हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
भारतीय इतिहास के साथ एक सुनियोजित खिलवाड़

भारतीय इतिहास के साथ एक सुनियोजित खिलवाड़

by हिंदी विवेक
in विशेष, व्यक्तित्व, संस्कृति, सामाजिक
0

भारतीय इतिहास की पाठय पुस्तकों में औरंगजेब और शिवाजी महाराज के संघर्ष के पश्चात चुनिन्दा घटनाओं को ही प्राथमिकता से बताया जाता हैं जैसे की नादिर शाह और अहमद शाह अब्दाली द्वारा भारत पर आक्रमण करना, प्लासी की लड़ाई में सिराज-उद-दौलाह की हार और अंग्रेजो का बंगाल पर राज होना और मराठों की पानीपत के युद्ध में हार होना। उसके पश्चात टीपू सुल्तान की हार ,सिखों का उदय और अस्त से १८५७ के संघर्ष तक वर्णन मिलता हैं। एक प्रश्न उठता है की इतिहास के इस लंबे १०० वर्ष के समय में भारत के असली शासक कौन थे? शक्तिहिन मुग़ल तो दिल्ली के नाममात्र के शासक थे परन्तु उस काल का अगर कोई असली शासक था, तो वह थे मराठे।

शिवाजी महाराज द्वारा देश,धर्म और जाति की रक्षा के लिए जो अग्नि महाराष्ट्र से प्रज्जल्वित हुई थी उसकी सीमाएँ महाराष्ट्र के बाहर फैल कर देश की सीमाओं तक पहुँच गई थी। इतिहास के सबसे रोचक इस स्वर्णिम सत्य को देखिये की जिस मतान्ध औरंगजेब ने वीर शिवाजी महाराज को पहाड़ी चूहा कहता था उन्ही शिवाजी महाराज के वंशजों को उसी औरंगजेब के वंशजों ने “महाराजधिराज “और “वज़ीरे मुतालिक” के पद से सुशोभित किया था। जिस सिंध नदी के तट पर आखिरी हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान के घोड़े पहुँचे थे उसी सिंध नदी पर कई शताब्दियों के बाद अगर भगवा ध्वज लेकर कोई पहुँचा तो वह मराठा घोड़ा था।

सिंध के किनारों से लेकर मदुरै तक, कोंकण से लेकर बंगाल तक मराठा सरदार सभी प्रान्तों से चौथ के रूप में कर वसूल करते थे, स्थान स्थान पर अपने विरुद्ध उठ रहे विद्रोहों को दबाते थे, जंजीरा के सिद्दियों को हिन्दू मंदिरो को भ्रष्ट करने का दंड देते थे, पुर्तगालियों द्वारा हिन्दुओं को जबरदस्ती ईसाई बनाने पर उन्हें यथायोग्य दंड देते थे, अंग्रेज सरकार जो अपने आपको अजेय और विश्व विजेता समझती थी मराठों को समुद्री व्यापार करने के लिए टैक्स लेते थे, देश में स्थान स्थान पर हिन्दू तीर्थों और मन्दिरों का पुनरुद्धार करते थे जिन्हें मुसलमानों ने नष्ट कर दिया था, जबरन मुस्लमान बनाये गए हिन्दुओं को फिर से शुद्ध कर हिन्दू बनाते थे । मराठों के राज में सम्पूर्ण आर्याव्रत राष्ट्र में फिर से भगवा झन्डा लहराता था और वेद ,गौ और ब्राह्मण की रक्षा होती थी।

अंग्रेज लेखक और उनके मानसिक गुलाम साम्यवादीलेखकों द्वारा एक शताब्दी से भी अधिक के हिंद्यों के इस स्वर्णिम राज को पाठ्य पुस्तकों में न लिखा जाना इतिहास के साथ खिलवाड़ नहीं तो और क्या हैं। हम न भूले की “जो राष्ट्र अपने प्राचीन गौरव को भुला देता हैं , वह अपनी राष्ट्रीयता के आधार स्तम्भ को खो देता हैं।”

उलटी गंगा बहा दी

शिवाजी महाराज का जन्म १६२७ में हुआ था। उनके काल में देश के हर भाग में मुसलमानों का ही राज्य था। यदा कदा कोई हिन्दू राजा संघर्ष करता तो उसकी हार, उसी की कौम के किसी विश्वासघाती के कारण हो जाती, हिन्दू मंदिरों को भ्रष्ट कर दिया जाता, उनमें गाय की क़ुरबानी देकर हिन्दुओं को नीचा दिखाया जाता था। हिन्दुओं की लड़कियों को उठा कर अपने हरम की शोभा बढ़ाना अपने आपको धार्मिक सिद्ध करने के समान था। ऐसे अत्याचारी परिवेश में शिवाजी महाराज का संघर्ष हिन्दुओं के लिए एक वरदान से कम नहीं था। हिन्दू जनता के कान सदियों से यह सुनने के लिए थक गए थे की किसी हिन्दू ने मुसलमान पर विजय प्राप्त की। १६४२ से शिवाजी महाराज ने बीजापुर सल्तनत के किलो पर अधिकार करना आरंभ कर दिया। कुछ ही वर्षों में उन्होंने मुग़ल किलो को अपनी तलवार का निशाना बनाया।

औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को परास्त करने के लिए अपने बड़े बड़े सरदार भेजे पर सभी नाकामयाब रहे। आखिर में धोखे से शिवाजी महाराज को आगरा बुलाकर कैद कर लिया जहाँ पर अपनी चतुराई से शिवाजी महाराज बच निकले। औरंगजेब पछताने के सिवाय कुछ न कर सका। शिवाजी महाराज ने मराठा हिन्दू राज्य की स्थापना की और अपने आपको छत्रपति से सुशोभित किया। शिवाजी महाराज की अकाल मृत्यु से उनका राज्य महाराष्ट्र तक ही फैल सका था। उनके पुत्र संभाजी में चाहे कितनी भी कमियां हो पर अपने बलिदान से शम्भा जी ने अपने सभी पाप धो डाले। औरंगजेब ने संभाजी के आगे दो ही विकल्प रखे थे या तो मृत्यु का वरण कर ले अथवा इस्लाम को ग्रहण कर ले। वीर शिवाजी महाराज के पुत्र ने भयंकर अत्याचार सह कर मृत्यु का वरण कर लिया पर इस्लाम को ग्रहण कर अपनी आत्मा से दगाबाजी नहीं की और हिन्दू स्वतंत्रता रुपी वृक्ष को अपने रुधिर से सींच कर और हरा भरा कर दिया।

शिवाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात औरंगजेब ने सोचा की मराठो के राज्य को नष्ट कर दे परन्तु मराठों ने वह आदर्श प्रस्तुत किया जिसे हिन्दू जाति को सख्त आवश्यकता थी। उन्होंने किले आदि त्याग कर पहाड़ों और जंगलों की राह ली। संसार में पहली बार मराठों ने छापामार युद्ध को आरंभ किया। जंगलों में से मराठे वीर गति से आते और भयंकर मार काट कर, मुगलों के शिविर को लूट कर वापिस जंगलों में भाग जाते। शराब-शबाब की शौकीन आरामपस्त मुग़ल सेना इस प्रकार के युद्ध के लिए कही से भी तैयार नहीं थी। दक्कन में मराठों से २० वर्षों के युद्ध में औरंगजेब बुढ़ा होकर निराश हो विश्वासपात्र गया, करीब ३ लाख की उसकी सेना काल की ग्रास बन गई।

उसके सभी विश्वास पात्र सरदार या तो मर गए अथवा बूढ़े हो गए। पर वह मराठों के छापा मार युद्ध से पार न पा सका। पाठक मराठों की विजय का इसी से अंदाजा लगा सकते हैं की औरंगजेब ने जितनी संगठित फौज शिवाजी महाराज के छोटे से असंगठित राज्य को जितने में लगा दी थी उतनी फौज में तो उससे १० गुना बड़े संगठित राज्य को जीता जा सकता था। अंत में औरंगजेब की भी १७०५ में मृत्यु हो गई परन्तु तक तक पंजाब में सिख, राजस्थान में राजपूत, बुंदेलखंड में छत्रसाल, मथुरा,भरतपुर में जाटों आदि ने मुगलिया सल्तनत की ईट से ईट बजा दी थी। मराठों द्वारा औरंगजेब को दक्कन में उलझाने से मुगलिया सल्तनत इतनी कमजोर हो गई की बाद में उसके उतराधिकारियों की आपसी लड़ाई के कारण ताश के पत्तों के समान वह ढह गई। इस उलटी गंगा बहाने का सारा श्रेय शिवाजी महाराज को जाता हैं।

स्वार्थ से बड़ा जाति अभिमान

इतिहास इस बात का गवाह हैं की मुगलों का भारत में राज हिन्दुओं की एकता में कमी होने के कारण ही स्थापित हो सका था। अकबर के काल से ही हिन्दू राजपूत एक ओर अपने ही देशवासियों से, अपनी ही कौम से अकबर के लिए लड़ रहे थे वही दूसरी और अपनी बेटियों की डोलियों को मुगल हरमों में भेज रहे थे। औरंगजेब ने जीवन की सबसे बड़ी गलती यही की कि उसने काफ़िर समझ कर राजपूतों का अपमान करना आरंभ कर दिया जिससे न केवल उसकी शक्ति कम हो गई अपितु उसकी सल्तनत में चारों और से विरोध आरंभ हो गया। भातृत्व की भावना को पनपने का मौका मिला और भाई ने भाई को अपने स्वार्थ और परस्पर मतभेद को त्याग कर गले से लगाया।

शिवाजी महाराज के पुत्र राजाराम के नेतृत्व में मराठों ने जींजी के किले से संघर्ष आरंभ कर दिया था। मराठों के सेनापति खण्डोबल्लाल ने उन मराठा सरदारों को जो कभी जिनजी के किले को घेरने में मुगलों का साथ दे रहे थे अपनी और मिलाना आरंभ कर दिया। नागोजी राणे को पत्र लिख कर समझाया गया की वे मुगलों का साथ न देकर अपनों का साथ दे जिससे देश,धर्म और जाति का कल्याण हो सके। नागोजी ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार किया और अपने ५,००० आदमियों को साथ लेकर वे मराठा खेमे में आ मिले।

अगला लक्ष्य शिरका था जो अभी भी मुगलों की चाकरी कर रहा था। सिरका ने अपने अतीत को याद करते हुए राजाराम के उस फैसले को याद दिलाया जब राजाराम ने यह आदेश जारी किया था कि जहाँ भी कोई सिरका मिले उसे मार डालो। सिरका ने यह भी कहा कि राजाराम क्या वह तो उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हैं जब पूरा भोंसले खानदान मृत्यु को प्राप्त होगा तभी उसे शांति मिलेगी। खण्डोबल्लाल सिरका के उत्तर को पाकर तनिक भी हतोत्साहित नहीं हुआ। उन्होंने शिरका को पत्र लिखकर कहा की यह समय परस्पर मतभेदों को प्रदर्शित करने का नहीं हैं। मेरे भी परिवार के तीन सदस्यों को राजाराम ने हाथी के तले कुचलवा दिया था। मैं राजाराम के लिए नहीं अपितु हिन्दू स्वराज्य के लिए संघर्ष कर रहा हूँ। इस पत्र से सिरका का हृदय द्रवित हो गया और उसके भीतर हिन्दू स्वाभिमान जाग उठा। उसने मराठों का हरसंभव साथ दिया और मुगलों के घेरे से राजाराम को छुड़वा कर सुरक्षित महाराष्ट्र पहुँचा दिया।

काश अगर जयचंद से यही शिक्षा मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय ले ली होती तो भारत से पृथ्वी राज चौहान के हिन्दू राज्य का कभी अस्त न होता।

महाराष्ट्र से भारत के कोने कोने तक

मराठों ने मराठा संघ की स्थापना कर महाराष्ट्र के सभी सरदारों को एक तार में बांध कर, अपने सभी मतभेदों को भुला कर, संगठित हो अपनी शक्ति का पुन: निर्माण किया जो शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद लुप्त सी हो गई थी। इसी शक्ति से मराठा वीर सम्पूर्ण भारत पर छाने लगे। महाराष्ट्र से तो मुगलों को पहले ही उखाड़ दिया गया था। अब शेष भारत की बारी थी। सबसे पहले निज़ाम के होश ठिकाने लगाकर मराठा वीरों ने बची हुई चौथ और सरदेशमुखी की राशी को वसूला गया। दिल्ली में अधिकार को लेकर छिड़े संघर्ष में मराठों ने सैयद बंधुओं का साथ दिया। ७०,००० की मराठा फौज को लेकर हिन्दू वीर दिल्ली पहुँच गये। इससे दिल्ली के मुसलमान क्रोध में आ गये। इस मदद के बदले मराठों को सम्पूर्ण दक्षिण भारत से चौथ और सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार मिल गया।

मालवा के हिन्दू वीरों ने जय सिंह के नेतृत्व में मराठों को मुगलों के राज से छुड़वाने के लिए प्रार्थना भेजी क्यूंकि उस काल में केवल मराठा शक्ति ही मुगलों के आतंक से देश को स्वतंत्र करवा सकती थी। मराठा वीरों की ७०,००० की फौज ने मुगलों को हरा कर भगवा झंडे से पूरे प्रान्त को रंग दिया।

बुंदेलखंड में वीर छत्रसाल ने अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी।शिवाजी महाराज और उनके गुरु रामदास को वे अपना आदर्श मानते थे। वृद्धावस्था में उनके छोटे से राज्य पर मुगलों ने हमला कर दिया जिससे उन्हें राजधानी त्याग कर जंगलों की शरण लेनी पड़ी।इस विपत्ति काल में वीर छत्रसाल ने मराठों को सहयोग के लिए आमंत्रित किया। मराठों ने वर्षा ऋतु होते हुए भी आराम कर रही मुग़ल सेना पर धावा बोल दिया और उन्हें मार भगाया। वीर छत्रसाल ने अपनी राजधानी में फिर से प्रवेश किया। मराठों के सहयोग से आप इतने प्रसन्न हुए की आपने बाजीराव को अपना तीसरा पुत्र बना लिया और उनकी मृत्यु के पश्चात उनके राज्य का तीसरा भाग बाजीराव को मिला।

इसके पश्चात गुजरात की और मराठा सेना पहुँच गई। मुगलों ने अभय सिंह को मराठों से युद्ध लड़ने के लिये भेजा। उसने एक स्थान पर धोखे से मराठा सरदार की हत्या तक कर दी पर मराठा कहाँ मानने वाले थे। उन्होंने युद्ध में जो जोहर दिखाए की मराठा तल्वाक की धाक सभी और जम गई। इधर दामा जी गायकवाड़ ने अभय सिंह के जोधपुर पर हमला कर दिया जिसके कारण उसे वापिस लौटना पड़ा। मराठों ने बरोडा और अहमदाबाद पर कब्ज़ा कर लिया।

दक्षिण में अरकाट में हिन्दू राज को गद्दी से उतर कर एक मुस्लिम वह का नवाब बन गया था। हिन्दू राजा के मदद मांगने पर मराठों ने वहाँ पर आक्रमण कर दिया और मुस्लिम नवाब पर विजय प्राप्त की। मराठों को वहाँ से एक करोड़ रुपया प्राप्त हुआ। इससे मराठों का कार्य क्षेत्र दक्षिण तक फैल गया।इसी प्रकार बंगाल में भी गंगा के पश्चिमी तट तक मराठों का विजय अभियान जारी रहा एवं बंगाल से भी उचित राशि वसूल कर मराठे अपने घर लौटे।मैसूर में भी पहले हैदर अली और बाद में टीपू सुल्तान से मराठों ने चौथ वसूली की थी।

दिल्ली के कागज़ी बादशाह ने फिर से मराठों का विरोध करना आरंभ कर दिया। बाजीराव ने मराठों की फौज को जैसे ही दिल्ली भेजा उनके किलों की नीवें मराठा सैनिकों की पदचाप से हिलने लगी। आखिर में अपनी भूल और प्रयाश्चित करके मराठा क्षत्रियों से उन्होंने पीछा छुड़ाया। अहमद शाह अब्दाली से युद्ध के काल में ही मराठा उसका पीछा करते हुए सिंध नदी तक पहुँच गये थे। पंजाब की सीमा पर कई शताब्दियों के मुस्लिम शासन के पश्चात मराठा घोड़े सिंध नदी तक पहुँच पाए थे। मराठों के इस प्रयास से एवं पंजाब में मुस्लिम शासन के कमजोर होने से सिख सत्ता को अपनी उन्नति करने का यथोचित अवसर मिला जिसका परिणाम आगे महाराजा रंजित सिंह का राज्य था। इस प्रकार सिंध के किनारों से लेकर मदुरै तक, कोंकण से लेकर बंगाल तक मराठा सरदार सभी प्रान्तों से चौथ के रूप में कर वसूल करते थे, स्थान स्थान पर अपने विरुद्ध उठ रहे विद्रोहों को दबाते थे और भगवा पताका को फहरा कर हिन्दू पद पादशाही को स्थिर कर रहे थे। इन सब प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की करीब एक शताब्दी तक मराठों का भारत देश पर राज रहा जोकि विशुद्ध हिन्दू राज्य था।

थल से जल तक

शिवाजी महाराज के समय सही मराठा फौज अपनी जल सेना को मजबूत करने में लगी हुई थी। इस कार्य का नेतृत्व कान्होजी आंग्रे के कुशल हाथों में था। कान्होजी को जंजिरा के मुस्लिम सिद्दी, गोआ के पुर्तगाली, बम्बई के अंग्रेज और डच लोगों का सामना करना पड़ता था जिसके लिए उन्होंने बड़ी फौज की भर्ती की थी। इस फौज के रख रखाव के लियी आप उस रास्ते से आने जाने वाले सभी व्यापारी जहाजों से कर लेते थे। अंग्रेज यही काम सदा से करते आये थे इसलिए उन्हें यह कैसे सहन होता। बम्बई के समुद्र तट से १६ मील की दूरी पर खांदेरी द्वीप पर मराठों का सशक्त किला था। इतिहासकार कान्होजी आंग्रे को समुद्री डाकू के रूप में लिखते हैं जबकि वे कुशल सेनानायक थे। १७१७ में बून चार्ल्स बम्बई का गवर्नर बन कर आया। उसने मराठों से टक्कर लेने की सोची।

उसने जहाजों का बड़ा बेड़ा और पैदल सेना तैयार कर मराठों के समुद्री दुर्ग पर हमला कर दिया। अंग्रेजों ने अपने जहाजों के नाम भी रिवेंज,विक्ट्री,हॉक और हंटर आदि रखे थे। पूरी तैयारी के साथ अंग्रेजों ने मराठों के दुर्ग पर हमला किया पर मराठों के दुर्ग कोई मोम के थोड़े ही बने थे। अंग्रेजों को मुँह की खानी पड़ी। अगले साल फिर हमला किया फिर मुँह की खानी पड़ी। तंग आकर इंग्लैंड के महाराजा ने कोमोडोर मैथयू के नेतृत्व में एक बड़ा बेड़ा मराठों से लड़ने के लिए भेजा। इस बार पुर्तगाल की सेना को भी साथ में ले लिया गया। बड़ा भयानक युद्ध हुआ। कोमोडोर मैथयू स्वयं आगे बढ़ बढ़ कर नेतृत्व कर रहा था। मराठा सैनिक ने उसकी जांघ में संगीन घुसेड़ दी, उसने दो गोलियाँ भी चलाई पर वह खाली गई क्यूंकि मराठों के आतंक और जल्दबाजी में वह उसमें बारूद ही भरना भूल गया। अंत में अंग्रेजों और पुर्तगालियों की संयुक्त सेना की हार हुई। दोनो एक दूसरे को कोसते हुए वापिस चले गए। डच लोगों के साथ युद्ध में भी उनकी यही गति बनी। मराठे थल से लेकर जल तक के राजा थे।

ब्रह्मेन्द्र स्वामी और सिद्दी मुसलमानों का अत्याचार

ब्रह्मेन्द्र स्वामी को महाराष्ट्र में वही स्थान प्राप्त था जो स्थान शिवाजी महाराज के काल में समर्थ गुरु रामदास को प्राप्त था। सिद्दी कोंकण में राज करते थे मराठों के विरुद्ध पुर्तगालीयों , अंग्रेजों और डच आदि की सहायता से उनके इलाकों पर हमले करते थे। इसके अलावा उनका एक पेशा निर्दयता से हिन्दू लड़के और लड़कियों को उठा कर ले जाना और मुसलमान बनाना भी था। इसी सन्दर्भ में सिद्दी लोगों ने भगवान परशुराम के मंदिर को तोड़ डाला। यह मंदिर ब्रह्मेन्द्र स्वामी को बहुत प्रिय था। उन्होंने निश्चय किया की वह कोंकण देश में जब तक वापिस नहीं आयेंगे जब तक उनके पीछे अत्याचारी मलेच्छ को दंड देने वाली हिन्दू सेना नहीं होगी क्यूंकि सिद्दी लोगों ने मंदिर और ब्राह्मण का अपमान किया हैं।

स्वामी जी वहाँ से सतारा चले गए और अपने शिष्यों शाहू जी और बाजीराव को पत्र लिख कर अपने संकल्प की याद दिलवाते रहे। मराठे उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। सिद्दी लोगों का आपसी युद्ध छिड़ गया, बस मराठे तो इसी की प्रतीक्षा में थे। उन्होंने उसी समय सिद्दियों पर आक्रमण कर दिया। जल में जंजिरा के समीप सिद्दियों के बेड़े पर आक्रमण किया गया और थल पर उनकी सेना पर आक्रमण किया गया। मराठों की शानदार विजय हुई और कोंकण प्रदेश मराठा गणराज्य का भाग बन गया। ब्रह्मेन्द्र स्वामी ने प्राचीन ब्राह्मणों के समान क्षत्रियों की पीठ थप-थपा कर अपने कर्तव्य का निर्वाहन किया था। वैदिक संस्कृति ऐसे ही ब्राह्मणों की त्याग और तपस्या के कारण प्राचीन काल से सुरक्षित रही हैं।

गोवा में पुर्तगाली अत्याचार

गोआ में पुर्तगाली सत्ता ने भी धार्मिक मतान्धता में कोई कसर न छोड़ी थी। हिन्दू जनता को ईसाई बनाने के लिए दमन की निति का प्रयोग किया गया था। हिन्दू जनता को अपने उत्सव बनाने की मनाही थी। हिन्दुओं के गाँव के गाँव ईसाई न बनने के कारण नष्ट कर दिए गये थे। सबसे अधिक अत्याचार ब्राह्मणों पर किया गया था। सैकड़ों मंदिरों को तोड़ कर गिरिजाघर बना दिया गया था। कोंकण प्रदेश में भी पुर्तगाली ऐसे ही अत्याचार करने लगे थे।ऐसे में वह की हिन्दू जनता ने तंग आकर बाजीराव से गुप्त पत्र व्यवहार आरंभ किया और गोवा के हालात से उन्हें अवगत करवाया। मराठों ने कोंकण में बड़ी सेना एकत्र कर ली और समय पाकर पुर्तगालियों पर आक्रमण कर दिया। उनके एक एक कर कई किलों पर मराठों का अधिकार हो गया।

पुर्तगाल से अंटोनियो के नेतृत्व में बेड़ा लड़ने आया पर मराठों के सामने उसकी एक न चली। वसीन के किले के चारों और मराठों ने चिम्मा जी अप्पा के नेतृत्व में घेरा दाल दिया था। वह घेरा कई दिनों तक पड़ा रहा था। अंत में आवेश में आकार अप्पा जी ने कहा की तुम लोग अगर मुझे किले में जीते जी नहीं ले जा सकते तो कल मेरे सर को तोप से बांध कर उसे किले की दिवार पर फेंक देना कम से कम मरने के बाद तो मैं किले मैं प्रवेश कर सकूँगा। वीर सेनापति के इस आवाहन से सेना में अद्वितीय जोश भर गया और अगले दिन अपनी जान की परवाह न कर मराठों ने जो हमला बोला की पुर्तगाल की सेना के पाँव ही उखड़ गए और किला मराठों के हाथ में आ गया।

यह आक्रमण गोआ तक फैल जाता पर तभी उत्तर भारत पर नादिर शाह के आक्रमण की खबर मिली। उस काल में केवल मराठा संघ ही ऐसी शक्ति थी जो इस प्रकार की इस राष्ट्रीय विपदा का प्रतिउत्तर दे सकती थी। नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण कर १५,००० मुसलमानों को अपनी तलवार का शिकार बनाया। उसका मराठा पेशवा बाजीराव से पत्र व्यवहार आरंभ हुआ। जैसे ही उसे सुचना मिली की मराठा सरदार बड़ी फौज लेकर उससे मिलने आ रहे हैं वह दिल्ली को लुटकर ,मुगलों के सिंघासन को उठा कर अपने देश वापिस चला गया।

पहाड़ी चूहे से महाराजाधिराज तक

दिल्ली में अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण का काल में रोहिल्ला सरदार नजीब खान ने दिल्ली में बाबर वंशी शाह आलम पर हमला कर उसकी आँखें फोड़ दी और उस पर भयानक अत्याचार किये। मराठा सरदार महादजी सिंधिया ने दिल्ली पर हमला बोल कर नजीब खा को उसके किये की सजा दी। इतिहास गवाह हैं की जिस औरंगजेब ने शिवाजी महाराज की वीरता से चिढ़ कर अपमानजनक रूप से उन्हें पहाड़ी चूहा कहा था उसी औरंगजेब के वंशज ने मराठा सरदार को पूना के पेशवा के लिए “वकिले मुतालिक” अर्थात “महाराजाधिराज” से सुशोभित किया। औरंगजेब जिसे आलमगीर भी कहा जाता हैं ने अपनी ही धर्मान्ध नीतियों से अपने जीवन में इतने शत्रु एकत्र कर लिए थे जिसका प्रबंध करने में ही उसकी सारी शक्ति, उसकी आयु ख़त्म हो गई।

पहले पानीपत के मैदान में मराठों को हार का सामना करना पड़ा पर इससे अब्दाली की शक्ति भी क्षीण हो गई और अब्दाली वही से वापिस अपने देश चला गया। कालांतर में मराठों के आपसी टकराव ने मराठा संघ की शक्ति को सिमित कर दिया जिससे उनकी १८१८ में अंग्रेजों से युद्ध में हार हो गई और हिन्दू पद पादशाही का मराठा स्वराज्य का सूर्य सदा सदा के लिए अस्त हो गया।

इतिहास इस बात का भी साक्षी हैं की जब भी किसी जाति पर अत्याचार होते हैं, उनका अन्याय पूर्वक दमन किया जाता हैं तब तब उसी जाति से अनेक शिवाजी महाराज, अनेक महाराणा प्रताप, अनेक गुरु गोबिंद सिंह उठ खड़े होते हैं जो अत्याचारी का समूल नष्ट कर देते हैं।केवल इस्लामिक आक्रान्ता और मुग़ल शासन से इतिहास की पूर्ति कर देना इतिहास से साथ खिलवाड़ के समान हैं जिसके दुष्परिणाम अत्यंत दूरगामी होंगे।

–  डॉ. विवेक आर्य

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: ahad tanjavar tahad peshavarchatrapati shivaji maharajhindi vivekmaratha empireraigadhshivrajyabhishek

हिंदी विवेक

Next Post
ज्ञानवापी में बाबा ही व्याप्त हैं…

ज्ञानवापी में बाबा ही व्याप्त हैं...

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

- Select Visibility -

    No Result
    View All Result
    • परिचय
    • संपादकीय
    • पूर्वांक
    • ग्रंथ
    • पुस्तक
    • संघ
    • देश-विदेश
    • पर्यावरण
    • संपर्क
    • पंजीकरण

    © 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

    0