य में कुछ भी गड़बड़ कर सकता है, इस ओर उन्होंने ध्यान दिलाया।
इसके बाद मोहन जी ने ज्ञानवापी विवाद के विषय में अपना मत व्यक्त किया। उन्होंने कहा “ज्ञानवापी मस्जिद का एक इतिहास है जिसे बदला नहीं जा सकता। यह इतिहास हमने नहीं बनाया, आज के हिंदुओं ने नहीं लिखा। वैसे ही आज के मुसलमानों ने उसे नहीं बनाया। इस इतिहास का निर्माण इस्लाम आक्रांताओं द्वारा किया गया। उन्होंने मंदिरों का विध्वंस किया। आज के मुसलमानों के पूर्वज हिंदू ही थे। उनका और हिंदुओं का मनोबल तोड़ने हेतु मंदिर तोड़े गए। हिंदू समाज में एक वर्ग को ऐसा लगता है कि तोड़े गए मंदिरों का पुनर्निर्माण होना चाहिए। मुसलमानों को यह नही मानना चाहिए कि हिंदुओं का यह आग्रह मुसलमानों के विरुद्ध है।”
ज्ञानवापी मस्जिद का विषय गत तीन चार महीनों से गरमा गरम चर्चा का विषय बना हुआ है। अयोध्या के राम जन्मभूमि आंदोलन को सफल बनाने के लिए संघ ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। संघ को सतत गाली देने वाले एक बड़े वर्ग को यह लग रहा था कि काशी विश्वनाथ मंदिर के विषय को लेकर संघ फिर से एक बार आंदोलन करेगा। उन्हें फिर अपने पुराने रिकॉर्ड को बजाने का मौका मिलेगा। देश का मुसलमान कितना असुरक्षित है, यह बताने का मौका मिलेगा ऐसे सब लोग अपनी अपनी दुकानें खोलकर और अपने अपने अस्त्र शस्त्र निकाल कर बैठे थे। मोहन जी ने इन सब दुकानदारों का दिवाला निकाल दिया है।
उन्होंने कहा, ” राम जन्मभूमि आंदोलन में हम कुछ ऐतिहासिक कारणों से शामिल हुए थे। वह कार्य पूर्ण हो गया है। आगे संघ को कोई नया आंदोलन नहीं खड़ा करना है “।मोहन जी इसके माध्यम से देश को यह बताना चाहते हैं, कि संघ का मूलभूत कार्य व्यक्ति निर्माण का है। व्यक्ति निर्माण के माध्यम से राष्ट्र को परम वैभव के शिखर पर ले जाने का है। आंदोलन करना यह संघ का काम नहीं हो सकता। और एक मुद्दे को उन्होंने स्पर्श किया। उन्होंने कहा, “प्रत्येक मस्जिद में शिवलिंग को खोजने की आवश्यकता नहीं है”। मस्जिद यह पूजा स्थल है। जो हिंदू अब मुसलमान हो गए हैं, उन्हें उस प्रकार की पूजा पद्धति की आदत हो गई है। उनको उनकी पूजा पद्धति की स्वतंत्रता देनी चाहिए। जिस किसी को मूल धर्म में वापस आना है उनका स्वागत है। जिस किसी को मुसलमान धर्म में रहना है, उनका विरोध करने का कोई कारण नहीं है। विवाद के मुद्दों को बढ़ाना नहीं चाहिए, ऐसा उनका स्पष्ट मत था।
संघ विचारधारा के लोग सत्तासीन होने के बाद देश के अनेक हिंदुओं में बल संचार का अतिरेक हो गया है। उन्हें लग रहा है कि मुसलमानों का बंदोबस्त किए बिना उनका हिंदूपन सिद्ध नहीं होगा। ऐसे लोग अधिक राजनिष्ठ बनकर चाहे जैसा बोलते एवं लिखते रहते हैं। उनके लिए मोहन जी के विचारों को समझना एवं आत्मसात करना बहुत कठिन है। ऐसे ही कुछ लोगों ने सरसंघचालक जी का अनादरपूर्ण शब्दों में उल्लेख किया है। ऐसे ओवैसी के अवतारों से हमें 100 गज दूर रहना ही अच्छा। उनका बोझ अपने कंधों पर ना उठाएं। हमारे जो लोग दूसरे धर्मों में चले गए हैं उन्हें हमें प्यार से वापस लाना है। विवाद और संघर्ष यह उन्हें वापस लाने का मार्ग नहीं है। मोहन जी के वक्तव्य का मुझे जो अर्थ समझ में आया वह यही है।
अंत में पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी भागवत ने अपने संविधान का उल्लेख किया है। उन्होंने कहा तो एक वाक्य ही, परंतु उस पर तीन चार पन्नों का एक लेख लिखा जा सकता है। वाक्य इस प्रकार है, ” अपनी संविधान सम्मत न्याय व्यवस्था को पवित्र एवं सर्वश्रेष्ठ मानकर उसके निर्णय का हमको पालन करना चाहिए। उसके निर्णय पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाना चाहिए।” भारत संविधान के अनुसार चलेगा। हमारे संविधान निर्मित दायरे में रहकर हमें कार्य करना है। न्याय व्यवस्था पवित्र है और विवादों के विषयों का निराकरण न्याय व्यवस्था ने ही करना है। न्याय व्यवस्था के निर्णय का पालन सभी को अर्थात हिंदू और मुसलमान दोनों को करना है। देश के वर्तमान को भविष्य की राह दिखाने वाला यह एक ऐतिहासिक भाषण है।